पहला दृश्य
(हुसैन का क़ाफ़िला मक्का के निकट पहुंचता है। मक्का की पहाड़ियां नजर आ रही हैं। लोग काबा की मसजिद द्वार पर स्वागत करने को खड़े हैं।)
हुसैन– यह लो, मक्का शरीफ़ आ गया। यही वह पाक मुकाम है, जहां रसूल ने दुनिया में क़दम रखे। ये पहाड़ियां रसूल के सिजदों से पाक और उनके आंसुओं से रोशन हो गई हैं। अब्बास, काबा को देखकर मेरे दिल में अजीब-सी धड़कन हो रही है, जैसे कोई गरीब मुसाफिर एक मुद्दत के बाद अपने वतन में दाखिल हो।
(सब लोग घोड़ों से उतर पड़ते हैं।)
जुबेर– आइए हज़रत हुसैन, हमारे शहर को अपने क़दमों से रौशन कीजिए।
(हुसैन सबसे गले मिलते हैं।)
हुसैन– मैं इस मेहमानबाजी के लिए आपका मशकूर हूं।
जुबेर– हमारी जानें आप पर निसार हों। आपको देखकर हमारी आंखों में नूप आ गया है, और हमारे कलेजे ठंडे हो गए है। खुदा गवाह है, आपने रसूल पाक की का हुलिया पाया है। आइए, काबा हाथ फैलाए आपका इंतजार कर रहा है।
(सब लोग मसजिद में दाखिल होते हैं। स्त्रियां हरम में जाती हैं।)
अली असगर– अब्बा, इन पहाड़ों पर से तो हमारा घर दिखाई देता होगा?
हुसैन– नहीं बेटा, हम लोग घर से बहुत दूर आ गए हैं। तुमने कुछ नाश्ता नहीं किया?
अली अ०– मुझे भूख नहीं है। पहले मालूम होती थी, लेकिन अब गायब हो गई।
हुसैन– तो तुम यहीं रहो कि तुम्हें भूख ही न लगे।
हबीब– या हजरत, आप भी जरा आराम फ़रमा लें। हमारी बहुत दिनों से तमन्ना है कि आपके पीछे खड़े होकर नमाज़ पढ़े।
(जुबेर और अब्बास को छोड़कर सब लोग वजू करने चले जाते हैं।)
हुसैन– क्यों जुबेर, यहां के लोगों के क्या खयालात हैं?
जुबेर– कुछ न पूछिए, मुझे यहां की क़ैफियत बयान करते शरम आती है। यो जाहिर में तो सब-के-सब आप पर निसार होने के लिए कसम खाएंगे, बैयत लेने को भी तैयार नजर आएंगे, मगर दिल किसी का भी साफ़ नहीं।
हुसैन– क्या दग़ा का अंदेशा है?
जुबेर– यह तो मैं नहीं कह सकता, क्योंकि कोई ऐसी बात देखने में नहीं आई, लेकिन इधर-उधर की बातों में पता चलता है कि इनकी नीयत साफ नहीं अजब नहीं कि यजीद दौलत और जागीर का लालच देकर इन्हें मिला ले। उस वक्त ये जरूर आपके साथ दगा कर जायेंगे। मैं तो आपको यही सलाह दूंगा कि आप मदीने वापस जाएं।
हुसैन– मुझे तो इनकी तरफ़ से दग़ा का गुमान नहीं होता। दग़ा में एक झिझक होती है, जो यहां किसी के चेहरे पर नज़र नहीं आती। दग़ा उसी तरह शक पैदा कर देती है, जैसे हमदर्दी एतबार पैदा करती है।
जुबेर– मगर आपको यह भी मालूम होगा कि दग़ा गिरगिट कभी अपने असली रंग में नहीं दिखाई देती। वह हाथों का बोसा लेती हैं, पैरों-तले आंखें बिछाती है और बातों से शक्कर बरसाती है।
अब्बास– दोस्त बनकर सलाह देती है, खुद किनारे पर रहती हैं, पर दूसरों को दरिया में ढकेल देती है। आप हंसती हैं, पर दूसरों को रुलाती है, और अपनी सूरत को हमेशा जाहिद के लिबास में छिपाए रहती हैं।
जुबेर– खुदा पाक की कसम, आप मेरी तरफ इशारा कर रहे है। अगर आप जानते कि मैं हज़रत हुसैन की कितनी इज्जत करता हूं, तो मुझ पर दगा का शक न करते। अगर मैं यजीद का दोस्त होता, तो अब तक दौलत से माला-माल हो जाता। अगर खुद बैयत की नीयत रखता, तो अब तक खामोश न बैठा रहता। आप मुझ पर यह शुबहा करके बड़ा सितम कर रहे हैं।
हुसैन– अब्बास, मुझे तुम्हारी बातें सुनकर बड़ी शर्म आती हैं। जुबेर सबसे अलग विलग रहते हैं। किसी के बीच में नहीं पड़ते। एकांत में बैठने वाले आदमियों पर अक्सर लोग शुबहा करने लगते हैं। तुम्हें शायद यह नहीं मालूम है कि दग़ा गोशे से सोहबत को कहीं ज्यादा पसंद करती है।
(हबीब का प्रवेश)
हबीब– या हज़रत, मुझे अभी मालूम हुआ कि आपके यहां तशरीफ लाने की खबर यजीद के पास भेज दी गई है, और मरवान यहां का नाजिम बनाकर भेजा जा रहा है।
हुसैन– मालूम होता है, मरवान हमारी जान लेकर ही छोड़ेगा। शायद हम जमीन के पर्दे में चले जाएं, तो वहां भी हमें आराम न लेने देगा।
अब्बास– यहां उसे उसकी शामत ला रही है। कलाम पाक की कसम, वह यहां से जान सलामत न ले जाएगा। काबा में खून बहाना हराम ही क्यों न हो, पर ऐसे रूह-स्याह का खून यहां भी हलाल है।
हबीब– वलीद माजूल कर दिया गया। यहां का आलिम मदीने जा रहा है।
हुसैन– वलीद की माजूली का मुझे सख्त अफ़सोस है। वह इस्लाम का सच्चा दोस्त था। मैं पहले ही समझ गया था कि ऐसे नेक और दीनदार आदमी के लिये यजीद के दरबार में जगह नहीं है। अब्बास, वलीद की माजूली मेरी शहादत की दलील है।
हबीब– यह भी सुना गया है कि यजीद ने अपने बेटे को, जो आपका खैर-ख्वाह है, नज़रबंद कर दिया है। उसने खुल्लम-खुल्ला यजीद की बेइंसाफ़ी पर एतराज़ किया था। यहां तक कहा था कि खिलाफत पर कोई हक नहीं है। यजीद यह सुनकर आग-बबूला हो गया। उसे कत्ल करना चाहता था, लेकिन सभी रूमी ने बचा लिया।
अब्बास– ऐसे जालिम का कत्ल कर देना ऐन सबाब है।
हुसैन– अब्बास, यह खुदा की मंशा की दूसरी दलील है। यह उसकी बदनसीबी है कि तकदीर ने उसे मेरी शहादत का वसीला बनाया है। अपने बेटे को क़ैद करने से किसी को खुशी नहीं हो सकती। जो आदमी अपने बेटे की जबान से अपनी तौहीन सुने, उससे ज्यादा बदनसीब दुनिया में कौन होगा?
जुबेर– मेरे खयाल में अगर आप कूफ़े की तरफ जायें, तो वहां आपको मददगारों की कमी न रहेगी।
हबीब– या हज़रत, मैं कूफ़ा के करीब का रहने वाला हूं, और कूफियों की आदत से खूब वाकिफ़ हूं। दग़ा उनकी ख़मीर में मिली हुई है। आप उनसे बचे रहिएगा। वे आपके पास अपनी बैयत के पैगाम भेजेंगे। उनके क़ासिद-पर-कासिद आएंगे, और आपको चैन न लेने देंगे। उनके खतों से ऐसा मालूम होगा कि सारा मुल्क आप पर फ़िदा होने के लिए तैयार है। पर आप उनकी बातों में हर्गिज नहीं आइएगा। भूलकर भी कूफ़ा की तरफ़ रूख न कीजिएगा। मेरी आपसे यही अर्ज है कि काबा से बाहर क़दम न रखिएगा, जब तक आप यहां रहेंगे, आप सब बलाओं से बचें रहेंगे, कूफ़ावाले वफ़ादारी से उतना ही महरूम हैं, जैसे चिड़ियां दूध से।
हुसैन– मैं कूफ़ावालों से खूब वाकि़फ हूं। तुमने और भी ख़बरदार कर दिया, इसके लिए मैं तुम्हारा मशकूर हूं।
हबीब– मैं यही अर्ज करने के लिए आपकी खिदमत में हाज़िर हुआ हूं। अगर वे लोग रोते हुए आकर आपके पैरों पर गिर पड़े तो भी आप ठुकरा दीजिएगा। इसमें शक नहीं कि वे दिलेर हैं, दीनदार हैं, मेहमानेबाज है, पर दौलत के गुलाम हैं। इस ऐब ने उनकी सारी खूबियों पर परदा डाल दिया है। वज़ीफे और जागीर के लालच और वजीफ़े तथा जागीर की जब्ती का खौफ़ उनसे ऐसे क़ौल करा सकता है जिसकी इंसान से उम्मीद नहीं की जा सकती।
हुसैन– हबीब, मैं तुम्हारी सलाह को हमेशा याद रखूंगा।
जुबेर– हबीब, तुमने कूफ़ियों के बारे में जो कुछ कहा, वह बहुत कुछ दुरुस्त है, लेकिन तुम हज़रत हुसैन के दोस्त हो, तुमने कहने में कोई खौफ़ नहीं कि मक्कावाले भी इस मामले में कूफ़ावालों ही के भाई-बंद है। इसके क़ौल और फ़ेल का भी कोई ऐतबार नहीं। कूफ़े की आबादी ज्यादा है, वे अगर दिल से किसी बात पर आ जायें, तो यजीद के दांत खट्टे कर सकते हैं। मक्का की थोड़ी सी आबादी वफ़ादार भी रहे, तो उससे भलाई की उम्मीद नहीं हो सकती। शाम की दो हज़ार फौज़ इन्हें घेर लेने को काफ़ी है। भलाई या बुराई किसी खास मुल्क या कौम का हिस्सा नहीं होती। वही सिपाही जो एक बार मैदान में दिलेरी के जौहर दिखाती हैं, दूसरी बार दुश्मन को देखते ही भाग खड़ी होती है। इसमें सिपाही की खता नहीं; उसके फ़ेल की जिम्मेदारी उसके सरदार पर है। वह अगर दिलेर है, तो सिपाही में दिलेरी की रूह फंक सकता है; कम-हिम्मत है, तो सिपाही की हिम्मत को पस्त कर देगा। आप रसूल के बेटे हैं, आपको भी खुदा ने वही अक्ल और कमाल अता किया है। यह क्योंकर मुमकिन है कि आपकी सोहबत का उन पर असर पड़े। कूफ़ा तो क्या, आप हक को भी रास्ते पर ला सकते हैं। मेरे खयाल में आपको किसी से बदगुमान होने की ज़रूरत नहीं।
अब्बास– जुबेर, सलाह कितनी माकूल हो, लेकिन उसमें गरज की बू आते ही उसकी मंशा फ़ौत हो जाती है।
हुसैन– अगर तुम्हारा इरादा यहां लोगों से बैयत लेने का ही, तो शौक से लो, मैं ज़रा भी दखल न दूंगा।
जुबेर– या हज़रत, मेरा खुदा गवाह है कि मैं आपके मुकाबले में अपने ख़िलाफ़त के लायक नहीं समझता। मैं यदीज की बैयत न करूंगा। लेकिन खुदा मुझे नजात न दे, अगर मेरे दिल में आपका मुक़ाबला करने का ख्याल भी आया हो।
हबीब– या इमाम, अगर तकलीफ न हो, तो सहन में तशरीफ़ लाइए। अजान हो चुकी। लोग आपकी राह देख रहे हैं।
(सब लोग नमाज पढ़ने जाते हैं।)