धूल से पटी पड़ी एक किताब को झटक,
उसके पुराने पन्नों को धीरे से पलटते रहा;
अतीत को वर्तमान के झरोखे से झांकते रहा।
मै पिछले कई वर्षों का हिसाब देखता रहा,
अंधेरे में गुजारे कई दिनों को याद करता हुआ;
सोचता रहा क्या ये उजियारा दिन हमेशा का हुआ।
वक़्त ने मुझे अपने आप को तलाशने का मौका ना दिया,
गुलाम भारत को स्वतंत्र होते हुए मैंने नजदीक से देखा;
मात्र ग्यारह वर्ष की आयु का वह बालक स्वतंत्र भारत में प्रवेश कर गया।
इन सत्तर वर्षों में देश ने बहुत कुछ पाया और खोया है,
ईमानदार नेताओं के साथ ईमानदारी को गंवाया है;
भ्रष्ट आचरण से ओतप्रोत बाहुबली नेताओं को पाया है।
राष्ट्रद्रोही ,स्वार्थी ,बेईमान,घूसखोर,अधिकारियों को देखा,
शिक्षा के नक्सलियों को हमारा इतिहास बदलते देखा है;
देश की प्रगतिशील नींव में उन मीडिया हाउस को मट्ठा डालते देखा है।
आज मैंने अपने आप को उस पुरानी किताब के पन्ने पलटते पाया है,
देश की सेना पे उंगली उठाने वालों ,शिक्षा के परिसरों में राष्ट्रद्रोही नारे लगाते पाया है।
सेना का मनोबल दुगना होते देखा,खिलाड़ियों का उत्साह भी देखा;
लोगों में राष्ट्रभाबना और राष्ट्रप्रेम को जागृत होते देखा।
युवाओं को आगे बढ़ते पाया,नारी शक्ति को समृद्ध होते पाया;
अंतरिक्ष में तेजी से उड़ान भरते,चिकित्सा और तकनीक में तेजी से बढ़ते पाया।
एक बार फिर देश को विकसित महाशक्ति बनते देखा,
उस पुरानी किताब की धूल झटक कर देश को विश्व गुरु बनते देखा।