खुशियों के बोए थे बीज मैंने, जिंदगी की जमीं को जोत कर;
मेहनत कर कर्म हल चला, पौधों को बड़ा किया पसीनें से सींच कर ।
शिक्षा की खाद डाल कर,खेलकूद की कीटनाशक का छिड़काव कर;
खुशियों के पेड़ तैयार किए,मैंने जिंदगी की बंजर जमीं पर;
बीच बीच में पनपती दुखों की खरपतवार,
आशा की खुरपी चला नष्ट की हर बार ।
निराशा के कीटों को हटाया,सफलता भरी कंडे की राख से;
छोटी छोटी खुशियों की कलियां आ गई, सकारात्मकता के सूर्य प्रकाश से।
खुशियों के बोए थे बीज मैंने, जिंदगी की जमीं को जोत कर;
आज वो बड़े पेड़ बन कर लहलहाए, मन हर्षित हुआ खुशियों के बड़े बड़े फल देख कर।
परिश्रम की पराकाष्ठा,कटु सत्य से साक्षात्कार,दुखों को पार कर;
खुशियों की सदाबहार फसल , जिंदगी की उर्वरा भूमि पर हो गई अब तैयार।
बड़ी मुश्किलों में दिन काट कर ,आने वाली पीढ़ी के लिए की है ये फसल तैयार;
महत्व समझ ले आने वाली पीढ़ियां अगर,तो ये खुशियों कि फसल लहलहाती रहेगी हर बार।