सुगंधा पिता के घर में रही ,अरमान तो बहुत थे ,किन्तु पिता के सख़्त कानून के कारण ,न कहीं आना , न कहीं जाना ,इच्छाएँ ,आकाश की अनंत ,ऊंचाइयों को छूना चाहती किन्तु उसका आसमान सीमित था। कुछ तो घर का अनुशासन ,ऊपर से सीमित साधन ,पिता की आय भी तो बंधी थी ,जो महीने का आखिरी होते ही ,''गधे के सिर से सींग ''की तरह गायब हो जाती। आवश्यकताएँ जस की तस अगले माह के लिए सोचकर, पीछे रखी जातीं।
सुगंधा उड़ना चाहती थी ,किन्तु उसके पंख बंधे थे। एक बात ,ये सही थी ,कि पिता उसे पढ़ा रहे थे ,उसे क्या ? सभी बच्चों के शिक्षित होने के समर्थक थे। इसके लिए भी वो सख़्त थे ,वो भी लड़कों के लिए ,लड़कियाँ तो पढ़ ही लेती हैं और पढ़ाकर भी क्या करना है ?वो तो आजकल लड़के वाले पढ़ी -लिखी लड़की मांगते हैं वरना तो इन्हें रोटी ही सेकनी है।
आज तो परीक्षा का परिणाम आया है ,दोनों बच्चे प्रसन्न हैं ,अपने पिता को दिखाने के लिए ,''अंकतालिका'' लिए बैठे हैं। पिता को भी स्मरण रहा ,आते ही परीक्षा परिणाम जानना चाहा। आगे सुगंधा खड़ी थी ,पहले उसने अपना हाथ आगे किया किन्तु पिता ने तो पहले ,निखिल की अंकतालिका देखी और एक बड़ी सी हम्म..... की। उसके पश्चात ,सुगंधा की अंकतालिका देखी ,प्रसन्न तो हुए किन्तु साथ ही क्रोधित भी ,निखिल पर ,इसे देख ,ये घर में रहकर भी ,कितने अच्छे अंक लाई और तुम सारा दिन मटरगश्ती करते फिरते हो। माहौल ग़मगीन सा हो गया। मैं समझ नहीं पाई ,मेरे ज्यादा नंबर से पापा खुश हैं या नहीं।वो तो सोच रही थी -पापा प्रसन्न होंगे तो ,अपने लिए कुछ मांगूंगी जैसे निखिल से कहते- अच्छे नंबर लाया तो ये दिलवायेंगे ,वो दिलवायेंगे, किन्तु जैसे मेरा तो कोई वजूद ही नहीं ,न ही मुझसे किसी ने पूछा।
मैं पढ़ रही थी ,अपने लिए ,ताकि किसी अच्छे परिवार में जाकर कुशल गृहणी बन सकूं ,बस इस घर में मेरा इतना ही वज़ूद है। मेरी इच्छाएँ ,आकांक्षाएं कोई मायने नहीं रखती।वो अक़्सर सोचती - मैं देश के विकास में तो क्या योगदान दूंगी ? जो अपने लिए ही ,खड़ी नहीं हो सकती ,अपनी इच्छाओं का बलिदान जो सिखाया गया।
ख़ैर !छोड़िये इन बातों को ,विवाह के पश्चात ,सोचा -अपनी सभी इच्छाएं पूर्ण करूंगी ,पिता ने ससुराल तो अच्छा ढूँढा ,पैसे की कोई कमी नहीं ,इसके चलते मेरी इच्छाएँ भी फ़न फैलाने लगीं। अपनी मर्जी का खाना, पहनना ,घर के लोगों का ख्याल रखना इत्यादि कार्य करती। बच्चे हुए ,अच्छा खासा परिवार बस गया। सब कुछ तो था उसके पास। पति -बच्चे परिवार- घर किन्तु कुछ ''अधूरापन ''उसकी ज़िंदगी के किसी कोने में झांकता दीखता। जीवन की जो उमंगें ,उस समय अंगड़ाई लेतीं ,वो न जाने किस कोने में सिसकी ले रही थीं ? कभी न भरने वाला ''अधूरापन ''