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जसोदा

24 नवम्बर 2022

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जसोदा पढ़ी -लिखी नौकरी पेशा महिला है ,माँ -बाप ने खूब चाहा कि ये पढ़े न ,और विवाह करके अपना घर बसा ले, किन्तु उसके तो सपने ही अलग थे और वो इस तरह माता -पिता के दबाव में आने वाली भी नहीं थी। उसने तो पहले ही कह दिया -तुम लोग जितना पढ़ा सकते हो ,पढ़ा दो ,उसके पश्चात , मैं अपना इंतज़ाम कर लूँगी। आप लोगों से एक पैसा नहीं लूँगी। पहले तो उसने कहा  भी था -कि मेरे विवाह में जो पैसे लगाते ,वो मेरी शिक्षा में लगा दीजिये। किन्तु इस बात का पिता ने सख्ती से विरोध किया ,बोले -तू पढ़ -लिख भी जाएगी तो, विवाह तो  करना ही होगा। माँ -बाप के घर से क्या' ख़ाली हाथ  हिलाती जाएगी  ?

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जसोदा ने कहा भी -क्या मेरा विवाह किसी ग़रीब व भुक्क्ड़ से करोगे ? माँ ने आहत होते हुए कहा -ग़रीब या  भुक्क्ड़ से तो नहीं करेंगे ,किन्तु उन्हें भी  तो नहीं लगना  चाहिए ,-कि किसी ग़रीब या भुक्क्ड़ की लड़की उठा लाये ,हमारे भी कुछ अरमान हैं ,कहकर माँ तो रो दी। जसोदा ने फिर कुछ नहीं कहा और बारहवीं तक पढ़ाई का व्यय पिता ने किया ,उसके पश्चात ,उसने अपने पिता से आगे पढ़ने के लिए नहीं कहा और घर के खर्चों को बटाने के लिए ,वो किसी विद्यालय में छोटे बच्चों को पढ़ाने लगी ,अपनी आगे की शिक्षा का प्रबंध कर लिया। 

उसने पढ़ाते हुए भी ,अपनी शिक्षा जारी रखी ,और उसने वकालत की पढ़ाई करके, किसी वक़ील के यहां काम करने लगी। वहीं उसका मिलन ,सुदीप से हुआ ,सुदीप और उसके विचार बहुत मेल खाते किन्तु सुदीप तो दूसरी बिरादरी का था। दोनों ने विवाह का निर्णय तो ले लिया किन्तु घर वालों को चाहकर भी नहीं समझा सके ,इस कारण घर वालों ने उससे नाता तोड़ लिया , किन्तु जसोदा ने किसी की भी परवाह नहीं की।

 ये तो पहले से ही जिद्दी थी, ऊपर से पढ़ गयी तो 'नाक ही कटवाती '' पिता माँ से कहते। किन्तु माता -पिता ने कभी उसे समझा ही नहीं। उसने कभी ज़िद भी की ,तो शिक्षा के लिए ,विवाह तो उन्हें एक न एक दिन करना ही था ,सो उसने विवाह भी कर लिया, बस पसंद उसकी अपनी थी। ऐसे समय में किसी ने भी उसका साथ नहीं दिया। बस उसकी  बहन ,ने उसको समझा और उसके साथ खड़ी रही। माता पिता को भी समझाया। 

कुछ पैसे तो उसने जोड़ रखे थे कुछ सुदीप के पास थे ,छोटा सा ही सही ,किश्तों पर उन्होंने एक मकान ले लिया और अपनी गृहस्थी आरम्भ की। सब कुछ तो अच्छा चल रहा था, किन्तु कुछ दिनों पश्चात ,एक बात खटकने लगी ,विवाह को तीन -चार बरस हो गए ,किन्तु उस आंगन में एक भी फूल नहीं ख़िला। दोनों पति -पत्नी ने ,डॉक्टर, वैद्य ,हक़ीम किसी को भी नहीं छोड़ा। किन्तु भगवान ने उनकी एक न सुनी। उससे छोटी के घर में तीन -तीन बच्चे खेल्र रहे  थे जबकि उसके घर में तंगी थी और उसके एक भी नहीं, दोनों पति -पत्नी अपने आंगन में किलकारी सुनने के लिए तरस गए। जसोदा तो हिम्मत  हार जाती ,तभी उसे लगता -उसने अपने माता -पिता का दिल दुखाया ,शायद ये ही बद्दुआ उसे लगी है। एक दिन अपनी बहन से ऐसे ही,'भगवान ''की  शिकायत कर रही थी। मेरे घर में खाने को है -हम दोनों आदमी दिन रात मेहनत करके पैसा कमाते हैं, किन्तु ये किस काम का ? उधर छोटी का पति इतना कमा भी नहीं पाता और उसका आँगन बच्चों की किलकारियों से गूंजता रहता है ,ये भगवान का कहाँ का न्याय है ?

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जिस घर में खाने को नहीं ,उसी  घर में औलादें बरसा रहा है। तभी उसकी बहन बोली -ये सब उस भगवान ने , पहले ही सब सोच के रखा है। इसमें भी कोई अच्छाई छिपी होगी ,कुछ माह पश्चात उसे पता चला -कि उसकी छोटी बहन फिर से पेट से है और वो अपना गर्भपात करवाने जा रही है। जसोदा की ममता फिर से कुलांचें भरने लगी और उसने अपनी बड़ी बहन से सलाह करके ,उस बच्चे को गिराने के लिए मना करवा  दिया और बोली -उस बच्चे को मैं पाल लूंगी ,ये बात उसकी बहन को भी जंच गयी ,कम से कम उसकी औलाद दूसरे के घर पलेगी ,जिन्दा  तो रहेगी। देर -सबेर मिल भी लिया  करूंगी। 

नियत समय पर एक बच्चे ने जन्म लिया और वो क़ानूनी तरीक़े से जसोदा का हो गया। इस तरह जसोदा के आंगन में भी खेल -खिलौनों का ढेर पड़ा रहता और उन दोनों पति -पत्नी का खिलौना ''सुजस ''जो उनकी आँखों के आगे फल -फूल रहा था। दोनों ही सुलझे विचारों के व्यक्ति थे ,जब ''सुजस ''थोड़ा बड़ा हुआ ,उन्होंने उससे पहले ही बता दिया- कि मैं तेरी माँ यशोदा हूँ ,जनम तो मेरी  छोटी बहन लता ने दिया है। इससे पहले की कोई उसे बताता उन्होंने पहले ही बता दिया। ''सुजस ''पर इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ा ,न ही उसके व्यवहार में कोई अंतर् आया ,बोला -मैं तो बस इतना जानता हूँ ,कि आप लोग ही मेरे मम्मी -पापा हो। 

उसकी बातें सुनकर वो ''फूले  नहीं  समाये '',न ही उनके मन पर किसी भी तरह का बोझ रहा। अब तो बेटा पढ़ -लिखकर 'अभियंता' भी बन गया। जसोदा और सुदीप ऐसा बेटा पाकर, मन ही मन उसकी सराहना करते ,अब  तो उनका मन नई -नई कल्पनाओं में डूबने लगा। वो तो सास -ससुर बनकर बहु के और फिर दादा-दादी बनने के सपने देखने लगे। अब तो जसोदा ,अपनी सहेलियों से भी ''सुंदर, सुशील और शिक्षित बहु की तलाश करने के लिए कहती। कभी पड़ोसन से ही ,अपने बेटे के लिए लड़की बताने के लिए कहती। दिन तो जैसे पंख लगाकर उड़ रहे थे। जसोदा भी ऐसे ही मन ही मन कल्पनाओं के पंखों पर उड़ रही थी। बेटा भी अपनी कम्पनी में ''मैनेजर ''हो गया। यहां तो इन्होंने मिठाई बांटी ,उधर उसके दोस्तों ने दावत की। 

एक दिन ''सुजस ''का फोन आया। सुदीप उठकर फोन उठाने ही वाले थे ,तभी जसोदा ने फट से फोन उठा लिया और बोली -हां कहो ! उधर से आवाज़ आई - मम्मी मैं अपने दोस्तों के संग घूमने जा रहा हूँ ,इसीलिए अबकि छुट्टियों में नहीं आ पाउंगा। कोई बात नहीं ,तुम अपने दोस्तों के साथ घूमो ,मजे करो ,ये ही उम्र तो होती है। अब नहीं घूमोगे तो क्या हमारी उम्र में घूमोगे ?कहकर हंसने लगी। सुदीप जो पास  में खड़े थे ,बोले -तुम दोनों ने ,अपने आप ही निर्णय ले लिया ,मुझसे पूछा तक नहीं, कि मैं क्या चाहता हूँ ? सुजस ने अपनी मम्मी से कहा -जरा पापा को फोन देना। अब इसमें ये क्या करेंगे ?जब न्यायधीश ने अपना निर्णय सुना दिया। और फ़ोन  उन्हें देकर हँसती हुई चली गयी।सुदीप बोले -बेटे अपना ध्यान रखना ,रात को देर से मत सोना और एक -आध दिन की छुट्टी बचे तो मिल जाना। जी पापा !कहकर सुजस ने फोन रख दिया। 

सुजस को गए ,अभी एक दिन ही हुआ था ,तभी उसके दोस्तों का फोन आया। अंकल जी ,पता नहीं सुजस को क्या हुआ ?हमारे साथ  ही था, तभी अचानक उसके सिर में तेज़ दर्द हुआ और  चक्कर खाकर गिर गया। हमने उसे ''हॉस्पिटल ''में भर्ती करा दिया है। सुदीप के हाथ से फोन छूटते -छुटते  बचा, फिर जसोदा का विचार कर सम्भल गए और कहीं जाने का बहाना करके घर से निकल गए। किसी तरह उस शहर पहुँचे और सुजस के पास पहुंच गए ,किन्तु मिल नहीं पाए ,उसके दिमाग़ की नस फ़ट गयी थी ,उसकी स्थिति चिंताजनक थी। वो तो वहीँ बैठ गए ,कुछ देर तक तो उठा ही नहीं गया फिर जसोदा का ख़्याल कर अपने को संभाला। डॉक्टर से मिन्नतें करने लगे -हमारा इकलौता बेटा है ,इसे किसी भी तरह बचा लीजिये ,इसकी माँ तो इसके बिना मर जाएगी,जितना भी पैसा लगता है मैं दूंगा । डॉक्टरों ने तो आश्वासन दिया, किन्तु उम्मीद नहीं जगाई। 

जब सुदीप को गए हुए ,बड़ी देर हो गयी। तब जसोदा को बेचैनी होने लगी ,उसने सुदीप को फोन किया - सुदीप के पापा !कहाँ चले गए ? कितनी देर हो गयी ?अभी तक नहीं आये। थूक सटकते हुए बोले -मैं सुजस के पास हूँ ,उसकी अचानक तबियत बिगड़ गयी ,तब मैं उसके पास चला आया। अब तुम्हारे बेटे के साथ ही आऊंगा। कहीं सुदीप ! तुम इतनी दूर ,मुझसे बिना बताये कैसे चले गए ?कहीं  मुझसे कुछ छिपा तो नहीं  रहे हो। नहीं -नहीं ,इसकी तबियत बिगड़ गयी , पहाड़ी इलाके में इसे ठंड लग गयी, तब इसके घर से इसके साथ कोई तो अपना होता इसीलिए  मैं आ गया। तुम मुझे बताकर भी तो आ सकते  थे  ,जसोदा ने शिकायत भरे लहज़े में कहा। अपने आंसूं पोछते हुए ,बोले -तुम्हें बताता तो तुम ख़ामख़ा  परेशान होतीं। अब उसे संग लेकर  आऊंगा।

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उन्हें  हॉस्पिटल में रहते दो दिन हो गए , अब तो जसोदा  का दिल भी घबराने लगा ,वो दिन में कई -कई बार  फ़ोन करने लगी। वो अपने पति और बेटे को बहुत ''मिस ''कर रही थी। सुजस की  हालत में कोई सुधार न देखकर ,वो रो दिये और जसोदा को उसकी स्थिति के विषय में बताना ही बेहतर समझा। तब उन्होंने बताया- कि सुजस के सिर में बहुत तेज दर्द की शिकायत हुई और वो बेहोश हो गया ,दोस्तों ने उसे यहां भर्ती करा दिया , मैं तबसे यहीं हूँ ,जैसे ही उसकी हालत सम्भलती है ,उसे लेकर आ जाऊँगा।  जसोदा परेशान हो उठी ,बोली -तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया ?मैं भी आपके साथ चलती ,अब बताओ !उसका क्या हाल है ?आँसू पोंछते हुए ,बोले -शायद आज छुट्टी मिल जाये। जसोदा आश्वस्त होते हुए ,अपने बेटे का सामान लगाने लगी ,उसका कमरा ठीक से साफ करवाया। 

रात को बारह बजे ,डॉक्टरों ने भी उम्मीद छोड़ दी और उन्होंने सुदीप को सांत्वना देते हुए अपने हाथ खड़े कर दिए ,क्योंकि अब सुजस ही नहीं रहा तो क्या चिकित्सा करेंगे ,और किसकी ? हस्पताल की सम्पूर्ण औपचारिकताये पूर्ण करके ,''सुजस 'के बंद शरीर [डॉक्टरी भाषा में ,शव [को लेकर ,वो अपनी जसोदा के पास आ गए। सुबह के चार बजे ,दरवाजे के खटखटाने की आहट से जसोदा की आँखें खुल गयीं। पहले तो मन ही मन बड़बड़ाई ,ये दोनों बाप -बेटे भी न, अपनी ही इच्छा से कभी भी चल देते हैं  किन्तु बेटे  के आने का  सोचकर ,आलस्य भरे  तन में ,स्फूर्ति आ गयी। जैसे ही दरवाजा खोला -बल्ब की रौशनी में सब कुछ समझ गयी और वहीं बैठ गयी। उसके तो तन में जैसे जान ही नहीं रही। धीरे -धीरे यह सूचना पूरे मौहल्ले में फैल गयी। वकील साहब के जवान बेटे की मौत का ,जैसे सबको सदमा लगा ,जिसने भी सुना उससे रहा न  गया। दिल पर पत्थर रखकर ,वकील साहब ने सम्पूर्ण कार्य किये किन्तु जसोदा तो जैसे सच में ही पत्थर बन गयी। 

बड़ी बहन ने आकर समझाया ,तू तो यशोदा ही तो थी ,तूने तो कन्हैया को पाला ,उसे तुझे छोड़कर एक न एक दिन तो जाना ही था। तूने अपना कार्यपूर्ण किया किन्तु उसे तो ,न जाने कितने कार्य पूर्ण करने हैं ?क्या पता उसने न जाने ,किस माँ की सूनी कोख़ को वरदान दिया हो ?कान्हा तो साथ भी है और दूर भी। किन्तु दीदी ,मेरा तो अभी मन ही नहीं भरा था। उससे पहले मैं ही चली जाती इतनी देर तो रुक जाता कहकर रोने लगी ,न जाने कितनी देर तक रोती रही ?उसके सुजस को गए, तीन बरस हो गए किन्तु आज भी उसे ''मिस ''करती है। 


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रचनाएँ
प्रेरक कहानियाँ
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ज़िंदगी में अनेक घटनाएँ -दुर्घटनाइयें,होती हैं,ज़िंदगी जाने -अंजाने अनेक परेशानियों से गुजरती है,इस ज़िंदगी में अनेक रिश्ते भी होते हैं जिनसे हमें कुछ न कुछ सीख मिलती है,सीखने की कोई उम्र नहीं होती चाहे कोई छोटा हो या बड़ा। जीवन में हर पल कुछ न कुछ सीख या प्रेरणा मिल ही जाती है कई बार कुछ सोचने को मजबूर जाती हैं ये कहानियाँ,कई बार आईना दिखा जाती हैं,ये कहानियाँ । इन कहानियों में जीवन के अनेक रंग देखने को मिलेंगे,सही या गलत सोचने पर मजबूर हैं ये कहानियाँ!
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शापित कोई स्थान ,व्यक्ति अथवा कोई वस्तु नहीं होती ,वरन शापित उसका अपना जीवन ही हो जाता है। जिस जीवन को, वो जी रहा है ,उस जीवन को जीते -जी ठीक से नहीं जी पाता। लोग कहते हैं -''ये जीवन अमूल्य है ''&nbsp

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बड़ी भयावह वो काली अंधियारी रात्रि थी। मैं उस ठंडी सुनसान काली रात्रि को चीरता चला जा रहा था। ठंड भी अपने पूरे जोरों पर थी। दोस्त ने कहा भी था, आज यहीं आराम कर ले। जब इतनी दूर से आया है तो बेटी को विदा

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असीमित आकाश

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हिजाब

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रेवती अपनी सास की, बड़े मन से सेवा करती थी ,उनकी हर चीज का ध्यान रखती थी ताकि किसी भी प्रकार की उन्हें परेशानी न हो। जब उनकी स्वयं की बहु आ आयीं ,तब भी उनके सम्पूर्ण कार्य स्वयं ही करतीं। उनकी सास यान

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फर्क

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इस माह नौचंदी का मेला लगने वाला है, किन्तु किसी को क्या फ़र्क पड़ता है ? जाना तो है नहीं ,जाकर भी क्या करना ,मेले में जाने के लिए भी तो, पैसा ही चाहिए। मेला तो पैसे से है ,पैसे वाल

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घर की याद

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पुलकित आँखें खोलकर देखता है ,वो बगीचे की बेंच पर लेटा था। अब उसे सब स्मरण हो जाता है। किस तरह वो अपने मम्मी -पापा से नाराज होकर ,घर से भाग आया ? पुलकित ऐसे ही किसी छोटे -मोटे परिवार से नहीं है। उसके

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टास्क

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शादी के बाद उसने ससुराल में कदम रखा ही था ,कि सास के तीखे तेवर और गर्म मिज़ाज उसे कुछ ही दिनों में पता चल गए। उसने देखा कि जिस व्यक्ति से उसका विवाह हुआ है ,वो तो कुछ बोलता ही नहीं। जो चाहता है ,बस

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सुगंधा पिता के घर में रही ,अरमान तो बहुत थे ,किन्तु पिता के सख़्त कानून के कारण ,न कहीं आना , न कहीं जाना ,इच्छाएँ ,आकाश की अनंत ,ऊंचाइयों को छूना चाहती किन्तु उसका आसमान सीमित था। कुछ तो घर का अनुशा

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मिट्टी के खिलौने

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रामदीन कुम्हार ,प्रतिदिन जोहड़ से चिकनी मिटटी लाता और उसे पैरों से रोंद्ता ,जब वो मिटटी बर्तन बनाने लायक हो जाती तो उसे चाक पर रखकर ,बड़े क़रीने से ,सुंदर -सुंदर मिटटी के बर्तन बनाता। ये उसकी कला ही नह

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आज मैं अपनी डायरी को ज़िंदगी के एक पहलू कहूँ या कुछ और, किन्तु इतना मैं अवश्य जानती हूँ ,उसे हम भाग्य अथवा क़िस्मत कहते है -इनके इशारों पर ही तो ,हमारी ज़िंदगी चलती है। हम सोचते हैं -जो भी कार्य हम कर रह

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चम्पाकली 'ताई आज बहुत प्रसन्न है क्योकि उनके दो बेटे ,दो ही बहुएं हैं किन्तु ये उनकी प्रसन्नता का कारण नहीं ,उनकी प्रसन्नता का कारण ,उनका दादी बनना है। दोनों बहुएं ही गर्भवती थीं और अब दोनों ही माँ ब

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काव्या बहुत ही प्यारी बच्ची है ,मन उसका बहुत ही कोमल है ,सबसे प्रेमपूर्ण व्यवहार करती। दुश्मनी ,लड़ाई क्या होती है ?जैसे वो जानती ही नहीं ,उसे तो सभी अपने ही नजर आते ,छल -कपट से तो उसका दूर -दूर तक वास

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कार्तिक और मोना प्रतिदिन , अपने दफ्तर से आते समय कुछ देर ,समुन्द्र के तट पर बैठकर अपनी दिनभर की थकान मिटाते। मोना जब पहली बार अपने दफ्तर में आई ,तब उसकी सबसे पहले मुलाक़ात कार्तिक से ही हुई। कार्तिक न

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पार्वती जी ,दुखी परेशान ,अपने कमरे में आती हैं और अपने पलंग पर बैठकर ,गहरी स्वांस भरती हैं और अपनी आँखें बंद कर लेती हैं। मैं कितना भी अच्छा सोच लूँ या कर लूँ ?किन्तु इसे अपना नहीं बना सकती ,ये 'दरा

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29 जून 2023
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ज्योति...... ओ ज्योति....... ! दूर से आती, मौसी की आवाज सुनाई दी। आई मौसी ! कहकर मैं बंसी से बोली -कल आउंगी तब खेलेंगे ,अब मौसी बुला रही है। बंसी ने हाँ में गर्दन हिलाई और मैं ,दौड़ते हुए मौसी के

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भूतों से बातचीत

1 जुलाई 2023
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नंदिनी जैसे ही , अपनी कक्षा में पहुंची -उसने देखा ,सभी बच्चे ,तुषार की सीट के पास खड़े हैं। ये सब क्या हो रहा है ?सभी बच्चे वहाँ क्या कर रहे हैं ? नंदिनी को देखते ही ,सभी बच्चे दौड़कर अपनी -अपनी सीट पर

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पैसा

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रतनलाल जी ने कितना पैसा कमाया ? रात -दिन एक कर दिया। शानदार कोठी भी बनाई ,बच्चों को महंगे से महंगे स्कूल में पढ़ाया। सबकुछ तो उनके पास है ,किसी चीज की भी कमी नहीं ,पत्नी के पास भी जेवरों की कोई कमी नह

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गड़बड़ घोटाला

3 जुलाई 2023
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मैं प्रतिदिन की तरह ,जब परिवार के सभी सदस्य अपने -अपने काम पर चले जाते ,तब घर की साफ -सफाई और बाहर बगीचे में पानी देना जैसे कार्य करती। एक दिन जब मैं अपने पौधों को पानी दे रही थी ,तभी मैंने देखा ,स्क

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रिश्तेदार जलते हैं!

4 जुलाई 2023
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कितनी ख़ुशी की बात है ?कीर्ति तुमने पढ़ाई पूरी करने के साथ -साथ ,तुम्हारी नौकरी भी लग गयी। एक पार्टी तो अवश्य बनती है। क्या ख़ाक पार्टी बनती है ?तुम सभी दोस्तों को ही पार्टी दूंगी ,मम्मी -पापा के लि

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कीमत, समय की

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अतुल बहुत ही बिगड़ैल और अड़ियल है ,देखने में तो वो बहुत जचँता है ,उसे देखेंगे तो कह उठेंगे कि किसी बड़े घर का बेटा हो लेकिन उसका स्वभाव उसकी शक़्ल और व्यक्तित्व से बिल्कुल विपरीत है। वो न ही किसी की बात

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कीमती

9 जुलाई 2023
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राधा जब ,मोहन से मिली ,उसे देखते ही , अपना दिल दे बैठी ,मोहन की हालत भी कुछ ऐसी ही थी। पहली बार दोनों ,राधा की सहेली के घर पर,उसकी जन्मदिन की पार्टी में ,उससे मिली। जितनी खूबसूरत राधा लग रही थी, उतना

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मृत्यु पर विजय

10 जुलाई 2023
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पल -पल मरता है ,इंसान ! जीने की तमन्ना में ! टूटता है ,बिखरता है, जिन्दा रहने की चाह में !खो देता है ,अपनों का साथ ,जीता है स्वांसों में !स्वांसों का ही खेल है , जिन्दा रहने की आस में !कुछ लोग जी

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भूतिया हवेली

12 जुलाई 2023
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श.... श.... श.... श.... आज आपको एक''अज़ीबो ग़रीब प्रेम की '' कहानी सुनाती हूँ। जानते हैं ,ये जो हवेली है ,ठाकुरों की है ,बहुत ही रुआब था। ठाकुर ''बलदेव सिंह '' अपने नाम की तरह ही बलवान ,बुद्धिमान और रौब

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सुरक्षा कवच

14 जुलाई 2023
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माँ 'तुम अब यहाँ ,अकेली क्या करोगी ? अब तुम भी हमारे संग चलकर रहो !अनंत अपनी माँ से बोला। बेटा ! सम्पूर्ण ज़िंदगी इस शहर में बिता दी ,अब इधर -उधर जाकर क्या करूंगी ? जब तू छोटा था ,तब सोचा करती थी

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बदलते रंग

16 जुलाई 2023
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आज घर में खीर -पूरी ,मालपुए दो सब्ज़ियाँ और बूँदी का रायता बना है क्योंकि आज बहुओं का व्रत है ,आज के दिन सुहागन महिलायें अपने पति की लम्बी उम्र ,और अच्छे स्वास्थ के लिए पूजा करती हैं और अपने घर की बड़ी

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वो सुबह!

17 जुलाई 2023
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कितना सुहावना मौसम है ?रंजन अपने बच्चों से कहता है -चलो !आज कहीं घूमने चलते हैं। बाहर हल्की - हल्की बूंदा -बांदी हो रही थी। बच्चे खुश हो जाते हैं और दौड़कर अपनी मम्मी के पास जाते हैं। मम्मी ! पापा कह

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लडाई

19 जुलाई 2023
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श्रेया ,अपने आप से ही , कितना लड़ रही थी ? ये तो वो ही जानती है।अब तो जीवनभर संघर्ष ही करना है। पहले पढ़ाई में संघर्ष किया क्या विषय लेने हैं ,कौन सा स्कूल चुनना है ? स्कूल में भी ,प्रतिशत में नंबर लाने

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सूर्यास्त और हम

20 जुलाई 2023
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रामलाल जी के घर में ,फोन की घंटी बज रही थी ,उनके बेटे की बहु फोन उठाती है और रामलाल जी से कहती है -पापा जी !आपका फोन है। किसका है ? पूछो कौन है ?और क्या कहना चाहता है ?शिरोमणि अंकल हैं ,और आपसे

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धड़कन

21 जुलाई 2023
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पंकज हमेशा अपनी ही चलाता है , किसी की भी नहीं सुनता ,सुमित्रा जी हमेशा ,एक उम्मीद के सहारे आगे बढ़ उसका समर्थन करतीं और कहतीं -पंकज ,अभी बच्चा है ,समझदार हो जायेगा ,तब सब समझने लगेगा ,कहना भी मानेगा कि

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मेन्ढकी

22 जुलाई 2023
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गर्मी से बुरी हालत थी ,नहाते -नहाते भी पसीने आ जाते। खेती पर काम करने वाले भी खेतों से ,वापस आ गए। सभी को ,बरसात की इच्छा हो चली थी। आपस में कहते -न जाने बरसात कब होगी ?यदि शीघ्र ही बरसात नहीं हुई तो

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बरसात

23 जुलाई 2023
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बरसात का मौसम ''आते ही मन झूमने लगता है ,बारिश की ठंडी -ठंडी फुहार तन को ही नहीं ,मन को भी भिगो जाती हैं। चारों तरफ धुली -धुलि सी ,हरियाली ,लगता है जैसे ,प्रकृति ने धानी चुनर ओढ़ ली हो। बच्चों की तो बर

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एक ही गलती

25 जुलाई 2023
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सुधा खिड़की के पास बैठी ,चाय पी रही थी ,तभी उसकी बेटी ने उसे पुकारा ,मम्मी ,मैंने अपना गृहकार्य कर लिया। ठीक है ,जाओ !अब जाकर बाहर बच्चों के साथ खेल लो !ठीक है ,कहकर वो बाहर की तरफ दौड़ी ,तभी सुधा ने उस

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