[कूफ़ा की अदालत– क़ाजी और अमले बैठे हुए है। काज़ी के सिर पर अमामा है, बदन पर कबा, कमर में कमरबंद, सिपाही नीचे कुरते पहने हुए हैं। अदालत से कुछ दूर पर मसजिद है मुकद्दमें में पेश हो रहे हैं। कई आदमी एक शरीफ़ आदमी की मुश्कें कसे लाते हैं।]
क़ाज़ी– इसने क्या खता की है?
ए० सि०– हुजूर, यह आदमी मसजिद में खड़ा लोगों से कह रहा था कि किसी को फौज में न दाखिल होना चाहिए।
क़ाज़ी– गवाह है?
ए० आ०– हुजूर, मैंने अपने कानों सुना है।
का०– इसे ले जाकर कत्ल कर दो।
मुल०– हुजूर, बिलकुल बेगुनाह हूं। ये दोनों सिपाही मेरी दुकान से कपड़े उठाए लाते थे। मैंने छीन लिया, इस पर इन्होंने मुझे पकड़ लिया। हुजूर मेरे पड़ोस के दुकानदारों से पूछ लें। बेगुनाह मारा जा रहा हूं। मेरे बाल-बच्चे तबाह हो जायेंगे।
का०– इसे यहां से हटाओ।
मुल०– (चिल्लाकर) या रसूल, तुम कयामत के लिये मेरा और इस कातिल का फैसला करना।
[दोनों सिपाही उसे ले जाते हैं। मसजिद की तरफ़ से आवाज़ आती है।]
‘‘या खुदा, हम बेकस तेरी बारगाह में फ़रियाद करने आए हैं। हमें जालिम के फंदे से आजाद कर।’’
[चार सिपाही १५-२० आदमियों की मुश्कें कसे कोड़े मारते हुए लाते हैं।]
का०– इन पर क्या इंलजाम है?
ए० सि०– हुजूर, ये उन आदमियों में से हैं, जिन्होंने हुसैन के पास क़ासिद भेजे थे।
का०– संगीन जुर्म है। कोई गवाह?
ए० सि०– हुजूर, कोई गवाह नहीं मिलता। शहरवालों के डर के मारे कोई गवाही देने पर राजी नहीं होता।
का०– इन्हें हिरासत में रखो, और जब गवाह मिल जायें, तो फिर पेश करो।
(सिपाही उन आदमियों को ले जाते हैं। फिर दो सिपाही एक औरत की दोनों कलाइयां बांधे हुए लाते हैं।)
का०– इस पर क्या इलजाम है?
ए० सि०– हुजूर, जब हम लोग मुलजिमों को गिरफ्तार कर रहे थे, जो अभी गए हैं, तो इसने खलीफ़ा को जालिम कहा था।
का०– गवाह?
ए० औरत– हुजूर खुदा इसका मुंह न दिखाए, बड़ी बदजबान है।
का०– इसका मकान जब्त कर लो, और इसके सर के बाल नोच लो।
मु०औ०– खुदाबंद, मेरी आंखें फुट जायें, जो मैंने किसी को कुछ कहा हो। यह औरत मेरी सौत है। इसने डाह से मुझे फंसा दिया है। खुदा गवाह है कि मैं बेक़सूर हूं।
का०– इसे फौरन् ले जाओ।
एक युवक– (रोता हुआ) या क़ाजी, मेरी मां पर इतना जुल्म न कीजिए। आप भी तो किसी मां के बच्चे हैं। अगर कोई आपकी मां के बाल नोंचवाता, तो आपके दिल पर क्या गुजरती?
का०– इस मलऊन को पकड़कर दो सौ दुर्रे लगाओ।
[कई सिपाही आदमियों के गोल बांधे हुए लाते हैं।]
का०– इन्होंने खुदा के किस हुक्म को तोड़ा है?
ए० सि०– हुजूर, ये सब आदमी सामनेवाली मसजिद में खड़े होकर रो रहे थे।
का०– रोना कुफ्र है, इन सबों की आँखें फोड़ डाली जाये।
[सैकड़ों आदमी मसजिद की तरफ से तलवारें और भाले लिए दौड़े आते हैं, और अदालत को घेर लेते हैं।]
सुलेमान– कत्ल कर दो इस मरदूद मक्कार को, जो अदालत के मसनद पर बैठा हुआ अदालत का खून कर रहा है।
भूसा– नहीं, पकड़ लो। इसे जिंदा जलाएंगे।
[कई आदमी क़ाजी पर टूट पड़ते हैं।]
का०– शरा के मुताबिक मुसलमान पर मुसलमान का खून हराम है।
सुले०– तू मुसलमान नहीं! इन सिपाहियों में से एक भी न जाने पाए।
ए० सि०– या सुलेमान, हमारी क्या खता है! जिस आक़ा के गुलाम हैं, उसका हुक्म न मानें, तो रोटियां क्योंकर चलें?
भूसा– जिस पेट के लिए तुम्हें खुदा के बंदों का ईजा पहुंचानी पड़े, उसको चाक कर देना चाहिए।
[सिपाहियों और बागियों में लड़ाई होने लगती है।]
सुले०– भाइयों, आपने इन जालिमों के साथ वहीं सलूक किया, जो वाजिब था, मगर भूल न जाइए कि जियाद इसकी इत्तला यजीद को जरूर देगा, और हमें कुचलने के लिए शाम से फ़ौज आएगी। आप लोग उसका मुकाबला करने को तैयार है?
[एक आवाज]
‘‘अगर तैयार नहीं हैं तो हो जायेंगे।’’
सुले०– हमने अभी तक यजीद की बैयत नहीं कबूल की, और न करेंगे। इमाम हुसैन की खिदमत में बार-बार क़ासिद भेजे गए, मगर वह तशरीफ नहीं लाए। ऐसी हालत में हमें क्या करना चाहिए?
हानी– इसमें चंद खास आदमी खुद जायें और उन्हें साथ लाएं।
मुख्तार– हम लोगों ने रसूल की औलाद के साथ बार-बार ऐसी दगा की है कि हमारा एकबार उठ गया। मुझे खौफ़ है कि हज़रत हुसैन यहां हर्गिज न आएंगे।
सुले०– एक बार आखिरी कोशिश करना हमारा फर्ज है। हम लोग चल कर उनसे अर्ज करें कि हम कत्ल किए जा रहे हैं, लूटे जा रहे हैं, हमारी औरतों की आबरू भी सलामत नहीं। हमारी मुसीबत की कहानी सुनकर हुसैन को जरूर तरस आएगा, उनका दिल इतना सख्त नहीं हो सकता।
मुख्तार– मगर वह आपकी मुसीबतों पर तरस खाकर आएं, और तुमने उनकी मदद न की, तो सब-के-सब रूस्याह कहलाओगे। हमने पहले जो दवाएं की हैं, उनका फल पा रहे हैं, और फिर वही हरकत की, तो हम दुनिया और दीन में कहीं भी मुंह न दिखा सकेंगे। खूब सोच लो, आखिर तक तुम अपने इरादे पर क़ायम रह सकोगे। अगर तुम्हारे दिल हामी भरे, तो मैं दावे से कह सकता हूँ कि उन्हें खींच लाऊंगा। लेकिन अगर तुम्हारे दिल कच्चे हैं, तो तुम अपनी जानें निसार करने को तैयार नहीं हो, अगर तुम्हें खौफ़ है कि तुम लालच के शिकार बन जाओगे, तो तुम उन्हें मक्के में पड़े रहने दो।
हज्जाम– खुदा की कसम, हम उनके पैरों पर अपनी जानें निछावर कर देंगे।
हारिस– हम अपनी बदनामी का दाग़ मिटा देंगे।
मुख्तार– खुदा की हाजिर जानकार वादा करो कि अपने कौल पर क़ायम रहोगे।
[कई आदमी एक साथ]
‘‘अल्लाहोअकबर! हम हुसैन पर फ़िदा हो जायेंगे।’’
सुले०– तो मैं उनकी खिदमत में खत लिखता हूं।
[खत लिखता है।]
हज्जाज– इतना जरूर लिख देना कि हम आपके नाना मुहम्मद मुस्तफा का वास्ता देकर आपसे अर्ज़ करते हैं कि हमारे ऊपर कीजिए।
हारिस– यह और लिख देना कि हम बेशुमार अर्ज़िया आपकी खिदमत में भेज चुके, और आप तशरीफ न लाए। अगर आप अब भी न आए, तो हम कल कयामत के रोज़ रसूल के हुजूर में आपका दामन पकड़ेंगे।
हज्जाम– और कहेंगे या ख़ुदा, हुसैन ने हम पर फिर जुल्म किया था। क्योंकि हम पर जुल्म होते देखकर वह खामोश बैठे रहे, तो उसे वक्त आप क्या जवाब देंगे, और रसूल को क्या मुंह दिखाएंगे।
कीस– मेरी क़बीले में एक हज़ार जवान हैं, जो हुसैन के इंतजार में बैठे हुए हैं।
हज्जाम– शायद शाम तक जियाद कुछ आदमी जमा कर ले।
हारिस– अभी वह खामोश रहेगा। यजीद की फ़ौज आ जायेगी, तब हमारे ऊपर हमला करेगा।
शिमर– क्यों न लगे हाथ उसका भी खातमा कर दें, किस्सा पाक हो।
हारिस– वाह, अब तक यहां बैठा होगा?
सुले०– मैंने सारी दास्तान लिख दी। कौन इस खत को ले जायेगा।
शिमर– मैं हाजिर हूं।
सुले०– किसके पास ऐसी सांड़नी है, जो थकान न जानती हो, जो इस तरह दौड़ सकती हो, जैसे जियाद लूट के माल की तरफ?
एक युवक– मेरे पास एक सांड़नी है, जो तीन दिन में इस खत का जवाब ला सकती है। वह खिदमत बजा लाने का हक मेरा है, क्योंकि मुझसे ज्यादा मजलूम और कोई न होगा, जिसकी मां के बाल काजी के हुक्म से अभी-अभी नीचे गए हैं।
सुले०– बेशक, तुम्हारा हक सबसे ज्यादा है। यह खत लो, और इसके पहले कि हमारा पसीना ठंडा हो, मक्का की तरफ़ रवाना हो जाओ।
[युवक चला जाता है।]
आइए, हम लोग मस्जिद में नमाज अदा कर लें। खत का जवाब तीन दिन में आएगा। हज़रत हुसैन के आने में अभी एक महीने की देर है। जियाद भी शायद उसके पहले नहीं लौट सकता। ये दिन हमें तैयारियों में सर्फ़ करने चाहिए, क्योंकि यजीद की खिलाफत का फैसला कूफ़ा में होगा या तो वह खिलाफत के मसनद पर बैठेगा, या जाहिलों की इबादत का मजार बनेगा। अगर कूफ़ा ने खिलाफ़त को नबी के खानदान में वापस कर दिया, तो उसका नाम हमेशा रोशन रहेगा।
[सब जाते है।]