शादी के बाद उसने ससुराल में कदम रखा ही था ,कि सास के तीखे तेवर और गर्म मिज़ाज उसे कुछ ही दिनों में पता चल गए। उसने देखा कि जिस व्यक्ति से उसका विवाह हुआ है ,वो तो कुछ बोलता ही नहीं। जो चाहता है ,बस सुनाकर चला जाता है। वो बस सुनता है ,सही पर भी और ग़लत बात पर भी ,माँ -बाबूजी से लेकर छोटा भाई भी कुछ भी कह देते हैं। नेहा को बड़ा अज़ीब लगा कि ये व्यक्ति घर व बाहर का सारा काम करता है फिर भी सबकी सुनता है। एक दिन नेहा ने पूछ ही लिया -तुम सारा दिन लगे रहते हो ,फिर भी तुम्हें हर कोई सुनाता है कुछ कहते क्यों नहीं ?विशाल ने कहा -किसे कहुँ ,ये सब अपने ही तो हैं ,किसी ने कुछ कह भी दिया तो क्या फ़र्क पड़ता है ?लेकिन अब आपकी शादी हो गई है ,इन्हें भी तो सोचना चाहिए कि देख ,सुनकर मुझे कैसा लगता होगा। गलत बात पर डांट पड़े तो सही पर गलती न होने पर भी डांट पड़े ,ये तो सही नहीं है। नेहा एक साँस में कह गई। बड़े तो बड़े छोटों का क्या अधिकार बनता है। 'मेरा तो उसूल है न गलत बोलो ,न गलत सुनो '
विशाल ने समझाने की कोशिश की लेकिन मेरे विचार नहीं बदल पाए। मैं अधिक से अधिक कोशिश करती कि गलती हो ही नहीं, लेकिन इंसान हूँ और मुझे सुनने को मिला। मैंने अपनी बात रखनी चाही लेकिन विशाल ने इशारे से मना कर दिया। अब तो उन्होंने मुझे भी चुप रहने के कारण बेवकूफ मान लिया। देर -सवेर कुछ न कुछ बहाने से डांट देते। विशाल कुछ भी कहने नहीं देते, हर बार चुप करा देते। मैं अंदर ही अंदर गुस्से में तिलमिला कर चुप रह जाती। शादी के बाद पहली तीज पर जब मैं घर गई तो पापा से कह दिया -अब मैं उस घर में नहीं जाउंगी। मैं तलाक लुँगी। पापा ने कारण जानना चाहा। तब मैंने उन्हें बताया -जिस आदमी से आपने मेरी शादी की है ,उसका अपना कोई आत्मसम्मान ही नहीं है। जो अपने हक़ के लिए नहीं बोलता ,गलत को ग़लत नहीं कहता। जो अपने लिए ही खड़ा नहीं हो पाता वो मेरे लिए क्या खड़ा होगा ? मुझे भी कुछ कहने नहीं देता। ऐसे आदमी के साथ अब मैं नहीं रहूँगी। मैं अपना फैसला सुनाकर अंदर चली गई और पापा कुछ सोच में पड़ गए।
पापा ने शाम को मुझे अपने पास बुलाया ,बोले -तुमने उसकी अच्छाई नहीं देखी। मैंने लापरवाही से जवाब दिया -उसमे कुछ अच्छाई है ही नहीं। पापा ने शांत स्वर में कहा -'पहली अच्छाई तो ये ही है ,कि वो अपने घर वालों के साथ हमेशा खड़ा रहता है। इसका मतलब वह अपने घरवालों का ख़्याल रखता है। आजकल तो छोटे -छोटे बच्चे भी अपने माँ -बाप की नहीं सुनते ,वो सुनता है। बर्दाश्त भी करता है ,इससे पता चलता है कि वो सहनशील और धैर्यवान भी है। रिश्तों की भी क़द्र करता है। पापा ने पूछा -क्या उसे बाहर का कोई कुछ भी बोले तब भी सुनता है ?बिल्कुल नहीं ,नेहा ने उत्तर दिया। तो उसका ये व्यवहार घरवालों के लिए ही है क्योंकि वे उसके अपने हैं। क्या उसने कभी तुझसे गलत व्यवहार किया या कुछ खाता -पीता है ?नेहा ने नहीं में गर्दन हिलाई।
पर वो गलत सही पर कभी खड़ा नहीं होता ,लगता है जैसे उसकी घर में कोई इज्ज़त ही नहीं है। नेहा सोचकर बोली। पापा ने कहना शुरू किया -ऐसे मौके पर तुझे उसका साथ देना है या अकेला छोड़ना है। तुझे उसकी हिम्मत बनना है। ऐसे समय में तू उसका साथ न देकर उससे तलाक ले लेगी ,तो वो टूट जायगा। फिर शायद कभी न खड़ा हो सके। यदि उसने तुझे भी कुछ कहने से रोका ,तो उसे तुझ पर विश्वास था ,तुझसे एक उम्मीद थी ,तुझ पर अधिकार समझकर रोका। नेहा मंत्र मुग्ध सी पापा की बातें सुन रही थी। पापा ने तो उसकी विचारधारा ही बदल दी। ये सब तो मैंने सोचा ही नहीं ,वो एकदम बोल उठी। अगर सोचती तो तलाक की बात करती ही नहीं पापा बोले।
तू दूरदर्शन पर अनेक कार्यक्रम देखती है ,उनमें अनेक तरह की प्रतियोगिता होती हैं ,उसमें अनेक कार्य करने होते हैं ,जिनको की तुम लोग टास्क बोलते हो। तुझे भी ये तेरी जिंदगी का टास्क है ,जो तुझे पूरा करना है। तुझे हर परिस्ठिति से जूझना है उसका और अपना मान -सम्मान बनाकर रखना है। उसे उस परिवार में वो सम्मान दिलवाना है जिसका वो हक़दार है जिसका उसे एहसास ही नहीं। घर तोड़कर जिंदगी जी तो क्या जी ?घर जोड़कर तुझे इस जिंदगी के टास्क को पूरा करना है। जाओ !बस अब आराम करो।
अगले दिन नेहा अपनी ससुराल जाने की तैयारी कर रही थी ,उसके पापा ने उसे जिंदगी की इतनी बड़ी सीख जो दी थी और अब उसे पापा का दिया टास्क भी तो पूरा करना था।