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बड़ी बहु

8 नवम्बर 2022

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शर्मा जी के बड़े बेटे का विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ ,बेटा -बहु दोनों पढ़े -लिखे।लड़की का  घर -, परिवार के लोग भी बहुत ही अच्छे हैं। सुंदर होने के साथ -साथ , संस्कारी बहु मिली है ,शर्मा जी के तो जैसे भाग [भाग्य ]ही खुल गए। शर्माजी मन ही मन प्रसन्न हैं किन्तु वे सोचते हैं- ये सब कहने -सुनने की बातें हैं। जब बहु आ जाएँ , घर -परिवार को अपना बना ले ,परिवार के लोगों में घुल -मिल जाएँ ,तब समझो कि बहु अच्छी है।  निशा कहती -आप तो नाहक़ ही चिंता करते हैं ,जब हम उसे बेटी बनाकर लाये हैं और अपनी बेटी मानेंगे, तो क्यों वो ग़लत व्यवहार करेगी ?कुछ अपना व्यवहार भी होता है कि नहीं और फिर आपने  देखा नहीं ,उसके परिवार में कितने सज्जन लोग हैं ?उनके दिए संस्कार भी तो होंगे। मैं मन ही मन सोच रहा था -निशा की सोच में कितनी सकारात्मकता है ?फिर मैं ही क्यों गलत सोच रहा हूँ ?अपने व्यवहार से भी तो होता है , किन्तु सक्सेना जी के घर का हाल देखता हूँ ,तो एकाएक विश्वास नहीं होता कि आजकल की बहुएँ सही निकल जायें तो अपने को ''बड़भागी ''मानो। किन्तु निशा की बात भी सही है विश्वास तो करना ही होगा। दूसरे का सोचकर ,दूसरे व्यक्ति को जब तक परख न लो उसके प्रति गलत सोच रखना भी तो
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शर्मा जी के बड़े बेटे का विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ ,बेटा -बहु दोनों पढ़े -लिखे।लड़की का घर -, परिवार के लोग भी बहुत ही अच्छे हैं। सुंदर होने के साथ -साथ , संस्कारी बहु मिली है ,शर्मा जी के तो जैसे भाग [भाग्य ]ही खुल गए। शर्माजी मन ही मन प्रसन्न हैं किन्तु वे सोचते हैं- ये सब कहने -सुनने की बातें हैं। जब बहु आ जाएँ , घर -परिवार को अपना बना ले ,परिवार के लोगों में घुल -मिल जाएँ ,तब समझो कि बहु अच्छी है। निशा कहती -आप तो नाहक़ ही चिंता करते हैं ,जब हम उसे बेटी बनाकर लाये हैं और अपनी बेटी मानेंगे, तो क्यों वो ग़लत व्यवहार करेगी ?कुछ अपना व्यवहार भी होता है कि नहीं और फिर आपने देखा नहीं ,उसके परिवार में कितने सज्जन लोग हैं ?उनके दिए संस्कार भी तो होंगे। मैं मन ही मन सोच रहा था -निशा की सोच में कितनी सकारात्मकता है ?फिर मैं ही क्यों गलत सोच रहा हूँ ?अपने व्यवहार से भी तो होता है , किन्तु सक्सेना जी के घर का हाल देखता हूँ ,तो एकाएक विश्वास नहीं होता कि आजकल की बहुएँ सही निकल जायें तो अपने को ''बड़भागी ''मानो। किन्तु निशा की बात भी सही है विश्वास तो करना ही होगा। दूसरे का सोचकर ,दूसरे व्यक्ति को जब तक परख न लो उसके प्रति गलत सोच रखना भी तो


अन्याय है। निशा जी की बात सही निकली ,हमारी बहु बहुत ही गुणी और समझदार थी ,उसने घर की सभी जिम्मेदारियां संभाल ली थीं। नौकरी करने के कारण, जितना भी समय उसे मिलता घर की जिम्मेदारियों को संभालती। निशा भी उसका ख़्याल रखती ,काम में उसकी मदद करती। शाम को दफ्तर से आ जाती तो उसे आराम करने के लिए कहती ,उसे चाय भी बनाकर दे देती। दोनों ही बड़े प्यार से काम करतीं और एक -दूसरे का ख़्याल भी रखतीं। आज मुझे लग रहा था कि निशा ठीक ही कह रही थी - अपने -आप से,अपने व्यवहार का भी असर होता है। हर काम सही समय पर हो जाता, किन्तु मैंने देखा -निशा कुछ ज्यादा ही मेहनत कर रही थी। क्या वो रिश्तों को जोड़े रखने के प्रयास में ,उन्हें बनाये रखने के लिए ,अपना अधिक समय और कोशिश कर रही है। 
                 एक दिन मैंने कहा भी -बहु से ज्यादा तो तुम काम कर रही हो ,वो बोली -नहीं वो भी काम करती है। मैंने कभी बहु और निशा की नोंक -झोंक नहीं सुनी। मुझे तो तब विश्वास हुआ -जब बहु ने, निशा के बिमार हो जाने पर उसकी खूब सेवा की और अपने दफ्तर से भी छुट्टी ले ली।शर्मा जी बोले -ये सेवा इसीलिए हो रही है ताकि तुम शीघ्र स्वस्थ हो जाओ और काम कर सको । उसकी सेवा से प्रसन्न होकर निशा बोली -आप बहु पर विश्वास क्यों नहीं कर पा रहे है ?तब शर्मा जी बोले -सक्सेना की बहु ने उनसे सारा काम करवाया और उन्हें अंत में घर से बाहर कर दिया। निशा हंसकर बोली -देखिये ,सभी लोग एक जैसे नहीं होते ,सभी के स्वभाव भी अलग होते हैं ,सोच अलग होती है ,हम सभी को एक तराजू में नहीं तौल सकते। इसीलिए आप भी बहु पर अविश्वास करना बंद कीजिये। बड़े बेटे के विवाह को तीन -चार वर्ष बीत गये। एक पोता भी ,अब हमारी गोद में खेल रहा है।बहु पहले से और अधिक ज़िम्मेदार हो गयी। सुबह पैर छूकर चाय दे जाती। निशा अन्य कार्यों में व्यस्त रहती। अब मेरा विश्वास भी बढ़ने लगा था ,छोटे बेटे ने भी अपना कोर्स पूरा कर नौकरी पर लग गया। उसके रिश्ते भी आने लगे ,अब तो दिल चाहता जैसी बड़ी बहु आ गयी ,छोटे की भी ऐसी आ जाएँ तो हम'' गंगा नहा लें '' हमारा जन्म सफल हो जाये। बहुत तलाशने पर एक लड़की पसंद भी की गयी ,विवाह के पश्चात ,छोटी बहु अपने पति के साथ दूसरे शहर नौकरी पर चली गयी। शुरू -शुरू में ,कुछ दिन छोटी बहु ने भी बड़ी बहु की देखा- देखी व्यवहार किया। दोनों बहुओं को देख लगा -'जन्म सफल हो गया ,ख़ुशी -ख़ुशी दोनों पति -पत्नी नौकरी पर भेजा। ज़िंदगी इतनी आसान होती ,तो हर कोई संघर्ष नहीं करता ,लोग इतने अच्छे होते तो अविश्वास का तो अस्तित्व ही समाप्त हो जाता। कुछ स्वार्थी लोगों के कारण ही तो अविश्वास का प्रभुत्व अभी क़ायम है। बड़ी बहु घूमने के उद्देश्य से ,छोटी के पास गयी। जब दोनों पति -पत्नी घूमकर आये तो बहु के व्यवहार में परिवर्तन लगा किन्तु हमें तो उस पर विश्वास था, इसीलिए ध्यान नहीं दिया। 
                  कुछ समय पश्चात या यूँ कहें ,कुछ वर्ष ही बीते होंगे। छोटी को अपने भाई के विवाह के लिए यहाँ आना पड़ा और गर्मियों की छुट्टी बिताने के उद्देश्य से यहीं रह गयी। शर्माजी निशा से बोले -तुम्हारे घुटनों में दर्द है ,अब तो थोड़ा आराम कर लो। कम से कम दो बहुओं का सुख लो। निशा ने मेरी बात मान ली। अगले दिन जब वो उठीं तो सिर में भारीपन था ,सोचा शायद ठीक से नींद नहीं आई ,उम्र के साथ नींद भी तो कम हो ही जाती है। थोड़ी चाय पियूँगी तो ठीक हो जायेगा। इंतजार था, कि कोई सी भी बहु चाय तो लेकर ही आयेगी ,बहुत इंतजार के छोटी बहु चाय लेकर आयी -निशा बिस्तर से उठने का प्रयत्न कर ही रहीं थीं ,छोटी ने उन्हें उठाने में मदद भी नहीं की और चाय पास की मेज़ पर रखकर बोली -मम्मी घर में इतने काम हैं ,कम से कम आप उठकर अपनी चाय बना नहीं सकतीं तो लेकर तो आ ही सकती हो। निशा उसका मुँह देखने लगी। न ही पैर छुए अथवा अंग्रेजी में '' गुड मॉर्निग ''ही करती।निशा ने उसकी बातों को नज़रअंदाज कर बोलीं -बेटा !''गुड मॉर्निंग ''वे उसे याद दिलाना चाहती थीं कि बड़ों से मिलने पर अभिवादन करते हैं ,उसके जबाब का उन्होंने इंतजार नहीं किया ,बोलीं -आज थोड़ा सिर में भारीपन है ,इसीलिए उठने में थोड़ी दिक्क़त हो रही है। जब वो बैठ गईं ,उन्होंने चाय के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया ,तब तक छोटी जा चुकी थी। उसके इस व्यवहार से उन्हें दुःख हुआ। सोचा ,शुरू से ही अलग रहने लगी ,परिवार के तौर -तरीक़े या तो आते नहीं या भूल गयी। बड़ी बहु 'आई उसे देख उनके मन में प्रसन्नता छा गयी। बोलीं -मालिनी बेटा ,कोई सिर दर्द की दवाई हो तो देना। मालिनी पहले ही दवाई लेकर आई थी थी ,बोली -छोटी ने बताया ,मम्मीजी के सिर में दर्द है इसीलिए दवाई ले आई। निशा को जो दुःख छोटी की बातों से हुआ था उस पर मालिनी ने जैसे अपने व्यवहार से मरहम लगा दिया। एक घंटे के आराम के पश्चात वो पूर्णतः स्वस्थ हो गयीं।  
                  छोटी को उन दोनों का इस तरह प्रेम से रहना रास नहीं आया और बोली -दीदी ,आप भी कितनी मेहनत करती हैं ?साथ में बच्चा भी। इतना सब कैसे कर लेती हैं ?ना बाबा ना मुझसे तो ये सब नहीं हो पायेगा। मालिनी बोली -तुमने देखा नहीं ,मम्मी जी तो इस उम्र में भी काम में ही लगी रहती हैं और अधिक से अधिक काम करने का प्रयत्न करती हैं। हम तो उनसे जवान हैं , उनका काम इतना कहाँ होता है ?वे तो उल्टे हमारे काम में ही हमारी मदद करती हैं। पापाजी तो उन्हें आराम करने के लिए डांटते ही रहते हैं किन्तु वो फिर भी लगी रहतीं हैं। छोटी बोली -ऐसा आपको लगता है ,क्योंकि इतना काम करने की आपकी आदत जो बन गयी है। देखो ,जरा अपनी हालत। न ही फ़िल्म देखने जाती हो ,न ही कोई किट्टी ,घर से दफ़्तर ,दफ़्तर से घर ,बस यही ज़िंदगी रह गयी है। न कहीं घूमने जाना ,अपने लिए भी तो थोड़ा समय निकालिये। ये ही उम्र तो है घूमने -फिरने की ,फिर कब जाएँगी ? उसकी बातें मालिनी के दिल को लग रहीं थीं और वो चुप हो गयी। मालिनी को चुप देख ,छोटी ने अपनी बात बड़ी की और बोली -बताओ तो जरा ''सौंदर्य सज्जा ''के लिए कब गयीं थीं ?इस बार मालिनी बोली -अभी एक सप्ताह पहले ,हम किसी के यहाँ विवाह में गए थे, तब। चलो मान लिया ,गयी थीं किन्तु हम महिलाओं को भी तो आज़ादी चाहिए ,क्या हम अपनी ज़िंदगी यूँ ही खफाने के लिए पैदा हुए हैं ?इन ससुराल वालों का क्या है ?जब तक इनकी हाँ में हाँ मिलाकर काम करते रहोगे तो बहु अच्छी। नहीं किया और अपने अधिकार की बात की ,तो बहु खराब। मैं आपसे पूछती हूँ -क्या हमारी अपनी कोई इच्छा अथवा पसंद नहीं ?


                     निशा ने देखा -छोटी तो पैर छूना ही नहीं जानती ,न ही चाहती। बड़ी को देखकर भी इधर -उधर देखने लगती। मालिनी को भी अब अज़ीब लगने लगा ,जैसे मैं ही पढ़ी -लिखी गंवार हो गयी हूँ। छोटी को देखो कैसी मस्त रहती है ?अपने मन का करती है ,अपने मन का खाती और पहनती है। और मैं यहां संस्कारों की पोटली लिए बैठी ,नहीं बैठी नहीं, ढ़ो रही हूँ।छोटी की इन हरकतों पर, निशा और शर्मा जी की नज़र थी किन्तु ''गृहक्लेश ''से बचने के लिए शांत थे। बेटे से पूछ रहे थे, कि ये क्या ऐसी ही थी या तेरे साथ जाकर बदल गयी? तुझे उसे समझाना चाहिए। फिर उन्होंने सोचा -ये कुछ दिनों के लिए ही तो आयी है फिर चली जाएगी। एक दिन तो छोटी ने लज्जा ,शर्म त्याग ऐसे वस्त्र पहने कि शर्माजी की नज़रें झुक गयीं। रोहित ने उसे बहुत समझाया- कि रिश्तों का तो लिहाज़ करो ,ससुर और बड़े भाई की तो शर्म करो। वो बोली -मैंने किसी का ठेका नहीं लिया ,मेरी जैसी इच्छा होगी ,वैसी रहूँगी। वो छोटी होने के कारण भी रिश्तों को कोई महत्व नहीं दे रही थी। मालिनी को भी उसकी ये हरकतें अच्छी नहीं लग रही थीं किन्तु उसकी इन्हीं हरकतों ने उसे भी सोचने पर मजबूर कर दिया। मेरी भी अपनी ज़िंदगी है ,मेरी भी अपनी पसंद -नापसंद है। मुझे ये सब करने से क्या मिला ?किसी ने मुझे कोई 'ट्रॉफी ''या'' मैडल ''दे दिया।शर्मा जी का छोटा लड़का अपनी पत्नी के व्यवहार से लज्जित हो ,छुट्टियों से पहले ही, बच्चों की पढ़ाई का बहाना ले चला गया। उन लोगों के जाने के बाद सबने राहत की साँस ली। किन्तु छोटे के परिवार के जाने के बाद भी घर में पहले जैसी बात नहीं आ पा रही थी क्योंकि छोटी बहु कहीं न कहीं जहरीला बीज़ बो गयी थी।  
                सुबह उठकर निशा ने रसोईघर में प्रवेश किया ,देखा रातभर के जूठे बर्तन पड़े हैं। हमारे यहां तो आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि रात के जूठे बर्तन पड़े रहे हों ,बर्तन वाली आती थी ,नहीं आती तो बहु स्वयं ही माँजकर रख देती थी। निशा मदद भी करती तो मालिनी मना कर देती। निशा जूठे बर्तन माँजने लगी क्योंकि शर्माजी के लिए चाय बनानी थी। तभी मालिनी वहां आयी और निशा को बर्तन मांजते देख,चुपचाप अपने मुन्ने के लिए दूध गर्म कर ले गयी। आज निशा ने बहु के इस रूप को पहली बार देखा था। न ही मालिनी ने उन्हें बर्तन मांजने से रोका ,न ही आज उनके पैर छुए। उनकी लाड़ली बहु पर आज किसी दूसरे की सीख असर कर गयी थी। उस पर गलत सोच हावी हो चुकी थी। उन्हें इस बात का दुःख हुआ कि उनका घर बिखर रहा था। अब उसे समझाने पर भी कुछ असर नहीं होता। अब उस पर स्वार्थ हावी हो चुका था ,अपने सभी संस्कार, प्यार ,मान -सम्मान सब भूलती जा रही थी। घर का वातावरण पूर्णतः तनावपूर्ण था। कुछ समझ नहीं आ रहा था, किस तरह वातावरण को पहले की तरह ख़ुशनुमा बनाया जाये? वो प्रयास भी करतीं तो निष्फल हो जातीं। बहुत दिनों पश्चात ,,आज बुआजी यानि शर्माजी की बहन घर आयी हैं। आते ही घर में जैसे खुशियाँ आ गयीं जिन्हें निशा इतने दिनों से ढूढ़ने का प्रयत्न कर रही थीं। वो आते ही सबसे गले मिलीं। उनके व्यवहार को देख हिचकते हुए, मालिनी उनके पैर छूने लगी तब उन्होंने बड़े प्रेम से उसे गले लगा लिया और बोलीं -तू तो हमारे घर की लक्ष्मी है ,तू तो सबके दिल में बसी है ,तू पैर नहीं ,तू तो गले लग जा और उन्होंने बड़े जोश से उसे अपने गले लगा लिया। 
                  बुआजी के प्रेम की गर्मी से मालिनी थोड़ा पिघली। बुआजी का आना निशा को अच्छा लगा। रात में निशा बुआजी के पैर दबाने के उद्देश्य से उनके पास गयी। बुआजी बोलीं -भाभी अब आदत नहीं रही ,तुम भी कब तक इन रस्मों को निभाती रहोगी ?अब उम्र हो चली अब तो बहुओं से पैर दबवाओ। निशा बोली -दीदी जब आपकी इस उम्र में आदत छूट गयी ,मैंने तो आदत ही नहीं डाली ,ऐसी आदत डालने से क्या लाभ ?जो बाद में छुड़ानी पड़े। बुआजी, अपने अनुभव से ताड़ गयीं थीं कि निशा के मन में कुछ न कुछ परेशानी अवश्य ही चल रही है। बुआजी बोलीं -भाभी एक बात बोलूं ,बुरा तो नहीं मानोगी। नहीं ,निशा ने छोटा सा उत्तर दिया। क्या घर में कोई बात है ,जब से मैं आयी हूँ ,तुम कुछ खोयी -खोयी सी हो। निशा थोड़ी आनाकानी के बाद बताने को तैयार हो गयी। उसके तो दिल पर जैसे बोझ रखा था, और अपने मन का गुब्बार अपनी ननद के सामने निकाल दिया। सारी बातें सुनकर उन्होंने गहरी साँस ली और बोली -मैं कुछ करती हूँ। सुबह बुआजी ने उठते ही ,मालिनी को अपने कमरे में से ही बैठे -बैठे आवाज़ लगाई। जी बुआजी ,कहती हुयी मालिनी कमरे में दाख़िल हुई। अरे बेटा ,तू ही तो इस घर की रौनक है ,तेरे कारण ही घर चल रहा है। मालिनी की गोद में उसका बेटा था ,उसे देख बुआजी बोलीं -अब ये डेढ़ -दो बरस का हो गया। इसे गोद में लेकर मत घुमा कर ,इसे इसके दादी -बाबा के पास छोड़ आ ,वे इसका ख़्याल रख लेंगे। तू भी क्या -क्या करेगी ?इसकी टाँगे भी नीचे घूमने से मजबूत होंगी और जा मेरे लिए चाय भी ले आ। इससे पहले कि वो जाने के लिए मुड़ती ,बुआजी बोलीं -बेटा तू तो पैर छूती ही है ,अपने ये अच्छे संस्कार अपने बच्चे के अंदर भी डाल। जब तू पैर छुआ करे तो ये तुझे देखकर ही सब करेगा। 


               ये सब संस्कार तो माँ ही डालती है ,जैसे तुझे सबका आशीर्वाद मिलता है तेरे बेटे को भी मिलेगा। जैसे तू सबके दिलों पर अपने व्यवहार से राज करती है ,ऐसे ही ये शैतान भी करेगा। न चाहते हुए भी मालिनी पैर छूने लगी। बुआजी ने बड़ा सा आशीर्वाद दिया और बोलीं -जा चाय बना ला ,मैं भइया के साथ बैठती हूँ ,वहीं चाय ले आना।शर्मा जी और निशा दोनों साथ ही थे ,बुआजी मुन्ना को लेकर उनके पास आयीं और बोलीं -लो सम्भालो, अपने इस नन्हे शैतान को ,इसे लेकर बहु काम करती है, थक जाती होगी। अब ये गोद में नहीं बल्कि इसे दोनों हाथ पकड़कर घुमाया करो ताकि इसकी टाँगे मजबूत हों। तब तक मालिनी चाय भी ले आई थी। बुआजी तभी तो इसे कुछ सिखायें ,जब ये हमारे पास रहे। सारा दिन तो अपनी माँ को तंग करता है। बुआजी बोलीं-तुम इसके दादी -बाबा हो, ये रिश्ता तो ऊपर वाले ने ही बनाकर भेजा है ,इसे कोई झुठला नहीं सकता। ये तो ख़ून के रिश्ते होते हैं। इनमें किसी का क्या हस्तक्षेप ?
'बल्कि बहु को तो इसे तुम्हारे पास भेजने पर, अपने लिए भी समय मिल जायेगा। पहले घर का काम करती होगी फिर इसका, तो इसके पास समय कहाँ बचेगा ?मालिनी के मन में ये बात आ गयी ,बुआजी कह तो ठीक ही रहीं हैं। अभी वो सोच ही रही थी कि बुआजी बोलीं -जा मालिनी ,तेल ले आ! आज मैं अपने इस कन्हैया की मालिश करूंगी। जब वो तेल ले आई। वो बोलीं -आ यहीं बैठकर देख ! मालिश करते हुए बोलीं -तुझे पता है ,मैं अपने इसी भाई के पास ज्यादा क्यों आती हूँ ?मालिनी ने नहीं में सिर हिलाया। प्रेम और अपनापन जो मैं यहां महसूस करती हूँ वहाँ नहीं, जबकि उसके पास इससेअधिक पैसा है। ऊपर से तू भी ऐसी संस्कारी। जो संस्कार तेरे माता -पिता ने दिये हैं वो छोटी के माता -पिता ने नहीं दिए होंगे। या फिर उसने अपने माता -पिता के दिए संस्कारों को ही झुठला दिया। तुझे पता है ,राम और रावण दोनों ने ही मनुष्य योनि में जन्म लिया किन्तु एक आज भी जलाया जाता है और दूसरे के मंदिर बने हैं। जबकि रावण की तो सोने की लंका थी, ज्ञान भी अधिक था, कारण उनके कर्म ,जिन्होंने राम को भगवान बना दिया। मान लो ,तू कार्य करती है ,तू अपनों का प्यार पाती है। तेरी सास है ,इसके व्यवहार के कारण ही आज भी मैं इससे मिलने आती हूँ। तुम लोगों का प्यार अपनापन खींच लाता है। जिससे बुरी यादें जुडी हों उसे स्वप्न में भी कोई याद नहीं करना चाहता बल्कि उसे याद करते हुए दुःख ही होता है। तुम किसी के सुख का कारण न बन सको तो दुःख का कारण तो न बनो। जब लोगों के दिलों में तुम्हारी यादें सुखानुभूति दे जाएँ तो समझो यही तुम्हारा'' मैडल '' और ''ट्रॉफी'' है। 
अन्याय है। निशा जी की बात सही निकली ,हमारी बहु बहुत ही गुणी और समझदार थी ,उसने घर की सभी जिम्मेदारियां संभाल ली थीं। नौकरी करने के कारण, जितना भी समय उसे मिलता घर की जिम्मेदारियों को संभालती। निशा भी उसका ख़्याल रखती ,काम में उसकी मदद करती। शाम को दफ्तर से आ जाती तो उसे आराम करने के लिए कहती ,उसे चाय भी बनाकर दे देती। दोनों ही बड़े प्यार से काम करतीं और एक -दूसरे का ख़्याल भी रखतीं। आज मुझे लग रहा था कि निशा ठीक ही कह रही थी - अपने -आप से,अपने व्यवहार का  भी असर  होता है। हर काम सही समय पर हो जाता, किन्तु मैंने देखा -निशा कुछ ज्यादा ही मेहनत कर रही थी। क्या वो रिश्तों को जोड़े रखने के प्रयास में ,उन्हें बनाये रखने के लिए ,अपना अधिक समय और कोशिश कर रही है। 
                 एक दिन मैंने कहा भी -बहु से ज्यादा तो तुम काम कर रही हो ,वो बोली -नहीं वो भी काम करती है। मैंने कभी बहु और निशा की नोंक -झोंक नहीं सुनी। मुझे तो तब विश्वास हुआ -जब बहु ने, निशा के बिमार हो जाने पर  उसकी खूब सेवा की और अपने दफ्तर से भी छुट्टी ले ली।शर्मा जी बोले -ये सेवा इसीलिए हो रही है ताकि तुम शीघ्र स्वस्थ हो जाओ और काम कर सको । उसकी सेवा से प्रसन्न होकर निशा बोली -आप बहु पर विश्वास क्यों नहीं कर पा  रहे है ?तब शर्मा जी बोले -सक्सेना की बहु ने उनसे सारा काम करवाया और उन्हें अंत में घर से बाहर कर दिया। निशा हंसकर बोली -देखिये ,सभी लोग एक जैसे नहीं होते ,सभी के स्वभाव भी अलग होते हैं ,सोच अलग होती है ,हम सभी को एक तराजू में नहीं तौल सकते। इसीलिए  आप भी बहु पर अविश्वास करना बंद कीजिये। बड़े  बेटे के विवाह को तीन -चार वर्ष बीत  गये। एक पोता भी ,अब हमारी गोद में खेल रहा है।बहु पहले से और अधिक ज़िम्मेदार हो गयी। सुबह पैर छूकर चाय दे जाती। निशा अन्य कार्यों में व्यस्त रहती। अब मेरा विश्वास भी बढ़ने लगा था ,छोटे बेटे ने भी अपना कोर्स पूरा कर नौकरी पर लग गया। उसके रिश्ते भी आने लगे ,अब तो दिल चाहता जैसी बड़ी बहु आ गयी ,छोटे की भी ऐसी आ जाएँ तो हम'' गंगा नहा लें '' हमारा जन्म सफल हो  जाये। बहुत तलाशने पर एक लड़की पसंद भी की गयी ,विवाह के पश्चात ,छोटी बहु अपने पति के साथ दूसरे शहर नौकरी पर चली गयी। शुरू -शुरू में ,कुछ दिन  छोटी बहु ने  भी बड़ी बहु की देखा- देखी व्यवहार किया। दोनों बहुओं को देख लगा -'जन्म सफल हो गया ,ख़ुशी -ख़ुशी दोनों पति -पत्नी नौकरी पर भेजा। ज़िंदगी इतनी आसान होती ,तो हर कोई संघर्ष नहीं करता ,लोग इतने अच्छे होते तो अविश्वास का तो अस्तित्व ही समाप्त हो जाता। कुछ स्वार्थी लोगों के कारण ही तो अविश्वास का प्रभुत्व अभी क़ायम है। बड़ी बहु घूमने के उद्देश्य से ,छोटी के पास गयी। जब दोनों पति -पत्नी घूमकर आये तो बहु के व्यवहार में परिवर्तन लगा किन्तु हमें तो उस पर विश्वास था, इसीलिए ध्यान नहीं दिया। 
                  कुछ समय पश्चात या यूँ कहें ,कुछ वर्ष ही बीते होंगे। छोटी को अपने भाई के विवाह के लिए यहाँ आना पड़ा और गर्मियों की छुट्टी बिताने के उद्देश्य से यहीं रह गयी। शर्माजी निशा से बोले -तुम्हारे घुटनों में दर्द है ,अब तो थोड़ा आराम कर लो। कम से कम दो बहुओं का सुख लो। निशा ने मेरी बात मान ली। अगले दिन जब वो उठीं तो  सिर में भारीपन था ,सोचा शायद ठीक से नींद नहीं आई ,उम्र के साथ नींद भी तो कम हो ही जाती है। थोड़ी चाय पियूँगी तो ठीक हो जायेगा। इंतजार था, कि कोई सी भी बहु चाय तो लेकर ही आयेगी ,बहुत इंतजार के छोटी बहु चाय लेकर आयी -निशा  बिस्तर से उठने का प्रयत्न कर ही रहीं थीं ,छोटी ने उन्हें उठाने में मदद भी नहीं की और चाय पास की मेज़ पर रखकर बोली -मम्मी घर में इतने काम हैं ,कम से कम आप उठकर अपनी चाय बना नहीं सकतीं तो लेकर तो आ  ही सकती हो। निशा उसका मुँह देखने लगी। न ही पैर छुए अथवा अंग्रेजी में '' गुड मॉर्निग ''ही करती।निशा ने उसकी बातों को नज़रअंदाज कर बोलीं -बेटा !''गुड मॉर्निंग ''वे उसे याद दिलाना चाहती थीं कि बड़ों से मिलने पर अभिवादन करते हैं ,उसके जबाब का उन्होंने इंतजार नहीं किया ,बोलीं -आज थोड़ा सिर में भारीपन है ,इसीलिए उठने में थोड़ी दिक्क़त हो रही है। जब वो बैठ गईं ,उन्होंने चाय के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया ,तब तक छोटी जा चुकी थी। उसके इस व्यवहार से उन्हें दुःख हुआ। सोचा ,शुरू से ही अलग रहने लगी ,परिवार के तौर -तरीक़े या तो आते नहीं या भूल गयी। बड़ी बहु 'आई उसे देख उनके मन में प्रसन्नता छा  गयी। बोलीं -मालिनी बेटा ,कोई सिर दर्द की दवाई हो तो देना। मालिनी पहले ही दवाई लेकर आई थी थी ,बोली -छोटी ने बताया ,मम्मीजी के सिर में दर्द है इसीलिए दवाई ले आई। निशा को जो दुःख छोटी की बातों से हुआ था उस पर मालिनी ने जैसे अपने व्यवहार से मरहम लगा दिया। एक घंटे के आराम के पश्चात वो पूर्णतः स्वस्थ हो गयीं।  
                  छोटी को उन दोनों का इस तरह प्रेम से रहना रास नहीं आया और बोली -दीदी ,आप भी कितनी मेहनत करती हैं  ?साथ में बच्चा भी। इतना सब कैसे कर लेती हैं ?ना बाबा ना मुझसे तो ये सब नहीं हो पायेगा। मालिनी बोली -तुमने देखा नहीं ,मम्मी जी तो इस उम्र में भी काम में ही लगी रहती हैं और अधिक से अधिक काम करने का प्रयत्न करती हैं। हम तो उनसे जवान हैं , उनका काम इतना कहाँ होता है ?वे तो उल्टे हमारे काम में ही हमारी मदद करती हैं। पापाजी तो उन्हें आराम करने के लिए डांटते ही रहते हैं किन्तु वो फिर भी लगी रहतीं हैं। छोटी बोली -ऐसा आपको लगता है ,क्योंकि इतना काम करने की आपकी आदत जो बन गयी है। देखो ,जरा अपनी हालत। न ही फ़िल्म देखने जाती हो ,न ही कोई किट्टी ,घर से  दफ़्तर ,दफ़्तर से घर ,बस यही ज़िंदगी रह गयी है। न कहीं घूमने जाना ,अपने लिए भी तो थोड़ा समय निकालिये। ये ही उम्र तो है घूमने -फिरने की ,फिर कब जाएँगी ? उसकी बातें मालिनी के दिल को लग रहीं थीं और वो चुप हो गयी। मालिनी को चुप देख ,छोटी ने अपनी बात बड़ी की और बोली -बताओ तो जरा ''सौंदर्य सज्जा ''के लिए कब गयीं थीं ?इस बार मालिनी  बोली -अभी एक सप्ताह पहले ,हम किसी के यहाँ विवाह में गए थे, तब। चलो मान लिया ,गयी थीं किन्तु हम महिलाओं को भी तो आज़ादी चाहिए ,क्या हम अपनी ज़िंदगी यूँ ही खफाने के लिए पैदा हुए हैं ?इन  ससुराल वालों का क्या है ?जब तक इनकी हाँ में हाँ मिलाकर काम करते रहोगे तो बहु अच्छी। नहीं किया  और अपने अधिकार की बात की ,तो बहु खराब। मैं आपसे पूछती हूँ -क्या हमारी अपनी कोई इच्छा अथवा पसंद नहीं ?
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                     निशा ने देखा -छोटी तो पैर छूना ही नहीं जानती ,न ही चाहती। बड़ी को देखकर भी इधर -उधर देखने लगती। मालिनी को भी अब अज़ीब लगने लगा ,जैसे मैं ही पढ़ी -लिखी गंवार हो गयी हूँ। छोटी को देखो कैसी मस्त रहती है ?अपने मन का करती है ,अपने मन का खाती और पहनती है। और मैं यहां संस्कारों की पोटली लिए बैठी ,नहीं बैठी नहीं, ढ़ो रही हूँ।छोटी की इन हरकतों पर, निशा और शर्मा जी की नज़र थी किन्तु ''गृहक्लेश ''से बचने के लिए शांत थे। बेटे से पूछ रहे थे, कि ये क्या ऐसी ही थी या तेरे साथ जाकर बदल गयी? तुझे उसे समझाना चाहिए। फिर उन्होंने सोचा -ये कुछ दिनों के लिए ही तो आयी है फिर चली जाएगी।  एक दिन तो छोटी ने  लज्जा ,शर्म त्याग ऐसे वस्त्र पहने कि शर्माजी की नज़रें झुक गयीं। रोहित ने उसे बहुत समझाया- कि रिश्तों का तो लिहाज़ करो ,ससुर और बड़े भाई की तो शर्म करो। वो बोली -मैंने किसी का ठेका नहीं लिया ,मेरी जैसी इच्छा होगी ,वैसी रहूँगी। वो छोटी होने के कारण भी रिश्तों को कोई महत्व नहीं दे रही थी। मालिनी को भी उसकी ये हरकतें अच्छी नहीं लग रही थीं किन्तु उसकी इन्हीं हरकतों ने उसे भी सोचने पर मजबूर कर दिया। मेरी भी अपनी ज़िंदगी है ,मेरी भी अपनी पसंद -नापसंद है। मुझे ये सब करने से क्या मिला ?किसी ने मुझे कोई 'ट्रॉफी ''या'' मैडल ''दे दिया।शर्मा जी का छोटा लड़का अपनी पत्नी के व्यवहार से लज्जित हो ,छुट्टियों  से पहले ही, बच्चों की पढ़ाई का बहाना ले चला गया। उन लोगों के जाने के बाद सबने राहत की साँस ली। किन्तु छोटे के परिवार के जाने के बाद भी घर में पहले जैसी बात नहीं आ पा रही थी क्योंकि छोटी बहु कहीं न कहीं जहरीला बीज़ बो गयी थी।  
                सुबह उठकर निशा ने रसोईघर में प्रवेश किया ,देखा रातभर के जूठे बर्तन पड़े हैं। हमारे यहां तो आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि रात के  जूठे बर्तन पड़े रहे हों ,बर्तन वाली आती थी ,नहीं आती तो बहु स्वयं ही माँजकर रख देती थी। निशा मदद भी करती तो मालिनी  मना कर देती। निशा जूठे बर्तन माँजने लगी क्योंकि शर्माजी के लिए चाय बनानी थी। तभी मालिनी वहां आयी और निशा को बर्तन मांजते देख,चुपचाप  अपने मुन्ने के लिए दूध गर्म कर ले गयी। आज निशा ने बहु के इस रूप को पहली बार देखा था। न ही मालिनी ने उन्हें बर्तन मांजने से रोका ,न ही आज उनके पैर छुए। उनकी लाड़ली बहु पर आज किसी दूसरे की सीख असर कर गयी थी। उस पर गलत सोच हावी हो चुकी थी। उन्हें इस बात का दुःख हुआ कि उनका घर बिखर रहा था। अब उसे समझाने पर भी कुछ असर नहीं होता। अब उस पर स्वार्थ हावी हो चुका था ,अपने सभी संस्कार, प्यार ,मान -सम्मान सब भूलती जा रही थी। घर का वातावरण पूर्णतः तनावपूर्ण था। कुछ समझ नहीं आ रहा था, किस तरह वातावरण को पहले की  तरह ख़ुशनुमा बनाया जाये? वो प्रयास भी करतीं तो निष्फल हो जातीं। बहुत दिनों पश्चात ,,आज बुआजी यानि शर्माजी की बहन  घर आयी हैं। आते ही घर में जैसे खुशियाँ आ गयीं जिन्हें निशा इतने दिनों से ढूढ़ने का प्रयत्न कर रही थीं। वो आते ही सबसे गले मिलीं। उनके व्यवहार को देख हिचकते हुए, मालिनी उनके पैर छूने लगी तब उन्होंने बड़े प्रेम से उसे गले लगा लिया और बोलीं -तू तो हमारे घर की लक्ष्मी है ,तू तो सबके दिल में बसी है ,तू पैर नहीं ,तू तो गले लग जा और उन्होंने बड़े जोश से उसे अपने गले लगा लिया। 
                  बुआजी के प्रेम की गर्मी से मालिनी थोड़ा पिघली। बुआजी का आना निशा को अच्छा लगा। रात में निशा बुआजी के  पैर दबाने के उद्देश्य से उनके पास गयी। बुआजी बोलीं -भाभी अब आदत नहीं रही ,तुम भी कब तक इन रस्मों को निभाती रहोगी ?अब उम्र हो चली अब तो बहुओं से पैर दबवाओ। निशा बोली -दीदी जब आपकी इस उम्र में आदत छूट गयी ,मैंने तो आदत ही नहीं डाली ,ऐसी आदत डालने से क्या लाभ ?जो बाद में छुड़ानी पड़े। बुआजी, अपने अनुभव से ताड़ गयीं थीं कि निशा के मन में कुछ न कुछ परेशानी अवश्य ही चल रही है। बुआजी बोलीं -भाभी एक बात बोलूं ,बुरा तो नहीं मानोगी। नहीं ,निशा ने छोटा सा उत्तर दिया। क्या घर में कोई बात है ,जब से मैं आयी हूँ ,तुम कुछ खोयी -खोयी सी हो। निशा  थोड़ी आनाकानी के बाद बताने को तैयार हो गयी। उसके तो दिल पर जैसे बोझ रखा था, और अपने मन का गुब्बार अपनी ननद के सामने निकाल दिया। सारी बातें सुनकर उन्होंने गहरी साँस ली और बोली -मैं कुछ करती हूँ। सुबह बुआजी ने उठते ही ,मालिनी को अपने कमरे में से ही बैठे -बैठे आवाज़ लगाई। जी बुआजी ,कहती हुयी मालिनी कमरे में दाख़िल हुई। अरे बेटा ,तू ही तो इस घर की रौनक है ,तेरे कारण ही घर चल रहा है। मालिनी की गोद में उसका बेटा था ,उसे देख बुआजी बोलीं -अब ये डेढ़ -दो बरस का हो गया। इसे गोद में लेकर मत घुमा कर ,इसे इसके दादी -बाबा के पास छोड़ आ ,वे इसका ख़्याल रख लेंगे। तू भी क्या -क्या करेगी ?इसकी टाँगे भी नीचे घूमने से मजबूत होंगी और जा मेरे लिए चाय भी ले आ। इससे पहले कि वो जाने के लिए मुड़ती ,बुआजी बोलीं -बेटा तू तो पैर छूती ही है ,अपने ये अच्छे संस्कार अपने बच्चे के अंदर भी  डाल। जब तू पैर छुआ करे तो ये तुझे देखकर ही सब करेगा। 
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               ये सब संस्कार तो माँ ही डालती है ,जैसे तुझे सबका आशीर्वाद मिलता है तेरे बेटे को भी मिलेगा। जैसे तू सबके दिलों पर अपने व्यवहार से राज करती है ,ऐसे ही ये शैतान भी करेगा। न चाहते हुए भी मालिनी पैर छूने लगी। बुआजी ने बड़ा सा आशीर्वाद दिया और बोलीं -जा चाय बना ला ,मैं भइया के साथ बैठती हूँ ,वहीं चाय ले आना।शर्मा जी और निशा दोनों साथ ही थे ,बुआजी मुन्ना को लेकर उनके पास आयीं और बोलीं -लो सम्भालो, अपने इस नन्हे शैतान को ,इसे लेकर बहु काम करती है, थक जाती होगी। अब ये गोद में नहीं बल्कि इसे दोनों हाथ पकड़कर घुमाया करो ताकि इसकी टाँगे मजबूत हों। तब तक मालिनी चाय भी ले आई थी। बुआजी तभी तो इसे कुछ सिखायें ,जब ये हमारे पास रहे। सारा दिन तो अपनी माँ को तंग करता है। बुआजी बोलीं-तुम इसके दादी -बाबा हो, ये रिश्ता तो ऊपर वाले ने ही बनाकर  भेजा है ,इसे कोई झुठला नहीं सकता। ये तो ख़ून के रिश्ते होते हैं। इनमें किसी का क्या हस्तक्षेप ?
'बल्कि बहु को तो इसे तुम्हारे पास भेजने पर, अपने लिए भी समय मिल जायेगा। पहले घर का काम करती होगी फिर इसका, तो इसके पास समय कहाँ बचेगा ?मालिनी के मन में ये बात आ गयी ,बुआजी कह तो ठीक ही रहीं हैं। अभी वो सोच ही रही थी कि बुआजी बोलीं -जा मालिनी ,तेल ले आ! आज मैं अपने इस कन्हैया की मालिश करूंगी। जब वो तेल ले आई। वो बोलीं -आ यहीं बैठकर देख ! मालिश करते हुए बोलीं -तुझे पता है ,मैं अपने इसी भाई के पास ज्यादा क्यों आती हूँ ?मालिनी ने नहीं में सिर हिलाया। प्रेम और अपनापन जो मैं यहां महसूस करती हूँ वहाँ नहीं, जबकि उसके पास इससेअधिक पैसा है। ऊपर से तू भी ऐसी संस्कारी। जो संस्कार तेरे माता -पिता ने दिये हैं वो छोटी के माता -पिता ने नहीं दिए होंगे। या  फिर उसने अपने माता -पिता के दिए संस्कारों को ही झुठला दिया। तुझे पता है ,राम और रावण दोनों ने ही मनुष्य योनि में जन्म लिया किन्तु एक आज भी जलाया जाता है और दूसरे के मंदिर बने हैं। जबकि रावण की तो सोने की लंका थी, ज्ञान भी अधिक था, कारण उनके कर्म ,जिन्होंने राम को भगवान बना दिया। मान लो ,तू कार्य  करती है ,तू अपनों का प्यार पाती है। तेरी सास है ,इसके  व्यवहार के कारण ही आज भी मैं इससे मिलने आती हूँ। तुम लोगों का प्यार अपनापन खींच लाता है।  जिससे बुरी यादें जुडी हों उसे स्वप्न में भी कोई याद नहीं करना चाहता बल्कि उसे याद करते हुए दुःख ही होता है। तुम किसी के सुख का कारण न बन सको तो दुःख का कारण तो न बनो। जब लोगों के दिलों में तुम्हारी यादें सुखानुभूति दे जाएँ तो समझो यही तुम्हारा'' मैडल '' और ''ट्रॉफी'' है। 
प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत खूबसूरत लिखा आपने

16 जून 2023

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रचनाएँ
प्रेरक कहानियाँ
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ज़िंदगी में अनेक घटनाएँ -दुर्घटनाइयें,होती हैं,ज़िंदगी जाने -अंजाने अनेक परेशानियों से गुजरती है,इस ज़िंदगी में अनेक रिश्ते भी होते हैं जिनसे हमें कुछ न कुछ सीख मिलती है,सीखने की कोई उम्र नहीं होती चाहे कोई छोटा हो या बड़ा। जीवन में हर पल कुछ न कुछ सीख या प्रेरणा मिल ही जाती है कई बार कुछ सोचने को मजबूर जाती हैं ये कहानियाँ,कई बार आईना दिखा जाती हैं,ये कहानियाँ । इन कहानियों में जीवन के अनेक रंग देखने को मिलेंगे,सही या गलत सोचने पर मजबूर हैं ये कहानियाँ!
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जड़ें

7 नवम्बर 2022
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सुरेश को पढ़ाया -लिखाया ,किसी क़ाबिल बनाने का प्रयत्न किया। वो बाहर गया तो उसे सब बहुत ही अच्छा लगा, बाहर की दुनिया इतनी खूबसूरत है, सब कुछ अच्छा लगता है। उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और बाहर ही रहने का फैसला

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बड़ी बहु

8 नवम्बर 2022
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शर्मा जी के बड़े बेटे का विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ ,बेटा -बहु दोनों पढ़े -लिखे।लड़की का घर -, परिवार के लोग भी बहुत ही अच्छे हैं। सुंदर होने के साथ -साथ , संस्कारी बहु मिली है ,शर्मा जी के तो जैसे भा

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अनदेखा, अनसुना

9 नवम्बर 2022
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प्रातः काल का समय था ,हल्की ठंड भी पड़ रही थी। एक महिला ,अपनी बेटी के संग ,मेरे घर के दरवाज़े पर खड़ी थी। सुबह -सुबह कौन आ गया ?मैंने थोड़ा परेशान होते हुए ,निर्मला को देखने के लिए भेजा। अब मैं

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वो रात......

10 नवम्बर 2022
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वो रात.... वो रात्रि मेरे लिए ही थी ,मेरे लिए ही तो... सभी कार्य हो रहे थे ,सभी मेरे आगे -पीछे घूम रहे थे। उस रात्रि की'' मल्लिका'' मैं ही थी ,कुछ वर्ष पहले ही तो ,मैं अपने' पापा

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दुःस्वपन

11 नवम्बर 2022
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दीप्ती अति शीघ्रता से अपनी बिल्डिंग से नीचे आती है ,और गाड़ी में बैठकर चल देती है। आज वो देर से उठी, जिस कारण उसे देरी हो रही थी। वो अपनी गाड़ी को ,अपने दफ़्तर की ओर ,तेज़ गति से दौड़ा रही थी। आज &nbs

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शापित जीवन

12 नवम्बर 2022
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शापित कोई स्थान ,व्यक्ति अथवा कोई वस्तु नहीं होती ,वरन शापित उसका अपना जीवन ही हो जाता है। जिस जीवन को, वो जी रहा है ,उस जीवन को जीते -जी ठीक से नहीं जी पाता। लोग कहते हैं -''ये जीवन अमूल्य है ''&nbsp

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हद- बेहद

14 नवम्बर 2022
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गोलियों की बौछार का सामना करते हुए, वो आगे बढ़ रहे थे। दुश्मन भी कम नहीं था ,हम उनके लोगों को मारते ,फिर भी न जाने कहाँ से और बढ़ जाते। क्या हमसे कोई खेल खेल रहे थे ?निश्चित स्थान से ,हम आगे

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मेरे साथ ही क्यों?

15 नवम्बर 2022
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बहु.......... जी माँजी ,कहते हुए ,पारुल तेज गति से उनके समीप आई। तुझसे कितनी बार कहा है ?उस बड़े कमरे की सफाई कर देना ,जब

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देर रात

17 नवम्बर 2022
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तृप्ति ,डॉक्टरी की पढ़ाई कर रही थी ,मम्मी -पापा की लाड़ली ,मम्मी का सपना था कि बड़ी होकर ,तृप्ति डॉक्टर बने। वो ''दिल ''की डॉक्टर बनना ,चाह रही थी किन्तु एक समय परिस्थिति ऐसी बनी कि वो जच्चा -बच्चा

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लौटा दो!

19 नवम्बर 2022
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मानिनी'' का जब भी देखो , किसी न किसी बात पर'' मेहुल'' से झगड़ा हो ही जाता है।आज भी मेहुल बिना खाना खाये घर से निकल गया। उसने कहा भी ,कि खाना खाकर जाओ !लेकिन मेहुल ने गुस्से में उसकी किसी भी बात पर

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नई उड़ान

22 नवम्बर 2022
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रमा बड़ी बेचैनी से बार -बार मंच की तरफ देख रही थी ,फिर उठकर अंदर की तरफ चली गयी। वहाँ जाकर देखा- सब ठीक है या नहीं, तभी दीपा के कपड़ों की एक डोर खुली नज़र आई ,उसने दीपा को टोका और अपनी स

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जसोदा

24 नवम्बर 2022
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जसोदा पढ़ी -लिखी नौकरी पेशा महिला है ,माँ -बाप ने खूब चाहा कि ये पढ़े न ,और विवाह करके अपना घर बसा ले, किन्तु उसके तो सपने ही अलग थे और वो इस तरह माता -पिता के दबाव में आने वाली भी नहीं थी। उसने तो पहले

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एकांत

24 नवम्बर 2022
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सुबह के पाँच बज चुके थे ,अलार्म बजे जा रहा था। वो अभी और सोना चाहती थी ,लेकिन क्या करे ? मजबूरी है उठना तो है ही ,फिर लेट हो जाउंगी। ये विचार आते ही उसने फुर्ती से अलार्म बंद किया और एकदम

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एक मुलाकात

22 मई 2023
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आज भी वही हुआ ,जिसका डर था , वो लोग चुपचाप चले गए। नंदिनी तो चाहती थी ,कि अभी जबाब मिल जाये ,किन्तु पति ने समझाया , उन्हें अपने घर जाकर सलाह -मशवरा तो करने दो ,एक -दो दिन में जबाब दे देंगे। सुरेश जी

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वो भयानक रात

23 मई 2023
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बड़ी भयावह वो काली अंधियारी रात्रि थी। मैं उस ठंडी सुनसान काली रात्रि को चीरता चला जा रहा था। ठंड भी अपने पूरे जोरों पर थी। दोस्त ने कहा भी था, आज यहीं आराम कर ले। जब इतनी दूर से आया है तो बेटी को विदा

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मुक्ति

30 मई 2023
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मौली अपने दोस्तों संग मस्त थी ,वो अपने दोस्तों के साथ गोवा घूमने जा रही है ,इसीलिये तैयारी में लगी है ,तभी उसके फोन की घंटी बजी। मौली ने नाम देखा और मुँह बनाते हुए ,फ़ोन पर बातें करने लगी -क्या मम्मी ,

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कड़वाहट

31 मई 2023
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चित्रा, कोई भी त्यौहार हो बड़े जोर -शोर से तैयारी करती है ,अब तो उसके सुहाग का त्यौहार ''करवा चौथ ''आ रहा है। आज बाजार गयी और नये कपडे ,शृंगार का सामान ,साथ ही बच्चों के कपड़े भी ले आई .बड़े उत्साह से

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असीमित आकाश

1 जून 2023
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काम तो प्रतिदिन का है, किन्तु आज रीमा के हाथों में जैसे बिजली लगी है ,वो प्रतिदिन से अधिक फुर्ती से कार्य कर रही है ,वह शीघ्र अति शीघ्र अपना कार्य निपटाने का प्रयत्न कर रही है। हो भी क्यों न ?क्य

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तूफान

2 जून 2023
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नवलकिशोर जी के मन में ,आज 'तूफान 'मचा है ,बाहरी वातावरण भी उसके सामने कोई मायने नहीं रखता। वो बस यूँ ही चले जा रहे हैं। कुछ समझ नहीं आता ,कहाँ जाएँ ,क्या करें ? दुनिया में देखा जाये ,तो आज के समय में

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हिजाब

3 जून 2023
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मानिनी कॉलिज में आती है ,आज तरन्नुम ने आने में देर कर दी। मानिनी और तरन्नुम दोनों अच्छी दोस्त हैं। दोनों ही साथ रहती हैं , एक ही कक्षा में ,साथ ही बैठती हैं। जिस दिन एक भ नहीं आती ,दूसरी का मन नही

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गुल्लक

4 जून 2023
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रेवती अपनी सास की, बड़े मन से सेवा करती थी ,उनकी हर चीज का ध्यान रखती थी ताकि किसी भी प्रकार की उन्हें परेशानी न हो। जब उनकी स्वयं की बहु आ आयीं ,तब भी उनके सम्पूर्ण कार्य स्वयं ही करतीं। उनकी सास यान

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फर्क

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इस माह नौचंदी का मेला लगने वाला है, किन्तु किसी को क्या फ़र्क पड़ता है ? जाना तो है नहीं ,जाकर भी क्या करना ,मेले में जाने के लिए भी तो, पैसा ही चाहिए। मेला तो पैसे से है ,पैसे वाल

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घर की याद

8 जून 2023
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पुलकित आँखें खोलकर देखता है ,वो बगीचे की बेंच पर लेटा था। अब उसे सब स्मरण हो जाता है। किस तरह वो अपने मम्मी -पापा से नाराज होकर ,घर से भाग आया ? पुलकित ऐसे ही किसी छोटे -मोटे परिवार से नहीं है। उसके

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मेरे साथ ही क्यों?

10 जून 2023
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बहु.......... जी माँजी ,कहते हुए ,पारुल तेज गति से उनके समीप आई। तुझसे कितनी बार कहा है ?उस बड़े कमरे की सफाई कर देना ,जब

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टास्क

12 जून 2023
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शादी के बाद उसने ससुराल में कदम रखा ही था ,कि सास के तीखे तेवर और गर्म मिज़ाज उसे कुछ ही दिनों में पता चल गए। उसने देखा कि जिस व्यक्ति से उसका विवाह हुआ है ,वो तो कुछ बोलता ही नहीं। जो चाहता है ,बस

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अधूरापन

14 जून 2023
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सुगंधा पिता के घर में रही ,अरमान तो बहुत थे ,किन्तु पिता के सख़्त कानून के कारण ,न कहीं आना , न कहीं जाना ,इच्छाएँ ,आकाश की अनंत ,ऊंचाइयों को छूना चाहती किन्तु उसका आसमान सीमित था। कुछ तो घर का अनुशा

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मिट्टी के खिलौने

15 जून 2023
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रामदीन कुम्हार ,प्रतिदिन जोहड़ से चिकनी मिटटी लाता और उसे पैरों से रोंद्ता ,जब वो मिटटी बर्तन बनाने लायक हो जाती तो उसे चाक पर रखकर ,बड़े क़रीने से ,सुंदर -सुंदर मिटटी के बर्तन बनाता। ये उसकी कला ही नह

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भाग्य का खेल

16 जून 2023
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आज मैं अपनी डायरी को ज़िंदगी के एक पहलू कहूँ या कुछ और, किन्तु इतना मैं अवश्य जानती हूँ ,उसे हम भाग्य अथवा क़िस्मत कहते है -इनके इशारों पर ही तो ,हमारी ज़िंदगी चलती है। हम सोचते हैं -जो भी कार्य हम कर रह

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माँ

17 जून 2023
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चम्पाकली 'ताई आज बहुत प्रसन्न है क्योकि उनके दो बेटे ,दो ही बहुएं हैं किन्तु ये उनकी प्रसन्नता का कारण नहीं ,उनकी प्रसन्नता का कारण ,उनका दादी बनना है। दोनों बहुएं ही गर्भवती थीं और अब दोनों ही माँ ब

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संगीत प्रेम

20 जून 2023
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काव्या बहुत ही प्यारी बच्ची है ,मन उसका बहुत ही कोमल है ,सबसे प्रेमपूर्ण व्यवहार करती। दुश्मनी ,लड़ाई क्या होती है ?जैसे वो जानती ही नहीं ,उसे तो सभी अपने ही नजर आते ,छल -कपट से तो उसका दूर -दूर तक वास

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समुद्र तट

22 जून 2023
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कार्तिक और मोना प्रतिदिन , अपने दफ्तर से आते समय कुछ देर ,समुन्द्र के तट पर बैठकर अपनी दिनभर की थकान मिटाते। मोना जब पहली बार अपने दफ्तर में आई ,तब उसकी सबसे पहले मुलाक़ात कार्तिक से ही हुई। कार्तिक न

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दरार

23 जून 2023
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पार्वती जी ,दुखी परेशान ,अपने कमरे में आती हैं और अपने पलंग पर बैठकर ,गहरी स्वांस भरती हैं और अपनी आँखें बंद कर लेती हैं। मैं कितना भी अच्छा सोच लूँ या कर लूँ ?किन्तु इसे अपना नहीं बना सकती ,ये 'दरा

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पहाड़ी प्रेम

29 जून 2023
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ज्योति...... ओ ज्योति....... ! दूर से आती, मौसी की आवाज सुनाई दी। आई मौसी ! कहकर मैं बंसी से बोली -कल आउंगी तब खेलेंगे ,अब मौसी बुला रही है। बंसी ने हाँ में गर्दन हिलाई और मैं ,दौड़ते हुए मौसी के

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भूतों से बातचीत

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नंदिनी जैसे ही , अपनी कक्षा में पहुंची -उसने देखा ,सभी बच्चे ,तुषार की सीट के पास खड़े हैं। ये सब क्या हो रहा है ?सभी बच्चे वहाँ क्या कर रहे हैं ? नंदिनी को देखते ही ,सभी बच्चे दौड़कर अपनी -अपनी सीट पर

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पैसा

2 जुलाई 2023
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रतनलाल जी ने कितना पैसा कमाया ? रात -दिन एक कर दिया। शानदार कोठी भी बनाई ,बच्चों को महंगे से महंगे स्कूल में पढ़ाया। सबकुछ तो उनके पास है ,किसी चीज की भी कमी नहीं ,पत्नी के पास भी जेवरों की कोई कमी नह

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गड़बड़ घोटाला

3 जुलाई 2023
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मैं प्रतिदिन की तरह ,जब परिवार के सभी सदस्य अपने -अपने काम पर चले जाते ,तब घर की साफ -सफाई और बाहर बगीचे में पानी देना जैसे कार्य करती। एक दिन जब मैं अपने पौधों को पानी दे रही थी ,तभी मैंने देखा ,स्क

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रिश्तेदार जलते हैं!

4 जुलाई 2023
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कितनी ख़ुशी की बात है ?कीर्ति तुमने पढ़ाई पूरी करने के साथ -साथ ,तुम्हारी नौकरी भी लग गयी। एक पार्टी तो अवश्य बनती है। क्या ख़ाक पार्टी बनती है ?तुम सभी दोस्तों को ही पार्टी दूंगी ,मम्मी -पापा के लि

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कीमत, समय की

7 जुलाई 2023
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अतुल बहुत ही बिगड़ैल और अड़ियल है ,देखने में तो वो बहुत जचँता है ,उसे देखेंगे तो कह उठेंगे कि किसी बड़े घर का बेटा हो लेकिन उसका स्वभाव उसकी शक़्ल और व्यक्तित्व से बिल्कुल विपरीत है। वो न ही किसी की बात

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कीमती

9 जुलाई 2023
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राधा जब ,मोहन से मिली ,उसे देखते ही , अपना दिल दे बैठी ,मोहन की हालत भी कुछ ऐसी ही थी। पहली बार दोनों ,राधा की सहेली के घर पर,उसकी जन्मदिन की पार्टी में ,उससे मिली। जितनी खूबसूरत राधा लग रही थी, उतना

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मृत्यु पर विजय

10 जुलाई 2023
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पल -पल मरता है ,इंसान ! जीने की तमन्ना में ! टूटता है ,बिखरता है, जिन्दा रहने की चाह में !खो देता है ,अपनों का साथ ,जीता है स्वांसों में !स्वांसों का ही खेल है , जिन्दा रहने की आस में !कुछ लोग जी

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भूतिया हवेली

12 जुलाई 2023
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श.... श.... श.... श.... आज आपको एक''अज़ीबो ग़रीब प्रेम की '' कहानी सुनाती हूँ। जानते हैं ,ये जो हवेली है ,ठाकुरों की है ,बहुत ही रुआब था। ठाकुर ''बलदेव सिंह '' अपने नाम की तरह ही बलवान ,बुद्धिमान और रौब

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सुरक्षा कवच

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माँ 'तुम अब यहाँ ,अकेली क्या करोगी ? अब तुम भी हमारे संग चलकर रहो !अनंत अपनी माँ से बोला। बेटा ! सम्पूर्ण ज़िंदगी इस शहर में बिता दी ,अब इधर -उधर जाकर क्या करूंगी ? जब तू छोटा था ,तब सोचा करती थी

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बदलते रंग

16 जुलाई 2023
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आज घर में खीर -पूरी ,मालपुए दो सब्ज़ियाँ और बूँदी का रायता बना है क्योंकि आज बहुओं का व्रत है ,आज के दिन सुहागन महिलायें अपने पति की लम्बी उम्र ,और अच्छे स्वास्थ के लिए पूजा करती हैं और अपने घर की बड़ी

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वो सुबह!

17 जुलाई 2023
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कितना सुहावना मौसम है ?रंजन अपने बच्चों से कहता है -चलो !आज कहीं घूमने चलते हैं। बाहर हल्की - हल्की बूंदा -बांदी हो रही थी। बच्चे खुश हो जाते हैं और दौड़कर अपनी मम्मी के पास जाते हैं। मम्मी ! पापा कह

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लडाई

19 जुलाई 2023
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श्रेया ,अपने आप से ही , कितना लड़ रही थी ? ये तो वो ही जानती है।अब तो जीवनभर संघर्ष ही करना है। पहले पढ़ाई में संघर्ष किया क्या विषय लेने हैं ,कौन सा स्कूल चुनना है ? स्कूल में भी ,प्रतिशत में नंबर लाने

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सूर्यास्त और हम

20 जुलाई 2023
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रामलाल जी के घर में ,फोन की घंटी बज रही थी ,उनके बेटे की बहु फोन उठाती है और रामलाल जी से कहती है -पापा जी !आपका फोन है। किसका है ? पूछो कौन है ?और क्या कहना चाहता है ?शिरोमणि अंकल हैं ,और आपसे

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धड़कन

21 जुलाई 2023
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पंकज हमेशा अपनी ही चलाता है , किसी की भी नहीं सुनता ,सुमित्रा जी हमेशा ,एक उम्मीद के सहारे आगे बढ़ उसका समर्थन करतीं और कहतीं -पंकज ,अभी बच्चा है ,समझदार हो जायेगा ,तब सब समझने लगेगा ,कहना भी मानेगा कि

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मेन्ढकी

22 जुलाई 2023
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गर्मी से बुरी हालत थी ,नहाते -नहाते भी पसीने आ जाते। खेती पर काम करने वाले भी खेतों से ,वापस आ गए। सभी को ,बरसात की इच्छा हो चली थी। आपस में कहते -न जाने बरसात कब होगी ?यदि शीघ्र ही बरसात नहीं हुई तो

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बरसात

23 जुलाई 2023
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बरसात का मौसम ''आते ही मन झूमने लगता है ,बारिश की ठंडी -ठंडी फुहार तन को ही नहीं ,मन को भी भिगो जाती हैं। चारों तरफ धुली -धुलि सी ,हरियाली ,लगता है जैसे ,प्रकृति ने धानी चुनर ओढ़ ली हो। बच्चों की तो बर

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एक ही गलती

25 जुलाई 2023
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सुधा खिड़की के पास बैठी ,चाय पी रही थी ,तभी उसकी बेटी ने उसे पुकारा ,मम्मी ,मैंने अपना गृहकार्य कर लिया। ठीक है ,जाओ !अब जाकर बाहर बच्चों के साथ खेल लो !ठीक है ,कहकर वो बाहर की तरफ दौड़ी ,तभी सुधा ने उस

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