shabd-logo

ग्यारहवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022

23 बार देखा गया 23

[१० बजे रात का समय। जियाद के महल के सामने सड़क पर सुलेमान, मुखतार और हानी चले आ रहे हैं।]
सुले०– जियाद के बर्ताव में अब कितना फर्क नज़र आता है।
मुख०– हां, वरना हमें मशविरा देने के लिये क्यों बुलाता।
हानी– मुझे तो खौफ़ है कि उसे मुसलिम की बैयत लेने की खबर मिल गई है। कहीं उसकी नीयत खराब न हो।
मुख०– शक और ऐतबार साथ-साथ नहीं होता। वरना वह आज आपके घर न जाता।
हानी– उस वक्त भी शायद भेद लेने ही के इरादे से गया हो। मुझे गलती हुई कि अपने कबीले के कुछ आदमियों को साथ न लाया, तलवार भी नहीं ली।
सुले०– यह आपका वहम है।
[जियाद के मकान में वे सब दाखिल होते हैं। वहां कीस, शिमर, हज्जात आदि बैठे हुए हैं।]
जियाद– अस्सामअलेक। आइए, आप लोगों से एक खास मुआमले में सलाह लेनी है। क्यों शेख हानी, आपके साथ खलीफ़ा यजीद ने जो रियायतें की, क्या उनका यह बदला होना चाहिए था कि आप मुसलिम को अपने घर में ठहराएं, और लोगों को हुसैन की बैयत करने पर आमादा करें? हम आपका रुतबा और इज्जत बढ़ाते हैं, और आप हमारी जड़ खोदने की फिक्र में हैं?
हानी– या अमीर, खुदा जानता है, मैंने मुसलिम को खुद नहीं बुलाया, वह रात को मेरे घर आए, और पनाह चाही। यह इंसानियत के खिलाफ था कि मैं उन्हें घर से निकाल देता। आप खुद सोच सकते हैं कि इसमें मेरी क्या खता थी।
जियाद– तुम्हें मालूम था कि हुसैन खलीफ़ा यजीद के दुश्मन हैं?
हानी– अगर मेरा दुश्मन भी मेरी पनाह में आता, तो मैं दरवाजा न बंद रखता।
जियाद– अगर तुम अपनी खैरियत चाहते हो, तो मुसलिम को मेरे हवाले कर दो। वरना कलाम पाक की कसम, फिर आफताब की रोशनी न देखोगे।
हानी– या अमीर, अगर आप मेरे जिस्म के टुकड़े-टुकड़े कर डालें, और उन टुकड़ों को आग में डालें, तो भी मैं मुसलिम को आपके हवाले न करूंगा। मुरौवत इसे कभी क़बूल नहीं करती कि अपनी पनाह में आने वाले आदमी को दुश्मन के हवाले किया जाए। यह शराफत के खिलाफ है। अरब की आन के खिलाफ है। अगर मैं ऐसा करूं, तो अपनी ही निगाह में गिर जाऊंगा। मेरे मुंह पर हमेशा के लिए स्याही का दाग़ लग जायेगा और आनेवाली नस्ल मेरे नाम पर लानत करेंगी।
कीस– (हानी को एक किनारे ले जाकर) हानी, सोचो, इसका अंजाम क्या होगा? तुम पर, तुम्हारे खानदान पर, तुम्हारे कबीले पर आफत आ जाएगी। इतने आदमियों को कुर्बान करके एक आदमी की जान बचाना कहां की दानाई है?
हानी– कीस, तुम्हारे मुंह से ये बातें जेबा नहीं देती? मैं हुसैन के चचेरे भाई के साथ कभी दग़ा न करूंगा, चाहे मेरा सारा खानदान कत्ल कर दिया जाये।
जियाद– शायद तुम अपनी जिंदगी से बेजार हो गए हो।
हानी– आप मुझे मकान पर बुलाकर मुझे कत्ल की धमकी दे रहे हैं। मैं कहता हूं कि मेरा एक कतरा खून इस आलीशान इमारत को हिला देगा। हानी बेकस, बेजार और बेमददगार नहीं है।
जियाद– (हानी के मुंह पर सोंटे से मारकर) खलीफा का नायब किसी के मुंह से अपनी तौहीन न सुनेगा, चाहे वह दस हजार कबीले का सरदार क्यों न हो।
हानी– (नाक से खून पोंछते हुए) जालिम! तुझे शर्म नहीं आती कि एक निहत्थे आदमी पर वार कर रहा है। काश मैं जानता कि तू दग़ा करेगा, तो तू यों न बैठा रहता।
सुले०– जियाद! मैं तुम्हें खबरदार किये देता हूं कि अगर हानी को कैद किया, तो तू भी सलामत न बचेगा।
[जियाद सुलेमान को मारने उठता है, लेकिन हज्जाज उसे रोक लेता है।]
जियाद– तुम लोग बैठे मुँह क्या ताक रहे हो, पकड़ लो इसे बुड्ढे को। (बाहर की तरफ शोर मचता है।) यह शोर कैसा है?
कीस– (खिड़की से बाहर की तरफ झांककर) बागियों की एक फौज इस तरफ बढ़ती चली आ रही है।
जियाद– कितने आदमी होंगे?
कीस कसम खुदा की, दस हजार से कम नहीं है।
जियाद– (सिपाही को बुलाकर) हानी को ले जाओ और उसे कोठरी में बन्द कर दो, जहां कभी आफताब की किरणें नहीं पहुँचती।
सुले०– जियाद मैं तुम्हें खबरदार किए देता हूं कि तुझे खुद न उसी कोठरी में कैद होना पड़े।
[सुलेमान और मुख्तार बाहर चले जाते हैं।]
कीस– बागियों की एक फौज बड़ी तेजी से बढ़ती चली आ रही है। बीस हजार से कम न होगी। मुसलिम झंडा लिए हुए सबके आगे हैं।
जियाद– दरवाजे बंद कर लो। अपनी-अपनी तलवारें लेकर तैयार हो जाओ। कसम खुदा की, मैं इस बगावत का मुकाबला जबान से करूंगा। (छत पर चढ़कर बागियों से पूछता है।) तुम लोग शोर क्यों मचाते हो?
एक आ०– हम तुझसे हानी के खून का बदला लेने आए हैं।
जियाद– कलाम पाक की कसम, जीते-जागते आदमी के खून का बदला आज तक कभी किसी ने न लिया। अगर मैं झूठा हूं, तो तुम्हारे शहर का काजी तो झूठ न बोलेगा। (काजी को नीचे बुलाकर) बागियों से कह दो, हानी जिंदा है।
काजी– या अमीर! मैं हानी को जब तक अपनी आंखों से न देख लूं, मेरी जबान से यह तसदीक न होगी।
जियाद– कलाम पाक की कसम, मैं तमाम मुल्लाओं को वासिल जहन्नुम कर दूंगा। जा, देख आ, जल्दी कर।
[काजी नीचे जाता है, और क्षण भर में लौट आता है।]
काजी– ऐ कूफा के बाशिंदों! मैं ईमान की रू से तसदीक करता हूं कि शेख हानी जिंदा है। हां, उनकी नाक से खून जारी है।
मुस०– बढ़े चलो। महल पर चढ़ जाओ। क्या कहा, जीने नहीं है? जवां मरदों को कभी जीने का मुहताज नहीं देखा। तुम आप जीने बन जाओ।
जियाद– (दिल में) जालिम एक दूसरे के कंधों पर चढ़ रहे हैं। (प्रकट) दोस्तों, यह हंगामा किसलिए है? मैं हुसैन का दुश्मन नहीं हूँ। मुसलिम का दुश्मन नहीं हूं, अगर तुमने हुसैन की बैयत कबूल की है, तो मुबारक हो। वह शौक से आए। मैं यजीद का गुलाम नहीं हूं। जिसे कौन का खलीफ़ा बनाए उसका गुलाम हूं, लेकिन इसका तसफिया हंगामें से न होगा, इस मकान को पस्त करने से न होगा, अगर ऐसा हो, तो सबसे पहले इस पर मेरा हाथ उठेगा। मुझे कत्त करने से भी फैसला न होगा, अगर ऐसा हो, तो मैं अपने हाथों अपना सिर कलम करने को तैयार हूं। इसका फैसला आपस की सलाह से होगा।
मुस०– ठहरो, बस, थोड़ी कसर और है। ऊपर पहुंचे कि तुम्हारी फतह है।
सुले०– ऐ! ये लोग भागे नहीं जाते हैं? ठहरो-ठहरो, क्या बात है?
एक सि०– देखिए, कीस कुछ कह रहा है।
कीस– (खिड़की से सर निकालकर) भाइयो, हम और तुम एक शहर के रहनेवाले। क्या तुम हमारे खून से अपनी तलवारों की प्यास बुझाओगे? तुममें से कितने ही मेरे साथ खेले हुए हैं। क्या यह मुनासिब है कि हम एक दूसरे का खून बहाएं! हम लोगों ने दौलत के लालच से, रुतबे के लालच से और हुकूमत के लालच से यजीद की बैयत नहीं कबूल की है, बल्कि महज इसलिए कि कूफ़ा की गलियों में खून के नाले न बहें।
कई आ०– हम जियाद से लड़ना चाहते हैं, अपने भाइयों से नहीं।
मुस०– ठहरो-ठहरो। इस दग़ाबाज की बातों में न आओ।
सुले०– अफ़सोस, कोई नहीं सुनता। सब भागे चले जाते हैं। वह कौन बदनसीब है, जिसके आदमी इतनी आसानी से बहकाए जा सकते हैं।
मुस०– मेरी नादानी थी कि इन पर एतबार किया।
सुले०– मैं हजरत हुसैन को कौन-सा मुंह दिखाऊंगा। ऐसे लोग दग़ा देते जा रहे हैं, जिनको मैं तकदीर से ज्यादा अटल समझता था। कीस गया, हज्जाज गया, हारिश गया, शीश ने दग़ा की, अशअस ने दग़ा दी। जितने अपने थे, सब बेगाने हो गए।
मुख०– अब हमारे साथ कुल तीस आदमी और रह गए।
[यजीद के सिपाही महल से निकलते हैं। खुदा, इन मूजियों से बचाओ। हजरत मुसलिम, मुझे अब कोई ऐसा मकान नज़र नहीं आता, जहां आपकी हिफ़ाजत कर सकूं। मुझे यहां की मिट्टी से भी दग़ा की बू आ रही है]
कसीर– गरीब का मकान हाजिर है।
मुख०– अच्छी बात है। हजरत मुसलिम, आप इनके साथ जायें। हमें रुखसत कीजिए। हम दो-चार ऐसे आदमियों का रहना जरूरी है, जो हजरत हुसैन पर अपनी जान निसार कर सकें। हमें अपनी जान प्यारी नहीं, लेकिन हुसैन की खातिर उसकी हिफ़ाजत करनी पड़ेगी।
[वे दोनों एक गली में गायब हो जाते हैं।] 

44
रचनाएँ
कर्बला (नाटक)
0.0
अमर कथा शिल्पी मुंशी प्रेमचंद द्वारा इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मोहम्मद के नवासे हुसैन की शहादत का सजीव एवं रोमांच विवरण का एक ऐतिहासिक नाटक है | इस मार्मिक नाटक में यह दिखाया गया है कि उस काल के मुसलिम शासकों ने किस प्रकार मानवता प्रेमी व असहायों व निर्बलों की सहायता करने वाले हुसैन को परेशान किया और अमानवीय यातनाएं दे देकर उसे कत्ल कर दिया। कर्बला के मैदान में लड़ा गया यह युद्ध इतिहास में अपना विशेष महत्त्व रखता है।जब भी मुहर्रम की बात होती है तो सबसे पहले जिक्र कर्बला का किया जाता है. आज से लगभग 1400 साल पहले तारीख-ए-इस्लाम में कर्बला की जंग हुई थी. ये जंग जुल्म के खिलाफ इंसाफ के लिए लड़ी गई थी. इस जंग में पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 साथी शहीद हो गए थे | प्रायः सभी जातियों के इतिहास में कुछ ऐसी महत्त्वपूर्ण घटनाएं होती हैं; जो साहित्यिक कल्पना को अनंत काल तक उत्तेजित करती रहती हैं। साहित्यिक समाज नित नये रूप में उनका उल्लेख किया करता है, छंदों में, गीतों में, निबंधों में, लोकोक्तियों में, व्याख्यानों में बारंबार उनकी आवृत्ति होती रहती है, फिर भी नये लेखकों के लिए गुंजाइश रहती है। मुसलमानों के इतिहास में कर्बला के संग्राम को भी वही स्थान प्राप्त है।
1

भूमिका

12 फरवरी 2022
5
2
0

प्रायः सभी जातियों के इतिहास में कुछ ऐसी महत्वपूर्ण घटनाएँ होती हैं, जो साहित्यिक कल्पना को अनंत काल तक उत्तेजित करती रहती हैं। साहित्यिक-समाज नित नये रूप में उनका उल्लेख किया करता है, छंदों में, गीतो

2

नाटक का कथानक

12 फरवरी 2022
2
0
0

हज़रत मुहम्मद की मृत्यु के बाद कुछ ऐसी परिस्थिति पैदा हुई कि ख़िलाफ़त का पद उनके चचेरे भाई और दामाद हज़रत अली को न मिलकर उमर फ़ारूक को मिला। हज़रत मुहम्मद ने स्वयं ही व्यवस्था की थी कि खल़ीफ़ा सर्व-सम

3

नाटक के पात्र

12 फरवरी 2022
1
0
0

पुरुष हुसैन-हज़रत अली के बेटे और हज़रत मोहम्मद के नवासे । इन्हें फ़र्ज़न्दे-रसूल,शब्बीर,भी कहा गया है। अब्बास-हज़रत हुसैन के चचेरे भाई । अली अकबर-हजरत हुसैन के बड़े बेटे । अली असगर-हजरत हुसैन के छ

4

पहला अंक

12 फरवरी 2022
1
0
0

पहला दृश्य {समय-नौ बजे रात्रि। यजीद, जुहाक, शम्स और कई दरबारी बैठे हुए हैं। शराब की सुराही और प्याला रखा हुआ है।} यजीद– नगर में मेरी खिलाफ़त का ढिंढोरा पीट दिया गया? जुहाल– कोई गली, कूचा, नाका, सड़

5

दूसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

{ रात का समय– मदीने का गवर्नर वलीद अपने दरबार में बैठा हुआ है। } वलीद– (स्वागत) मरवान कितना खुदगरज आदमी है। मेरा मातहत होकर भी मुझ पर रोब जमाना चाहता है। उसकी मर्जी पर चलता, तो आज सारा मदीना मेरा दुश

6

तीसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
1
0
0

(रात का वक्त– हुसैन अब्बास मसजिद में बैठे बातें कर रहे हैं। एक दीपक जल रहा है।) हुसैन– मैं जब ख़याल करता हूं कि नाना मरहूम ने तनहा बड़े-बड़े सरकश बादशाहों को पस्त कर दिया, और इतनी शानदार खिलाफत कायम

7

चौथा दृश्य

12 फरवरी 2022
1
0
0

(समय– रात। वलीद का दरबार। वलीद और मरवान बैठे हुए हैं।) मरवान– अब तक नहीं आए! मैंने आपसे कहा न कि वह हरगिज नहीं आएंगे। वलीद– आएंगे, और जरूर आएंगे। मुझे उनके कौल पर पूरा भरोसा है। मरवान– कहीं ऐसा तो

8

पाँचवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
1
0
0

(समय– आधी रात। हुसैन और अब्बास मसजिद के सहन में बैठे हुए हैं।) अब्बास– बड़ी ख़ैरियत हुई, वरना मलऊन ने दुश्मनों का काम ही तमाम कर दिया था। हुसैन– तुम लोगों की जतन बड़े मौक़े पर आई। मुझे गुमान न था कि

9

छठा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

(समय– संध्या। कूफ़ा शहर का एक मकान। अब्दुल्लाह, कमर, वहब बातें कर रहे हैं।) अब्दु०– बड़ा गजब हो रहा है। शामी फौज के सिपाही शहरवालों को पकड़-पकड़ जियाद के पास ले जा रहे हैं, और वहां जबरन उनसे बैयत ली

10

सातवां दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

(अरब का एक गांव– एक विशाल मंदिर बना हुआ है, तालाब है, जिसके पक्के घाट बने हुए हैं, मनोहर बगीचा, मोर, हिरण, गाय आदि पशु-पक्षी इधर-उधर विचर रहे हैं। साहसराय और उनके बंधु तालाब के किनारे संध्या-हवन, ईश्व

11

दूसरा अंक

12 फरवरी 2022
0
0
0

पहला दृश्य (हुसैन का क़ाफ़िला मक्का के निकट पहुंचता है। मक्का की पहाड़ियां नजर आ रही हैं। लोग काबा की मसजिद द्वार पर स्वागत करने को खड़े हैं।) हुसैन– यह लो, मक्का शरीफ़ आ गया। यही वह पाक मुकाम है, ज

12

दूसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

यजीद का दरबार– यजीद, जुहाक़, मुआबिया, रूमी, हुर और अन्य सभासद् बैठे हुए हैं। दो वेश्याएँ शराब पिला रही हैं।) यजीद– तुममें से कोई बता सकता है, जन्नत कहां है? हुर– रसूल ने तो चौथे आसमान पर फ़रमाया। श

13

तीसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[कूफ़ा की अदालत– क़ाजी और अमले बैठे हुए है। काज़ी के सिर पर अमामा है, बदन पर कबा, कमर में कमरबंद, सिपाही नीचे कुरते पहने हुए हैं। अदालत से कुछ दूर पर मसजिद है मुकद्दमें में पेश हो रहे हैं। कई आदमी एक

14

चौथा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[स्थान– काबा, मरदाना बैठक। हुसैन, जुबेर, अब्बास मुसलिम अली असगर आदि बैठे दिखाई देते हैं।] हुसैन– यह पांचवी सफ़ारत है। एक हज़ार से ज्यादा खतूत आ चुके हैं। उन पर दस्तखत करने वालों की तादाद पन्द्रह हजार

15

पांचवां दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[यजीद का दराबर। मुआबिया बेड़ियां पहने हुए बैठे हुआ है। चार गुलाम नंगी तलवारें लिए उसके चारों तरफ़ खड़े हैं। यजीद के तख्त के करीब सरजून रूमी बैठा हुआ है।] मुआ०– (दिल से) नबी की औलाद पर यह जुल्म! मुझी

16

छठा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

(संध्या का समय। सूर्यास्त हो चुका है। कूफ़ा का शहर– कोई सारवान ऊँट का गल्ला लिए दाखिल हो रहे है।) पहला– यार गलियों से चलना, नहीं तो किसी सिपाही की नज़र पड़ जाये, तो महीनों बेगार झेलनी पड़े। दूसरा– ह

17

सातवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[कूफ़ा के चौक में कई दुकानदार बातें कर रहे हैं।] पहला– सुना, आज हज़रत हुसैन तशरीफ लेनेवाले हैं। दूसरा– हां, कल मुख्तार के मकान पर बड़ा जमघट था। मक्का से कोई साहब उनके आने की खबर लाए हैं। तीसरा– खुद

18

आठवां दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[नौ बजे रात का समय। कूफ़ा की जामा मसजिद। मुसलिम, मुख्तार, सुलेमान और हानी बैठे हुए हैं। कुछ आदमी द्वार पर बैठे हुए हैं।] सुले०– अब तक लोग नहीं आए? हानी– अब जाने की कम उम्मीद है। मुस०– आज जियाद का ल

19

नवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[दोपहर का समय। हानी का मकान शरीक एक चारपाई पर पड़े हुए है। मुसलिम और हानी फ़र्श पर बैठे हैं।] शरीक– जियाद अब आता ही होगा। मुसलिम, तलवार को तेज रखना। हानी– मैं खुद उसे क़त्ल करता, पर जईफ़ी ने हाथों म

20

दसवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[संध्या का समय। जियाद का दरबार] जियाद– तुम लोगों में ऐसा एक आदमी भी नहीं है, जो मुसलिम का सुराग़ लगा सके। मैं वादा करता हूं कि पांच हजार दीनार उसकी नज़र करूंगा। एक दर०– हुजूर, कहीं सुराग नहीं मिलता।

21

ग्यारहवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[१० बजे रात का समय। जियाद के महल के सामने सड़क पर सुलेमान, मुखतार और हानी चले आ रहे हैं।] सुले०– जियाद के बर्ताव में अब कितना फर्क नज़र आता है। मुख०– हां, वरना हमें मशविरा देने के लिये क्यों बुलाता।

22

बारहवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[९ बजे रात का समय। मुसलिम एक अंधेरी गली में खड़े हैं, थोड़ी दूर पर एक चिराग़ जल रहा है। तौआ अपने मकान के दरवाज़े पर बैठी हुई है।] मुस०– (स्वागत) उफ्! इतनी गरमी मालूम होती है कि बदन का खून आग हो गया।

23

तेरहवां दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[प्रातःकाल का समय। जियाद का दरबार। मुसलिम को कई आदमी मुश्क कसे लाते हैं] मुस०– मेरा उस पर सलाम है, जो हिदायत पर चलता है, आकबत से डरता है, और सच्चे बादशाह की बंदगी करता है। चोबदार– मुसलिम! अमीर को सल

24

कर्बला (भाग-2)

12 फरवरी 2022
0
0
0

तीसरा अंक पहला दृश्य [दोपहर का समय। रेगिस्तान में हुसैन के काफ़िले का पड़ाव। बगूले उड़ रहे है। हुसैन असगर को गोद में लिए अपने खेमे के द्वार पर खड़े हैं।] हुसैन– (मन में) उफ्, यह गर्मी! निगाहें जलती

25

दूसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[संध्या का समय। हुसैन का काफिला रेगिस्तान में चला जा रहा है।] अब्बास– अल्लाहोअकबर। वह कूफ़ा के दरख्त नज़र आने लगे। हबीद– अभी कूफ़ा दूर है। कोई दूसरा गांव होगा। अब्बास– रसूल पाक की कसम, फौज है। भालो

26

तीसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[संध्या का समय– नसीमा बगीचे में बैठी आहिस्ता-आहिस्ता गा रही है।] दफ़न करने ले चले जब मेरे घर से मुझे, काश तुम भी झांक लेते रौज़ने घर से मुझे। सांस पूरी हो चुकी दुनिया से रुख्सत हो चुका, तुम अब आए

27

चौथा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[आधी रात का समय। अब्बास हुसैन के खेमे के सामने खड़े पहरा दे रहे हैं। हुर आहिस्ता से आकर खेमे के करीब खड़ा हो जाता है।] हुर– (दिल में) खुदा को क्या मुंह दिखाऊंगा? किस मुंह से रसूल के सामने जाऊंगा? आह,

28

पांचवां दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[रात का समय। हुसैन अपने खेमे में सोए हुए हैं। वह चौंक पड़ते हैं, और लेटे हुए, चौकन्नी आंखों से, इधर-उधर ताकते हैं।] हुसैन– (दिल में) यहां तो कोई नजर नहीं आता। मैं हूं, शमा है, और मेरा धड़कता हुआ दिल

29

छठा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[कर्बला का मैदान। एक तरफ केरात-नदीं लहरें मार रही है। हुसैन मैदान में खड़े हैं। अब्बास और अली अकबर भी उनके साथ हैं।] अली अकबर– दरिया के किनारे खेमे लगाए जाए, वहां ठंडी हवा आएगी। अब्बास– बड़ी फ़िजा क

30

सातवां दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[नसीमा अपने कमरे में अकेली बैठी हुई है– समय १२ बजे रात का।] नसीमा– (दिल में) वह अब तक नहीं आए। गुलाम को उन्हें साथ लाने के लिए भेजा, वह भी वहीं का हो रहा। खुदा करे, वह आते हों। दुनिया में रहते हुए हम

31

चौथा अंक

12 फरवरी 2022
0
0
0

पहला दृश्य [प्रातःकाल का समय। जियाद फर्श पर बैठा हुआ सोच रहा है।] जियाद– (स्वगत) उस वफ़ादारी की क्या कीमत है, जो महज जबान तक महदूद रहें? कूफ़ा के सभी सरदार, जो मुसलिम बिन अकील से जंग करते वक्त बग़ले

32

तीसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[केरात-नदी के किनारे साद का लश्कर पड़ा हुआ है। केरात से दो मील के फासले पर कर्बला के मैदान में हुसैन का लश्कर है। केरात और हुसैन के लश्कर के बीच में साद ने एक लश्कर को नदी के पानी को रोकने के लिये पहर

33

चौथा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[हुसैन के हरम की औरतें बैठी हुई बातें कर रही हैं। शाम का वक्त।] सुगरा– अम्मा, बडी प्यास लगी है। अली असगर– पानी, बूआ पानी। हंफ़ा– कुर्बान गई, बेटे कितना पानी पियोगे? अभी लाई (मश्को को जाकर देखती है,

34

पांचवां दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[८ बजे रात का समय। जियाद की खास बैठक। शिमर और जियाद बातें कर रहे हैं।] जियाद– क्या कहते हो। मैंने सख्त ताकीद कर दी थी कि दरिया पर हुसैन का कोई आदमी न आने पाए। शिमर– बजा है। मगर मैं तो हुसैन के आदमिय

35

छठा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[प्रातःकाल। शाम का लश्कर। हुर और साद घोड़ों पर सवार फ़ौज का मुआयना कर रहे हैं।] हुर– अभी तर जियाद ने आपके खत का जबान नहीं दिया? साद-उसके इंतजार में रात-भर आंखें नहीं लगीं। जब किसी की आहट मिलती थी, त

36

सातवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
1
0
0

[समय ८ बजे रात। हुसैन एक कुर्सी पर मैदान में बैठे हुए हैं। उनके दोस्त और अजीज सब फ़र्श पर बैठे हुए हैं। शमा जल रही है।] हुसैन– शुक्र है, खुदाए-पाक का, जिसने हमें ईमान की रोशनी अता की, ताकि हम नेक को

37

आठवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[प्रातःकाल हुसैन के लश्कर में जंग की तैयारियां हो रही हैं।] अब्बास– खेमे एक दूसरे से मिला दिए गए, और उनके चारों तरफ खंदके खोद डाली गई, उनमें लकड़ियां भर दी गई। नक्कारा बजवा दूं? हुसैन– नहीं, अभी नही

38

नवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[कूफ़ा का वक्त। कूफ़ा का एक गांव। नसीमा खजूर के बाग में जमीन पर बैठी हुई गाती है।] गीत दबे हुओं को दबाती है ऐ जमीने-लहद, यह जानती है कि दम जिस्म नातवां में नहीं। क़फस में जी नहीं लगता है आह! फिर भ

39

पांचवां अंक

12 फरवरी 2022
0
0
0

पहला दृश्य [समय ९ बजे दिन। दोनों फौ़जे लड़ाई के लिये तैयार हैं।] हुर– या हजरत, मुझे मैदान में जाने की इजाजत मिले। अब शहादत का शौक रोके नहीं रुकता। हुसैन– वाह, अभी आए हो और अभी चले जाओगे। यह मेहमानन

40

दूसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[समर-भूमि। साद की तरफ़ से दो पहलवान आते हैं– यसार और सालिम।] यसार– (ललकारकर) कौन निकलता है, हुर का साथ देने के लिये। चला जाए, जिसे मौत का मजा चखना हो। हम वह है, जिनकी तलवार से क़ज़ा की रूह भी क़जा हो

41

तीसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[दोपहर का समय। हजरत हुसैन अब्बास के साथ खेमे के दरवाजे पर खड़े मैदाने-जंग की तरफ ताक रहे हैं।] हुसैन– कैसे-कैसे जांबाज दोस्त रुखसत हो गए और होते जा रहे हैं। प्यास से कलेजे मुंह को आ रहे हैं, और ये जा

42

चौथा दृश्य

12 फरवरी 2022
1
0
0

[जैनब अपने खेमे में बैठी हुई है। शाम का वक्त] जैनब– (स्वगत) अब्बास और अली अकबर के सिवा अब भैया के कोई रकीफ़ बाकी नहीं रहे। सब लोग उन पर निसार हो गए। हाय, कासिम-सा जवान, मुसलिम के बेटे, अब्बास के भाई,

43

पांचवां दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[१२ बजे रात का समय। लड़ाई ज़रा देर के लिए बंद है। दुश्मन की फ़ौज ग़ाफिल है। दरिया का किनारा। अब्बास हाथों में मशक लिए दरिया के किनारे खड़े हैं।] अब्बास– (दिल में) हम दरिया से कितने करीब हैं। इतनी ही

44

छठा दृश्य

12 फरवरी 2022
1
0
0

[दोपहर का समय। हुसैन अपने खेमे में खड़े है, जैनब, कुलसूम, सकीना, शहरबानू, सब उन्हें घेरे खड़े हैं।] हुसैन– जैनब, अब्बास के बाद अली अकबर दिल को तस्कीन देता था। अब किसे देखकर दिल को ढाढ़स दूं? हाय! मेर

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए