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पांचवां दृश्य

12 फरवरी 2022

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[यजीद का दराबर। मुआबिया बेड़ियां पहने हुए बैठे हुआ है। चार गुलाम नंगी तलवारें लिए उसके चारों तरफ़ खड़े हैं। यजीद के तख्त के करीब सरजून रूमी बैठा हुआ है।]
मुआ०– (दिल से) नबी की औलाद पर यह जुल्म! मुझी से तो इसका बदला लिया जायेगा। बाप का कर्ज़ बेटे ही की तो अदा करना पड़ता है! नगर मेरे खून से इस जुलम का दाग़ न मिटेगा। हर्गिज नहीं, इस खानदान का निशान मिट जायेगा। कोई फातिहा पढ़ने वाला भी न रहेगा। आह! नबी की औलाद पर यह जुल्म! जिनके क़दमों की खाक आंखों में लगानी चाहिए थी। तबाही के सामान हैं। ऐ रसूक पाक, मैं बेगुनाह हूं, (प्रकट) आप जानते हैं। मौलाना रूमी के वालिद का मुझे कब तक इंतजार करना पड़ेगा।?
रूमी– आते ही होंगे। जियाद से कुछ बातें हो रही हैं।
मुआ०– वालिद मुझसे चाहते हैं कि मैं इस मार्के में शरीक हो जाऊं, लेकिन अगर जालिमों के हाथ से अख़्तियार छीनने के लिये, हक़ की हिमायत के लिये यह पहलू अख़्तियार किया जाता, तब सबसे पहले मेरी तलवार म्यान से निकलती, सबसे पहले मैं जिहाद का झंड़ा उठाता, पर हक़ का खून करने के लिये मेरी तलवार कभी बाहर न निकलेगी, और मेरी जबान उस वक्त तक मलामत करती रहेगी, जब तक वह तालू से खींच न ली जाये। नबी की मसन्द पर (जिसने दुनिया को हिदायत का चिराग दिखलाया, जिसने इसलामी क़ौम की बुनियाद डाली) उस शख्स को बैठने का मजाज नहीं है, जो दीन को पैरों चले कुचलता हो, जो इंसानियत के नाम को दाग़ लगाता हो, चाहे वह मेरा बाप ही क्यों न हो। इस्लाम का खलीफ़ा होना चाहिए, जिस पर इंसानियत को गरूर हो, जो दीनदार हो, हक़परस्त हो, बेदार हो, बेलौस हो, दूसरों के लिये नमूना हो, जो ताकत से नहीं, फ़ौज से नहीं, अपने कमान से, अपने सिफ़ात से दूसरों पर अपना वक़ार जमाए।
[यजीद, जुहाक़, जियाद, शरीक, शम्स, आदि आते हैं।]
यजीद– आप लोग देखिए, यह मेरा सपूट बेटा है, जो अपने बाप को कुत्ते से भी ज्यादा नापाक समझता है। मेरी फूलों की सेज में यहीं एक कांटा है, मेरा नियामतों के थाल में यही एक मक्खी है। आप लोग इसे समझाएं, इसे क़याल करें, इसीलिए मैंने इसे यहां बुलाया है। इसको समझाए कि खलीफ़ा के लिये दीनदारी से ज्यादा मुल्कदारी की जरूरत है। दीन मुल्लाओं के लिये है, बादशाहों के लिये नहीं। दीनदारी और मुल्कदारी दो अलग-अलग चीजें हैं, और एक ही जात में दोनों का मेल मुमकिन नहीं।
मुआ०– अगर हुकूमत करने के लिये दीन और हक़ का खून करना जरूरी है, तो मैं गद्दारी करने को उससे बेहतर समझता हूं। मुल्कदारी की मंशा इंसाफ और सच्चाई की हिफ़ाजत करना है, उसका खून करना नहीं।
यजीद– आप लोग सुनते हैं इसकी बातें। यह मुझे मुल्कदारी का सबक सिखा रहा है। इसके सिर से अभी सौदा नहीं उतरा। इसे फिर वहीं ले जाओ। ऐसे आदमी को आजाद रखना खतरनाक है, चाहे वह तख्त का वारिस ही क्यों न हो। बाज हालतें ऐसी होती हैं, जब इंसान को अपने ही से बचाना जरूरी होता है। दीवाने के न रोके, तो वह अपना गोश्त काट खाता है। (गुलाम मुआबिया को ले जाता है) जियाद, अब तुम अपनी दास्तान कहो, जब तक तुम मुझे इसका यकीन न दिला दोगे कि तुम कूफ़ा से अपनी जान से खौफ़ से नहीं, मेरे फायदे के ख्याल से आए हो, मैं तुम्हें मुआफ़ न करूंगा। ऐसे नाजुक मौके पर जब शहर में बग़ावत का हंगामा गर्म हो सल्तनत के हर एक मुलाजिम– चाहे वह सूबे का आमिल हो या शाही महल का दरबान– यही फर्ज है कि वह अपनी जगह पर आखिर तक खड़ा रहे, चाहे उसका जिस्म तीरों से छलनी क्यों न हो जाये।
जियाद– या खलीफ़ा, मैं अपने फ़र्ज से वाकिफ हूं, पर मैं यह अर्ज करने के लिये हाजिर हुआ हूं कि इस वक्त रियाया पर सख्ती करने से हालत और भी नाजुक हो जायेगी। जब सल्तनत को किसी दूसरे मुद्दई का खौफ हो, तो बादशाह को रियाया के साथ नरमी के बर्ताव करके उसे अपना दोस्त बना लेना मुनासिब है। बिगड़ी हुई रियाया तिनके की तरह है, जो एक चिनगारी से जल उठती है। मेरी अर्ज है कि हमें इस वक्त रियाया का दिल, अपने हाथ से कर लेना चाहिए, उसकी गरदनें एहसानों से दवा देनी चाहिए, ताकि वह सिर न उठा सके।
यजीद– मेरी फौज़ बागियों का सिर कुचलने के लिये काफी है।
रूमी– नाजुक मौके पर अगर कोई चीज सल्तनत को बचा सकती है, तो वह सख्ती है। शायद और किसी हालत में सख्ती की इतनी ज्यादा जरूरत नहीं होती।
जुहाक– बादशाह की रियाया उसकी ज़ौजा की तरह है। ज़ौजा पर हम निसार होते हैं, उसके तलबे सहलाते हैं, उसकी बलाएं लेते हैं, लेकिन जब उसे किसी रकीब से मुखातिब होते देखते हैं, तो उस वक्त उसकी बलाएं नहीं लेते। हमारी तलवार म्यान से निकल आती है, और या तो रकीब की गर्दन पर गिरती है या बीवी की गर्दन पर, या दोनों की गरदनों पर।
रूमी– बेशक, कूफ़ा को कुचल दो, कूफ़ा को कोफ्त कर दो।
यजीद– कूफ़ा को कोफ्त में डाल दो। यहां से जाते-ही-जाते फौजी कानून जारी कर दो। एक हजार आदमियों को तैयार रखो। जो आदमी जरा भी गर्म हो, उसे फौरन कत्ल कर दो। सरदारों को एकबारगी गिरफ्तार कर लो, यहां तक कि कोई शायर शेर न पढ़ने पाए, मसजिदों में खुतबे न होने पाएं, मक्तबों में कोई लड़का न जाने पाए। रईसों को खूब जलील करो। जिल्लत सबसे बड़ी सज़ा है।
[एक कासिद आता है]
शम्स– कहां से आते हो?
कासिद– खलीफ़ा को मेरा सलाम हो, मुझे मक्का के अमीर ने आपकी खिदमत में यह अर्ज करने को भेजा हैं कि हुसैन का चचेरा भाई मुसलिम कूफ़ा की तरफ़ रवाना हो गया है।
यजीद– कोई खत भी लाया है?
कासिद– आंमिल ने खत इसलिये नहीं दिया कि कहीं मुझे दुश्मन गिरफ्तार न कर लें।
यजीद– जियाद, तुम इसी वक्त कूफ़ा चले जाओ। तुम्हें मेरे सबसे तेज घोड़े को ले जाने का अख्तियार है। अगर मेरा काबू होता, तो तुम्हें हवा के घोड़े पर सवार करता।
जियाद– खलीफ़ा पर मेरी जान निसार हो, मुझे इस पर मुहिम पर जाने से मुआफ रखिए। जुहाफ या शम्स को तैनात फरमाएं।
यजीद– इसके मानी यह है कि मैं अपनी एक आंख फोड़ लूं।
रूमी– आखिर तुम क्या चाहते हो?
जियाद– मेरा सवाल सिर्फ इतना है कि इस मौके पर रियाया के साथ मुलायमियत का बर्ताव किया जाये, सरदार को जागीरें दी जायें, उनके वजीफे बढ़ाए जायें, यतीमों और बेवाओं की परवरिश का इंतजाम किया गया। मैंने कूफ़ावालों की खसलत का गौर से मुताला किया है, वे हयादार नहीं है, दिलेर नहीं है, दीनदार नहीं हैं। चंद खास आदमियों को छोड़कर, सब-के-सब लोभी और खुदगर्ज है। बात पर अड़ना नहीं जानते, शान पर मरना नहीं जानते, थोड़े से फायदे के लिये भाई-भाई का गला काटने पर आमादा हो जाते हैं। कुत्तों को भगाने के लिये लाठी से ज्यादा आसान हड्डी का एक टुकड़ा होता है। सब-के-सब उस पर टूट पड़ते हैं और एक दूसरे की भंभोड़ खाते हैं। खलीफ़ा का खजाना दस-बीस हजार दीनारों के निकल जाने से खाली न हो जायेगा, पर एक कौम हमारे हाथ आ जायेगी। सख्ती कमजोर के हक में वही काम करती है, जो ऐंठन तिनके के साथ। हम ऐंठन के बदले हवा के झोके से तिनकों को बिखेर सकते हैं, फौज से फ़ौज कुचली जा सकती है, एक कौम नहीं।
रूमी– मैं तो हमेशा सख्ती का हामी रहा, और रहूंगा।
शरीक– कामिल हकीम वह हैं, जो मरीज के मिजाज के मुताबिक दवा में तबदीली करता रहे। आपने उस हकीम का किस्सा नहीं सुना, जो हमेशा फ़स्द खोलने की तजवीज किया करता था। एक बार एक दीवाने का फ़स्द खोलने गया। दीवाने ने हकीम की गर्दन इतने जोर से दबाई की हकीम साहब की जूबान बाहर निकल आई। मुल्कदारी के आईने मौंके और जरूरत के मुताबिक बदलते रहते हैं।
यजीद– जियाद, मैं इस मुआमले में तुम्हें मुख्तार बनाता हूं। मुझे भी कुछ-कुछ आदेश हो रहा है कि कहीं हुसैन के बाद कूफ़ावालों को लुभा न लें। तुम जो मुनासिब समझो, करो। लेकिन याद रखो, अगर कूफ़ा गया, तो तुम्हारी जान उसके साथ जायेगी। यह शर्त मंजूर है।
जियाद– मंजूर है।
यजीद– हुर को ताकीद कर दो कि बहुत नमाज न पढ़े, और मुसलिम को इस तरह तलाश करे, जैसे कोई बखील अपनी खोई मुर्गी को तलाश करता है। तुम्हारी नरमी कमजोरों की नरमी नहीं होनी चाहिए, जिसे खुशामद कहते हैं। उसमें हुकूमत की शान कायम रखनी चाहिए। बस, जाओ।
[जियाद शरीक और कासिद चले जाते हैं।]
जुहाक– नरगिस को बुलाओ, ज़रा ग़म ग़लत करे। (गुलाब के हाथ से शराब का प्याला लेकर) यह मेरी फ़तह का जाम है।
रूमी– मुबारक हो, (दिल में) जियाद तुम्हें डूबा देगा, तब नरमी का मज़ा मालूम होगा।
(नरगिस जुहाक की पीठ पर बैठी हुई आती है।)
यजीद– शाबाश नरगिस, शाबाश, क्या खूब खच्चर है। इसकी कोई तशवीह। (उपमा) देना शम्स।
शम्स– मुर्ग के सिर पर ताज है।
रूमी– लीद पर मक्खी बैठी हुई है।
नरगिस– (गर्दन पर से कूदकर) लाहौल-विला-कूवत।
यजीद– वल्लाह, इस तशबीह से दिल खुश हो गया। नरगिस, बस इसी बात पर एक मस्ताना ग़जल सुनाओ। खुदा तुम्हारे दीवानों को तुम पर निसार करे।
नरगिस गाती है–
शबे-वस्ल वह रूठ जाना किसी का,
वह रूठे को अपने मनाना किसी का।
कोई दिल को देखे न तिरछी नज़र से,
खता कर न जाए निशाना किसी का।
अभी थाम लोगे तुम अपने जिगर को,
सुनो, तो सुनाएं फसाना किसी का।
जरा देख ले चल के, सैयाद, तू भी
कि उठता है अब आब-दाना किसी का।
वह कुछ सोचकर हो लिए उसके पीछे,
जनाजा हुआ जब रवाना किसी का।
बुरा वक्त जिस वक्त आता है ‘बिस्मिल’,
नहीं साथ देता जमाना किसी का।
[परदा गिरता है] 

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रचनाएँ
कर्बला (नाटक)
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अमर कथा शिल्पी मुंशी प्रेमचंद द्वारा इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मोहम्मद के नवासे हुसैन की शहादत का सजीव एवं रोमांच विवरण का एक ऐतिहासिक नाटक है | इस मार्मिक नाटक में यह दिखाया गया है कि उस काल के मुसलिम शासकों ने किस प्रकार मानवता प्रेमी व असहायों व निर्बलों की सहायता करने वाले हुसैन को परेशान किया और अमानवीय यातनाएं दे देकर उसे कत्ल कर दिया। कर्बला के मैदान में लड़ा गया यह युद्ध इतिहास में अपना विशेष महत्त्व रखता है।जब भी मुहर्रम की बात होती है तो सबसे पहले जिक्र कर्बला का किया जाता है. आज से लगभग 1400 साल पहले तारीख-ए-इस्लाम में कर्बला की जंग हुई थी. ये जंग जुल्म के खिलाफ इंसाफ के लिए लड़ी गई थी. इस जंग में पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 साथी शहीद हो गए थे | प्रायः सभी जातियों के इतिहास में कुछ ऐसी महत्त्वपूर्ण घटनाएं होती हैं; जो साहित्यिक कल्पना को अनंत काल तक उत्तेजित करती रहती हैं। साहित्यिक समाज नित नये रूप में उनका उल्लेख किया करता है, छंदों में, गीतों में, निबंधों में, लोकोक्तियों में, व्याख्यानों में बारंबार उनकी आवृत्ति होती रहती है, फिर भी नये लेखकों के लिए गुंजाइश रहती है। मुसलमानों के इतिहास में कर्बला के संग्राम को भी वही स्थान प्राप्त है।
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भूमिका

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प्रायः सभी जातियों के इतिहास में कुछ ऐसी महत्वपूर्ण घटनाएँ होती हैं, जो साहित्यिक कल्पना को अनंत काल तक उत्तेजित करती रहती हैं। साहित्यिक-समाज नित नये रूप में उनका उल्लेख किया करता है, छंदों में, गीतो

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नाटक का कथानक

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हज़रत मुहम्मद की मृत्यु के बाद कुछ ऐसी परिस्थिति पैदा हुई कि ख़िलाफ़त का पद उनके चचेरे भाई और दामाद हज़रत अली को न मिलकर उमर फ़ारूक को मिला। हज़रत मुहम्मद ने स्वयं ही व्यवस्था की थी कि खल़ीफ़ा सर्व-सम

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नाटक के पात्र

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पुरुष हुसैन-हज़रत अली के बेटे और हज़रत मोहम्मद के नवासे । इन्हें फ़र्ज़न्दे-रसूल,शब्बीर,भी कहा गया है। अब्बास-हज़रत हुसैन के चचेरे भाई । अली अकबर-हजरत हुसैन के बड़े बेटे । अली असगर-हजरत हुसैन के छ

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पहला अंक

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पहला दृश्य {समय-नौ बजे रात्रि। यजीद, जुहाक, शम्स और कई दरबारी बैठे हुए हैं। शराब की सुराही और प्याला रखा हुआ है।} यजीद– नगर में मेरी खिलाफ़त का ढिंढोरा पीट दिया गया? जुहाल– कोई गली, कूचा, नाका, सड़

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दूसरा दृश्य

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{ रात का समय– मदीने का गवर्नर वलीद अपने दरबार में बैठा हुआ है। } वलीद– (स्वागत) मरवान कितना खुदगरज आदमी है। मेरा मातहत होकर भी मुझ पर रोब जमाना चाहता है। उसकी मर्जी पर चलता, तो आज सारा मदीना मेरा दुश

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तीसरा दृश्य

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(रात का वक्त– हुसैन अब्बास मसजिद में बैठे बातें कर रहे हैं। एक दीपक जल रहा है।) हुसैन– मैं जब ख़याल करता हूं कि नाना मरहूम ने तनहा बड़े-बड़े सरकश बादशाहों को पस्त कर दिया, और इतनी शानदार खिलाफत कायम

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चौथा दृश्य

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(समय– रात। वलीद का दरबार। वलीद और मरवान बैठे हुए हैं।) मरवान– अब तक नहीं आए! मैंने आपसे कहा न कि वह हरगिज नहीं आएंगे। वलीद– आएंगे, और जरूर आएंगे। मुझे उनके कौल पर पूरा भरोसा है। मरवान– कहीं ऐसा तो

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पाँचवाँ दृश्य

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(समय– आधी रात। हुसैन और अब्बास मसजिद के सहन में बैठे हुए हैं।) अब्बास– बड़ी ख़ैरियत हुई, वरना मलऊन ने दुश्मनों का काम ही तमाम कर दिया था। हुसैन– तुम लोगों की जतन बड़े मौक़े पर आई। मुझे गुमान न था कि

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छठा दृश्य

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(समय– संध्या। कूफ़ा शहर का एक मकान। अब्दुल्लाह, कमर, वहब बातें कर रहे हैं।) अब्दु०– बड़ा गजब हो रहा है। शामी फौज के सिपाही शहरवालों को पकड़-पकड़ जियाद के पास ले जा रहे हैं, और वहां जबरन उनसे बैयत ली

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सातवां दृश्य

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(अरब का एक गांव– एक विशाल मंदिर बना हुआ है, तालाब है, जिसके पक्के घाट बने हुए हैं, मनोहर बगीचा, मोर, हिरण, गाय आदि पशु-पक्षी इधर-उधर विचर रहे हैं। साहसराय और उनके बंधु तालाब के किनारे संध्या-हवन, ईश्व

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दूसरा अंक

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पहला दृश्य (हुसैन का क़ाफ़िला मक्का के निकट पहुंचता है। मक्का की पहाड़ियां नजर आ रही हैं। लोग काबा की मसजिद द्वार पर स्वागत करने को खड़े हैं।) हुसैन– यह लो, मक्का शरीफ़ आ गया। यही वह पाक मुकाम है, ज

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दूसरा दृश्य

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यजीद का दरबार– यजीद, जुहाक़, मुआबिया, रूमी, हुर और अन्य सभासद् बैठे हुए हैं। दो वेश्याएँ शराब पिला रही हैं।) यजीद– तुममें से कोई बता सकता है, जन्नत कहां है? हुर– रसूल ने तो चौथे आसमान पर फ़रमाया। श

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तीसरा दृश्य

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[कूफ़ा की अदालत– क़ाजी और अमले बैठे हुए है। काज़ी के सिर पर अमामा है, बदन पर कबा, कमर में कमरबंद, सिपाही नीचे कुरते पहने हुए हैं। अदालत से कुछ दूर पर मसजिद है मुकद्दमें में पेश हो रहे हैं। कई आदमी एक

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चौथा दृश्य

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[स्थान– काबा, मरदाना बैठक। हुसैन, जुबेर, अब्बास मुसलिम अली असगर आदि बैठे दिखाई देते हैं।] हुसैन– यह पांचवी सफ़ारत है। एक हज़ार से ज्यादा खतूत आ चुके हैं। उन पर दस्तखत करने वालों की तादाद पन्द्रह हजार

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पांचवां दृश्य

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[यजीद का दराबर। मुआबिया बेड़ियां पहने हुए बैठे हुआ है। चार गुलाम नंगी तलवारें लिए उसके चारों तरफ़ खड़े हैं। यजीद के तख्त के करीब सरजून रूमी बैठा हुआ है।] मुआ०– (दिल से) नबी की औलाद पर यह जुल्म! मुझी

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छठा दृश्य

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(संध्या का समय। सूर्यास्त हो चुका है। कूफ़ा का शहर– कोई सारवान ऊँट का गल्ला लिए दाखिल हो रहे है।) पहला– यार गलियों से चलना, नहीं तो किसी सिपाही की नज़र पड़ जाये, तो महीनों बेगार झेलनी पड़े। दूसरा– ह

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सातवाँ दृश्य

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[कूफ़ा के चौक में कई दुकानदार बातें कर रहे हैं।] पहला– सुना, आज हज़रत हुसैन तशरीफ लेनेवाले हैं। दूसरा– हां, कल मुख्तार के मकान पर बड़ा जमघट था। मक्का से कोई साहब उनके आने की खबर लाए हैं। तीसरा– खुद

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आठवां दृश्य

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[नौ बजे रात का समय। कूफ़ा की जामा मसजिद। मुसलिम, मुख्तार, सुलेमान और हानी बैठे हुए हैं। कुछ आदमी द्वार पर बैठे हुए हैं।] सुले०– अब तक लोग नहीं आए? हानी– अब जाने की कम उम्मीद है। मुस०– आज जियाद का ल

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नवाँ दृश्य

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[दोपहर का समय। हानी का मकान शरीक एक चारपाई पर पड़े हुए है। मुसलिम और हानी फ़र्श पर बैठे हैं।] शरीक– जियाद अब आता ही होगा। मुसलिम, तलवार को तेज रखना। हानी– मैं खुद उसे क़त्ल करता, पर जईफ़ी ने हाथों म

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दसवाँ दृश्य

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[संध्या का समय। जियाद का दरबार] जियाद– तुम लोगों में ऐसा एक आदमी भी नहीं है, जो मुसलिम का सुराग़ लगा सके। मैं वादा करता हूं कि पांच हजार दीनार उसकी नज़र करूंगा। एक दर०– हुजूर, कहीं सुराग नहीं मिलता।

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ग्यारहवाँ दृश्य

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[१० बजे रात का समय। जियाद के महल के सामने सड़क पर सुलेमान, मुखतार और हानी चले आ रहे हैं।] सुले०– जियाद के बर्ताव में अब कितना फर्क नज़र आता है। मुख०– हां, वरना हमें मशविरा देने के लिये क्यों बुलाता।

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बारहवाँ दृश्य

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[९ बजे रात का समय। मुसलिम एक अंधेरी गली में खड़े हैं, थोड़ी दूर पर एक चिराग़ जल रहा है। तौआ अपने मकान के दरवाज़े पर बैठी हुई है।] मुस०– (स्वागत) उफ्! इतनी गरमी मालूम होती है कि बदन का खून आग हो गया।

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तेरहवां दृश्य

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[प्रातःकाल का समय। जियाद का दरबार। मुसलिम को कई आदमी मुश्क कसे लाते हैं] मुस०– मेरा उस पर सलाम है, जो हिदायत पर चलता है, आकबत से डरता है, और सच्चे बादशाह की बंदगी करता है। चोबदार– मुसलिम! अमीर को सल

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कर्बला (भाग-2)

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तीसरा अंक पहला दृश्य [दोपहर का समय। रेगिस्तान में हुसैन के काफ़िले का पड़ाव। बगूले उड़ रहे है। हुसैन असगर को गोद में लिए अपने खेमे के द्वार पर खड़े हैं।] हुसैन– (मन में) उफ्, यह गर्मी! निगाहें जलती

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दूसरा दृश्य

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[संध्या का समय। हुसैन का काफिला रेगिस्तान में चला जा रहा है।] अब्बास– अल्लाहोअकबर। वह कूफ़ा के दरख्त नज़र आने लगे। हबीद– अभी कूफ़ा दूर है। कोई दूसरा गांव होगा। अब्बास– रसूल पाक की कसम, फौज है। भालो

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तीसरा दृश्य

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[संध्या का समय– नसीमा बगीचे में बैठी आहिस्ता-आहिस्ता गा रही है।] दफ़न करने ले चले जब मेरे घर से मुझे, काश तुम भी झांक लेते रौज़ने घर से मुझे। सांस पूरी हो चुकी दुनिया से रुख्सत हो चुका, तुम अब आए

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चौथा दृश्य

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[आधी रात का समय। अब्बास हुसैन के खेमे के सामने खड़े पहरा दे रहे हैं। हुर आहिस्ता से आकर खेमे के करीब खड़ा हो जाता है।] हुर– (दिल में) खुदा को क्या मुंह दिखाऊंगा? किस मुंह से रसूल के सामने जाऊंगा? आह,

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पांचवां दृश्य

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[रात का समय। हुसैन अपने खेमे में सोए हुए हैं। वह चौंक पड़ते हैं, और लेटे हुए, चौकन्नी आंखों से, इधर-उधर ताकते हैं।] हुसैन– (दिल में) यहां तो कोई नजर नहीं आता। मैं हूं, शमा है, और मेरा धड़कता हुआ दिल

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छठा दृश्य

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[कर्बला का मैदान। एक तरफ केरात-नदीं लहरें मार रही है। हुसैन मैदान में खड़े हैं। अब्बास और अली अकबर भी उनके साथ हैं।] अली अकबर– दरिया के किनारे खेमे लगाए जाए, वहां ठंडी हवा आएगी। अब्बास– बड़ी फ़िजा क

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सातवां दृश्य

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[नसीमा अपने कमरे में अकेली बैठी हुई है– समय १२ बजे रात का।] नसीमा– (दिल में) वह अब तक नहीं आए। गुलाम को उन्हें साथ लाने के लिए भेजा, वह भी वहीं का हो रहा। खुदा करे, वह आते हों। दुनिया में रहते हुए हम

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चौथा अंक

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पहला दृश्य [प्रातःकाल का समय। जियाद फर्श पर बैठा हुआ सोच रहा है।] जियाद– (स्वगत) उस वफ़ादारी की क्या कीमत है, जो महज जबान तक महदूद रहें? कूफ़ा के सभी सरदार, जो मुसलिम बिन अकील से जंग करते वक्त बग़ले

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तीसरा दृश्य

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[केरात-नदी के किनारे साद का लश्कर पड़ा हुआ है। केरात से दो मील के फासले पर कर्बला के मैदान में हुसैन का लश्कर है। केरात और हुसैन के लश्कर के बीच में साद ने एक लश्कर को नदी के पानी को रोकने के लिये पहर

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[हुसैन के हरम की औरतें बैठी हुई बातें कर रही हैं। शाम का वक्त।] सुगरा– अम्मा, बडी प्यास लगी है। अली असगर– पानी, बूआ पानी। हंफ़ा– कुर्बान गई, बेटे कितना पानी पियोगे? अभी लाई (मश्को को जाकर देखती है,

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पांचवां दृश्य

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[८ बजे रात का समय। जियाद की खास बैठक। शिमर और जियाद बातें कर रहे हैं।] जियाद– क्या कहते हो। मैंने सख्त ताकीद कर दी थी कि दरिया पर हुसैन का कोई आदमी न आने पाए। शिमर– बजा है। मगर मैं तो हुसैन के आदमिय

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छठा दृश्य

12 फरवरी 2022
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[प्रातःकाल। शाम का लश्कर। हुर और साद घोड़ों पर सवार फ़ौज का मुआयना कर रहे हैं।] हुर– अभी तर जियाद ने आपके खत का जबान नहीं दिया? साद-उसके इंतजार में रात-भर आंखें नहीं लगीं। जब किसी की आहट मिलती थी, त

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सातवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
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[समय ८ बजे रात। हुसैन एक कुर्सी पर मैदान में बैठे हुए हैं। उनके दोस्त और अजीज सब फ़र्श पर बैठे हुए हैं। शमा जल रही है।] हुसैन– शुक्र है, खुदाए-पाक का, जिसने हमें ईमान की रोशनी अता की, ताकि हम नेक को

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आठवाँ दृश्य

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[प्रातःकाल हुसैन के लश्कर में जंग की तैयारियां हो रही हैं।] अब्बास– खेमे एक दूसरे से मिला दिए गए, और उनके चारों तरफ खंदके खोद डाली गई, उनमें लकड़ियां भर दी गई। नक्कारा बजवा दूं? हुसैन– नहीं, अभी नही

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नवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
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[कूफ़ा का वक्त। कूफ़ा का एक गांव। नसीमा खजूर के बाग में जमीन पर बैठी हुई गाती है।] गीत दबे हुओं को दबाती है ऐ जमीने-लहद, यह जानती है कि दम जिस्म नातवां में नहीं। क़फस में जी नहीं लगता है आह! फिर भ

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पांचवां अंक

12 फरवरी 2022
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पहला दृश्य [समय ९ बजे दिन। दोनों फौ़जे लड़ाई के लिये तैयार हैं।] हुर– या हजरत, मुझे मैदान में जाने की इजाजत मिले। अब शहादत का शौक रोके नहीं रुकता। हुसैन– वाह, अभी आए हो और अभी चले जाओगे। यह मेहमानन

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दूसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
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[समर-भूमि। साद की तरफ़ से दो पहलवान आते हैं– यसार और सालिम।] यसार– (ललकारकर) कौन निकलता है, हुर का साथ देने के लिये। चला जाए, जिसे मौत का मजा चखना हो। हम वह है, जिनकी तलवार से क़ज़ा की रूह भी क़जा हो

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तीसरा दृश्य

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[दोपहर का समय। हजरत हुसैन अब्बास के साथ खेमे के दरवाजे पर खड़े मैदाने-जंग की तरफ ताक रहे हैं।] हुसैन– कैसे-कैसे जांबाज दोस्त रुखसत हो गए और होते जा रहे हैं। प्यास से कलेजे मुंह को आ रहे हैं, और ये जा

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चौथा दृश्य

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[जैनब अपने खेमे में बैठी हुई है। शाम का वक्त] जैनब– (स्वगत) अब्बास और अली अकबर के सिवा अब भैया के कोई रकीफ़ बाकी नहीं रहे। सब लोग उन पर निसार हो गए। हाय, कासिम-सा जवान, मुसलिम के बेटे, अब्बास के भाई,

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पांचवां दृश्य

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[१२ बजे रात का समय। लड़ाई ज़रा देर के लिए बंद है। दुश्मन की फ़ौज ग़ाफिल है। दरिया का किनारा। अब्बास हाथों में मशक लिए दरिया के किनारे खड़े हैं।] अब्बास– (दिल में) हम दरिया से कितने करीब हैं। इतनी ही

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छठा दृश्य

12 फरवरी 2022
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[दोपहर का समय। हुसैन अपने खेमे में खड़े है, जैनब, कुलसूम, सकीना, शहरबानू, सब उन्हें घेरे खड़े हैं।] हुसैन– जैनब, अब्बास के बाद अली अकबर दिल को तस्कीन देता था। अब किसे देखकर दिल को ढाढ़स दूं? हाय! मेर

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