[कर्बला का मैदान। एक तरफ केरात-नदीं लहरें मार रही है। हुसैन मैदान में खड़े हैं। अब्बास और अली अकबर भी उनके साथ हैं।]
अली अकबर– दरिया के किनारे खेमे लगाए जाए, वहां ठंडी हवा आएगी।
अब्बास– बड़ी फ़िजा की जगह है।
हुसैन– (आंखों में आंसू भरे हुए) भाई, लहराते हुए दरिया को देखकर खुद-बखुद बाबा बहुत ग़मग़ीन थे। उनकी आंखों से आंसू न थमते थे। न खाना खाते थे, न सोते थे। मैंने पूछा– ‘‘या हजरत, आप क्यों इस क़दर बेताब हैं?’’ मुझे छाती से लिपटाकर बोले– ‘‘बेटा, तू मेरे बाद एक दिन यहां आएगा, उस दिन तुझे मेरे रोने का सबब मालूम होगा। आज मुझे उनकी वह बात याद आती है। उनका रोना बेसबब नहीं था। इसी जगह हमारे खून बहाए जायेंगे, इसी जगह हमारी बहनें और बेटियां, कैद की जाएंगी, इसी जगह हमारे आदमी कत्ल होंगे, और हम जिल्लत उठाएंगे। खुदा की क़सम, इसी जगह मेरी गर्दन की रगें कटेंगी और मेरी दाढ़ी खून में रंगी जायेगी। इसी जगह का वादा मेरे नाना से अल्लाहताला ने किया है, और उसका वादा तक़दीर की तहरीर है।
[गाते हैं।]
देगा जगह कोई मुश्ते गुबार को,
बैठेगा कौन लेके किसी बेकरार को।
दर सैकड़ों कफ़स में हैं, फिर भी असीर हूं,
कैसा मकां मिला है, गरीबे-दबार को।
दिल-सौज कौन है, जो न जाने के जुल्म से,
देखे मेरी बुझी हुई शमए-मज़ार को।
आखिर है दास्तान शबे-ग़म कि बाग मर्ग,
करता है बंद दीदए-अख्तर शुमार को।
आवाज ए-चमन की उम्मीद और मेरे बाद–
चुप कर दिया फ़लक ने ज़बाने-बहार को।
राहत कहां नसीब कि सहराए-गम को धूप,
देती है आग हर शजरे शायादार को।
खुद आसमां को नक्शे-वफा से है दुश्मनी,
तुम क्यों मिटा रहे हो निशाने-मजार को।
इस हादिसे से कबूल कि मैं फिर कुछ न कह सकूं,
सुन लो बयान हाले-दिले बेकरार को।
[जैनब खेमे से बाहर निकल आती है।]
जैनब– भैया, यह कौन-सा सहरा है कि इसे देखकर खौफ से कलेजा मुंह को आ रहा है। बानू बहुत घबराई हुई है, और असगर छाती से मुंह नहीं लगाता।
हुसैन– बहन! यही कर्बला का मैदान है।
जैनब– (दोनों हाथों से सिर पीटकर) भैया, मेरी आंखों के तारे, तुम पर मेरी जान निसार हो। हमें तक़दीर ने यहां कहां लाके छोड़ा, क्यों कहीं और चलते?
हुसैम– बहन, कहां जाऊं? चारो तरफ से नाके बंद हैं। जियाद का हुक्म कि मेरा लश्कर यहीं उतरे। मजबूत हूं, लड़ाई में बहस नहीं करना चाहता।
जैनब– हाय भैया! यह बड़ी मनहूस जगह है। मुझे लड़कपन से यहां की खबर है। हाय भैया! इस जगह तुम मुझसे बिछुड़ जाओगे। मैं बैठी देखूंगी, और तुम बर्छियां खाओगे। मुझे मदीने भी न पहुंचा सकोगे? रसून की औलाद यहीं तबाह होगी, उनकी नामूस यहीं लूटेगी। हाय तकदीर!
इस दश्त में तुम मुझसे बिछुड़ जाओगे भाई,
गर खाक भी छानूं तो न हाथ आवेगा भाई।
बहनों को मदीने में न पहुंचाओगे भाई,
मैं देखूंगी और बरछिया तुम खाओगे भाई।
औलाद से बानू की यह छूटने की जगह है,
नामूसे-नबी की यही लूटने की जगह है।
[बेहोश हो जाती हैं। लोग पानी के छींटे देते हैं]
अली अक०– या हजरत, खेमे कहां लगाए जाये?
अब्बास– मेरी सलाह तो है कि दरिया के किनारे लगें।
हुसैन– नहीं, भैया, दुश्मन हमें दरिया के किनारे न उतरने देंगे। इसी मैदान में खेमे लगाओ, खुदा यहां भी है, और वहां भी। उसकी मर्जी पूरी होकर रहेगी।
[जैनब को औरतें उठाकर खेमे में ले जाती हैं।]
बानू– हाय-हाय! बाजीजान को क्या हो गया। या खुदा हम मुसीबत के मारे हुए हैं, हमारे हाल पर रहम कर।
हुसैन– बानू, यह मेरी बहन नहीं, मां है। अगर इस्लाम में बुतपरस्ती हराम न होती, तो मैं इसकी इबादत करता। यह मेरे खानदान का रोशन सितारा है। मुझ-सा खुशनसीब भाई दुनिया में और कौन होगा, जिसे खुदा ने ऐसी बहन अता की। जैनब के मुंह पर पानी के छींटे देते हैं।