shabd-logo

बारहवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022

12 बार देखा गया 12

[९ बजे रात का समय। मुसलिम एक अंधेरी गली में खड़े हैं, थोड़ी दूर पर एक चिराग़ जल रहा है। तौआ अपने मकान के दरवाज़े पर बैठी हुई है।]
मुस०– (स्वागत) उफ्! इतनी गरमी मालूम होती है कि बदन का खून आग हो गया। दिन-भर गुजर गया, कहीं पानी का एक बूंद भी न नसीब हुआ। एक दिन, सिर्फ एक दिन पहले, २० हज़ार आदमियों ने मेरे हाथों पर हुसैन की बैयत ली थी। आज किसी से एक बूंद पानी मांगते हुए खौफ़ होता है कि कहीं गिरफ्तार न हो जाऊं। साए पर दुश्मन का गुमान होता है। खुदा से अब मेरी दुआ है कि हुसैन मक्के से न चले हों। आह कसीर! खुदा तुम्हें जन्नत में जगह दे। कितना दिलेर, कितना जांबाज! दोस्त की हिमायत का पाक फर्ज इतनी जवांमरदी से किसने पूरा किया होगा! तुम दोनों बाप और बेटे इस दग़ा और फरेब की दुनिया में रहने के लायक न थे। तुम्हारी मज़ार पर हूरे फातिहा पढ़ने आएंगी। आह! अब प्यास के मारे नहीं रह जाता। दुश्मन की तलवार से मरना इतना खौफ़नाक नहीं, जितना प्यास से तड़प-तड़पकर मरना। चिराग़ नज़र आता है। वहां चलकर पानी मांगू, शायद मिल जाये। (प्रकट) ऐ नेक बीबी, मेरा प्यास के मारे बुरा हाल है, थोड़ा-सा पानी पिला दो।
तौआ– आओ, बैठो, पानी लाती हूं।
[वह पानी लाती हैं, और मुसलिम पीकर, दीवार से लगकर बैठते हैं।]
तौआ– ऐ खुदा के बंदे, क्या तूने पानी नहीं पिया?
मुस०– पी चुका।
तौआ– तो अब घर जाओ। यहां अकेले पड़ा रहना मुनासिब नहीं है। जियाद के सिपाही चक्कर लगा रहे हैं, ऐसा न हो, तुम्हें सुबहे में पकड़ लें।
मुस०– चला जाऊंगा।
तौआ– हां बेटा, जमाना खराब है, अपने घर चले जाओ।
मुस०– चला जाऊंगा।
तौआ– रात गुजरती जाती है। तुम चले जाओ, तो मैं दरवाजा बंद कर लूं।
मुस०– चला जाऊंगा।
तौआ– सुभानअल्लाह! तुम भी अजीब आदमी हो। मैं तुमसे बार-बार घर जाने को कहती हूं, और तुम उठते ही नहीं। मुझे तुम्हारा यहां पड़ा रहना पसंद नहीं। कहीं कोई वारदात हो जाये। तो मैं खुदा के दरगाह में गुनहगार बनूं।
मुस०– ऐ नेक बीबी, जिसका यहां घर ही न हो, वह किसके घर चला जाये। जिसके लिए घरों के दरवाजे नहीं, सड़के बंद हो गई हों, उसका कहां ठिकाना है। अगर तुम्हारे घर में जगह और दिल में दर्द हो, तो मुझे पनाह दो। शायद मैं कभी इस नेकी का बदला दे सकूं।
तौआ– तुम कौन हो?
मुस०– मैं वही बदनसीब आदमी हूं, जिसकी आज घर-घर तलाश हो रही है। मेरा नाम मुसलिम है।
तौआ– या हजरत, तुम पर मेरी जान फिदा हो। जब तक तौआ जिंदा है, आपको किसी दूसरे घर जाने की जरूरत नहीं। खुशनसीब के मरने के वक्त आपकी जियारत हुई। मैं जियाद से क्यों डरूं? जिसके लिए मौत के सिवा और कोई आरजू नहीं। आइए, आपको अपने मकान के दूसरे हिस्से में ठहरा दूं, जहां किसी का गुजर नहीं हो सकता। (मुसलिम तौआ के साथ जाते हैं) यहां आप आराम कीजिए, मैं खाना लाती हूं।
[बलाल का प्रवेश]
बलाल– अम्मा, आज जियाद वे लोगों की खताएं माफ कर दीं, सबको तसल्ली दी, और इतमीनान दिलाया कि तुम्हारे साथ कोई सख्ती न की जायेगी। हज़रत मुसलिम का न जाने क्या हाल हुआ।
तौआ– जो हुसैन का दुश्मन है, उसके कौल का क्या ऐतबार!
बलाल– नहीं अम्मा, छोटे-बड़े खातिर से पेशे आए। उसकी बातें ऐसी होती हैं कि एक-एक लफ़्ज दिल में चुभ जाता है। हज़रत मुसलिम का बचना अब मुझे भी मुश्किल जान पड़ता है। अब खयाल होता है, उनके यहां आने से पहले हम लोगों में निफ़ाक पैदा हो गया। जियाद ने वादा किया है कि जो उन्हें गिरफ्तार करा देगा, उसे बहुत कुछ इनाम-इकराम में मिलेगा।
तौआ– बेटा, कहीं तेरी नीयत तो नहीं बदल गई। खुदा की क़सम, मैं तुझे कभी दूध न बख्शूंगी।
बलाल– अम्मा, खुदा न करे, मेरी नीयत में फर्क आए। मैं तो सिर्फ बात कह रहा था। आज सारा शहर जियाद को दुआएं दे रहा है।
[तौआ प्याले में खाना लेकर मुसलिम को दे आती है।]
बलाल– हजरत हुसैन तशरीफ न लाएं, तो अच्छा हो। मुझे खौफ़ है कि लोग उनके साथ दग़ा करेंगे।
तौआ– ऐसी बातें मुंह से न निकाल। हाथ-मुंह धो ले। क्या तुझे भूख नहीं लगी, या जियाद ने दावत कर दी?
बलाल– खुदा मुझे उसकी दावत से बचाए। खाना ला।
[तौआ उसके सामने खाना रख देती है, और फिर प्याले में कुछ रखकर मुसलिम को दे आती है।]
बलाल– यह पिछवाड़े की तरफ बार-बार क्यों जा रही हो अम्मा?
तौआ– कुछ नहीं बेटा! यों ही एक जरूरत से चली गई थी।
बलाल– हज़रत मुसलिम पर न जाने क्या गुजरी।
[खाना खाकर चारपाई पर लेटता है, तौआ बिस्तर लेकर मुसलिम की चारपाई पर बिछा आती है।]
बलाल– अम्मा, फिर तुम उधर गई, और कुछ लेकर गई। आखिर माज़रा क्या है? कोई मेहमान तो नहीं आया है?
तौआ– बेटा मेहमान आता, तो क्या उनके लिए यहां जगह न थी?
बलाल  मगर कोई-न-कोई धात है। क्या मुझसे भी छिपाने की ज़रूरत है?
तौआ– तू सो जा, तुझसे क्या।
बलाल– जब तक बतला न दोगी, तब तक मैं न सोऊंगा।
तौआ– किसी से कहेगा तो नहीं?
बलाल– तुम्हें मुझ पर भी एतबार नहीं?
तौआ– कसम खा।
बलाल– खुदा की कसम है, जो किसी से कहूं।
तौआ– (बलाल के कान में) हज़रत मुसलिम हैं।
बलाल– अम्मा, जियाद को खबर मिल गई, तो हम तबाह हो जायेंगे।
तौआ– खबर कैसे हो जायेगी। मैं तो कहूंगी नहीं। हां, तेरे दिल की नहीं जानती। करती क्या, एक तो मुसाफिर, दूसरे हुसैन के भाई। घर में जगह न होती, तो दिल में बैठा लेती।
बलाल– (दिल में!) अम्माँ ने मुझे यह राज बता दिया, बड़ी गलती की मैंने जिद करके पूछा, मुझसे गलती हुई। दिल पर क्योंकर काबू रख सकता हूं। एक वार से बादशाहत मिलती हो, तो ऐसा कौन हाथ है, जो न उठ जायेगा। एक बात से दौलत मिलती हो, जिंदगी के सारे हौसले पूरे होते हों, तो वह कौन जुबान है, जो चुप रह जायेगी। ऐ दिल, गुमराह न हो, तूने सख्त कसमें खाई हैं। लानत का तौक गले में न डाल। लेकिन होगा तो वही, जो मुकद्दर में हैं। अगर मुसलिम की तकदीर में बचना लिखा है, तो बचेंगे, चाहे सारी दुनिया दुश्मन हो जाये। मरना लिखा है, तो मरेंगे, चाहे सारी दुनिया उन्हें बचाए।
[उठकर तौआ की चारपाई की तरफ देखता है, और चुपके-से दरवाजा खोलकर चला जाता है।]
तौआ– (चौंककर उठ बैठती है।) आह! जालिम मां से भी दग़ा की। तुझे यह भी शर्म नहीं आई कि हुसैन का भाई मेरे मकान में गिरफ्तार हो, आकबत के दिन खुदा को कौने-सा मुंह दिखाएंगा। एक कसीर था कि अपनी और अपने बेटे की जान अपने मेहमान पर निसार कर दी, और एक बदनसीब मैं हूं कि मेरा बेटा उसी मेहमान को दुश्मनों के हवाले करने जा रहा है।
[बाहर शोर सुनाई देता है। मुसलिम तौआ के कमरे में आते हैं।]
मुस०– तौआ, यह शोर कैसा है?
तौआ– या हजरत! क्या बताऊं, मेरा बेटा मुझसे दग़ा कर गया। वह बुरी सायत थी कि मैंने अपने घर में आपको पनाह दी। काश अगर मैंने उस वक्त बेमुरौवती की होती, तो आप इस खतरे में न पड़ते। अगर कभी किसी मां को बेटा जनने पर अफ़सोस हुआ है, तो वह बदनसीब मां मैं हूं। अगर जानती कि यह यों दग़ा करेगा, तो जच्चेखाने में ही उसका गला घोंट देती।
मुस०– नेक बीबी, शर्मिंदा न हो। तेरे बेटे की खता नहीं, सब कुछ वही हो रहा है, जो तकदीर में था, और जिसकी मुझे खबर थी। लेकिन दुनिया में रहकर इंसाफ, इज्जत और ईमान के लिए प्राण देना हर एक बच्चे मुसलमान का फर्ज है। खुदा नबियों के हाथों हिदायत के बीज बोता है, और शहीदों के खून से उसे सींचता है। शहादत वह आला-से-आला रुतबा है जो कि खुदा इंसान को दे सकता है। मुझे अफ़सोस सिर्फ यह है कि जो बात एक दिन पहले होनी चाहिए थी, वह आज खुदा के बंदों के खून बहाने के बाद हो रही है।
[जियाद के आदमी बाहर से तौआ के घर में आग लगा देते हैं, और मुसलिम बाहर निकलकर दुश्मनों पर टूट पड़ते हैं।]
एक सिपाही– तलवार क्या है, बिजली है। खुदा बचाए।
[मुसलिम का हाथ पकड़ता है, और वहीं गिर जाता है।]
दूसरा सिपाही– अब इधर चला, जैसे कोई मस्त शेर डकारता हुआ चला आता हो। बंदा तो घर का राह लेता है, कौन जान दे।
(भागता है।)
तीसरा सिपाही– अर…र…र…या हजरत, मैं गरीब मुसाफिर हूं, देखने आया था कि यहां क्या हो रहा है।
[मुसलिम का हाथ पकड़ता है, और वहीं गिर पड़ता है]
चौथा सिपाही– जहन्नुम में जाये ऐसी नौकरी। आदमी आदमी से लड़ता है कि देव से। या हज़रत, मैं नहीं हूं, मैं तो हजूर के हाथों पर बैयत कतरने आया था।
[मुसलिम का हाथ पकड़ता है, और वहीं गिर पड़ता है।]
पांचवा सिपाही– किधर से भागें, कहीं जगह नहीं मिलती। या हजरत, अपनी बूढ़ी मां का अकेला लड़का हूं। जान बख्शें, तो हुजूर की जूतियां सीधी करूंगा।
[तलवार पकड़ते ही गिर पड़ता है। सिपाहियों में भगदड़ पड़ जाती है।]
कीस– जवानो, हिम्मत न हारो, तुम तीन सौ हो। कितने शर्म की बात है कि एक आदमी से इतना डर रहे हो।
एक सिपाही– बड़े बहादुर हो, तो तुम्हीं क्यों नहीं उससे लड़ आते? दुम दबाए पीछे क्यों खड़े हो? क्या तुम्हीं को अपनी जान प्यारी है!
कीस– हजरत मुसलिम, अमीर जियाद का हुक्म है कि अगर आप हथियार रख दें, तो आपको पनाह दी जाये। (सिपाहियों से) तुम सब छतों पर चढ़ जाओ, और ऊपर से पत्थर फेंको।
मुस०– ऐ खुदा और रसूल के दुश्मन, मुझे तेरी पनाह की जरूरत नहीं है। मैं यहां तुझसे पनाह मांगने नहीं आया हूं, तुझे सच्चाई के राह पर लाने आया हूं।
(एक पत्थर सिर पर आता है) ऐ गुमराहो! क्या तुमने इस्लाम से मुंह फेरकर शराफत और इंसानियत से भी मुंह फेर लिया। क्या तुम्हें शर्म नहीं आती कि तुम अपने रसूल पाक के अजीज पर पत्थर फेंक रहे हो। हमारे साथ तुम्हारा यह कमीनापन!
[तलवार लेकर टूट पड़ते और गाते हैं।]
कूचे में रास्ती के हम अब गदा हुए हैं,
क्या खौफ़ मौत का है, हक़ पर फ़िदा हुए हैं।
ईमां है अपना मुसलिक, मकरोदग़ा से नफ़रत,
दुनिया से फेरकर मुंह नकशे-वफ़ा हुए हैं।
क्या उन पे हाथ उठाऊं, जो मौत से हैं खायफ,
जो राहें-हक़ से फिरकर सरफे दग़ा हुए हैं।
दुनिया में आके इक दिन हर शख्स को है मरना,
जन्नत है, उनकी, जो यां वकफ़े जफ़ा हुए हैं।
कीस– कलामे पाक की कसम, हम आपसे फरेब न करेंगे। अगर हम आपसे झूठ बोलें, तो हमारी नजात न हो।
मुस०– वल्लाह! मुझे जिंदा गिरफ्तार करके जियाद के तानों का निशाना न बना सकेगा।
कीस– (आहिस्ते से) यह शेर इस तरह काबू में न आएगा। इसका सामना करना मौत का लुकमा बनना है। यहां गहरा गड्ढा खोदो। जब तक वह औरों को गिराता हुआ आए, तब तक गड्ढा तैयार हो जाना चाहिए। यहां अंधेरा है, वह जोश में इधर आते ही गिर जायेगा।
एक सि०– जियाद पर लानत हो, जिसने हमें शेर से लड़ने के लिये भेजा था। या हजरत, रहम, रहम!
दू० मि०– खुदा खैर करे। क्या जानता था, यहां मौत का सामना करना पड़ेगा। बाल-बच्चों की खबर लेने वाला कोई नहीं।
[मुसलिम गड्ढे में गिर पड़ते हैं।]
मुस०– जालिमों, आखिर तुमने दग़ा की।
कीस– पकड़ लो, पकड़ लो, निकलने न पाए। कत्ल न करना। जिंदा पकड़ लो।
अशअस– तलवार का हकदार मैं हूं।
कीस– जिर्रह मेरा हिस्सा है।
अश०– खुद उतार लो, साद को देंगे।
मुस०– प्यास! बड़े जोरों की प्यास है। खुदा के लिये एक घूंट पानी पिला दो।
कीस०– अब जहन्नुम के सिवा यहां पानी का एक कतरा भी न मिलेगा।
मुस०– तुफ़ है तुझ पर जालिम, तुझे शरीफ़ों की तरह जबह करने की भी तमीज नहीं। मरने वालों से ऐसी दिल-खराश बातें की जाती हैं? अफ़सोस!
अश०– अब अफसोस करने से क्या फायदा? यह तुम्हारे फेल का नतीजा है।
मुस०– आह! मैं अपने लिए अफ़सोस नहीं करता। रोता हूं हुसैन के लिए जिसे मैंने तुम्हारी मदद के लिए आमादा किया। जो मेरी ही मिन्नतों से अपने गोशे पर निकलने को राजी हुआ। जबकि खानदान के सभी आदमी तुम्हारी दग़ाबाजी का खौफ़ दिला रहे थे, मैंने ही उन्हें यहां आने पर मज़बूर किया। रोता हूं कि जिस दग़ा ने मुझे तबाह किया, वह उन्हें और उनके साथ उनके खानदान को भी तबाह कर देगी। क्या तुम्हारे ख़याल में यह रोने की बात नहीं है? तुमसे कुछ सवाल करूं?
अश०– हुसैन की बैयात के सिवा और जो सवाल चाहे कर सकते हो।
मुस०– हुसैन की मेरी मौत की इत्तिला दे देना।
अश०– मंजूर है।
[कई सिपाही मुसलिम को रस्सियों से बांधकर ले जाते है।] 

44
रचनाएँ
कर्बला (नाटक)
0.0
अमर कथा शिल्पी मुंशी प्रेमचंद द्वारा इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मोहम्मद के नवासे हुसैन की शहादत का सजीव एवं रोमांच विवरण का एक ऐतिहासिक नाटक है | इस मार्मिक नाटक में यह दिखाया गया है कि उस काल के मुसलिम शासकों ने किस प्रकार मानवता प्रेमी व असहायों व निर्बलों की सहायता करने वाले हुसैन को परेशान किया और अमानवीय यातनाएं दे देकर उसे कत्ल कर दिया। कर्बला के मैदान में लड़ा गया यह युद्ध इतिहास में अपना विशेष महत्त्व रखता है।जब भी मुहर्रम की बात होती है तो सबसे पहले जिक्र कर्बला का किया जाता है. आज से लगभग 1400 साल पहले तारीख-ए-इस्लाम में कर्बला की जंग हुई थी. ये जंग जुल्म के खिलाफ इंसाफ के लिए लड़ी गई थी. इस जंग में पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 साथी शहीद हो गए थे | प्रायः सभी जातियों के इतिहास में कुछ ऐसी महत्त्वपूर्ण घटनाएं होती हैं; जो साहित्यिक कल्पना को अनंत काल तक उत्तेजित करती रहती हैं। साहित्यिक समाज नित नये रूप में उनका उल्लेख किया करता है, छंदों में, गीतों में, निबंधों में, लोकोक्तियों में, व्याख्यानों में बारंबार उनकी आवृत्ति होती रहती है, फिर भी नये लेखकों के लिए गुंजाइश रहती है। मुसलमानों के इतिहास में कर्बला के संग्राम को भी वही स्थान प्राप्त है।
1

भूमिका

12 फरवरी 2022
5
2
0

प्रायः सभी जातियों के इतिहास में कुछ ऐसी महत्वपूर्ण घटनाएँ होती हैं, जो साहित्यिक कल्पना को अनंत काल तक उत्तेजित करती रहती हैं। साहित्यिक-समाज नित नये रूप में उनका उल्लेख किया करता है, छंदों में, गीतो

2

नाटक का कथानक

12 फरवरी 2022
2
0
0

हज़रत मुहम्मद की मृत्यु के बाद कुछ ऐसी परिस्थिति पैदा हुई कि ख़िलाफ़त का पद उनके चचेरे भाई और दामाद हज़रत अली को न मिलकर उमर फ़ारूक को मिला। हज़रत मुहम्मद ने स्वयं ही व्यवस्था की थी कि खल़ीफ़ा सर्व-सम

3

नाटक के पात्र

12 फरवरी 2022
1
0
0

पुरुष हुसैन-हज़रत अली के बेटे और हज़रत मोहम्मद के नवासे । इन्हें फ़र्ज़न्दे-रसूल,शब्बीर,भी कहा गया है। अब्बास-हज़रत हुसैन के चचेरे भाई । अली अकबर-हजरत हुसैन के बड़े बेटे । अली असगर-हजरत हुसैन के छ

4

पहला अंक

12 फरवरी 2022
1
0
0

पहला दृश्य {समय-नौ बजे रात्रि। यजीद, जुहाक, शम्स और कई दरबारी बैठे हुए हैं। शराब की सुराही और प्याला रखा हुआ है।} यजीद– नगर में मेरी खिलाफ़त का ढिंढोरा पीट दिया गया? जुहाल– कोई गली, कूचा, नाका, सड़

5

दूसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

{ रात का समय– मदीने का गवर्नर वलीद अपने दरबार में बैठा हुआ है। } वलीद– (स्वागत) मरवान कितना खुदगरज आदमी है। मेरा मातहत होकर भी मुझ पर रोब जमाना चाहता है। उसकी मर्जी पर चलता, तो आज सारा मदीना मेरा दुश

6

तीसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
1
0
0

(रात का वक्त– हुसैन अब्बास मसजिद में बैठे बातें कर रहे हैं। एक दीपक जल रहा है।) हुसैन– मैं जब ख़याल करता हूं कि नाना मरहूम ने तनहा बड़े-बड़े सरकश बादशाहों को पस्त कर दिया, और इतनी शानदार खिलाफत कायम

7

चौथा दृश्य

12 फरवरी 2022
1
0
0

(समय– रात। वलीद का दरबार। वलीद और मरवान बैठे हुए हैं।) मरवान– अब तक नहीं आए! मैंने आपसे कहा न कि वह हरगिज नहीं आएंगे। वलीद– आएंगे, और जरूर आएंगे। मुझे उनके कौल पर पूरा भरोसा है। मरवान– कहीं ऐसा तो

8

पाँचवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
1
0
0

(समय– आधी रात। हुसैन और अब्बास मसजिद के सहन में बैठे हुए हैं।) अब्बास– बड़ी ख़ैरियत हुई, वरना मलऊन ने दुश्मनों का काम ही तमाम कर दिया था। हुसैन– तुम लोगों की जतन बड़े मौक़े पर आई। मुझे गुमान न था कि

9

छठा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

(समय– संध्या। कूफ़ा शहर का एक मकान। अब्दुल्लाह, कमर, वहब बातें कर रहे हैं।) अब्दु०– बड़ा गजब हो रहा है। शामी फौज के सिपाही शहरवालों को पकड़-पकड़ जियाद के पास ले जा रहे हैं, और वहां जबरन उनसे बैयत ली

10

सातवां दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

(अरब का एक गांव– एक विशाल मंदिर बना हुआ है, तालाब है, जिसके पक्के घाट बने हुए हैं, मनोहर बगीचा, मोर, हिरण, गाय आदि पशु-पक्षी इधर-उधर विचर रहे हैं। साहसराय और उनके बंधु तालाब के किनारे संध्या-हवन, ईश्व

11

दूसरा अंक

12 फरवरी 2022
0
0
0

पहला दृश्य (हुसैन का क़ाफ़िला मक्का के निकट पहुंचता है। मक्का की पहाड़ियां नजर आ रही हैं। लोग काबा की मसजिद द्वार पर स्वागत करने को खड़े हैं।) हुसैन– यह लो, मक्का शरीफ़ आ गया। यही वह पाक मुकाम है, ज

12

दूसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

यजीद का दरबार– यजीद, जुहाक़, मुआबिया, रूमी, हुर और अन्य सभासद् बैठे हुए हैं। दो वेश्याएँ शराब पिला रही हैं।) यजीद– तुममें से कोई बता सकता है, जन्नत कहां है? हुर– रसूल ने तो चौथे आसमान पर फ़रमाया। श

13

तीसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[कूफ़ा की अदालत– क़ाजी और अमले बैठे हुए है। काज़ी के सिर पर अमामा है, बदन पर कबा, कमर में कमरबंद, सिपाही नीचे कुरते पहने हुए हैं। अदालत से कुछ दूर पर मसजिद है मुकद्दमें में पेश हो रहे हैं। कई आदमी एक

14

चौथा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[स्थान– काबा, मरदाना बैठक। हुसैन, जुबेर, अब्बास मुसलिम अली असगर आदि बैठे दिखाई देते हैं।] हुसैन– यह पांचवी सफ़ारत है। एक हज़ार से ज्यादा खतूत आ चुके हैं। उन पर दस्तखत करने वालों की तादाद पन्द्रह हजार

15

पांचवां दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[यजीद का दराबर। मुआबिया बेड़ियां पहने हुए बैठे हुआ है। चार गुलाम नंगी तलवारें लिए उसके चारों तरफ़ खड़े हैं। यजीद के तख्त के करीब सरजून रूमी बैठा हुआ है।] मुआ०– (दिल से) नबी की औलाद पर यह जुल्म! मुझी

16

छठा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

(संध्या का समय। सूर्यास्त हो चुका है। कूफ़ा का शहर– कोई सारवान ऊँट का गल्ला लिए दाखिल हो रहे है।) पहला– यार गलियों से चलना, नहीं तो किसी सिपाही की नज़र पड़ जाये, तो महीनों बेगार झेलनी पड़े। दूसरा– ह

17

सातवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[कूफ़ा के चौक में कई दुकानदार बातें कर रहे हैं।] पहला– सुना, आज हज़रत हुसैन तशरीफ लेनेवाले हैं। दूसरा– हां, कल मुख्तार के मकान पर बड़ा जमघट था। मक्का से कोई साहब उनके आने की खबर लाए हैं। तीसरा– खुद

18

आठवां दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[नौ बजे रात का समय। कूफ़ा की जामा मसजिद। मुसलिम, मुख्तार, सुलेमान और हानी बैठे हुए हैं। कुछ आदमी द्वार पर बैठे हुए हैं।] सुले०– अब तक लोग नहीं आए? हानी– अब जाने की कम उम्मीद है। मुस०– आज जियाद का ल

19

नवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[दोपहर का समय। हानी का मकान शरीक एक चारपाई पर पड़े हुए है। मुसलिम और हानी फ़र्श पर बैठे हैं।] शरीक– जियाद अब आता ही होगा। मुसलिम, तलवार को तेज रखना। हानी– मैं खुद उसे क़त्ल करता, पर जईफ़ी ने हाथों म

20

दसवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[संध्या का समय। जियाद का दरबार] जियाद– तुम लोगों में ऐसा एक आदमी भी नहीं है, जो मुसलिम का सुराग़ लगा सके। मैं वादा करता हूं कि पांच हजार दीनार उसकी नज़र करूंगा। एक दर०– हुजूर, कहीं सुराग नहीं मिलता।

21

ग्यारहवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[१० बजे रात का समय। जियाद के महल के सामने सड़क पर सुलेमान, मुखतार और हानी चले आ रहे हैं।] सुले०– जियाद के बर्ताव में अब कितना फर्क नज़र आता है। मुख०– हां, वरना हमें मशविरा देने के लिये क्यों बुलाता।

22

बारहवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[९ बजे रात का समय। मुसलिम एक अंधेरी गली में खड़े हैं, थोड़ी दूर पर एक चिराग़ जल रहा है। तौआ अपने मकान के दरवाज़े पर बैठी हुई है।] मुस०– (स्वागत) उफ्! इतनी गरमी मालूम होती है कि बदन का खून आग हो गया।

23

तेरहवां दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[प्रातःकाल का समय। जियाद का दरबार। मुसलिम को कई आदमी मुश्क कसे लाते हैं] मुस०– मेरा उस पर सलाम है, जो हिदायत पर चलता है, आकबत से डरता है, और सच्चे बादशाह की बंदगी करता है। चोबदार– मुसलिम! अमीर को सल

24

कर्बला (भाग-2)

12 फरवरी 2022
0
0
0

तीसरा अंक पहला दृश्य [दोपहर का समय। रेगिस्तान में हुसैन के काफ़िले का पड़ाव। बगूले उड़ रहे है। हुसैन असगर को गोद में लिए अपने खेमे के द्वार पर खड़े हैं।] हुसैन– (मन में) उफ्, यह गर्मी! निगाहें जलती

25

दूसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[संध्या का समय। हुसैन का काफिला रेगिस्तान में चला जा रहा है।] अब्बास– अल्लाहोअकबर। वह कूफ़ा के दरख्त नज़र आने लगे। हबीद– अभी कूफ़ा दूर है। कोई दूसरा गांव होगा। अब्बास– रसूल पाक की कसम, फौज है। भालो

26

तीसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[संध्या का समय– नसीमा बगीचे में बैठी आहिस्ता-आहिस्ता गा रही है।] दफ़न करने ले चले जब मेरे घर से मुझे, काश तुम भी झांक लेते रौज़ने घर से मुझे। सांस पूरी हो चुकी दुनिया से रुख्सत हो चुका, तुम अब आए

27

चौथा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[आधी रात का समय। अब्बास हुसैन के खेमे के सामने खड़े पहरा दे रहे हैं। हुर आहिस्ता से आकर खेमे के करीब खड़ा हो जाता है।] हुर– (दिल में) खुदा को क्या मुंह दिखाऊंगा? किस मुंह से रसूल के सामने जाऊंगा? आह,

28

पांचवां दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[रात का समय। हुसैन अपने खेमे में सोए हुए हैं। वह चौंक पड़ते हैं, और लेटे हुए, चौकन्नी आंखों से, इधर-उधर ताकते हैं।] हुसैन– (दिल में) यहां तो कोई नजर नहीं आता। मैं हूं, शमा है, और मेरा धड़कता हुआ दिल

29

छठा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[कर्बला का मैदान। एक तरफ केरात-नदीं लहरें मार रही है। हुसैन मैदान में खड़े हैं। अब्बास और अली अकबर भी उनके साथ हैं।] अली अकबर– दरिया के किनारे खेमे लगाए जाए, वहां ठंडी हवा आएगी। अब्बास– बड़ी फ़िजा क

30

सातवां दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[नसीमा अपने कमरे में अकेली बैठी हुई है– समय १२ बजे रात का।] नसीमा– (दिल में) वह अब तक नहीं आए। गुलाम को उन्हें साथ लाने के लिए भेजा, वह भी वहीं का हो रहा। खुदा करे, वह आते हों। दुनिया में रहते हुए हम

31

चौथा अंक

12 फरवरी 2022
0
0
0

पहला दृश्य [प्रातःकाल का समय। जियाद फर्श पर बैठा हुआ सोच रहा है।] जियाद– (स्वगत) उस वफ़ादारी की क्या कीमत है, जो महज जबान तक महदूद रहें? कूफ़ा के सभी सरदार, जो मुसलिम बिन अकील से जंग करते वक्त बग़ले

32

तीसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[केरात-नदी के किनारे साद का लश्कर पड़ा हुआ है। केरात से दो मील के फासले पर कर्बला के मैदान में हुसैन का लश्कर है। केरात और हुसैन के लश्कर के बीच में साद ने एक लश्कर को नदी के पानी को रोकने के लिये पहर

33

चौथा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[हुसैन के हरम की औरतें बैठी हुई बातें कर रही हैं। शाम का वक्त।] सुगरा– अम्मा, बडी प्यास लगी है। अली असगर– पानी, बूआ पानी। हंफ़ा– कुर्बान गई, बेटे कितना पानी पियोगे? अभी लाई (मश्को को जाकर देखती है,

34

पांचवां दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[८ बजे रात का समय। जियाद की खास बैठक। शिमर और जियाद बातें कर रहे हैं।] जियाद– क्या कहते हो। मैंने सख्त ताकीद कर दी थी कि दरिया पर हुसैन का कोई आदमी न आने पाए। शिमर– बजा है। मगर मैं तो हुसैन के आदमिय

35

छठा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[प्रातःकाल। शाम का लश्कर। हुर और साद घोड़ों पर सवार फ़ौज का मुआयना कर रहे हैं।] हुर– अभी तर जियाद ने आपके खत का जबान नहीं दिया? साद-उसके इंतजार में रात-भर आंखें नहीं लगीं। जब किसी की आहट मिलती थी, त

36

सातवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
1
0
0

[समय ८ बजे रात। हुसैन एक कुर्सी पर मैदान में बैठे हुए हैं। उनके दोस्त और अजीज सब फ़र्श पर बैठे हुए हैं। शमा जल रही है।] हुसैन– शुक्र है, खुदाए-पाक का, जिसने हमें ईमान की रोशनी अता की, ताकि हम नेक को

37

आठवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[प्रातःकाल हुसैन के लश्कर में जंग की तैयारियां हो रही हैं।] अब्बास– खेमे एक दूसरे से मिला दिए गए, और उनके चारों तरफ खंदके खोद डाली गई, उनमें लकड़ियां भर दी गई। नक्कारा बजवा दूं? हुसैन– नहीं, अभी नही

38

नवाँ दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[कूफ़ा का वक्त। कूफ़ा का एक गांव। नसीमा खजूर के बाग में जमीन पर बैठी हुई गाती है।] गीत दबे हुओं को दबाती है ऐ जमीने-लहद, यह जानती है कि दम जिस्म नातवां में नहीं। क़फस में जी नहीं लगता है आह! फिर भ

39

पांचवां अंक

12 फरवरी 2022
0
0
0

पहला दृश्य [समय ९ बजे दिन। दोनों फौ़जे लड़ाई के लिये तैयार हैं।] हुर– या हजरत, मुझे मैदान में जाने की इजाजत मिले। अब शहादत का शौक रोके नहीं रुकता। हुसैन– वाह, अभी आए हो और अभी चले जाओगे। यह मेहमानन

40

दूसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[समर-भूमि। साद की तरफ़ से दो पहलवान आते हैं– यसार और सालिम।] यसार– (ललकारकर) कौन निकलता है, हुर का साथ देने के लिये। चला जाए, जिसे मौत का मजा चखना हो। हम वह है, जिनकी तलवार से क़ज़ा की रूह भी क़जा हो

41

तीसरा दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[दोपहर का समय। हजरत हुसैन अब्बास के साथ खेमे के दरवाजे पर खड़े मैदाने-जंग की तरफ ताक रहे हैं।] हुसैन– कैसे-कैसे जांबाज दोस्त रुखसत हो गए और होते जा रहे हैं। प्यास से कलेजे मुंह को आ रहे हैं, और ये जा

42

चौथा दृश्य

12 फरवरी 2022
1
0
0

[जैनब अपने खेमे में बैठी हुई है। शाम का वक्त] जैनब– (स्वगत) अब्बास और अली अकबर के सिवा अब भैया के कोई रकीफ़ बाकी नहीं रहे। सब लोग उन पर निसार हो गए। हाय, कासिम-सा जवान, मुसलिम के बेटे, अब्बास के भाई,

43

पांचवां दृश्य

12 फरवरी 2022
0
0
0

[१२ बजे रात का समय। लड़ाई ज़रा देर के लिए बंद है। दुश्मन की फ़ौज ग़ाफिल है। दरिया का किनारा। अब्बास हाथों में मशक लिए दरिया के किनारे खड़े हैं।] अब्बास– (दिल में) हम दरिया से कितने करीब हैं। इतनी ही

44

छठा दृश्य

12 फरवरी 2022
1
0
0

[दोपहर का समय। हुसैन अपने खेमे में खड़े है, जैनब, कुलसूम, सकीना, शहरबानू, सब उन्हें घेरे खड़े हैं।] हुसैन– जैनब, अब्बास के बाद अली अकबर दिल को तस्कीन देता था। अब किसे देखकर दिल को ढाढ़स दूं? हाय! मेर

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए