[रात का समय। हुसैन अपने खेमे में सोए हुए हैं। वह चौंक पड़ते हैं, और लेटे हुए, चौकन्नी आंखों से, इधर-उधर ताकते हैं।]
हुसैन– (दिल में) यहां तो कोई नजर नहीं आता। मैं हूं, शमा है, और मेरा धड़कता हुआ दिल है। फिर मैंने आवाज किसकी सुनी! सिर में कैसा चक्कर आ रहा है। जरूर कोई था। ख्वाब पर हकीकत का धोखा नहीं हो सकता। ख्वाब के आदमी शबनम के परदे में ढकी हुई तस्वीरों की तरह होते हैं। ख्वाब की आवाज़ें जमींन के नीचे से निकलने वाली आवाजों की तरह मालूम होती है। उनमें यह बात कहां! देखूं, कोई बाहर तो खड़ा नहीं है। (खेमे से बाहर निकलकर) उफ् कितनी गहरी तारीकी है, गोया मेरी आँखों ने कभी रोशनी देखी ही नहीं। कैसा गहरा सन्नाटा है, गोया सुनने की ताकत ही से महरूम हूं। गोया यह दुनिया अभी-अभी अदम के ग़ार से निकली है (प्रकट) कोई हैं।
[अली अकबर का प्रवेश]
अली०– हाज़िर हूं, अब्बाजान, क्या इरशाद है?
हुसैन– यहां से अभी कोई सवार तो नहीं गुजरा है?
अली०– अगर मेरे होश-हवास बजा हैं, तो इधर कोई जानदार नहीं गुजरा।
हुसैन– ताज्जुब है, अभी लेटा हुआ था, और जहां तक मुझे याद है, मेरी पलकें तक नहीं झपकीं, पर मैंने देखा, एक आदमी मुश्की घोड़े पर सवार सामने खड़े होकर मुझसे कह रहा है कि ‘ऐ हुसैन! इराक जाने की जल्दी कर रहे हो, और मौत तुम्हारे पीछे-पीछे दौड़ी जा रही है।’ बेटा, मालूम हो रहा है, मेरी मौत करीब है!
अली०– बाबा, क्या हम हक़ पर नहीं हैं?
हुसैन– बेशक, हम हक़ पर हैं, तो मौत का क्या डर। क्या परवा, अगर हम मौत की तरफ जायें या मौत हमारी तरफ आए।
हुसैन– बेटा, तुमने दिल खुद कर दिया। खुदा तुमको वह सबसे बड़ा इनाम दे, जो बाप बेटे को दे सकता है।
[जहीर, हबीब, अब्दुला, कलबी और उसकी स्त्री का प्रवेश।]
अली०– कौन इधर से जा रहा है?
जहीर– हम मुसाफिर हैं। ये खेमे क्या हज़रत हुसैन के हैं?
अली०– हां।
जहीर– खुदा का शुक्र है कि हम मंजिल-मक़सूद पर पहुंच गए। हम उन्हीं की जियारत के लिए कूफ़ा से आ रहे हैं।
हुसैन– जिसके लिए आप कूफ़ा से आ रहे है, वह खुद आपसे मिलने के लिए कूफ़ा जा रहा है। मैं ही हुसैन बिन अली हूं।
जहीर– हमारे जहे-नसीब कि आपकी जियारत हुई। हम सब-के-सब आपके गुलाम हैं। कूफ़ा में इस वक्त दर व दीवार आपके दुश्मन हो रहे हैं। आप उधर क़स्द न फरमाएं। हम इसलिए चले आए हैं कि वहां रहकर आपकी कुछ खिदमत नहीं कर सकते। हमने हज़रत मुसलिम के क़त्ल का खूनी नज़ारा देखा है, रानी को कत्ल होते देखा है, और गरीब तौआ की चोटियां कटते देखी है। जो लोग आपकी दोस्ती का दम भरते थे, वे आज जियाद के दाहिने बाजू बने हुए हैं।
हुसैन– खुदा उन्हें नेक रास्ते पर लाए। तकदीर मुझे कूफ़ा लिए जाती है, और अब कोई ताकत मुझे वहां जाने से रोक नहीं सकती। आप लोग चलकर आराम फरमाएं। कल का दिन मुबारक होगा, क्योंकि मैं उस मुकाम पर पहुंच जाऊंगा, जहां शहादत मेरे इंतजार में खड़ी है।
[सब जाते हैं]
मुंशी प्रेमचंद की अन्य किताबें
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। प्रेमचंद की आरम्भिक शिक्षा का आरंभ उर्दू, फारसी से हुआ और जीवनयापन का अध्यापन से पढ़ने का शौक उन्हें बचपन से ही लग गया। 13 साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया । १८९८ में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गए। नौकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई जारी रखी।१९१० में उन्होंने अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और इतिहास लेकर इंटर पास किया और १९१९ में बी.ए. पास करने के बाद शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए। प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर उनकी पहली हिन्दी कहानी सरस्वती पत्रिका के दिसम्बर अंक में १९१५ में सौत नाम से प्रकाशित हुई और १९३६ में अंतिम कहानी कफन नाम से प्रकाशित हुई। बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं।
प्रेमचन्द की रचना-दृष्टि विभिन्न साहित्य रूपों में प्रवृत्त हुई। बहुमुखी प्रतिभा संपन्न प्रेमचंद ने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की सृष्टि की। प्रमुखतया उनकी ख्याति कथाकार के तौर पर हुई और अपने जीवन काल में ही वे ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि से सम्मानित हुए। उन्होंने कुल १५ उपन्यास, ३०० से कुछ अधिक कहानियाँ, ३ नाटक, १० अनुवाद, ७ बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की लेकिन जो यश और प्रतिष्ठा उन्हें उपन्यास और कहानियों से प्राप्त हुई, वह अन्य विधाओं से प्राप्त न हो सकी। यह स्थिति हिन्दी और उर्दू भाषा दोनों में समान रूप से दिखायी देती है। मुंशी प्रेमचंद की प्रमुख रचनाएं सेवासदन ,प्रेमाश्रम , रंगभूमि ,
निर्मला , कायाकल्प, गबन , कर्मभूमि , गोदान, D