जसोदा पढ़ी -लिखी नौकरी पेशा महिला है ,माँ -बाप ने खूब चाहा कि ये पढ़े न ,और विवाह करके अपना घर बसा ले, किन्तु उसके तो सपने ही अलग थे और वो इस तरह माता -पिता के दबाव में आने वाली भी नहीं थी। उसने तो पहले ही कह दिया -तुम लोग जितना पढ़ा सकते हो ,पढ़ा दो ,उसके पश्चात , मैं अपना इंतज़ाम कर लूँगी। आप लोगों से एक पैसा नहीं लूँगी। पहले तो उसने कहा भी था -कि मेरे विवाह में जो पैसे लगाते ,वो मेरी शिक्षा में लगा दीजिये। किन्तु इस बात का पिता ने सख्ती से विरोध किया ,बोले -तू पढ़ -लिख भी जाएगी तो, विवाह तो करना ही होगा। माँ -बाप के घर से क्या' ख़ाली हाथ हिलाती जाएगी ?
जसोदा ने कहा भी -क्या मेरा विवाह किसी ग़रीब व भुक्क्ड़ से करोगे ? माँ ने आहत होते हुए कहा -ग़रीब या भुक्क्ड़ से तो नहीं करेंगे ,किन्तु उन्हें भी तो नहीं लगना चाहिए ,-कि किसी ग़रीब या भुक्क्ड़ की लड़की उठा लाये ,हमारे भी कुछ अरमान हैं ,कहकर माँ तो रो दी। जसोदा ने फिर कुछ नहीं कहा और बारहवीं तक पढ़ाई का व्यय पिता ने किया ,उसके पश्चात ,उसने अपने पिता से आगे पढ़ने के लिए नहीं कहा और घर के खर्चों को बटाने के लिए ,वो किसी विद्यालय में छोटे बच्चों को पढ़ाने लगी ,अपनी आगे की शिक्षा का प्रबंध कर लिया।
उसने पढ़ाते हुए भी ,अपनी शिक्षा जारी रखी ,और उसने वकालत की पढ़ाई करके, किसी वक़ील के यहां काम करने लगी। वहीं उसका मिलन ,सुदीप से हुआ ,सुदीप और उसके विचार बहुत मेल खाते किन्तु सुदीप तो दूसरी बिरादरी का था। दोनों ने विवाह का निर्णय तो ले लिया किन्तु घर वालों को चाहकर भी नहीं समझा सके ,इस कारण घर वालों ने उससे नाता तोड़ लिया , किन्तु जसोदा ने किसी की भी परवाह नहीं की।
ये तो पहले से ही जिद्दी थी, ऊपर से पढ़ गयी तो 'नाक ही कटवाती '' पिता माँ से कहते। किन्तु माता -पिता ने कभी उसे समझा ही नहीं। उसने कभी ज़िद भी की ,तो शिक्षा के लिए ,विवाह तो उन्हें एक न एक दिन करना ही था ,सो उसने विवाह भी कर लिया, बस पसंद उसकी अपनी थी। ऐसे समय में किसी ने भी उसका साथ नहीं दिया। बस उसकी बहन ,ने उसको समझा और उसके साथ खड़ी रही। माता पिता को भी समझाया।
कुछ पैसे तो उसने जोड़ रखे थे कुछ सुदीप के पास थे ,छोटा सा ही सही ,किश्तों पर उन्होंने एक मकान ले लिया और अपनी गृहस्थी आरम्भ की। सब कुछ तो अच्छा चल रहा था, किन्तु कुछ दिनों पश्चात ,एक बात खटकने लगी ,विवाह को तीन -चार बरस हो गए ,किन्तु उस आंगन में एक भी फूल नहीं ख़िला। दोनों पति -पत्नी ने ,डॉक्टर, वैद्य ,हक़ीम किसी को भी नहीं छोड़ा। किन्तु भगवान ने उनकी एक न सुनी। उससे छोटी के घर में तीन -तीन बच्चे खेल्र रहे थे जबकि उसके घर में तंगी थी और उसके एक भी नहीं, दोनों पति -पत्नी अपने आंगन में किलकारी सुनने के लिए तरस गए। जसोदा तो हिम्मत हार जाती ,तभी उसे लगता -उसने अपने माता -पिता का दिल दुखाया ,शायद ये ही बद्दुआ उसे लगी है। एक दिन अपनी बहन से ऐसे ही,'भगवान ''की शिकायत कर रही थी। मेरे घर में खाने को है -हम दोनों आदमी दिन रात मेहनत करके पैसा कमाते हैं, किन्तु ये किस काम का ? उधर छोटी का पति इतना कमा भी नहीं पाता और उसका आँगन बच्चों की किलकारियों से गूंजता रहता है ,ये भगवान का कहाँ का न्याय है ?
जिस घर में खाने को नहीं ,उसी घर में औलादें बरसा रहा है। तभी उसकी बहन बोली -ये सब उस भगवान ने , पहले ही सब सोच के रखा है। इसमें भी कोई अच्छाई छिपी होगी ,कुछ माह पश्चात उसे पता चला -कि उसकी छोटी बहन फिर से पेट से है और वो अपना गर्भपात करवाने जा रही है। जसोदा की ममता फिर से कुलांचें भरने लगी और उसने अपनी बड़ी बहन से सलाह करके ,उस बच्चे को गिराने के लिए मना करवा दिया और बोली -उस बच्चे को मैं पाल लूंगी ,ये बात उसकी बहन को भी जंच गयी ,कम से कम उसकी औलाद दूसरे के घर पलेगी ,जिन्दा तो रहेगी। देर -सबेर मिल भी लिया करूंगी।
नियत समय पर एक बच्चे ने जन्म लिया और वो क़ानूनी तरीक़े से जसोदा का हो गया। इस तरह जसोदा के आंगन में भी खेल -खिलौनों का ढेर पड़ा रहता और उन दोनों पति -पत्नी का खिलौना ''सुजस ''जो उनकी आँखों के आगे फल -फूल रहा था। दोनों ही सुलझे विचारों के व्यक्ति थे ,जब ''सुजस ''थोड़ा बड़ा हुआ ,उन्होंने उससे पहले ही बता दिया- कि मैं तेरी माँ यशोदा हूँ ,जनम तो मेरी छोटी बहन लता ने दिया है। इससे पहले की कोई उसे बताता उन्होंने पहले ही बता दिया। ''सुजस ''पर इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ा ,न ही उसके व्यवहार में कोई अंतर् आया ,बोला -मैं तो बस इतना जानता हूँ ,कि आप लोग ही मेरे मम्मी -पापा हो।
उसकी बातें सुनकर वो ''फूले नहीं समाये '',न ही उनके मन पर किसी भी तरह का बोझ रहा। अब तो बेटा पढ़ -लिखकर 'अभियंता' भी बन गया। जसोदा और सुदीप ऐसा बेटा पाकर, मन ही मन उसकी सराहना करते ,अब तो उनका मन नई -नई कल्पनाओं में डूबने लगा। वो तो सास -ससुर बनकर बहु के और फिर दादा-दादी बनने के सपने देखने लगे। अब तो जसोदा ,अपनी सहेलियों से भी ''सुंदर, सुशील और शिक्षित बहु की तलाश करने के लिए कहती। कभी पड़ोसन से ही ,अपने बेटे के लिए लड़की बताने के लिए कहती। दिन तो जैसे पंख लगाकर उड़ रहे थे। जसोदा भी ऐसे ही मन ही मन कल्पनाओं के पंखों पर उड़ रही थी। बेटा भी अपनी कम्पनी में ''मैनेजर ''हो गया। यहां तो इन्होंने मिठाई बांटी ,उधर उसके दोस्तों ने दावत की।
एक दिन ''सुजस ''का फोन आया। सुदीप उठकर फोन उठाने ही वाले थे ,तभी जसोदा ने फट से फोन उठा लिया और बोली -हां कहो ! उधर से आवाज़ आई - मम्मी मैं अपने दोस्तों के संग घूमने जा रहा हूँ ,इसीलिए अबकि छुट्टियों में नहीं आ पाउंगा। कोई बात नहीं ,तुम अपने दोस्तों के साथ घूमो ,मजे करो ,ये ही उम्र तो होती है। अब नहीं घूमोगे तो क्या हमारी उम्र में घूमोगे ?कहकर हंसने लगी। सुदीप जो पास में खड़े थे ,बोले -तुम दोनों ने ,अपने आप ही निर्णय ले लिया ,मुझसे पूछा तक नहीं, कि मैं क्या चाहता हूँ ? सुजस ने अपनी मम्मी से कहा -जरा पापा को फोन देना। अब इसमें ये क्या करेंगे ?जब न्यायधीश ने अपना निर्णय सुना दिया। और फ़ोन उन्हें देकर हँसती हुई चली गयी।सुदीप बोले -बेटे अपना ध्यान रखना ,रात को देर से मत सोना और एक -आध दिन की छुट्टी बचे तो मिल जाना। जी पापा !कहकर सुजस ने फोन रख दिया।
सुजस को गए ,अभी एक दिन ही हुआ था ,तभी उसके दोस्तों का फोन आया। अंकल जी ,पता नहीं सुजस को क्या हुआ ?हमारे साथ ही था, तभी अचानक उसके सिर में तेज़ दर्द हुआ और चक्कर खाकर गिर गया। हमने उसे ''हॉस्पिटल ''में भर्ती करा दिया है। सुदीप के हाथ से फोन छूटते -छुटते बचा, फिर जसोदा का विचार कर सम्भल गए और कहीं जाने का बहाना करके घर से निकल गए। किसी तरह उस शहर पहुँचे और सुजस के पास पहुंच गए ,किन्तु मिल नहीं पाए ,उसके दिमाग़ की नस फ़ट गयी थी ,उसकी स्थिति चिंताजनक थी। वो तो वहीँ बैठ गए ,कुछ देर तक तो उठा ही नहीं गया फिर जसोदा का ख़्याल कर अपने को संभाला। डॉक्टर से मिन्नतें करने लगे -हमारा इकलौता बेटा है ,इसे किसी भी तरह बचा लीजिये ,इसकी माँ तो इसके बिना मर जाएगी,जितना भी पैसा लगता है मैं दूंगा । डॉक्टरों ने तो आश्वासन दिया, किन्तु उम्मीद नहीं जगाई।
जब सुदीप को गए हुए ,बड़ी देर हो गयी। तब जसोदा को बेचैनी होने लगी ,उसने सुदीप को फोन किया - सुदीप के पापा !कहाँ चले गए ? कितनी देर हो गयी ?अभी तक नहीं आये। थूक सटकते हुए बोले -मैं सुजस के पास हूँ ,उसकी अचानक तबियत बिगड़ गयी ,तब मैं उसके पास चला आया। अब तुम्हारे बेटे के साथ ही आऊंगा। कहीं सुदीप ! तुम इतनी दूर ,मुझसे बिना बताये कैसे चले गए ?कहीं मुझसे कुछ छिपा तो नहीं रहे हो। नहीं -नहीं ,इसकी तबियत बिगड़ गयी , पहाड़ी इलाके में इसे ठंड लग गयी, तब इसके घर से इसके साथ कोई तो अपना होता इसीलिए मैं आ गया। तुम मुझे बताकर भी तो आ सकते थे ,जसोदा ने शिकायत भरे लहज़े में कहा। अपने आंसूं पोछते हुए ,बोले -तुम्हें बताता तो तुम ख़ामख़ा परेशान होतीं। अब उसे संग लेकर आऊंगा।
उन्हें हॉस्पिटल में रहते दो दिन हो गए , अब तो जसोदा का दिल भी घबराने लगा ,वो दिन में कई -कई बार फ़ोन करने लगी। वो अपने पति और बेटे को बहुत ''मिस ''कर रही थी। सुजस की हालत में कोई सुधार न देखकर ,वो रो दिये और जसोदा को उसकी स्थिति के विषय में बताना ही बेहतर समझा। तब उन्होंने बताया- कि सुजस के सिर में बहुत तेज दर्द की शिकायत हुई और वो बेहोश हो गया ,दोस्तों ने उसे यहां भर्ती करा दिया , मैं तबसे यहीं हूँ ,जैसे ही उसकी हालत सम्भलती है ,उसे लेकर आ जाऊँगा। जसोदा परेशान हो उठी ,बोली -तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया ?मैं भी आपके साथ चलती ,अब बताओ !उसका क्या हाल है ?आँसू पोंछते हुए ,बोले -शायद आज छुट्टी मिल जाये। जसोदा आश्वस्त होते हुए ,अपने बेटे का सामान लगाने लगी ,उसका कमरा ठीक से साफ करवाया।
रात को बारह बजे ,डॉक्टरों ने भी उम्मीद छोड़ दी और उन्होंने सुदीप को सांत्वना देते हुए अपने हाथ खड़े कर दिए ,क्योंकि अब सुजस ही नहीं रहा तो क्या चिकित्सा करेंगे ,और किसकी ? हस्पताल की सम्पूर्ण औपचारिकताये पूर्ण करके ,''सुजस 'के बंद शरीर [डॉक्टरी भाषा में ,शव [को लेकर ,वो अपनी जसोदा के पास आ गए। सुबह के चार बजे ,दरवाजे के खटखटाने की आहट से जसोदा की आँखें खुल गयीं। पहले तो मन ही मन बड़बड़ाई ,ये दोनों बाप -बेटे भी न, अपनी ही इच्छा से कभी भी चल देते हैं किन्तु बेटे के आने का सोचकर ,आलस्य भरे तन में ,स्फूर्ति आ गयी। जैसे ही दरवाजा खोला -बल्ब की रौशनी में सब कुछ समझ गयी और वहीं बैठ गयी। उसके तो तन में जैसे जान ही नहीं रही। धीरे -धीरे यह सूचना पूरे मौहल्ले में फैल गयी। वकील साहब के जवान बेटे की मौत का ,जैसे सबको सदमा लगा ,जिसने भी सुना उससे रहा न गया। दिल पर पत्थर रखकर ,वकील साहब ने सम्पूर्ण कार्य किये किन्तु जसोदा तो जैसे सच में ही पत्थर बन गयी।
बड़ी बहन ने आकर समझाया ,तू तो यशोदा ही तो थी ,तूने तो कन्हैया को पाला ,उसे तुझे छोड़कर एक न एक दिन तो जाना ही था। तूने अपना कार्यपूर्ण किया किन्तु उसे तो ,न जाने कितने कार्य पूर्ण करने हैं ?क्या पता उसने न जाने ,किस माँ की सूनी कोख़ को वरदान दिया हो ?कान्हा तो साथ भी है और दूर भी। किन्तु दीदी ,मेरा तो अभी मन ही नहीं भरा था। उससे पहले मैं ही चली जाती इतनी देर तो रुक जाता कहकर रोने लगी ,न जाने कितनी देर तक रोती रही ?उसके सुजस को गए, तीन बरस हो गए किन्तु आज भी उसे ''मिस ''करती है।