[संध्या का समय। हुसैन का काफिला रेगिस्तान में चला जा रहा है।]
अब्बास– अल्लाहोअकबर। वह कूफ़ा के दरख्त नज़र आने लगे।
हबीद– अभी कूफ़ा दूर है। कोई दूसरा गांव होगा।
अब्बास– रसूल पाक की कसम, फौज है। भालों की नोंके साफ नज़र आ रही हैं।
हुसैन– हां, फौज ही है। दुश्मनों ने कूफे से हमारी दावत का यह सामान भेजा है। यहीं उस टीले के करीब खेमे लगा दो। अजब नहीं कि इसी मैदान में किस्मतों का फैसला हो।
[काफिला रुक जाता हैं। खेमे गड़ने लगते हैं। बेगमें ऊंटों से उतरती हैं। दुश्मन की फौज करीब आ जाती है।]
अब्बास– खबरदार, कोई कदम आगे न रखे। यहां हज़रत हुसैन के खेमे हैं।
अली अक०– अभी जाकर इन बेअदबों की तबीह करता हूं।
हुसैन– अब्बास, पूछो, ये लोग कौन हैं, और क्या चाहते हैं?
अब्बास– (फौज से) तुम्हारा सरदार कौन हैं?
हुर– (सामने आकर) मेरा नाम हुर है। हज़रत हुसैन का गुलाम हूं।
अब्बास– दोस्त दुश्मन बनकर आए, तो वह भी दुश्मन है।
हुर– या हजरत, हाकिम के हुक्म से मजबूर हूं, बैयत से मजबूत हूं, नमक की कैद से मजबूत हूं, लेकिन दिल हुसैन ही का गुलाम है।
हुसैन– (अब्बास से) भाई, आने दो, इसकी बातों में सच्चाई की बू आती है।
हुर– या हज़रत, आपको कूफ़ावालों ने दग़ा दी है! जियाद और यजीद, दोनों आपको कत्ल करने की तैयारियां कर रहे हैं। चारों तरफ से फौजें जमा की जा रही हैं। कूफ़ा से सरदार आप से जंग करने के लिए तैयार बैठे हैं।
हुसैन– पहले यह बतलाओ कि तुम्हारे सिपाही क्यों इतने निढाल और परेशान हो रहे हैं?
हुर– या हज़रत क्या अर्ज करूं। तीन पहर से पानी का एक बूंद न मिला। प्यास के मारे सबों के दम लबों पर आ रहे हैं।
हुसैन– (अब्बास से) भैया, प्यासों की प्यास बुझानी एक सौ नमाज़ों से ज्यादा सवाब का काम है। तुम्हारे पास पानी हो, तो इन्हें पिला दो। क्या हुआ, अगर मेरे ये दुश्मन हैं, हैं तो मुसलमान– मेरे नाना के नाम पर मरनेवाले।
अब्बास– या हज़रत, आपके साथ बच्चे हैं, औरतें और पानी यहां उनका है।
हुसैन– इन्हें पानी पिला दो, मेरे बच्चों का खुदा है।
[अब्बास, अली अकबर, हबीब पानी की मशकें लाकर सिपाहियों को पानी पिलाते हैं।]
अब्बास– हुर, अब यह बतलाओ कि तुम हमसे सुलह करना चाहते हो या जंग?
हुर– हज़रत, मुझे आपसे न जंग का हुक्म दिया गया है, न सुलह का। मैं सिर्फ इसलिए भेजा गया हूं कि हज़रत को जियाद के पास ले जाऊं, और किसी दूसरी तरफ न जाने दूं।
अब्बास– इसके मानी यह हैं कि तुम जंग करना चाहते हो। हम किसी खलीफ़ा या आमिल के हुक्म के पाबंद नहीं हैं कि किसी खास तरफ जायें। मुल्क खुदा का है। हम आजादी से जहां चाहेंगे, जायेंगे। अगर हमको कोई रोकेगा, तो उसे कांटों की तरह रास्ते से हटा देंगे।
हुसैन– नमाज़ का वक्त आ गया। पहले नमाज अदा कर लें, उसके बाद और बातें होंगी। हुर, तुम मेरे साथ नमाज़ पढ़ोगे या अपनी फौज के साथ?
हुर– या हज़रत, आपके पीछे खड़े होकर नमाज अदा करने का सवाब न छोड़ूगा, चाहे मेरी फौज मुझसे जुदा क्यों न हो जाये।
मुंशी प्रेमचंद की अन्य किताबें
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। प्रेमचंद की आरम्भिक शिक्षा का आरंभ उर्दू, फारसी से हुआ और जीवनयापन का अध्यापन से पढ़ने का शौक उन्हें बचपन से ही लग गया। 13 साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया । १८९८ में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गए। नौकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई जारी रखी।१९१० में उन्होंने अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और इतिहास लेकर इंटर पास किया और १९१९ में बी.ए. पास करने के बाद शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए। प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर उनकी पहली हिन्दी कहानी सरस्वती पत्रिका के दिसम्बर अंक में १९१५ में सौत नाम से प्रकाशित हुई और १९३६ में अंतिम कहानी कफन नाम से प्रकाशित हुई। बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं।
प्रेमचन्द की रचना-दृष्टि विभिन्न साहित्य रूपों में प्रवृत्त हुई। बहुमुखी प्रतिभा संपन्न प्रेमचंद ने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की सृष्टि की। प्रमुखतया उनकी ख्याति कथाकार के तौर पर हुई और अपने जीवन काल में ही वे ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि से सम्मानित हुए। उन्होंने कुल १५ उपन्यास, ३०० से कुछ अधिक कहानियाँ, ३ नाटक, १० अनुवाद, ७ बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की लेकिन जो यश और प्रतिष्ठा उन्हें उपन्यास और कहानियों से प्राप्त हुई, वह अन्य विधाओं से प्राप्त न हो सकी। यह स्थिति हिन्दी और उर्दू भाषा दोनों में समान रूप से दिखायी देती है। मुंशी प्रेमचंद की प्रमुख रचनाएं सेवासदन ,प्रेमाश्रम , रंगभूमि ,
निर्मला , कायाकल्प, गबन , कर्मभूमि , गोदान, D