[केरात-नदी के किनारे साद का लश्कर पड़ा हुआ है। केरात से दो मील के फासले पर कर्बला के मैदान में हुसैन का लश्कर है। केरात और हुसैन के लश्कर के बीच में साद ने एक लश्कर को नदी के पानी को रोकने के लिये पहरा को बैठा दिया है। प्रातःकाल का समय। शिमर और साद खेमे में बैठे हुए हैं।]
साद– मेरा दिल अभी तक हुसैन से जंग करने को तैयार नहीं होता। चाहता हूं, किसी तरीके से सुलह हो जाये, मगर तीन कासिदों में से एक भी मेरे खत का जवाब न ला सका। एक तो हज़रत हुसैन के पास जा ही न सका, दूसरा शर्म के मारे रास्ते ही से किसी तरह खिसक गया, और तीसरे से जाकर हुसैन की बैयत अख्तियार कर ली। अब और कासिदों को भेजते हुए डरता हूं कि इनका भी वही हाल न हो।
शिमर– ज़ियाद को ये बातें मालूम होंगी, तो आपसे सख्त नाराज होगा।
साद– मुझे बार-बार यही ख्याल आता है कि हुसैन यहां जंग के इरादे से नहीं, महज हम लोगों के बुलाने से आए हैं। उन्हें बुलाकर उनसे दग़ा करना इंसानियत के खिलाफ़ मालूम होता है।
शिमर– मुझे खौफ़ है कि आपके ताखीर से नाराज होकर, जियाद आपको वापस न बुला लें। फिर उनके गुस्से से खुदा ही बचाए। जियाद ने कितनी सख्त ताकीद की थी कि हुसैन के लश्कर को पानी का एक बूंद भी न मिले। वहां उनके आदमी दरिया से पानी ले जाते है, कुएं खोदते हैं। इधर से कोई रोक-टोक नहीं होती। क्या आप समझते हैं कि जियाद से ये बातें छिपी होंगी।
साद– मालूम नहीं, कौन उसके पास ये सब खबरें भेजता रहता है?
शिमर– उसने यहां अपने कितने गोंइदे बिठा रखे हैं, जो दम-दम की खबरें भेज देते हैं।
[एक कासिद का प्रवेश]
कासिद– अस्सलामअलेक बिन साद। अमीर का हुक्मनामा लाया हूं।
[साद को जियाद का खत देता है।]
साद– (खत पढ़कर) तुम बाहर बैठो, इस जवाब दिया जायेगा। (कासिद चला जाता है) इसमें भी वही ताकीद है कि हुसैन को पानी मत लेने दो, जंग करने में एक लहमें की देर न करो। देखिए, लिखते हैं–
‘‘हुसैन से जंग करने के लिये अब कोई बहाना नहीं रहा। फौज की कमी की शिकायत थी, सो वह भी नहीं रही। अब मेरे पास २२ हजार सवार और पैदल मौजूद हैं।’’
शिमर– बेशक, उनका लिखना वाजिब है। मैं जाकर सख्त हुक्म देता हूं कि हुसैन के लश्कर की एक चिड़िया भी दरिया के किनारे न आने पाए। आप जंग का हुक्म दे दें।
साद– आपको मालूम है, २२ हजार आदमियों में कितने अजाब के खौफ़ से भाग गए, और रोज भागते जाते हैं।
शिमर– इसीलिये तो और भी जरूरी है कि जंग शुरू कर दी जाये, वरना रफ्ता-रफ्ता यह सारी फौज बादलों की तरह गायब हो जायेगी। पर मैंने सुना है, जियाद ने उन सब आदमियों को गिरफ्तार कर लिया है, और बहुत जल्द वे सब फौज में आ जायेंगे। पर यह हुक्म भी जारी कर दिया है कि जो आदमी फौज से भागेगा, उसकी जायदाद छीन ली जायेगी, और उसे खानदान के साथ जलावतन कर दिया जायेगा, इस हुक्म का लोगों पर अच्छा असर पड़ा है। अब उम्मीद नहीं कि भागने की कोई हिम्मत करे। मुझे यह भी खबर मिली है कि जियाद ने कई आदमियों को कत्ल करा दिया है।
[एक और कासिद का प्रवेश]
कासिद– अस्सलामअलेक बिन साद। हजरत हुसैन ने यह खत भेजा है, और उसका जवाब तलब किया है। (साद को खत देता है।)
साद– (खत पढ़कर) बाहर जाकर बैठो। अभी जवाब मिलेगा।
शिमर– (खत पर झुककर) इसमें क्या लिखा है?
साद– (खत को बंद करके) कुछ नहीं, यही लिखा है कि मैं तुमसे मिलना चाहता हूं।
शिमर– यह उनकी नई चाल है। कमाल पाक की कसम, आप उनकी दरख्वास्त मानकर पछताएंगे। आपको फौज में फिर आना नसीब न होगा।
साद– क्या तुम्हारा यह मतलब है कि हुसैन मुझसे दग़ा करेगे? अली का बेटा दग़ा नहीं कर सकता।
शिमर– यह मेरा मतलब नहीं। यहां से बच निकलने की कोई तज़वीज पेश करना चाहते होंगे। उनकी जबान में जादू का असर है, ऐसा न हो कि वह आपको चकमा दे। क्या हर्ज है, अगर मैं भी आपके साथ चलूं?
साद– मैं समझता हूं कि मैं अपने दीन और दुनिया की हिफ़ाजत खुद कर सकता हूं। मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत नहीं।
शिमर– आपको अख्तियार है। कम-से-कम मेरी इतनी सलाह तो मान ही लीजिएगा कि अपने थोड़े-से चुने हुए आदमी लेते जाइएगा।
साद– यह मेरा जाती मामला है, जैसा मुनासिब समझूंगा, करूंगा।
[कासिद को बुलाकर खत का जवाब देता है]
शिमर– रात का वक्त लिखा है न?
साद– इतना तो तुम्हें खुद समझ लेना चाहिए था।
शिमर– (जाने के लिये खड़ा होकर) मेरी बात का जरूर ख़याल रखिएगा। (दिल में) इसके अंदाज से मालूम होता है कि हुसैन की बातों में आ जायेगा। जियाद के पास खुद जाकर यह किस्सा कहूं।
साद– (दिल में) खुदा तुझसे समझे जालिम? तू जियाद से भी दो अंगुल बढ़ा हुआ है। शायद मेरा यह कयात गलत नहीं है कि तू ही जियाद को यहां के हालात की इत्तिला देता है। हुसैन दग़ा करेंगे! हुसैन दग़ा करने वालों में नहीं, दग़ा का शिकार होने वालों में है।
[उठकर अंदर चला जाता है]
मुंशी प्रेमचंद की अन्य किताबें
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। प्रेमचंद की आरम्भिक शिक्षा का आरंभ उर्दू, फारसी से हुआ और जीवनयापन का अध्यापन से पढ़ने का शौक उन्हें बचपन से ही लग गया। 13 साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया । १८९८ में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गए। नौकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई जारी रखी।१९१० में उन्होंने अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और इतिहास लेकर इंटर पास किया और १९१९ में बी.ए. पास करने के बाद शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए। प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर उनकी पहली हिन्दी कहानी सरस्वती पत्रिका के दिसम्बर अंक में १९१५ में सौत नाम से प्रकाशित हुई और १९३६ में अंतिम कहानी कफन नाम से प्रकाशित हुई। बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं।
प्रेमचन्द की रचना-दृष्टि विभिन्न साहित्य रूपों में प्रवृत्त हुई। बहुमुखी प्रतिभा संपन्न प्रेमचंद ने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की सृष्टि की। प्रमुखतया उनकी ख्याति कथाकार के तौर पर हुई और अपने जीवन काल में ही वे ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि से सम्मानित हुए। उन्होंने कुल १५ उपन्यास, ३०० से कुछ अधिक कहानियाँ, ३ नाटक, १० अनुवाद, ७ बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की लेकिन जो यश और प्रतिष्ठा उन्हें उपन्यास और कहानियों से प्राप्त हुई, वह अन्य विधाओं से प्राप्त न हो सकी। यह स्थिति हिन्दी और उर्दू भाषा दोनों में समान रूप से दिखायी देती है। मुंशी प्रेमचंद की प्रमुख रचनाएं सेवासदन ,प्रेमाश्रम , रंगभूमि ,
निर्मला , कायाकल्प, गबन , कर्मभूमि , गोदान, D