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चौथा दृश्य

12 फरवरी 2022

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[आधी रात का समय। अब्बास हुसैन के खेमे के सामने खड़े पहरा दे रहे हैं। हुर आहिस्ता से आकर खेमे के करीब खड़ा हो जाता है।]
हुर– (दिल में) खुदा को क्या मुंह दिखाऊंगा? किस मुंह से रसूल के सामने जाऊंगा? आह, गुलामी तेरा बुरा हो। जिस बुजुर्ग ने हमें ईमान की रोशनी दी, खुदा की इबादत सिखाई, इंसान बनाया, उसी के बेटे से जंग करना मेरे लिये कितनी शर्म की बात है। यह मुझसे न होगा। मैं जानता हूं, यजीद मेरे खून का प्यासा हो जायेगा, मेरी जागीर छीन ली जाएगी, मेरे लड़के रोटियों के मुहताज हो जायेंगे, मगर दुनिया खोकर रसूल की निगाह का हकदार हो जाऊंगा। मुझे न मालूम था कि यजीद की बैयत लेकर मैं अपनी आक़बत बिगाड़ने पर मजबूर किया जाऊंगा। अब यह जान हज़रत हुसैन पर निसार है। जो होना है, हो। यजीद की खिलाफत पर कोई हक नहीं। मैंने उसकी बैयत लेने में खास गलती की। उसके हुक्म की पाबंदी मुझ पर फर्ज़ नहीं। खुदा के दरबार में मैं इसके लिये गुनहगार न ठहरूंगा।
[आगे बढ़ता है।]
अब्बास– कौन है? खबरदार, एक कदम आगे न बढ़े, वरना लाश जमीन पर होगी।
हुर– या हज़रत, आपका गुलाम हुर हूं। हज़रत हुसैन की खिदमत में कुछ अर्ज करना चाहता हूं।
अब्बास– इस वक्त वह आराम फरमा रहे हैं।
हुर– मेरा उनसे इसी वक्त मिलना जरूरी है।
अब्बास– (दिल में) दग़ा का अंदेशा तो नहीं मालूम होता। मैं भी इसके साथ चलता हूं। जरा भी हाथ-पांव हिलाया कि सिर उड़ा दूंगा (प्रकट) अच्छा, जाओ।
[अब्बास खेमे से बाहर हुसैन को बुला लाते है।]
हुर– या हज़रत, मुआफ कीजिएगा। मैंने आपको नावक्त तकलीफ दी। मैं यह अर्ज करने आया हूं कि आप कूफ़ा की तरफ न जाये। रात का वक्त है, मेरी फौज सो रही है, आप किसी दूसरे तरफ चले जायें। मेरी यह अर्ज कबूल कीजिए।
हुसैन– हुर, यह अपनी जान बचाने का मौका नहीं, इस्लाम की आबरू को कायम रखने का सवाल है।
हुर– आप यमन की तरफ चले जायें, तो वहां आपको काफी मदद मिलेगी। मैंने सुना है, सुलेमान और मुख्तार वहां आपकी मदद के लिये फौज जमा कर रहे हैं।
हुसैन– हुर जिस लालच ने कूफ़ा के रईसों को मुझसे फेर दिया, क्या वह यमन में अपना असर न दिखाएगा? इंसान की गफ़लत सब जगह एक-सी होती है। मेरे लिए कूफ़ा के सिवा दूसरा रास्ता नहीं है। अगर तुम न जाने दोगे, तो जबरदस्ती जाऊंगा। यह जानता हूं कि वहीं मुझे शहादत नसीब होगी। इसकी खबर मुझे नाना की जबान मुबारक से मिल चुकी है। क्या खौफ़ से शहादत के रुतबे को छोड़ दूं?
हुर– अगर आप जाना ही चाहते हैं, तो मस्तूरात को वापस कर दीजिए।
हुसैन– हाय, ऐसा मुमकिन होता, तो मुझसे ज्यादा खुश कोई न होता। मगर इनमें से कोई भी मेरा साथ छोड़ने पर तैयार नहीं है।
[किसी तरह से ऊँ ऊँ की आवाज आ रही।]
हुर– या हजरत, यह आवाज कहां से आ रही है? इसे सुनकर दिल पर रोब तारी हो रहा है।
[एक योगी भभूत रमाए, जटा बढ़ाए, मृग-चर्म कंधे पर रखे हुए आते हैं।]
योगी– भगवन्! मैं उस स्थान को जाना चाहता हूं, जहां महर्षि मुहम्मद की समाधि है।
हुसैन– तुम कौन हो? यह कैसी शक्ल बना रखी है?
योगी– साधु हूं। उस देश से आ रहा हूं, जहां प्रथम ओंकार-ध्वनि की सृष्टि हुई थी। महर्षि मुहम्मद ने उसी ध्वनि से संपूर्ण जगत को निनादित कर दिया है। उनके अद्वैतवाद ने भारत के समाधि-मग्न ऋषियों को भी जागृति प्रदान कर दी है। उसी महात्मा की समाधि का दर्शन करने के लिए मैं भारत से आया हूं, कृपा कर मुझे मार्ग बता दीजिए।
हुसैन– आइए, खुशनसीब कि आपकी जियारत हुई। रात का वक्त है अंधेरा छाया हुआ है। इस वक्त यहीं आराम कीजिए। सुबह मैं आपके साथ अपना एक आदमी भेज दूंगा।
योगी– (गौर से हुसैन के चेहरे को देखकर) नहीं महात्मन् मेरा व्रत है कि उस पावन भूमि का दर्शन किए बिना कहीं विश्राम न करूंगा। प्रभो, आपके मुखारविंद पर भी मुझे उसी महर्षि के तेज का प्रतिबिंब दिखाई देता है। आप उनके आत्मीय हैं?
हुसैन– जी हां, उनका नेवासा हूं। मगर आपने नाना को देखा ही नहीं, फिर आपको कैसे मालूम हुआ कि मेरी सूरत उनसे मिलती है?
योगी– (हंसकर) भगवन्! मैंने उनका स्थूल शरीर नहीं देखा, पर उनके आत्मशरीर का दर्शन किया है। आत्मा द्वारा उनकी पवित्र वार्ता सुनी है। में प्रत्यक्ष देख रहा हूं कि आप में वही पवित्र आत्मा अवतरित हुई है। आज्ञा दीजिए, आपके चरण-रज से अपने मस्तक को पवित्र करूं।
हुसैन– (पैरों को हटाकर) नहीं-नहीं, मैं इंसान हूं और रसूल पाक की हिदायत है कि इंसान को इंसान की इबादत वाजिब नहीं।
योगी– धन्य है! मनुष्य के ब्रह्मत्व का कितना उच्च आदर्श है! यह ज्ञान-ज्योति, जो इस देश के उद्भाषित हुई है, एक दिन समस्त भूमंडल को आलोकित करेगी, और देश-देशांतरों में सत्य और न्याय का मुख उज्जवल करेगी। हां, इस महार्षि की संतान-न्याय-गौरव का पालन करेगी। अब मुझे आज्ञा दीजिए, आपके दर्शनों से कृतार्थ हो गया।
[योगी चला जाता है]
हुसैन– अब मुझे मरने का ग़म नहीं रहा। मेरे नाना की उम्मत हक और इंसाफ की हिमायत करेगी। शायद इसीलिए रसूल ने अपनी औलाद को हक पर कुर्बान करने का फैसला किया है। हुर, तुमने इस फकीर की पेशगोई सुनी?
हुर– या हज़रत, आपका रुतबा आज जैसा समझा हूं, ऐसा कभी न समझा था। हुजूर रसूल पाक से मेरे हक़ में दुआ करें कि मुझ रूहस्याह के गुनाह मुआफ़ करें।
[चला जाता है]
हुसैन– अब्बास, अब हमें कूफ़ावालों को अपने पहुंचने की इत्तिला देनी चाहिए।
अब्बास– वजा है।
हुसैन– कौन जा सकता है?
अब्बास– सैदावी को भेज दूं?
हुसैन– बहुत अच्छी बात है।
[अब्बास सैदावी को बुला लाते हैं।]
अब्बास– सैदावी, तुम्हें हमारे पहुंचाने की खबर लेकर कूफ़ा जाना पड़ेगा। यह कहने की जरूरत नहीं कि यह बड़े खतरे का काम है।
सैदावी– या हजरत, जब आपकी मुझ पर निगाह है, तो फिर खौफ़ किस-किस बात का।
हुसैन– शाबाश, यह खत लो, और वहां किसी ऐसे सरदार को देना, जो रसूल का सच्चा बंदा हो। जाओ, खुदा तुम्हें खैरियत से ले जाये।
[सैदावी जाता है।]
हुसैन– (दिल में) सैदावी, जाते हो, मगर मुझे शक है कि तुम लौटोगे! तुमने जिसे न दीन की हिफ़ाजत का ख्याल है, न हक का, जिसे दुश्मनों ने चारों तरफ़ से घेर नहीं रखा है, जिसको शहीद करने के लिए फौजे नहीं जमा की जा रही हैं, जो दुनिया में आराम से जिंदगी बसर कर सकता है, महज वफ़ादारी का हक़ अदा करने के लिए जान-बूझकर मौत के मुंह में कदम रखा है, तो मैं मौत से क्यों डरूं।
[गाते हैं।]

मौत का क्या उसको हैं, जो मुसलमां हो गया,
जिसकी नीयत नेक हैं, जो सिदकू ईमां हो गया।
कब दिलेरों को सताए फिक्र जर और खौफ़ जो,
अज्म सादिक उसका है, जो पाक दामा हो गया।
क्यों नदामत हो मुझे, दुनिया में ग़र जिंदा रहा,
जाय ग़म क्या है, जो नज़रे-तेग़ बुर्रा हो गया।
हो अदू दुनिया में रुसवा, आखिरत में ग़म नसीब,
मुनहरिफ दीं से हुआ, औं’ नंग-दौरां हो गया। 

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रचनाएँ
कर्बला (नाटक)
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अमर कथा शिल्पी मुंशी प्रेमचंद द्वारा इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मोहम्मद के नवासे हुसैन की शहादत का सजीव एवं रोमांच विवरण का एक ऐतिहासिक नाटक है | इस मार्मिक नाटक में यह दिखाया गया है कि उस काल के मुसलिम शासकों ने किस प्रकार मानवता प्रेमी व असहायों व निर्बलों की सहायता करने वाले हुसैन को परेशान किया और अमानवीय यातनाएं दे देकर उसे कत्ल कर दिया। कर्बला के मैदान में लड़ा गया यह युद्ध इतिहास में अपना विशेष महत्त्व रखता है।जब भी मुहर्रम की बात होती है तो सबसे पहले जिक्र कर्बला का किया जाता है. आज से लगभग 1400 साल पहले तारीख-ए-इस्लाम में कर्बला की जंग हुई थी. ये जंग जुल्म के खिलाफ इंसाफ के लिए लड़ी गई थी. इस जंग में पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 साथी शहीद हो गए थे | प्रायः सभी जातियों के इतिहास में कुछ ऐसी महत्त्वपूर्ण घटनाएं होती हैं; जो साहित्यिक कल्पना को अनंत काल तक उत्तेजित करती रहती हैं। साहित्यिक समाज नित नये रूप में उनका उल्लेख किया करता है, छंदों में, गीतों में, निबंधों में, लोकोक्तियों में, व्याख्यानों में बारंबार उनकी आवृत्ति होती रहती है, फिर भी नये लेखकों के लिए गुंजाइश रहती है। मुसलमानों के इतिहास में कर्बला के संग्राम को भी वही स्थान प्राप्त है।
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भूमिका

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प्रायः सभी जातियों के इतिहास में कुछ ऐसी महत्वपूर्ण घटनाएँ होती हैं, जो साहित्यिक कल्पना को अनंत काल तक उत्तेजित करती रहती हैं। साहित्यिक-समाज नित नये रूप में उनका उल्लेख किया करता है, छंदों में, गीतो

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नाटक का कथानक

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हज़रत मुहम्मद की मृत्यु के बाद कुछ ऐसी परिस्थिति पैदा हुई कि ख़िलाफ़त का पद उनके चचेरे भाई और दामाद हज़रत अली को न मिलकर उमर फ़ारूक को मिला। हज़रत मुहम्मद ने स्वयं ही व्यवस्था की थी कि खल़ीफ़ा सर्व-सम

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नाटक के पात्र

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पुरुष हुसैन-हज़रत अली के बेटे और हज़रत मोहम्मद के नवासे । इन्हें फ़र्ज़न्दे-रसूल,शब्बीर,भी कहा गया है। अब्बास-हज़रत हुसैन के चचेरे भाई । अली अकबर-हजरत हुसैन के बड़े बेटे । अली असगर-हजरत हुसैन के छ

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पहला अंक

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पहला दृश्य {समय-नौ बजे रात्रि। यजीद, जुहाक, शम्स और कई दरबारी बैठे हुए हैं। शराब की सुराही और प्याला रखा हुआ है।} यजीद– नगर में मेरी खिलाफ़त का ढिंढोरा पीट दिया गया? जुहाल– कोई गली, कूचा, नाका, सड़

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दूसरा दृश्य

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{ रात का समय– मदीने का गवर्नर वलीद अपने दरबार में बैठा हुआ है। } वलीद– (स्वागत) मरवान कितना खुदगरज आदमी है। मेरा मातहत होकर भी मुझ पर रोब जमाना चाहता है। उसकी मर्जी पर चलता, तो आज सारा मदीना मेरा दुश

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तीसरा दृश्य

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(रात का वक्त– हुसैन अब्बास मसजिद में बैठे बातें कर रहे हैं। एक दीपक जल रहा है।) हुसैन– मैं जब ख़याल करता हूं कि नाना मरहूम ने तनहा बड़े-बड़े सरकश बादशाहों को पस्त कर दिया, और इतनी शानदार खिलाफत कायम

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चौथा दृश्य

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(समय– रात। वलीद का दरबार। वलीद और मरवान बैठे हुए हैं।) मरवान– अब तक नहीं आए! मैंने आपसे कहा न कि वह हरगिज नहीं आएंगे। वलीद– आएंगे, और जरूर आएंगे। मुझे उनके कौल पर पूरा भरोसा है। मरवान– कहीं ऐसा तो

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पाँचवाँ दृश्य

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(समय– आधी रात। हुसैन और अब्बास मसजिद के सहन में बैठे हुए हैं।) अब्बास– बड़ी ख़ैरियत हुई, वरना मलऊन ने दुश्मनों का काम ही तमाम कर दिया था। हुसैन– तुम लोगों की जतन बड़े मौक़े पर आई। मुझे गुमान न था कि

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छठा दृश्य

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(समय– संध्या। कूफ़ा शहर का एक मकान। अब्दुल्लाह, कमर, वहब बातें कर रहे हैं।) अब्दु०– बड़ा गजब हो रहा है। शामी फौज के सिपाही शहरवालों को पकड़-पकड़ जियाद के पास ले जा रहे हैं, और वहां जबरन उनसे बैयत ली

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सातवां दृश्य

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(अरब का एक गांव– एक विशाल मंदिर बना हुआ है, तालाब है, जिसके पक्के घाट बने हुए हैं, मनोहर बगीचा, मोर, हिरण, गाय आदि पशु-पक्षी इधर-उधर विचर रहे हैं। साहसराय और उनके बंधु तालाब के किनारे संध्या-हवन, ईश्व

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दूसरा अंक

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पहला दृश्य (हुसैन का क़ाफ़िला मक्का के निकट पहुंचता है। मक्का की पहाड़ियां नजर आ रही हैं। लोग काबा की मसजिद द्वार पर स्वागत करने को खड़े हैं।) हुसैन– यह लो, मक्का शरीफ़ आ गया। यही वह पाक मुकाम है, ज

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दूसरा दृश्य

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यजीद का दरबार– यजीद, जुहाक़, मुआबिया, रूमी, हुर और अन्य सभासद् बैठे हुए हैं। दो वेश्याएँ शराब पिला रही हैं।) यजीद– तुममें से कोई बता सकता है, जन्नत कहां है? हुर– रसूल ने तो चौथे आसमान पर फ़रमाया। श

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तीसरा दृश्य

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[कूफ़ा की अदालत– क़ाजी और अमले बैठे हुए है। काज़ी के सिर पर अमामा है, बदन पर कबा, कमर में कमरबंद, सिपाही नीचे कुरते पहने हुए हैं। अदालत से कुछ दूर पर मसजिद है मुकद्दमें में पेश हो रहे हैं। कई आदमी एक

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चौथा दृश्य

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[स्थान– काबा, मरदाना बैठक। हुसैन, जुबेर, अब्बास मुसलिम अली असगर आदि बैठे दिखाई देते हैं।] हुसैन– यह पांचवी सफ़ारत है। एक हज़ार से ज्यादा खतूत आ चुके हैं। उन पर दस्तखत करने वालों की तादाद पन्द्रह हजार

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पांचवां दृश्य

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[यजीद का दराबर। मुआबिया बेड़ियां पहने हुए बैठे हुआ है। चार गुलाम नंगी तलवारें लिए उसके चारों तरफ़ खड़े हैं। यजीद के तख्त के करीब सरजून रूमी बैठा हुआ है।] मुआ०– (दिल से) नबी की औलाद पर यह जुल्म! मुझी

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छठा दृश्य

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(संध्या का समय। सूर्यास्त हो चुका है। कूफ़ा का शहर– कोई सारवान ऊँट का गल्ला लिए दाखिल हो रहे है।) पहला– यार गलियों से चलना, नहीं तो किसी सिपाही की नज़र पड़ जाये, तो महीनों बेगार झेलनी पड़े। दूसरा– ह

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सातवाँ दृश्य

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[कूफ़ा के चौक में कई दुकानदार बातें कर रहे हैं।] पहला– सुना, आज हज़रत हुसैन तशरीफ लेनेवाले हैं। दूसरा– हां, कल मुख्तार के मकान पर बड़ा जमघट था। मक्का से कोई साहब उनके आने की खबर लाए हैं। तीसरा– खुद

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आठवां दृश्य

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[नौ बजे रात का समय। कूफ़ा की जामा मसजिद। मुसलिम, मुख्तार, सुलेमान और हानी बैठे हुए हैं। कुछ आदमी द्वार पर बैठे हुए हैं।] सुले०– अब तक लोग नहीं आए? हानी– अब जाने की कम उम्मीद है। मुस०– आज जियाद का ल

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नवाँ दृश्य

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[दोपहर का समय। हानी का मकान शरीक एक चारपाई पर पड़े हुए है। मुसलिम और हानी फ़र्श पर बैठे हैं।] शरीक– जियाद अब आता ही होगा। मुसलिम, तलवार को तेज रखना। हानी– मैं खुद उसे क़त्ल करता, पर जईफ़ी ने हाथों म

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दसवाँ दृश्य

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[संध्या का समय। जियाद का दरबार] जियाद– तुम लोगों में ऐसा एक आदमी भी नहीं है, जो मुसलिम का सुराग़ लगा सके। मैं वादा करता हूं कि पांच हजार दीनार उसकी नज़र करूंगा। एक दर०– हुजूर, कहीं सुराग नहीं मिलता।

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ग्यारहवाँ दृश्य

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[१० बजे रात का समय। जियाद के महल के सामने सड़क पर सुलेमान, मुखतार और हानी चले आ रहे हैं।] सुले०– जियाद के बर्ताव में अब कितना फर्क नज़र आता है। मुख०– हां, वरना हमें मशविरा देने के लिये क्यों बुलाता।

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बारहवाँ दृश्य

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[९ बजे रात का समय। मुसलिम एक अंधेरी गली में खड़े हैं, थोड़ी दूर पर एक चिराग़ जल रहा है। तौआ अपने मकान के दरवाज़े पर बैठी हुई है।] मुस०– (स्वागत) उफ्! इतनी गरमी मालूम होती है कि बदन का खून आग हो गया।

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तेरहवां दृश्य

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[प्रातःकाल का समय। जियाद का दरबार। मुसलिम को कई आदमी मुश्क कसे लाते हैं] मुस०– मेरा उस पर सलाम है, जो हिदायत पर चलता है, आकबत से डरता है, और सच्चे बादशाह की बंदगी करता है। चोबदार– मुसलिम! अमीर को सल

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कर्बला (भाग-2)

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तीसरा अंक पहला दृश्य [दोपहर का समय। रेगिस्तान में हुसैन के काफ़िले का पड़ाव। बगूले उड़ रहे है। हुसैन असगर को गोद में लिए अपने खेमे के द्वार पर खड़े हैं।] हुसैन– (मन में) उफ्, यह गर्मी! निगाहें जलती

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दूसरा दृश्य

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[संध्या का समय। हुसैन का काफिला रेगिस्तान में चला जा रहा है।] अब्बास– अल्लाहोअकबर। वह कूफ़ा के दरख्त नज़र आने लगे। हबीद– अभी कूफ़ा दूर है। कोई दूसरा गांव होगा। अब्बास– रसूल पाक की कसम, फौज है। भालो

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तीसरा दृश्य

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[संध्या का समय– नसीमा बगीचे में बैठी आहिस्ता-आहिस्ता गा रही है।] दफ़न करने ले चले जब मेरे घर से मुझे, काश तुम भी झांक लेते रौज़ने घर से मुझे। सांस पूरी हो चुकी दुनिया से रुख्सत हो चुका, तुम अब आए

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चौथा दृश्य

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[आधी रात का समय। अब्बास हुसैन के खेमे के सामने खड़े पहरा दे रहे हैं। हुर आहिस्ता से आकर खेमे के करीब खड़ा हो जाता है।] हुर– (दिल में) खुदा को क्या मुंह दिखाऊंगा? किस मुंह से रसूल के सामने जाऊंगा? आह,

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पांचवां दृश्य

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[रात का समय। हुसैन अपने खेमे में सोए हुए हैं। वह चौंक पड़ते हैं, और लेटे हुए, चौकन्नी आंखों से, इधर-उधर ताकते हैं।] हुसैन– (दिल में) यहां तो कोई नजर नहीं आता। मैं हूं, शमा है, और मेरा धड़कता हुआ दिल

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छठा दृश्य

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[कर्बला का मैदान। एक तरफ केरात-नदीं लहरें मार रही है। हुसैन मैदान में खड़े हैं। अब्बास और अली अकबर भी उनके साथ हैं।] अली अकबर– दरिया के किनारे खेमे लगाए जाए, वहां ठंडी हवा आएगी। अब्बास– बड़ी फ़िजा क

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[नसीमा अपने कमरे में अकेली बैठी हुई है– समय १२ बजे रात का।] नसीमा– (दिल में) वह अब तक नहीं आए। गुलाम को उन्हें साथ लाने के लिए भेजा, वह भी वहीं का हो रहा। खुदा करे, वह आते हों। दुनिया में रहते हुए हम

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चौथा अंक

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पहला दृश्य [प्रातःकाल का समय। जियाद फर्श पर बैठा हुआ सोच रहा है।] जियाद– (स्वगत) उस वफ़ादारी की क्या कीमत है, जो महज जबान तक महदूद रहें? कूफ़ा के सभी सरदार, जो मुसलिम बिन अकील से जंग करते वक्त बग़ले

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तीसरा दृश्य

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[केरात-नदी के किनारे साद का लश्कर पड़ा हुआ है। केरात से दो मील के फासले पर कर्बला के मैदान में हुसैन का लश्कर है। केरात और हुसैन के लश्कर के बीच में साद ने एक लश्कर को नदी के पानी को रोकने के लिये पहर

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चौथा दृश्य

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[हुसैन के हरम की औरतें बैठी हुई बातें कर रही हैं। शाम का वक्त।] सुगरा– अम्मा, बडी प्यास लगी है। अली असगर– पानी, बूआ पानी। हंफ़ा– कुर्बान गई, बेटे कितना पानी पियोगे? अभी लाई (मश्को को जाकर देखती है,

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पांचवां दृश्य

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[८ बजे रात का समय। जियाद की खास बैठक। शिमर और जियाद बातें कर रहे हैं।] जियाद– क्या कहते हो। मैंने सख्त ताकीद कर दी थी कि दरिया पर हुसैन का कोई आदमी न आने पाए। शिमर– बजा है। मगर मैं तो हुसैन के आदमिय

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छठा दृश्य

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[प्रातःकाल। शाम का लश्कर। हुर और साद घोड़ों पर सवार फ़ौज का मुआयना कर रहे हैं।] हुर– अभी तर जियाद ने आपके खत का जबान नहीं दिया? साद-उसके इंतजार में रात-भर आंखें नहीं लगीं। जब किसी की आहट मिलती थी, त

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सातवाँ दृश्य

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[समय ८ बजे रात। हुसैन एक कुर्सी पर मैदान में बैठे हुए हैं। उनके दोस्त और अजीज सब फ़र्श पर बैठे हुए हैं। शमा जल रही है।] हुसैन– शुक्र है, खुदाए-पाक का, जिसने हमें ईमान की रोशनी अता की, ताकि हम नेक को

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आठवाँ दृश्य

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[प्रातःकाल हुसैन के लश्कर में जंग की तैयारियां हो रही हैं।] अब्बास– खेमे एक दूसरे से मिला दिए गए, और उनके चारों तरफ खंदके खोद डाली गई, उनमें लकड़ियां भर दी गई। नक्कारा बजवा दूं? हुसैन– नहीं, अभी नही

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नवाँ दृश्य

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[कूफ़ा का वक्त। कूफ़ा का एक गांव। नसीमा खजूर के बाग में जमीन पर बैठी हुई गाती है।] गीत दबे हुओं को दबाती है ऐ जमीने-लहद, यह जानती है कि दम जिस्म नातवां में नहीं। क़फस में जी नहीं लगता है आह! फिर भ

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पांचवां अंक

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पहला दृश्य [समय ९ बजे दिन। दोनों फौ़जे लड़ाई के लिये तैयार हैं।] हुर– या हजरत, मुझे मैदान में जाने की इजाजत मिले। अब शहादत का शौक रोके नहीं रुकता। हुसैन– वाह, अभी आए हो और अभी चले जाओगे। यह मेहमानन

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दूसरा दृश्य

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[समर-भूमि। साद की तरफ़ से दो पहलवान आते हैं– यसार और सालिम।] यसार– (ललकारकर) कौन निकलता है, हुर का साथ देने के लिये। चला जाए, जिसे मौत का मजा चखना हो। हम वह है, जिनकी तलवार से क़ज़ा की रूह भी क़जा हो

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तीसरा दृश्य

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[दोपहर का समय। हजरत हुसैन अब्बास के साथ खेमे के दरवाजे पर खड़े मैदाने-जंग की तरफ ताक रहे हैं।] हुसैन– कैसे-कैसे जांबाज दोस्त रुखसत हो गए और होते जा रहे हैं। प्यास से कलेजे मुंह को आ रहे हैं, और ये जा

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चौथा दृश्य

12 फरवरी 2022
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[जैनब अपने खेमे में बैठी हुई है। शाम का वक्त] जैनब– (स्वगत) अब्बास और अली अकबर के सिवा अब भैया के कोई रकीफ़ बाकी नहीं रहे। सब लोग उन पर निसार हो गए। हाय, कासिम-सा जवान, मुसलिम के बेटे, अब्बास के भाई,

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पांचवां दृश्य

12 फरवरी 2022
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[१२ बजे रात का समय। लड़ाई ज़रा देर के लिए बंद है। दुश्मन की फ़ौज ग़ाफिल है। दरिया का किनारा। अब्बास हाथों में मशक लिए दरिया के किनारे खड़े हैं।] अब्बास– (दिल में) हम दरिया से कितने करीब हैं। इतनी ही

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छठा दृश्य

12 फरवरी 2022
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[दोपहर का समय। हुसैन अपने खेमे में खड़े है, जैनब, कुलसूम, सकीना, शहरबानू, सब उन्हें घेरे खड़े हैं।] हुसैन– जैनब, अब्बास के बाद अली अकबर दिल को तस्कीन देता था। अब किसे देखकर दिल को ढाढ़स दूं? हाय! मेर

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