[नसीमा अपने कमरे में अकेली बैठी हुई है– समय १२ बजे रात का।]
नसीमा– (दिल में) वह अब तक नहीं आए। गुलाम को उन्हें साथ लाने के लिए भेजा, वह भी वहीं का हो रहा। खुदा करे, वह आते हों। दुनिया में रहते हुए हमारे ऊपर मुल्क की हालात का असर न पड़े। मुहल्ले में आग लगी हो तो अपना दरवाजा बंद करके बैठ रहना खतरे से नहीं बचा सकता। मैंने अपने तई इन झगड़ों से कितना बचाया था, यहां तक कि अब्बाजान और अम्मा जो यजीद की बैयत न कबूल करने के जुर्म में जलावतन कर दिए गए, तब भी मैं अपना दरवाजा बंद किए बैठी रही, पर कोई तदबीर कारगर न हुई। बैयत की बला फिर गले पड़ी। वहब मेरे लिए सब कुछ करने को तैयार है। वह यजीद की बैयत भी कबूल कर लेता, चाहें उसके दिल को कितना ही सदमा हो। पर जो कुछ हो रहा है, उसे देखकर अब मेरा दिन भी यजीद की बैयत की तरफ मायल नहीं होता, उससे नफ़रत होती है। मुसलिम कितनी बेदरदी से कत्ल किए गए हानी को जालिम ने किस बुरी तरह कत्ल कराया। यह सब देखकर अगर यजीद की बैयत कबूल कर लूं, तो शायद मेरा जमीर मुझे कभी मुआफ न करेगा। हमेशा पहलू में खलिश होती रहेगी। आह! इस खलिश को भी सह सकती हूँ, पर वहब की रूहानी कोफ्त अब नहीं सही जाती। मैंने उन पर बहुत जुलम किए। अब उनकी मुहब्बत की जंजीर को और न खींचूंगी। जिस दिन से अब्बा और अम्मा निकाले गए हैं, मैंने वहब को कभी दिल से खुश नहीं देखा। उनकी वह जिंदादिली गायब हो गई। यों वह अब भी मेरे साथ हंसते हैं, गाते हैं, पर मैं जानती हूं, यह मेरी दिलजुई है। मैं उन्हें जब अकेले बैठे देखती हूं, तो वह उदास और बेचैन नजर आते हैं…वह आ गए, चलूं दरवाजा खोल दूं।
[जाकर दरवाजा खोल देती है। वहब अंदर दाखिल होता है।]
नसीमा– तुम आ गए, वरना मैं खुद आती। तबियत बहुत घबरा रही थी। गुलाम कहां रह गया?
वहब– क़त्ल कर दिया गया। नसीमा, मैंने किसी को इतनी दिलेरी से जान लेते नहीं देखा। इतनी लापरवाही से कोई कुत्ते के सामने लुकमा भी न फेंकता होगा। मैं तो समझता हूं, वह कोई औलिया था।
नसीमा– हाय, मेरे वफ़ादार और गरीब सालिम! खुदा तुझे जन्नत नसीब करे। जालियों ने उसे क्यों क़त्ल किया?
वहब– आह! मेरे ही कारण उस गरीब की जान गई। जामा मसजिद में हजारों आदमी जमा थे। खबर है, और तहकीक खबर है कि हज़रत हुसैन मक्के से बैयत लेने आ रहे हैं। जालिमों के होश उड़े हुए हैं। जो पहले बच रहे थे, उनसे अब यजीद की खिलाफत का हलफ़ लिया जा रहा है। जियाद ने जब मुझसे हलफ़ लेने को कहा, तो मैं राजी हो गया। इनकार करता तो उसी वक्त कैदखाने में डाल दिया जाता। जियाद ने खुश होकर मेरी तारीफ की, और यजीद के हामियों की सफ़ में ऊंचे दर्जे पर बिठाया, जागरीर में इजाफ़ा किया, और कोई मंसब भी देना चाहते हैं। उसकी मंशा यह भी है कि सब हामियों को एक सफ़ में बिठाकर एकबारगी सबसे हलफ़ ले लिया जाये इसीलिये मुझे देर हो रही थी। इसी असना में सालिम पहुंचा, और मुझे यजीदवालों की सफ़ में बैठे देखकर मुझसे बदजबानी करने लगा। मुझे दग़ाबाज जमानासाज बेशर्म, खुदा जाने, क्या-क्या कहा, और उसी जोश में यजीद और जियाद दोनों ही को शान में बेअदबी की। मुझे ताना देता हुआ बोला, मैं आज तुम्हारे नमक की कैद से आजाद हो गया। मुझे कत्ल होना मंजूर हैं मगर ऐसे आदमी की गुलामी मंजूर नहीं, जो खुद दूसरों का गुलाम है। जियाद ने हुक्म दिया– इस बदमाश की गर्दन मार दो और, जल्लादों ने वहीं सहन में उसको कल्ल कर डाला। हाय! मेरी आंखों के सामने उसकी जान ली गई, और मैं उसके हक़ में जबान तक न खोल सका, उसकी तड़पती हुई लाश मेरी आंखों के सामने घसीटकर कुत्तों के आगे डाल दी गई, और मेरे खून में जोश न आया। आफियत बड़े मंहगे दामों में मिलती है।
नसीमा– बेशक, महंगे दाम हैं। तुमने अभी बैयत तो नहीं ली?
वहब– अभी नहीं, बहुत देर हो गई, लोगों की तादाद बढ़ती जाती थी आखिर आज हलफ़ लेना मुल्तवी किया गया। कल फिर सबकी तलबी है।
नसीमा– तुम इन जालिमों को बैयत हर्गिज न लेना।
वहब– नहीं नसीमा, अब उसका मौका निकल गया।
नसीमा– मैं तुमसे मिन्नत करती हूं हर्गिज न लेना।
वहब– तुम मेरी दिलजूई के लिए अपने ऊपर जब्र कर रही हो।
नसीमा– नहीं वहब, अगर तुम दिल से भी बैयत कबूल करनी चाहो, तो मैं खुश न हूंगी। में भी इंसान हूं वहब, निरी भेड़ नहीं हूं। मेरे दिल के जज़बात मुर्दा नहीं हुए है। मैं तुम्हें इन जालिमों के सामने सिर न झुकाने दूंगी। जानती हूं जागरी जब्त हो जायेगी,. वजीफ़ा बंद हो जायेगा, जलावतन कर दिए जायेंगे। मैं तुम्हारे साथ ये सारी आफ़तें झेल लूंगी।
वहब– और अगर जालिमों ने इतने ही पर बस न की?
नसीमा– आह वहब, अगर यह होना है, तो खुदा के लिए इसी वक्त यहां से चले चलो। किसी सामान की जरूरत नहीं। इसी तरह, इन्हीं पांवों चलो। यहां से दूर किसी दरख्त के साए में बैठकर दिन काट दूंगी, पर इन जालिमों की खुशामद न करूंगी।
बहब– (नसीमा को गले लगाकर) नसीमा, मेरी जान तुझ पर फ़िदा हो। जालिमों की सख्ती मेरे हक में अकसीर हो गई। अब उस जुल्म से मुझे कोई शिकायत नहीं। हमारे जिस्म बारहा गले मिल चुके है, आज हमारी रूहें गले मिली हैं, मगर इस वक्त नाके बंद होंगे।
नसीमा– जालिमों के नौकर बहुत ईमानदार नहीं होते। मैं उसे 50 दीनार दूंगी, और वहीं हमें अपने घोड़े पर सवार कराके शहर पहुंचा देगा। वहब– सोच लो, बागियों के साथ किसी की रू-रियासत नहीं हो सकती उनकी एक ही सजा है, और वह है कत्ल।
नसीमा– वहब, इंसान के दिल की क़ैफियत हमेशा एक-सी-नहीं रहती। केंचुए से डरने वाला आदमी सांप की गर्दन पकड़ लेता है। ऐश के वंदे गुदड़ियों में मस्त हो जाते हैं। मैंने समझा था, जो खतरा है, घोंसलों से बाहर निकलने में है, अंदर बैठे रहने में आराम-ही-आराम है। पर अब मालूम हुआ कि सैयाद के हाथ घोंसले के बाहर निकलने में है, अंदर बैठे रहने में आराम-ही-आराम है। पर अब मालूम हुआ कि सैयाद के हाथ घोंसले के अंदर भी पहुंच जाते हैं। हमारी नजात जमाना से भागने में नहीं, उसका मुकाबला करने में है। तुम्हारी सोहबत ने, मुल्क की हालत ने, क़ौम के रईसों और अमीरों की पस्ती ने मुझ पर रोशन कर दिया कि यहां इतमीनान के मानी ईमान-फ़रोशी और आफ़ियत के मानी हक़कुशी हैं। ईमान और हक़ की हिफ़ाजत असली आफ़ियत और इतमीनान है। शायद ने खूब कहा है–
लुफ्त मरने में है बाक़ी न मज़ा जीने में,
कुछ अगर है, तो यही खूने-जिगर पीने में।
वहब– मुआफ करो नसीमा, मैंने तुम्हें पहचानने में गलती की। चलो, सफ़र का सामान करें।