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आठवां दृश्य

12 फरवरी 2022

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[नौ बजे रात का समय। कूफ़ा की जामा मसजिद। मुसलिम, मुख्तार, सुलेमान और हानी बैठे हुए हैं। कुछ आदमी द्वार पर बैठे हुए हैं।]
सुले०– अब तक लोग नहीं आए?
हानी– अब जाने की कम उम्मीद है।
मुस०– आज जियाद का लौटना सितम हो गया। उसने लोगों को वादों के सब्ज बाग दिखाए होंगे।
सुले०– इसी को तो सियामत का आईन कहते हैं।
मुस०– इन जालिमों ने सियासत को ईमान से बिल्कुल जुदा कर दिया है। दूसरे खलीफ़ों ने इन दोनों को मिलाया था। सियासत को दग़ा से पाक कर दिया था।
मुख०– हजरत मुसलिम, अब आप अपनी तकरीर शुरू कीजिए, शायद लोग जमा हो जायें।
[मुसलिम मिंबर पर चढ़कर भाषण देते हैं]
‘‘शुक्र है उस पाक खुदा का, जिसने हमें आज दीन इस्लाम के लिए एक ऐसे बुजुर्ग को खलीफ़ा चुनने का मौका दिया है, जो इस्लाम का सच्चा दोस्त…।’’
[बहुत से आदमी मसजिद में घुस पड़ते हैं।]
पहला– बस हज़रत मुसलिम, जबान बंद कीजिए।
दूसरा– जनाब, आप चुपके से मदीने की राह लें। यजीद हमारे खलीफ़ा हैं और यजीद हमारा इमाम है।
सुले०– मुझे मालूम है कि जियाद ने आज तुम्हारी पीठ पर खूब हाथ फेरे हैं, और हरी-हरी घास दिखाई है, पर याद रखो, घास के नीचे जाल बिछा हुआ है।
[बाहर से ईंट और पत्थर की वर्षा होने लगती है।]
एक आ०– मारो-मारो, यह कौम का दुश्मन है।
सुले०– जालिमी, यह खुदा का घर है। इसकी हुरमत का तो खयाल रखो।
दू० आ०– खुदा का घर नहीं; इस्लाम के दुश्मनों का अड्डा है।
तीसरा– मारो-मारो, अभी तक इसकी जबान बंद नहीं हुई।
[सुलेमान जख्मी होकर गिर पड़ते हैं। मुसलिम बाहर आकर कहते हैं।]
‘‘ऐ बदनसीब कौम, अगर तू इतनी जल्दी रसूल की नसीहतों को भूल सकती है और तुझमें नेक और बद की तमीज नहीं रही, अगर तू इतनी जल्द जुल्म और जिल्लत को भूल सकती है, तो तू दुनिया में कभी सुर्खरू न होगी।’’
एक आ०– इस्लाम का दुश्मन है।
दूसरा– नहीं-नहीं, हजरत हुसैन के चचेरे भाई हैं। इनकी तौहीन मत करो।
तीसरा– इन्हें पकड़कर शहर की किसी अंधेरी गली में छोड़ दो। हम इनके खून से हाथ न रंगेगे।
[कई आदमी मुसलिम पर टूट पड़ते हैं और उन्हें खींचते हुए ले जाते हैं, और साथ ही परदा भी बदलता है।]
मुस०– (दिल में) जालिमों ने कहां लाकर छोड़ दिया। कुछ नहीं सूझता। रास्ता नहीं मालूम। कहां जाऊं? कोई आदमी नज़र नहीं आता कि उससे रास्ता पूछूं।
[हानी आता हुआ दिखाई देता है।]
मुस०– ऐ खुदा के नेक बंदे, मुझे यहां से निकलने का रास्ता बता दो।
हानी– हज़रत मुसलिम! क्या अभी आप यहीं खड़े हैं?
मुस०– आप हैं, हानी? रसूल पाक की कसम, इस वक्त तन में जान पड़ गई। मुझे तो कई आदमियों ने पकड़ लिया, और यहां छोड़कर चल दिए।
हानी– वे मेरे ही आदमी थे। मैंने वहां की हालत देखी, तो आपको वहां से हटा देना मुनासिब समझा। मैंने उन्हें तो ताकीद की थी कि आपको मेरे घर पहुंचा दें।
मुस०– पहले आपके आदमी होंगे, अब नहीं हैं। जियाद की तकरीर ने उन पर भी असर किया है।
हानी– खैर, कोई मुजायका नहीं, मेरा मकान करीब है; आइए। हम सियासत के मैदान में जियाद से नीचा खा गए। उसने यह खबर मशहूर कर दी कि हुसैन आ रहे हैं। इस हीले से लोग जमा हो गए, और उसे उनको फ़रेब देने का मौका मिल गया।
मुस०– मुझे तो अब चारों तरफ अंधेरा-ही-अंधेरा नज़र आता है।
हानी– जियाद की तकरीर ने सूरत बदल दी। जिन आदमियों ने हजरत के पास खत भेजने पर जोर दिया था, वे भी फ़रेब में आ गए।
[सुलेमान और मुख्तार आते हैं। सुलेमान के सिर पर पट्टी बंधी हुई है।]
मुख०– शुक्र है, आप खैरियत से पहुंच गए। जियाद के आदमी आपको तलाश करते फिरते हैं।
मुस०– हानी, ऐसी हालत में यहां रहकर मैं आपको खतरे में नहीं डालना चाहता। मुझे रुखसत कीजिए। रात को किसी मसजिद में पड़ा रहूंगा।
हानी– मुआज अल्लाह, यह आप क्या फ़रमाते हैं! यह आपका घर है। मैं और मेरा सब कुछ हज़रत हुसैन के कदमों पर निसार है।
[शरीक का प्रवेश]
शरीक– अस्सलाम अलेक या हजरत मुसलिम है। मैं भी हुसैन के गुलामों में हूं।
हानी– हज़रत मुसलिम, आपने शरीफ का नाम सुना होगा। आप हज़रत अली के पुराने खादिम हैं, और उनकी शान में कई कसीदे लिख चुके हैं।
मुस०– (शरीक से गले मिलकर) ऐसा कौन बदनसीब होगा, जिससे आपका कलाम न देखा गया हो।
शरीक मैं हज़रत का खादिम और नबी का गुलाम हूं। बसरेवालों की फ़रियाद लेकर यजीद के पास गया था। वहां मालूम हुआ कि आप मक्का से रवाना हो गए हैं। मैं जियाद के साथ ही इधर चल पड़ा कि शायद आपकी कुछ खिदमत कर सकूं। यजीद ने अब सख्ती की जगह नरमी और रियायत से काम लेना शुरू किया है और, आज जियाद की तकरीर का असर देखकर मुझे यकीन हो गया है कि यहां के लोग हज़रत हुसैन से जरूर दगा कर जायेंगे। हमें भी फरेब का जवाब फरेब से ही देना लाजिम है।
मुस०– क्योंकर?
शरीक– इसकी आसान तरकीब है। मैं जियाद को अपनी बीमारी की खबर दूंगा। वह यहां मेरी मिजाज-पुरसी करने जरूर आवेगा, आप उसे कत्ल कर दीजिए।
मुस०– अल्लाहताला से फरमाया है कि मुसलमान को मुसलमान का खून करना जायज नहीं।
शरीक– अगर अल्लाहताला ने यह भी तो फरमाया है कि बेदीन को अमन देना साँप को पालना है।
मुस०– पर मेरी इंसानियत इसकी इजाजत नहीं देती।
शरीक– बेदीन को क़त्ल करना ऐन सवाब है। जिहाद में इंसानियत को दखल नहीं, हक का रास्ता डाकुओं और लुटेरों से खाली नहीं है। और उनका ख़ौफ है, तो इस रास्ते पर कदम ही न रखना चाहिए। आप इस मामले को सोचिए।
[बाहर से आदमियों का एक गिरोह हानी का दरवाजा तोड़कर अंदर घुस जाता है।]
एक आ०– इन्हीं ने हुसैन को खत लिखा था। पकड़ लो इन्हें।
मुस०– (सामने आकर) यहां से चले जाओ।
दू० आ०– यही हजरत मुसलिम हैं। इन्हें गिरफ्तार कर लो।
मुस०– हां, मैं ही मुसलिम हूं। मैं ही तुम्हारा खतावार हूं। अगर चाहते हो, तो मुझे कत्ल करो। (कमर से तलवार फेंककर) यह लो, अब तुम्हें मुझसे कोई खौफ़ नहीं है। अगर तुम्हारा खलीफ़ा मेरे खून से खुश हो, तो उसे खुश करो। मगर खुदा के लिये हुसैन को लिख दो कि आप यहां न आएं। उन्हें खिलाफत की हवस नहीं है। उनकी मंशा सिर्फ आपकी हिमायत करना था। वह आप पर अपनी जान निसार करना चाहते थे।
उनके पास फ़ौज नहीं थी, हथियार नहीं थे, महज आपके लिए अपनी बात दे देने का जोश था, इसीलिए उन्होंने अपने गोशे को छोड़ना मंजूर किया। अब आपको उनकी जरूरत नहीं है, तो उन्हें मना कर दीजिए कि यहां मत आओ। उन्हें बुलाकर शहीद कर देने से आपको नदामत और अफसोस के सिवा और कुछ हाथ न आएगा। उनकी जान लेनी मुश्किल नही; यहीं की कैफ़ियत देखकर वह इस सदमे से खुद भी मर जायेंगे। वह इसे आपका कसूर नहीं, अपना कसूर समझेंगे कि वही उम्मत, जो मेरे नाना पर जान देती थी, अगर आज मेरे खून की प्यासी हो रही है, तो यह मेरी खता है। यह गम उनका काम तमाम कर देगा। आपका और आपके अमीर का मंशा खुद-व-खुद पूरा हो जायेगा। बोलो, मंजूर है? उन्हें लिख दूं कि आपने जिनकी हिमायत के लिये शहीद होना कबूल किया था, वह अब आपको शहीद करने की फिक्र में है। आर इधर रुख न कीजिए।
[कोई नहीं बोलता]
खामोशी नीम रज़ा है। आप कहते हैं कि यह कैफ़ियत उन्हें लिख दी जाये।
कई आवाजें– नहीं, नहीं इसकी जरूरत नहीं।
मुस०– तो क्या आप यहीं उनकी लाश को अपनी आंखों के सामने तड़पती देखना चाहती है?
एक आ०– मुआजअल्लाह, हम हजरत हुसैन के कातिल न होगे।
मुस०– ऐसा न कहिए, वरना रसूल को जन्नत में भी तकलीफ होगी। आप अपनी खरज के गुलाम हैं, दौलत के गुलाम हैं। रसूल ने आपको हमेशा सब्र और संतोष की हिदायत की। आप जानते हैं, वह खुद सादगी से जिंदगी बसर करते थे। आपको पहले खलीफ़ा का हाल मालूम है, हजरत फ़ारूक के हालात से भी आप वाक़िफ हैं। अफसोस! आप उस रसूल को भूल गए, जो तवहीद के बाद इस्लाम का सबसे पाक वसूल हैं, वरना आप वसीकों और जागीरों के जाल में फंस जाते। आपने एक पल के लिये भी ख़याल नहीं किया कि वे जागीरें और वसीके किसके घर से आएंगे। दूसरों से, जो कई पुश्तों से जबरन रुपए वसूल करके आपको वसीके दिए जायेंगे। आपको खुश करने के लिये दूसरों को तबाह करने का बहाना हाथ आ जायेगा। आप अपने भाइयों के हक छीनकर अपनी हवस की प्यास बुझाना चाहते हैं। दीन-परवरी नहीं है, यह भाई-बंदी नहीं है, उसका कुछ और ही नाम है।
कई आवाजें– नहीं-नहीं, हम हराम का माल नहीं चाहते।
मुस०– मैं यजीद का दुश्मन नहीं हूं। मैं जियाद का दुश्मन नहीं हूं; मैं इस्लाम का दोस्त हूं। जो आदमी इस्लाम को पैरों से कुचलता है, चाहे वह यजीद हो, जियाद हो, या खुद हुसैन हो। उसका दुश्मन हूं। जो शख्स कुरान की और रसूल की तौहीन करता है, वह मेरा दुश्मन है।
कई आ०– हम भी उसके दुश्मन हैं। वह मुसलमान नहीं, काफ़िर है।
मुस०– बेशक, और कोई मुसलमान– अगर वह मुसलमान हैं, काफ़िर को खलीफ़ा न तस्लीम करेगा, चाहे वह उसका दामन हीरे व जवाहिर से भर दे।
कई आ०– बेशक, बेशक।
मुस०– उससे एक सच्चा दीनदार आदमी कहीं अच्छा खलीफ़ा होगा, चाहे वह चिंथड़े ही पहने हुए हो।
कई आ०– बेशक, बेशक
मुस०– तो अब आप तसलीम करते हैं कि खलीफा उसे होना चाहिए, जो इस्लाम का सच्चा पैरा हो, वह नहीं, जो एक का घर लूटकर दूसरे का दिल भरता हो।
कई आ०– बेशक, बेशक।
मुस०– किसी मुसलमान के लिये इसमें बड़ी शरम की बात नहीं हो सकती कि वह किसी को महज दौलत या हुकूमत की बदौलत अपना इमाम समझे। इमाम के लिये सबसे बड़े शर्त क्या है? इस्लाम का सच्चा पैरो होना। इस्लाम की दौलत को हमेशा हक़ीर समझा है। वह इस्लाम की मौत का दिन होगा, जब यह दौलत के सामने सिर झुकाएगा। खुदा हमको और आपको वह दिन देखने के लिए जिंदा न रखे। हमारा दुनिया से मिट जाना इससे कहीं अच्छा है। तुम्हारा फर्ज है कि बैयत लेने से पहले तहकीक कर लो, जिसे तुम खलीफ़ा बना रहे हो, वह रसूल की हिदायतों पर अमल करता है या नहीं। तहक़ीक करो, वह शराब तो नहीं पीता।
कई आ०– क्या तहक़ीक़ करना तुम्हारा काम है। जांच करों कि तुम्हारा खलीफ़ा जिनाकार तो नहीं?
कई आ०– क्या यजीद जिनाकार है?
मूस०– यह जांच करना तुम्हारा काम है। दर्याफ्त करो कि वह नमाज पढ़ता है, रोजे रखता है, आलिमों की इज्जत करता है, खजाने को बेजा इस्तेमाल तो नहीं करता? अगर इन बातों के लिए जांच किए बगैर तुम महज जागीरों और वसीकों की उम्मीद पर किसी की बैयत कबूल करते हो, तुम तो कयामत के रोज खुदा के सामने शर्मिंदा होंगे। जब वह पूछेगा कि तुमने इंतखाब के हक का क्यों बेजा इस्तेमाल किया, जो तुम कैसे क्या जवाब दोगे? जब रसूल तुम्हारा दामन पकड़कर पूछेंगे कि तुमने उसकी अमानत को, जो मैंने तुम्हें दी थी, क्यों मिटा दिया उन्हें कौन-सा मुंह दिखाओगे?
कई आ०– हमें जियाद ने धोखा दिया। हम यजीद की बैयत से इनकार करते है।
मुस०– पहले खूब जांच लो। मैं किसी पर इलजाम नहीं लगाता। कौन खड़ा हो कर कह सकता है कि यजीद इन बुराइयों से पाक है।
कई आ०– हम जांच कर चुके।
मुस०– तो तुम्हें किसकी बैयत मंजूर है?
शोर– हुसैन की! रसूल के नवासे की।
मुस०– उनके बारे में तुमने उन बातों की जांच कर ली? तुम्हें यकीन है कि हुसैन उस बुराइयों से पाक है?
कई आ०– हमने जांच कर ली। हुसैन में कोई बुराई नहीं। हम हुसैन को अपना खलीफा तस्लीम करते है। जियाद ने हमें गुमराह कर दिया था।
एक आदमी– पहले जियाद को कत्ल कर दो।
दु० आ०– बेशक, उसी ने गुमराह किया था।
मुस०– नहीं तुम्हें रसूल का वास्ता है। मोमिन पर मोमिन का खून हराम है।
[सब आदमी वहीं बैठ जाते हैं, और मुसलिम के हाथों पर हुसैन की बैयत करते हैं।] 

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रचनाएँ
कर्बला (नाटक)
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अमर कथा शिल्पी मुंशी प्रेमचंद द्वारा इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मोहम्मद के नवासे हुसैन की शहादत का सजीव एवं रोमांच विवरण का एक ऐतिहासिक नाटक है | इस मार्मिक नाटक में यह दिखाया गया है कि उस काल के मुसलिम शासकों ने किस प्रकार मानवता प्रेमी व असहायों व निर्बलों की सहायता करने वाले हुसैन को परेशान किया और अमानवीय यातनाएं दे देकर उसे कत्ल कर दिया। कर्बला के मैदान में लड़ा गया यह युद्ध इतिहास में अपना विशेष महत्त्व रखता है।जब भी मुहर्रम की बात होती है तो सबसे पहले जिक्र कर्बला का किया जाता है. आज से लगभग 1400 साल पहले तारीख-ए-इस्लाम में कर्बला की जंग हुई थी. ये जंग जुल्म के खिलाफ इंसाफ के लिए लड़ी गई थी. इस जंग में पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 साथी शहीद हो गए थे | प्रायः सभी जातियों के इतिहास में कुछ ऐसी महत्त्वपूर्ण घटनाएं होती हैं; जो साहित्यिक कल्पना को अनंत काल तक उत्तेजित करती रहती हैं। साहित्यिक समाज नित नये रूप में उनका उल्लेख किया करता है, छंदों में, गीतों में, निबंधों में, लोकोक्तियों में, व्याख्यानों में बारंबार उनकी आवृत्ति होती रहती है, फिर भी नये लेखकों के लिए गुंजाइश रहती है। मुसलमानों के इतिहास में कर्बला के संग्राम को भी वही स्थान प्राप्त है।
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भूमिका

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प्रायः सभी जातियों के इतिहास में कुछ ऐसी महत्वपूर्ण घटनाएँ होती हैं, जो साहित्यिक कल्पना को अनंत काल तक उत्तेजित करती रहती हैं। साहित्यिक-समाज नित नये रूप में उनका उल्लेख किया करता है, छंदों में, गीतो

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नाटक का कथानक

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हज़रत मुहम्मद की मृत्यु के बाद कुछ ऐसी परिस्थिति पैदा हुई कि ख़िलाफ़त का पद उनके चचेरे भाई और दामाद हज़रत अली को न मिलकर उमर फ़ारूक को मिला। हज़रत मुहम्मद ने स्वयं ही व्यवस्था की थी कि खल़ीफ़ा सर्व-सम

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नाटक के पात्र

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पुरुष हुसैन-हज़रत अली के बेटे और हज़रत मोहम्मद के नवासे । इन्हें फ़र्ज़न्दे-रसूल,शब्बीर,भी कहा गया है। अब्बास-हज़रत हुसैन के चचेरे भाई । अली अकबर-हजरत हुसैन के बड़े बेटे । अली असगर-हजरत हुसैन के छ

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पहला अंक

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पहला दृश्य {समय-नौ बजे रात्रि। यजीद, जुहाक, शम्स और कई दरबारी बैठे हुए हैं। शराब की सुराही और प्याला रखा हुआ है।} यजीद– नगर में मेरी खिलाफ़त का ढिंढोरा पीट दिया गया? जुहाल– कोई गली, कूचा, नाका, सड़

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दूसरा दृश्य

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{ रात का समय– मदीने का गवर्नर वलीद अपने दरबार में बैठा हुआ है। } वलीद– (स्वागत) मरवान कितना खुदगरज आदमी है। मेरा मातहत होकर भी मुझ पर रोब जमाना चाहता है। उसकी मर्जी पर चलता, तो आज सारा मदीना मेरा दुश

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तीसरा दृश्य

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(रात का वक्त– हुसैन अब्बास मसजिद में बैठे बातें कर रहे हैं। एक दीपक जल रहा है।) हुसैन– मैं जब ख़याल करता हूं कि नाना मरहूम ने तनहा बड़े-बड़े सरकश बादशाहों को पस्त कर दिया, और इतनी शानदार खिलाफत कायम

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चौथा दृश्य

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(समय– रात। वलीद का दरबार। वलीद और मरवान बैठे हुए हैं।) मरवान– अब तक नहीं आए! मैंने आपसे कहा न कि वह हरगिज नहीं आएंगे। वलीद– आएंगे, और जरूर आएंगे। मुझे उनके कौल पर पूरा भरोसा है। मरवान– कहीं ऐसा तो

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पाँचवाँ दृश्य

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(समय– आधी रात। हुसैन और अब्बास मसजिद के सहन में बैठे हुए हैं।) अब्बास– बड़ी ख़ैरियत हुई, वरना मलऊन ने दुश्मनों का काम ही तमाम कर दिया था। हुसैन– तुम लोगों की जतन बड़े मौक़े पर आई। मुझे गुमान न था कि

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छठा दृश्य

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(समय– संध्या। कूफ़ा शहर का एक मकान। अब्दुल्लाह, कमर, वहब बातें कर रहे हैं।) अब्दु०– बड़ा गजब हो रहा है। शामी फौज के सिपाही शहरवालों को पकड़-पकड़ जियाद के पास ले जा रहे हैं, और वहां जबरन उनसे बैयत ली

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सातवां दृश्य

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(अरब का एक गांव– एक विशाल मंदिर बना हुआ है, तालाब है, जिसके पक्के घाट बने हुए हैं, मनोहर बगीचा, मोर, हिरण, गाय आदि पशु-पक्षी इधर-उधर विचर रहे हैं। साहसराय और उनके बंधु तालाब के किनारे संध्या-हवन, ईश्व

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दूसरा अंक

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पहला दृश्य (हुसैन का क़ाफ़िला मक्का के निकट पहुंचता है। मक्का की पहाड़ियां नजर आ रही हैं। लोग काबा की मसजिद द्वार पर स्वागत करने को खड़े हैं।) हुसैन– यह लो, मक्का शरीफ़ आ गया। यही वह पाक मुकाम है, ज

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दूसरा दृश्य

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यजीद का दरबार– यजीद, जुहाक़, मुआबिया, रूमी, हुर और अन्य सभासद् बैठे हुए हैं। दो वेश्याएँ शराब पिला रही हैं।) यजीद– तुममें से कोई बता सकता है, जन्नत कहां है? हुर– रसूल ने तो चौथे आसमान पर फ़रमाया। श

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तीसरा दृश्य

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[कूफ़ा की अदालत– क़ाजी और अमले बैठे हुए है। काज़ी के सिर पर अमामा है, बदन पर कबा, कमर में कमरबंद, सिपाही नीचे कुरते पहने हुए हैं। अदालत से कुछ दूर पर मसजिद है मुकद्दमें में पेश हो रहे हैं। कई आदमी एक

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चौथा दृश्य

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[स्थान– काबा, मरदाना बैठक। हुसैन, जुबेर, अब्बास मुसलिम अली असगर आदि बैठे दिखाई देते हैं।] हुसैन– यह पांचवी सफ़ारत है। एक हज़ार से ज्यादा खतूत आ चुके हैं। उन पर दस्तखत करने वालों की तादाद पन्द्रह हजार

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पांचवां दृश्य

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[यजीद का दराबर। मुआबिया बेड़ियां पहने हुए बैठे हुआ है। चार गुलाम नंगी तलवारें लिए उसके चारों तरफ़ खड़े हैं। यजीद के तख्त के करीब सरजून रूमी बैठा हुआ है।] मुआ०– (दिल से) नबी की औलाद पर यह जुल्म! मुझी

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छठा दृश्य

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(संध्या का समय। सूर्यास्त हो चुका है। कूफ़ा का शहर– कोई सारवान ऊँट का गल्ला लिए दाखिल हो रहे है।) पहला– यार गलियों से चलना, नहीं तो किसी सिपाही की नज़र पड़ जाये, तो महीनों बेगार झेलनी पड़े। दूसरा– ह

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सातवाँ दृश्य

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[कूफ़ा के चौक में कई दुकानदार बातें कर रहे हैं।] पहला– सुना, आज हज़रत हुसैन तशरीफ लेनेवाले हैं। दूसरा– हां, कल मुख्तार के मकान पर बड़ा जमघट था। मक्का से कोई साहब उनके आने की खबर लाए हैं। तीसरा– खुद

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आठवां दृश्य

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[नौ बजे रात का समय। कूफ़ा की जामा मसजिद। मुसलिम, मुख्तार, सुलेमान और हानी बैठे हुए हैं। कुछ आदमी द्वार पर बैठे हुए हैं।] सुले०– अब तक लोग नहीं आए? हानी– अब जाने की कम उम्मीद है। मुस०– आज जियाद का ल

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नवाँ दृश्य

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[दोपहर का समय। हानी का मकान शरीक एक चारपाई पर पड़े हुए है। मुसलिम और हानी फ़र्श पर बैठे हैं।] शरीक– जियाद अब आता ही होगा। मुसलिम, तलवार को तेज रखना। हानी– मैं खुद उसे क़त्ल करता, पर जईफ़ी ने हाथों म

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दसवाँ दृश्य

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[संध्या का समय। जियाद का दरबार] जियाद– तुम लोगों में ऐसा एक आदमी भी नहीं है, जो मुसलिम का सुराग़ लगा सके। मैं वादा करता हूं कि पांच हजार दीनार उसकी नज़र करूंगा। एक दर०– हुजूर, कहीं सुराग नहीं मिलता।

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ग्यारहवाँ दृश्य

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[१० बजे रात का समय। जियाद के महल के सामने सड़क पर सुलेमान, मुखतार और हानी चले आ रहे हैं।] सुले०– जियाद के बर्ताव में अब कितना फर्क नज़र आता है। मुख०– हां, वरना हमें मशविरा देने के लिये क्यों बुलाता।

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बारहवाँ दृश्य

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[९ बजे रात का समय। मुसलिम एक अंधेरी गली में खड़े हैं, थोड़ी दूर पर एक चिराग़ जल रहा है। तौआ अपने मकान के दरवाज़े पर बैठी हुई है।] मुस०– (स्वागत) उफ्! इतनी गरमी मालूम होती है कि बदन का खून आग हो गया।

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तेरहवां दृश्य

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[प्रातःकाल का समय। जियाद का दरबार। मुसलिम को कई आदमी मुश्क कसे लाते हैं] मुस०– मेरा उस पर सलाम है, जो हिदायत पर चलता है, आकबत से डरता है, और सच्चे बादशाह की बंदगी करता है। चोबदार– मुसलिम! अमीर को सल

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कर्बला (भाग-2)

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तीसरा अंक पहला दृश्य [दोपहर का समय। रेगिस्तान में हुसैन के काफ़िले का पड़ाव। बगूले उड़ रहे है। हुसैन असगर को गोद में लिए अपने खेमे के द्वार पर खड़े हैं।] हुसैन– (मन में) उफ्, यह गर्मी! निगाहें जलती

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दूसरा दृश्य

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[संध्या का समय। हुसैन का काफिला रेगिस्तान में चला जा रहा है।] अब्बास– अल्लाहोअकबर। वह कूफ़ा के दरख्त नज़र आने लगे। हबीद– अभी कूफ़ा दूर है। कोई दूसरा गांव होगा। अब्बास– रसूल पाक की कसम, फौज है। भालो

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तीसरा दृश्य

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[संध्या का समय– नसीमा बगीचे में बैठी आहिस्ता-आहिस्ता गा रही है।] दफ़न करने ले चले जब मेरे घर से मुझे, काश तुम भी झांक लेते रौज़ने घर से मुझे। सांस पूरी हो चुकी दुनिया से रुख्सत हो चुका, तुम अब आए

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चौथा दृश्य

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[आधी रात का समय। अब्बास हुसैन के खेमे के सामने खड़े पहरा दे रहे हैं। हुर आहिस्ता से आकर खेमे के करीब खड़ा हो जाता है।] हुर– (दिल में) खुदा को क्या मुंह दिखाऊंगा? किस मुंह से रसूल के सामने जाऊंगा? आह,

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पांचवां दृश्य

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[रात का समय। हुसैन अपने खेमे में सोए हुए हैं। वह चौंक पड़ते हैं, और लेटे हुए, चौकन्नी आंखों से, इधर-उधर ताकते हैं।] हुसैन– (दिल में) यहां तो कोई नजर नहीं आता। मैं हूं, शमा है, और मेरा धड़कता हुआ दिल

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छठा दृश्य

12 फरवरी 2022
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[कर्बला का मैदान। एक तरफ केरात-नदीं लहरें मार रही है। हुसैन मैदान में खड़े हैं। अब्बास और अली अकबर भी उनके साथ हैं।] अली अकबर– दरिया के किनारे खेमे लगाए जाए, वहां ठंडी हवा आएगी। अब्बास– बड़ी फ़िजा क

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सातवां दृश्य

12 फरवरी 2022
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[नसीमा अपने कमरे में अकेली बैठी हुई है– समय १२ बजे रात का।] नसीमा– (दिल में) वह अब तक नहीं आए। गुलाम को उन्हें साथ लाने के लिए भेजा, वह भी वहीं का हो रहा। खुदा करे, वह आते हों। दुनिया में रहते हुए हम

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चौथा अंक

12 फरवरी 2022
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पहला दृश्य [प्रातःकाल का समय। जियाद फर्श पर बैठा हुआ सोच रहा है।] जियाद– (स्वगत) उस वफ़ादारी की क्या कीमत है, जो महज जबान तक महदूद रहें? कूफ़ा के सभी सरदार, जो मुसलिम बिन अकील से जंग करते वक्त बग़ले

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तीसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
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[केरात-नदी के किनारे साद का लश्कर पड़ा हुआ है। केरात से दो मील के फासले पर कर्बला के मैदान में हुसैन का लश्कर है। केरात और हुसैन के लश्कर के बीच में साद ने एक लश्कर को नदी के पानी को रोकने के लिये पहर

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चौथा दृश्य

12 फरवरी 2022
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[हुसैन के हरम की औरतें बैठी हुई बातें कर रही हैं। शाम का वक्त।] सुगरा– अम्मा, बडी प्यास लगी है। अली असगर– पानी, बूआ पानी। हंफ़ा– कुर्बान गई, बेटे कितना पानी पियोगे? अभी लाई (मश्को को जाकर देखती है,

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पांचवां दृश्य

12 फरवरी 2022
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[८ बजे रात का समय। जियाद की खास बैठक। शिमर और जियाद बातें कर रहे हैं।] जियाद– क्या कहते हो। मैंने सख्त ताकीद कर दी थी कि दरिया पर हुसैन का कोई आदमी न आने पाए। शिमर– बजा है। मगर मैं तो हुसैन के आदमिय

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छठा दृश्य

12 फरवरी 2022
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[प्रातःकाल। शाम का लश्कर। हुर और साद घोड़ों पर सवार फ़ौज का मुआयना कर रहे हैं।] हुर– अभी तर जियाद ने आपके खत का जबान नहीं दिया? साद-उसके इंतजार में रात-भर आंखें नहीं लगीं। जब किसी की आहट मिलती थी, त

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सातवाँ दृश्य

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[समय ८ बजे रात। हुसैन एक कुर्सी पर मैदान में बैठे हुए हैं। उनके दोस्त और अजीज सब फ़र्श पर बैठे हुए हैं। शमा जल रही है।] हुसैन– शुक्र है, खुदाए-पाक का, जिसने हमें ईमान की रोशनी अता की, ताकि हम नेक को

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आठवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
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[प्रातःकाल हुसैन के लश्कर में जंग की तैयारियां हो रही हैं।] अब्बास– खेमे एक दूसरे से मिला दिए गए, और उनके चारों तरफ खंदके खोद डाली गई, उनमें लकड़ियां भर दी गई। नक्कारा बजवा दूं? हुसैन– नहीं, अभी नही

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नवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
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[कूफ़ा का वक्त। कूफ़ा का एक गांव। नसीमा खजूर के बाग में जमीन पर बैठी हुई गाती है।] गीत दबे हुओं को दबाती है ऐ जमीने-लहद, यह जानती है कि दम जिस्म नातवां में नहीं। क़फस में जी नहीं लगता है आह! फिर भ

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पांचवां अंक

12 फरवरी 2022
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पहला दृश्य [समय ९ बजे दिन। दोनों फौ़जे लड़ाई के लिये तैयार हैं।] हुर– या हजरत, मुझे मैदान में जाने की इजाजत मिले। अब शहादत का शौक रोके नहीं रुकता। हुसैन– वाह, अभी आए हो और अभी चले जाओगे। यह मेहमानन

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दूसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
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[समर-भूमि। साद की तरफ़ से दो पहलवान आते हैं– यसार और सालिम।] यसार– (ललकारकर) कौन निकलता है, हुर का साथ देने के लिये। चला जाए, जिसे मौत का मजा चखना हो। हम वह है, जिनकी तलवार से क़ज़ा की रूह भी क़जा हो

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तीसरा दृश्य

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[दोपहर का समय। हजरत हुसैन अब्बास के साथ खेमे के दरवाजे पर खड़े मैदाने-जंग की तरफ ताक रहे हैं।] हुसैन– कैसे-कैसे जांबाज दोस्त रुखसत हो गए और होते जा रहे हैं। प्यास से कलेजे मुंह को आ रहे हैं, और ये जा

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चौथा दृश्य

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[जैनब अपने खेमे में बैठी हुई है। शाम का वक्त] जैनब– (स्वगत) अब्बास और अली अकबर के सिवा अब भैया के कोई रकीफ़ बाकी नहीं रहे। सब लोग उन पर निसार हो गए। हाय, कासिम-सा जवान, मुसलिम के बेटे, अब्बास के भाई,

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पांचवां दृश्य

12 फरवरी 2022
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[१२ बजे रात का समय। लड़ाई ज़रा देर के लिए बंद है। दुश्मन की फ़ौज ग़ाफिल है। दरिया का किनारा। अब्बास हाथों में मशक लिए दरिया के किनारे खड़े हैं।] अब्बास– (दिल में) हम दरिया से कितने करीब हैं। इतनी ही

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छठा दृश्य

12 फरवरी 2022
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[दोपहर का समय। हुसैन अपने खेमे में खड़े है, जैनब, कुलसूम, सकीना, शहरबानू, सब उन्हें घेरे खड़े हैं।] हुसैन– जैनब, अब्बास के बाद अली अकबर दिल को तस्कीन देता था। अब किसे देखकर दिल को ढाढ़स दूं? हाय! मेर

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