शर्मा जी के बड़े बेटे का विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ ,बेटा -बहु दोनों पढ़े -लिखे।लड़की का घर -, परिवार के लोग भी बहुत ही अच्छे हैं। सुंदर होने के साथ -साथ , संस्कारी बहु मिली है ,शर्मा जी के तो जैसे भाग [भाग्य ]ही खुल गए। शर्माजी मन ही मन प्रसन्न हैं किन्तु वे सोचते हैं- ये सब कहने -सुनने की बातें हैं। जब बहु आ जाएँ , घर -परिवार को अपना बना ले ,परिवार के लोगों में घुल -मिल जाएँ ,तब समझो कि बहु अच्छी है। निशा कहती -आप तो नाहक़ ही चिंता करते हैं ,जब हम उसे बेटी बनाकर लाये हैं और अपनी बेटी मानेंगे, तो क्यों वो ग़लत व्यवहार करेगी ?कुछ अपना व्यवहार भी होता है कि नहीं और फिर आपने देखा नहीं ,उसके परिवार में कितने सज्जन लोग हैं ?उनके दिए संस्कार भी तो होंगे। मैं मन ही मन सोच रहा था -निशा की सोच में कितनी सकारात्मकता है ?फिर मैं ही क्यों गलत सोच रहा हूँ ?अपने व्यवहार से भी तो होता है , किन्तु सक्सेना जी के घर का हाल देखता हूँ ,तो एकाएक विश्वास नहीं होता कि आजकल की बहुएँ सही निकल जायें तो अपने को ''बड़भागी ''मानो। किन्तु निशा की बात भी सही है विश्वास तो करना ही होगा। दूसरे का सोचकर ,दूसरे व्यक्ति को जब तक परख न लो उसके प्रति गलत सोच रखना भी तोशर्मा जी के बड़े बेटे का विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ ,बेटा -बहु दोनों पढ़े -लिखे।लड़की का घर -, परिवार के लोग भी बहुत ही अच्छे हैं। सुंदर होने के साथ -साथ , संस्कारी बहु मिली है ,शर्मा जी के तो जैसे भाग [भाग्य ]ही खुल गए। शर्माजी मन ही मन प्रसन्न हैं किन्तु वे सोचते हैं- ये सब कहने -सुनने की बातें हैं। जब बहु आ जाएँ , घर -परिवार को अपना बना ले ,परिवार के लोगों में घुल -मिल जाएँ ,तब समझो कि बहु अच्छी है। निशा कहती -आप तो नाहक़ ही चिंता करते हैं ,जब हम उसे बेटी बनाकर लाये हैं और अपनी बेटी मानेंगे, तो क्यों वो ग़लत व्यवहार करेगी ?कुछ अपना व्यवहार भी होता है कि नहीं और फिर आपने देखा नहीं ,उसके परिवार में कितने सज्जन लोग हैं ?उनके दिए संस्कार भी तो होंगे। मैं मन ही मन सोच रहा था -निशा की सोच में कितनी सकारात्मकता है ?फिर मैं ही क्यों गलत सोच रहा हूँ ?अपने व्यवहार से भी तो होता है , किन्तु सक्सेना जी के घर का हाल देखता हूँ ,तो एकाएक विश्वास नहीं होता कि आजकल की बहुएँ सही निकल जायें तो अपने को ''बड़भागी ''मानो। किन्तु निशा की बात भी सही है विश्वास तो करना ही होगा। दूसरे का सोचकर ,दूसरे व्यक्ति को जब तक परख न लो उसके प्रति गलत सोच रखना भी तो
अन्याय है। निशा जी की बात सही निकली ,हमारी बहु बहुत ही गुणी और समझदार थी ,उसने घर की सभी जिम्मेदारियां संभाल ली थीं। नौकरी करने के कारण, जितना भी समय उसे मिलता घर की जिम्मेदारियों को संभालती। निशा भी उसका ख़्याल रखती ,काम में उसकी मदद करती। शाम को दफ्तर से आ जाती तो उसे आराम करने के लिए कहती ,उसे चाय भी बनाकर दे देती। दोनों ही बड़े प्यार से काम करतीं और एक -दूसरे का ख़्याल भी रखतीं। आज मुझे लग रहा था कि निशा ठीक ही कह रही थी - अपने -आप से,अपने व्यवहार का भी असर होता है। हर काम सही समय पर हो जाता, किन्तु मैंने देखा -निशा कुछ ज्यादा ही मेहनत कर रही थी। क्या वो रिश्तों को जोड़े रखने के प्रयास में ,उन्हें बनाये रखने के लिए ,अपना अधिक समय और कोशिश कर रही है।
एक दिन मैंने कहा भी -बहु से ज्यादा तो तुम काम कर रही हो ,वो बोली -नहीं वो भी काम करती है। मैंने कभी बहु और निशा की नोंक -झोंक नहीं सुनी। मुझे तो तब विश्वास हुआ -जब बहु ने, निशा के बिमार हो जाने पर उसकी खूब सेवा की और अपने दफ्तर से भी छुट्टी ले ली।शर्मा जी बोले -ये सेवा इसीलिए हो रही है ताकि तुम शीघ्र स्वस्थ हो जाओ और काम कर सको । उसकी सेवा से प्रसन्न होकर निशा बोली -आप बहु पर विश्वास क्यों नहीं कर पा रहे है ?तब शर्मा जी बोले -सक्सेना की बहु ने उनसे सारा काम करवाया और उन्हें अंत में घर से बाहर कर दिया। निशा हंसकर बोली -देखिये ,सभी लोग एक जैसे नहीं होते ,सभी के स्वभाव भी अलग होते हैं ,सोच अलग होती है ,हम सभी को एक तराजू में नहीं तौल सकते। इसीलिए आप भी बहु पर अविश्वास करना बंद कीजिये। बड़े बेटे के विवाह को तीन -चार वर्ष बीत गये। एक पोता भी ,अब हमारी गोद में खेल रहा है।बहु पहले से और अधिक ज़िम्मेदार हो गयी। सुबह पैर छूकर चाय दे जाती। निशा अन्य कार्यों में व्यस्त रहती। अब मेरा विश्वास भी बढ़ने लगा था ,छोटे बेटे ने भी अपना कोर्स पूरा कर नौकरी पर लग गया। उसके रिश्ते भी आने लगे ,अब तो दिल चाहता जैसी बड़ी बहु आ गयी ,छोटे की भी ऐसी आ जाएँ तो हम'' गंगा नहा लें '' हमारा जन्म सफल हो जाये। बहुत तलाशने पर एक लड़की पसंद भी की गयी ,विवाह के पश्चात ,छोटी बहु अपने पति के साथ दूसरे शहर नौकरी पर चली गयी। शुरू -शुरू में ,कुछ दिन छोटी बहु ने भी बड़ी बहु की देखा- देखी व्यवहार किया। दोनों बहुओं को देख लगा -'जन्म सफल हो गया ,ख़ुशी -ख़ुशी दोनों पति -पत्नी नौकरी पर भेजा। ज़िंदगी इतनी आसान होती ,तो हर कोई संघर्ष नहीं करता ,लोग इतने अच्छे होते तो अविश्वास का तो अस्तित्व ही समाप्त हो जाता। कुछ स्वार्थी लोगों के कारण ही तो अविश्वास का प्रभुत्व अभी क़ायम है। बड़ी बहु घूमने के उद्देश्य से ,छोटी के पास गयी। जब दोनों पति -पत्नी घूमकर आये तो बहु के व्यवहार में परिवर्तन लगा किन्तु हमें तो उस पर विश्वास था, इसीलिए ध्यान नहीं दिया।
कुछ समय पश्चात या यूँ कहें ,कुछ वर्ष ही बीते होंगे। छोटी को अपने भाई के विवाह के लिए यहाँ आना पड़ा और गर्मियों की छुट्टी बिताने के उद्देश्य से यहीं रह गयी। शर्माजी निशा से बोले -तुम्हारे घुटनों में दर्द है ,अब तो थोड़ा आराम कर लो। कम से कम दो बहुओं का सुख लो। निशा ने मेरी बात मान ली। अगले दिन जब वो उठीं तो सिर में भारीपन था ,सोचा शायद ठीक से नींद नहीं आई ,उम्र के साथ नींद भी तो कम हो ही जाती है। थोड़ी चाय पियूँगी तो ठीक हो जायेगा। इंतजार था, कि कोई सी भी बहु चाय तो लेकर ही आयेगी ,बहुत इंतजार के छोटी बहु चाय लेकर आयी -निशा बिस्तर से उठने का प्रयत्न कर ही रहीं थीं ,छोटी ने उन्हें उठाने में मदद भी नहीं की और चाय पास की मेज़ पर रखकर बोली -मम्मी घर में इतने काम हैं ,कम से कम आप उठकर अपनी चाय बना नहीं सकतीं तो लेकर तो आ ही सकती हो। निशा उसका मुँह देखने लगी। न ही पैर छुए अथवा अंग्रेजी में '' गुड मॉर्निग ''ही करती।निशा ने उसकी बातों को नज़रअंदाज कर बोलीं -बेटा !''गुड मॉर्निंग ''वे उसे याद दिलाना चाहती थीं कि बड़ों से मिलने पर अभिवादन करते हैं ,उसके जबाब का उन्होंने इंतजार नहीं किया ,बोलीं -आज थोड़ा सिर में भारीपन है ,इसीलिए उठने में थोड़ी दिक्क़त हो रही है। जब वो बैठ गईं ,उन्होंने चाय के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया ,तब तक छोटी जा चुकी थी। उसके इस व्यवहार से उन्हें दुःख हुआ। सोचा ,शुरू से ही अलग रहने लगी ,परिवार के तौर -तरीक़े या तो आते नहीं या भूल गयी। बड़ी बहु 'आई उसे देख उनके मन में प्रसन्नता छा गयी। बोलीं -मालिनी बेटा ,कोई सिर दर्द की दवाई हो तो देना। मालिनी पहले ही दवाई लेकर आई थी थी ,बोली -छोटी ने बताया ,मम्मीजी के सिर में दर्द है इसीलिए दवाई ले आई। निशा को जो दुःख छोटी की बातों से हुआ था उस पर मालिनी ने जैसे अपने व्यवहार से मरहम लगा दिया। एक घंटे के आराम के पश्चात वो पूर्णतः स्वस्थ हो गयीं।
छोटी को उन दोनों का इस तरह प्रेम से रहना रास नहीं आया और बोली -दीदी ,आप भी कितनी मेहनत करती हैं ?साथ में बच्चा भी। इतना सब कैसे कर लेती हैं ?ना बाबा ना मुझसे तो ये सब नहीं हो पायेगा। मालिनी बोली -तुमने देखा नहीं ,मम्मी जी तो इस उम्र में भी काम में ही लगी रहती हैं और अधिक से अधिक काम करने का प्रयत्न करती हैं। हम तो उनसे जवान हैं , उनका काम इतना कहाँ होता है ?वे तो उल्टे हमारे काम में ही हमारी मदद करती हैं। पापाजी तो उन्हें आराम करने के लिए डांटते ही रहते हैं किन्तु वो फिर भी लगी रहतीं हैं। छोटी बोली -ऐसा आपको लगता है ,क्योंकि इतना काम करने की आपकी आदत जो बन गयी है। देखो ,जरा अपनी हालत। न ही फ़िल्म देखने जाती हो ,न ही कोई किट्टी ,घर से दफ़्तर ,दफ़्तर से घर ,बस यही ज़िंदगी रह गयी है। न कहीं घूमने जाना ,अपने लिए भी तो थोड़ा समय निकालिये। ये ही उम्र तो है घूमने -फिरने की ,फिर कब जाएँगी ? उसकी बातें मालिनी के दिल को लग रहीं थीं और वो चुप हो गयी। मालिनी को चुप देख ,छोटी ने अपनी बात बड़ी की और बोली -बताओ तो जरा ''सौंदर्य सज्जा ''के लिए कब गयीं थीं ?इस बार मालिनी बोली -अभी एक सप्ताह पहले ,हम किसी के यहाँ विवाह में गए थे, तब। चलो मान लिया ,गयी थीं किन्तु हम महिलाओं को भी तो आज़ादी चाहिए ,क्या हम अपनी ज़िंदगी यूँ ही खफाने के लिए पैदा हुए हैं ?इन ससुराल वालों का क्या है ?जब तक इनकी हाँ में हाँ मिलाकर काम करते रहोगे तो बहु अच्छी। नहीं किया और अपने अधिकार की बात की ,तो बहु खराब। मैं आपसे पूछती हूँ -क्या हमारी अपनी कोई इच्छा अथवा पसंद नहीं ?
निशा ने देखा -छोटी तो पैर छूना ही नहीं जानती ,न ही चाहती। बड़ी को देखकर भी इधर -उधर देखने लगती। मालिनी को भी अब अज़ीब लगने लगा ,जैसे मैं ही पढ़ी -लिखी गंवार हो गयी हूँ। छोटी को देखो कैसी मस्त रहती है ?अपने मन का करती है ,अपने मन का खाती और पहनती है। और मैं यहां संस्कारों की पोटली लिए बैठी ,नहीं बैठी नहीं, ढ़ो रही हूँ।छोटी की इन हरकतों पर, निशा और शर्मा जी की नज़र थी किन्तु ''गृहक्लेश ''से बचने के लिए शांत थे। बेटे से पूछ रहे थे, कि ये क्या ऐसी ही थी या तेरे साथ जाकर बदल गयी? तुझे उसे समझाना चाहिए। फिर उन्होंने सोचा -ये कुछ दिनों के लिए ही तो आयी है फिर चली जाएगी। एक दिन तो छोटी ने लज्जा ,शर्म त्याग ऐसे वस्त्र पहने कि शर्माजी की नज़रें झुक गयीं। रोहित ने उसे बहुत समझाया- कि रिश्तों का तो लिहाज़ करो ,ससुर और बड़े भाई की तो शर्म करो। वो बोली -मैंने किसी का ठेका नहीं लिया ,मेरी जैसी इच्छा होगी ,वैसी रहूँगी। वो छोटी होने के कारण भी रिश्तों को कोई महत्व नहीं दे रही थी। मालिनी को भी उसकी ये हरकतें अच्छी नहीं लग रही थीं किन्तु उसकी इन्हीं हरकतों ने उसे भी सोचने पर मजबूर कर दिया। मेरी भी अपनी ज़िंदगी है ,मेरी भी अपनी पसंद -नापसंद है। मुझे ये सब करने से क्या मिला ?किसी ने मुझे कोई 'ट्रॉफी ''या'' मैडल ''दे दिया।शर्मा जी का छोटा लड़का अपनी पत्नी के व्यवहार से लज्जित हो ,छुट्टियों से पहले ही, बच्चों की पढ़ाई का बहाना ले चला गया। उन लोगों के जाने के बाद सबने राहत की साँस ली। किन्तु छोटे के परिवार के जाने के बाद भी घर में पहले जैसी बात नहीं आ पा रही थी क्योंकि छोटी बहु कहीं न कहीं जहरीला बीज़ बो गयी थी।
सुबह उठकर निशा ने रसोईघर में प्रवेश किया ,देखा रातभर के जूठे बर्तन पड़े हैं। हमारे यहां तो आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि रात के जूठे बर्तन पड़े रहे हों ,बर्तन वाली आती थी ,नहीं आती तो बहु स्वयं ही माँजकर रख देती थी। निशा मदद भी करती तो मालिनी मना कर देती। निशा जूठे बर्तन माँजने लगी क्योंकि शर्माजी के लिए चाय बनानी थी। तभी मालिनी वहां आयी और निशा को बर्तन मांजते देख,चुपचाप अपने मुन्ने के लिए दूध गर्म कर ले गयी। आज निशा ने बहु के इस रूप को पहली बार देखा था। न ही मालिनी ने उन्हें बर्तन मांजने से रोका ,न ही आज उनके पैर छुए। उनकी लाड़ली बहु पर आज किसी दूसरे की सीख असर कर गयी थी। उस पर गलत सोच हावी हो चुकी थी। उन्हें इस बात का दुःख हुआ कि उनका घर बिखर रहा था। अब उसे समझाने पर भी कुछ असर नहीं होता। अब उस पर स्वार्थ हावी हो चुका था ,अपने सभी संस्कार, प्यार ,मान -सम्मान सब भूलती जा रही थी। घर का वातावरण पूर्णतः तनावपूर्ण था। कुछ समझ नहीं आ रहा था, किस तरह वातावरण को पहले की तरह ख़ुशनुमा बनाया जाये? वो प्रयास भी करतीं तो निष्फल हो जातीं। बहुत दिनों पश्चात ,,आज बुआजी यानि शर्माजी की बहन घर आयी हैं। आते ही घर में जैसे खुशियाँ आ गयीं जिन्हें निशा इतने दिनों से ढूढ़ने का प्रयत्न कर रही थीं। वो आते ही सबसे गले मिलीं। उनके व्यवहार को देख हिचकते हुए, मालिनी उनके पैर छूने लगी तब उन्होंने बड़े प्रेम से उसे गले लगा लिया और बोलीं -तू तो हमारे घर की लक्ष्मी है ,तू तो सबके दिल में बसी है ,तू पैर नहीं ,तू तो गले लग जा और उन्होंने बड़े जोश से उसे अपने गले लगा लिया।
बुआजी के प्रेम की गर्मी से मालिनी थोड़ा पिघली। बुआजी का आना निशा को अच्छा लगा। रात में निशा बुआजी के पैर दबाने के उद्देश्य से उनके पास गयी। बुआजी बोलीं -भाभी अब आदत नहीं रही ,तुम भी कब तक इन रस्मों को निभाती रहोगी ?अब उम्र हो चली अब तो बहुओं से पैर दबवाओ। निशा बोली -दीदी जब आपकी इस उम्र में आदत छूट गयी ,मैंने तो आदत ही नहीं डाली ,ऐसी आदत डालने से क्या लाभ ?जो बाद में छुड़ानी पड़े। बुआजी, अपने अनुभव से ताड़ गयीं थीं कि निशा के मन में कुछ न कुछ परेशानी अवश्य ही चल रही है। बुआजी बोलीं -भाभी एक बात बोलूं ,बुरा तो नहीं मानोगी। नहीं ,निशा ने छोटा सा उत्तर दिया। क्या घर में कोई बात है ,जब से मैं आयी हूँ ,तुम कुछ खोयी -खोयी सी हो। निशा थोड़ी आनाकानी के बाद बताने को तैयार हो गयी। उसके तो दिल पर जैसे बोझ रखा था, और अपने मन का गुब्बार अपनी ननद के सामने निकाल दिया। सारी बातें सुनकर उन्होंने गहरी साँस ली और बोली -मैं कुछ करती हूँ। सुबह बुआजी ने उठते ही ,मालिनी को अपने कमरे में से ही बैठे -बैठे आवाज़ लगाई। जी बुआजी ,कहती हुयी मालिनी कमरे में दाख़िल हुई। अरे बेटा ,तू ही तो इस घर की रौनक है ,तेरे कारण ही घर चल रहा है। मालिनी की गोद में उसका बेटा था ,उसे देख बुआजी बोलीं -अब ये डेढ़ -दो बरस का हो गया। इसे गोद में लेकर मत घुमा कर ,इसे इसके दादी -बाबा के पास छोड़ आ ,वे इसका ख़्याल रख लेंगे। तू भी क्या -क्या करेगी ?इसकी टाँगे भी नीचे घूमने से मजबूत होंगी और जा मेरे लिए चाय भी ले आ। इससे पहले कि वो जाने के लिए मुड़ती ,बुआजी बोलीं -बेटा तू तो पैर छूती ही है ,अपने ये अच्छे संस्कार अपने बच्चे के अंदर भी डाल। जब तू पैर छुआ करे तो ये तुझे देखकर ही सब करेगा।
ये सब संस्कार तो माँ ही डालती है ,जैसे तुझे सबका आशीर्वाद मिलता है तेरे बेटे को भी मिलेगा। जैसे तू सबके दिलों पर अपने व्यवहार से राज करती है ,ऐसे ही ये शैतान भी करेगा। न चाहते हुए भी मालिनी पैर छूने लगी। बुआजी ने बड़ा सा आशीर्वाद दिया और बोलीं -जा चाय बना ला ,मैं भइया के साथ बैठती हूँ ,वहीं चाय ले आना।शर्मा जी और निशा दोनों साथ ही थे ,बुआजी मुन्ना को लेकर उनके पास आयीं और बोलीं -लो सम्भालो, अपने इस नन्हे शैतान को ,इसे लेकर बहु काम करती है, थक जाती होगी। अब ये गोद में नहीं बल्कि इसे दोनों हाथ पकड़कर घुमाया करो ताकि इसकी टाँगे मजबूत हों। तब तक मालिनी चाय भी ले आई थी। बुआजी तभी तो इसे कुछ सिखायें ,जब ये हमारे पास रहे। सारा दिन तो अपनी माँ को तंग करता है। बुआजी बोलीं-तुम इसके दादी -बाबा हो, ये रिश्ता तो ऊपर वाले ने ही बनाकर भेजा है ,इसे कोई झुठला नहीं सकता। ये तो ख़ून के रिश्ते होते हैं। इनमें किसी का क्या हस्तक्षेप ?
'बल्कि बहु को तो इसे तुम्हारे पास भेजने पर, अपने लिए भी समय मिल जायेगा। पहले घर का काम करती होगी फिर इसका, तो इसके पास समय कहाँ बचेगा ?मालिनी के मन में ये बात आ गयी ,बुआजी कह तो ठीक ही रहीं हैं। अभी वो सोच ही रही थी कि बुआजी बोलीं -जा मालिनी ,तेल ले आ! आज मैं अपने इस कन्हैया की मालिश करूंगी। जब वो तेल ले आई। वो बोलीं -आ यहीं बैठकर देख ! मालिश करते हुए बोलीं -तुझे पता है ,मैं अपने इसी भाई के पास ज्यादा क्यों आती हूँ ?मालिनी ने नहीं में सिर हिलाया। प्रेम और अपनापन जो मैं यहां महसूस करती हूँ वहाँ नहीं, जबकि उसके पास इससेअधिक पैसा है। ऊपर से तू भी ऐसी संस्कारी। जो संस्कार तेरे माता -पिता ने दिये हैं वो छोटी के माता -पिता ने नहीं दिए होंगे। या फिर उसने अपने माता -पिता के दिए संस्कारों को ही झुठला दिया। तुझे पता है ,राम और रावण दोनों ने ही मनुष्य योनि में जन्म लिया किन्तु एक आज भी जलाया जाता है और दूसरे के मंदिर बने हैं। जबकि रावण की तो सोने की लंका थी, ज्ञान भी अधिक था, कारण उनके कर्म ,जिन्होंने राम को भगवान बना दिया। मान लो ,तू कार्य करती है ,तू अपनों का प्यार पाती है। तेरी सास है ,इसके व्यवहार के कारण ही आज भी मैं इससे मिलने आती हूँ। तुम लोगों का प्यार अपनापन खींच लाता है। जिससे बुरी यादें जुडी हों उसे स्वप्न में भी कोई याद नहीं करना चाहता बल्कि उसे याद करते हुए दुःख ही होता है। तुम किसी के सुख का कारण न बन सको तो दुःख का कारण तो न बनो। जब लोगों के दिलों में तुम्हारी यादें सुखानुभूति दे जाएँ तो समझो यही तुम्हारा'' मैडल '' और ''ट्रॉफी'' है।
अन्याय है। निशा जी की बात सही निकली ,हमारी बहु बहुत ही गुणी और समझदार थी ,उसने घर की सभी जिम्मेदारियां संभाल ली थीं। नौकरी करने के कारण, जितना भी समय उसे मिलता घर की जिम्मेदारियों को संभालती। निशा भी उसका ख़्याल रखती ,काम में उसकी मदद करती। शाम को दफ्तर से आ जाती तो उसे आराम करने के लिए कहती ,उसे चाय भी बनाकर दे देती। दोनों ही बड़े प्यार से काम करतीं और एक -दूसरे का ख़्याल भी रखतीं। आज मुझे लग रहा था कि निशा ठीक ही कह रही थी - अपने -आप से,अपने व्यवहार का भी असर होता है। हर काम सही समय पर हो जाता, किन्तु मैंने देखा -निशा कुछ ज्यादा ही मेहनत कर रही थी। क्या वो रिश्तों को जोड़े रखने के प्रयास में ,उन्हें बनाये रखने के लिए ,अपना अधिक समय और कोशिश कर रही है।
एक दिन मैंने कहा भी -बहु से ज्यादा तो तुम काम कर रही हो ,वो बोली -नहीं वो भी काम करती है। मैंने कभी बहु और निशा की नोंक -झोंक नहीं सुनी। मुझे तो तब विश्वास हुआ -जब बहु ने, निशा के बिमार हो जाने पर उसकी खूब सेवा की और अपने दफ्तर से भी छुट्टी ले ली।शर्मा जी बोले -ये सेवा इसीलिए हो रही है ताकि तुम शीघ्र स्वस्थ हो जाओ और काम कर सको । उसकी सेवा से प्रसन्न होकर निशा बोली -आप बहु पर विश्वास क्यों नहीं कर पा रहे है ?तब शर्मा जी बोले -सक्सेना की बहु ने उनसे सारा काम करवाया और उन्हें अंत में घर से बाहर कर दिया। निशा हंसकर बोली -देखिये ,सभी लोग एक जैसे नहीं होते ,सभी के स्वभाव भी अलग होते हैं ,सोच अलग होती है ,हम सभी को एक तराजू में नहीं तौल सकते। इसीलिए आप भी बहु पर अविश्वास करना बंद कीजिये। बड़े बेटे के विवाह को तीन -चार वर्ष बीत गये। एक पोता भी ,अब हमारी गोद में खेल रहा है।बहु पहले से और अधिक ज़िम्मेदार हो गयी। सुबह पैर छूकर चाय दे जाती। निशा अन्य कार्यों में व्यस्त रहती। अब मेरा विश्वास भी बढ़ने लगा था ,छोटे बेटे ने भी अपना कोर्स पूरा कर नौकरी पर लग गया। उसके रिश्ते भी आने लगे ,अब तो दिल चाहता जैसी बड़ी बहु आ गयी ,छोटे की भी ऐसी आ जाएँ तो हम'' गंगा नहा लें '' हमारा जन्म सफल हो जाये। बहुत तलाशने पर एक लड़की पसंद भी की गयी ,विवाह के पश्चात ,छोटी बहु अपने पति के साथ दूसरे शहर नौकरी पर चली गयी। शुरू -शुरू में ,कुछ दिन छोटी बहु ने भी बड़ी बहु की देखा- देखी व्यवहार किया। दोनों बहुओं को देख लगा -'जन्म सफल हो गया ,ख़ुशी -ख़ुशी दोनों पति -पत्नी नौकरी पर भेजा। ज़िंदगी इतनी आसान होती ,तो हर कोई संघर्ष नहीं करता ,लोग इतने अच्छे होते तो अविश्वास का तो अस्तित्व ही समाप्त हो जाता। कुछ स्वार्थी लोगों के कारण ही तो अविश्वास का प्रभुत्व अभी क़ायम है। बड़ी बहु घूमने के उद्देश्य से ,छोटी के पास गयी। जब दोनों पति -पत्नी घूमकर आये तो बहु के व्यवहार में परिवर्तन लगा किन्तु हमें तो उस पर विश्वास था, इसीलिए ध्यान नहीं दिया।
कुछ समय पश्चात या यूँ कहें ,कुछ वर्ष ही बीते होंगे। छोटी को अपने भाई के विवाह के लिए यहाँ आना पड़ा और गर्मियों की छुट्टी बिताने के उद्देश्य से यहीं रह गयी। शर्माजी निशा से बोले -तुम्हारे घुटनों में दर्द है ,अब तो थोड़ा आराम कर लो। कम से कम दो बहुओं का सुख लो। निशा ने मेरी बात मान ली। अगले दिन जब वो उठीं तो सिर में भारीपन था ,सोचा शायद ठीक से नींद नहीं आई ,उम्र के साथ नींद भी तो कम हो ही जाती है। थोड़ी चाय पियूँगी तो ठीक हो जायेगा। इंतजार था, कि कोई सी भी बहु चाय तो लेकर ही आयेगी ,बहुत इंतजार के छोटी बहु चाय लेकर आयी -निशा बिस्तर से उठने का प्रयत्न कर ही रहीं थीं ,छोटी ने उन्हें उठाने में मदद भी नहीं की और चाय पास की मेज़ पर रखकर बोली -मम्मी घर में इतने काम हैं ,कम से कम आप उठकर अपनी चाय बना नहीं सकतीं तो लेकर तो आ ही सकती हो। निशा उसका मुँह देखने लगी। न ही पैर छुए अथवा अंग्रेजी में '' गुड मॉर्निग ''ही करती।निशा ने उसकी बातों को नज़रअंदाज कर बोलीं -बेटा !''गुड मॉर्निंग ''वे उसे याद दिलाना चाहती थीं कि बड़ों से मिलने पर अभिवादन करते हैं ,उसके जबाब का उन्होंने इंतजार नहीं किया ,बोलीं -आज थोड़ा सिर में भारीपन है ,इसीलिए उठने में थोड़ी दिक्क़त हो रही है। जब वो बैठ गईं ,उन्होंने चाय के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया ,तब तक छोटी जा चुकी थी। उसके इस व्यवहार से उन्हें दुःख हुआ। सोचा ,शुरू से ही अलग रहने लगी ,परिवार के तौर -तरीक़े या तो आते नहीं या भूल गयी। बड़ी बहु 'आई उसे देख उनके मन में प्रसन्नता छा गयी। बोलीं -मालिनी बेटा ,कोई सिर दर्द की दवाई हो तो देना। मालिनी पहले ही दवाई लेकर आई थी थी ,बोली -छोटी ने बताया ,मम्मीजी के सिर में दर्द है इसीलिए दवाई ले आई। निशा को जो दुःख छोटी की बातों से हुआ था उस पर मालिनी ने जैसे अपने व्यवहार से मरहम लगा दिया। एक घंटे के आराम के पश्चात वो पूर्णतः स्वस्थ हो गयीं।
छोटी को उन दोनों का इस तरह प्रेम से रहना रास नहीं आया और बोली -दीदी ,आप भी कितनी मेहनत करती हैं ?साथ में बच्चा भी। इतना सब कैसे कर लेती हैं ?ना बाबा ना मुझसे तो ये सब नहीं हो पायेगा। मालिनी बोली -तुमने देखा नहीं ,मम्मी जी तो इस उम्र में भी काम में ही लगी रहती हैं और अधिक से अधिक काम करने का प्रयत्न करती हैं। हम तो उनसे जवान हैं , उनका काम इतना कहाँ होता है ?वे तो उल्टे हमारे काम में ही हमारी मदद करती हैं। पापाजी तो उन्हें आराम करने के लिए डांटते ही रहते हैं किन्तु वो फिर भी लगी रहतीं हैं। छोटी बोली -ऐसा आपको लगता है ,क्योंकि इतना काम करने की आपकी आदत जो बन गयी है। देखो ,जरा अपनी हालत। न ही फ़िल्म देखने जाती हो ,न ही कोई किट्टी ,घर से दफ़्तर ,दफ़्तर से घर ,बस यही ज़िंदगी रह गयी है। न कहीं घूमने जाना ,अपने लिए भी तो थोड़ा समय निकालिये। ये ही उम्र तो है घूमने -फिरने की ,फिर कब जाएँगी ? उसकी बातें मालिनी के दिल को लग रहीं थीं और वो चुप हो गयी। मालिनी को चुप देख ,छोटी ने अपनी बात बड़ी की और बोली -बताओ तो जरा ''सौंदर्य सज्जा ''के लिए कब गयीं थीं ?इस बार मालिनी बोली -अभी एक सप्ताह पहले ,हम किसी के यहाँ विवाह में गए थे, तब। चलो मान लिया ,गयी थीं किन्तु हम महिलाओं को भी तो आज़ादी चाहिए ,क्या हम अपनी ज़िंदगी यूँ ही खफाने के लिए पैदा हुए हैं ?इन ससुराल वालों का क्या है ?जब तक इनकी हाँ में हाँ मिलाकर काम करते रहोगे तो बहु अच्छी। नहीं किया और अपने अधिकार की बात की ,तो बहु खराब। मैं आपसे पूछती हूँ -क्या हमारी अपनी कोई इच्छा अथवा पसंद नहीं ?
निशा ने देखा -छोटी तो पैर छूना ही नहीं जानती ,न ही चाहती। बड़ी को देखकर भी इधर -उधर देखने लगती। मालिनी को भी अब अज़ीब लगने लगा ,जैसे मैं ही पढ़ी -लिखी गंवार हो गयी हूँ। छोटी को देखो कैसी मस्त रहती है ?अपने मन का करती है ,अपने मन का खाती और पहनती है। और मैं यहां संस्कारों की पोटली लिए बैठी ,नहीं बैठी नहीं, ढ़ो रही हूँ।छोटी की इन हरकतों पर, निशा और शर्मा जी की नज़र थी किन्तु ''गृहक्लेश ''से बचने के लिए शांत थे। बेटे से पूछ रहे थे, कि ये क्या ऐसी ही थी या तेरे साथ जाकर बदल गयी? तुझे उसे समझाना चाहिए। फिर उन्होंने सोचा -ये कुछ दिनों के लिए ही तो आयी है फिर चली जाएगी। एक दिन तो छोटी ने लज्जा ,शर्म त्याग ऐसे वस्त्र पहने कि शर्माजी की नज़रें झुक गयीं। रोहित ने उसे बहुत समझाया- कि रिश्तों का तो लिहाज़ करो ,ससुर और बड़े भाई की तो शर्म करो। वो बोली -मैंने किसी का ठेका नहीं लिया ,मेरी जैसी इच्छा होगी ,वैसी रहूँगी। वो छोटी होने के कारण भी रिश्तों को कोई महत्व नहीं दे रही थी। मालिनी को भी उसकी ये हरकतें अच्छी नहीं लग रही थीं किन्तु उसकी इन्हीं हरकतों ने उसे भी सोचने पर मजबूर कर दिया। मेरी भी अपनी ज़िंदगी है ,मेरी भी अपनी पसंद -नापसंद है। मुझे ये सब करने से क्या मिला ?किसी ने मुझे कोई 'ट्रॉफी ''या'' मैडल ''दे दिया।शर्मा जी का छोटा लड़का अपनी पत्नी के व्यवहार से लज्जित हो ,छुट्टियों से पहले ही, बच्चों की पढ़ाई का बहाना ले चला गया। उन लोगों के जाने के बाद सबने राहत की साँस ली। किन्तु छोटे के परिवार के जाने के बाद भी घर में पहले जैसी बात नहीं आ पा रही थी क्योंकि छोटी बहु कहीं न कहीं जहरीला बीज़ बो गयी थी।
सुबह उठकर निशा ने रसोईघर में प्रवेश किया ,देखा रातभर के जूठे बर्तन पड़े हैं। हमारे यहां तो आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि रात के जूठे बर्तन पड़े रहे हों ,बर्तन वाली आती थी ,नहीं आती तो बहु स्वयं ही माँजकर रख देती थी। निशा मदद भी करती तो मालिनी मना कर देती। निशा जूठे बर्तन माँजने लगी क्योंकि शर्माजी के लिए चाय बनानी थी। तभी मालिनी वहां आयी और निशा को बर्तन मांजते देख,चुपचाप अपने मुन्ने के लिए दूध गर्म कर ले गयी। आज निशा ने बहु के इस रूप को पहली बार देखा था। न ही मालिनी ने उन्हें बर्तन मांजने से रोका ,न ही आज उनके पैर छुए। उनकी लाड़ली बहु पर आज किसी दूसरे की सीख असर कर गयी थी। उस पर गलत सोच हावी हो चुकी थी। उन्हें इस बात का दुःख हुआ कि उनका घर बिखर रहा था। अब उसे समझाने पर भी कुछ असर नहीं होता। अब उस पर स्वार्थ हावी हो चुका था ,अपने सभी संस्कार, प्यार ,मान -सम्मान सब भूलती जा रही थी। घर का वातावरण पूर्णतः तनावपूर्ण था। कुछ समझ नहीं आ रहा था, किस तरह वातावरण को पहले की तरह ख़ुशनुमा बनाया जाये? वो प्रयास भी करतीं तो निष्फल हो जातीं। बहुत दिनों पश्चात ,,आज बुआजी यानि शर्माजी की बहन घर आयी हैं। आते ही घर में जैसे खुशियाँ आ गयीं जिन्हें निशा इतने दिनों से ढूढ़ने का प्रयत्न कर रही थीं। वो आते ही सबसे गले मिलीं। उनके व्यवहार को देख हिचकते हुए, मालिनी उनके पैर छूने लगी तब उन्होंने बड़े प्रेम से उसे गले लगा लिया और बोलीं -तू तो हमारे घर की लक्ष्मी है ,तू तो सबके दिल में बसी है ,तू पैर नहीं ,तू तो गले लग जा और उन्होंने बड़े जोश से उसे अपने गले लगा लिया।
बुआजी के प्रेम की गर्मी से मालिनी थोड़ा पिघली। बुआजी का आना निशा को अच्छा लगा। रात में निशा बुआजी के पैर दबाने के उद्देश्य से उनके पास गयी। बुआजी बोलीं -भाभी अब आदत नहीं रही ,तुम भी कब तक इन रस्मों को निभाती रहोगी ?अब उम्र हो चली अब तो बहुओं से पैर दबवाओ। निशा बोली -दीदी जब आपकी इस उम्र में आदत छूट गयी ,मैंने तो आदत ही नहीं डाली ,ऐसी आदत डालने से क्या लाभ ?जो बाद में छुड़ानी पड़े। बुआजी, अपने अनुभव से ताड़ गयीं थीं कि निशा के मन में कुछ न कुछ परेशानी अवश्य ही चल रही है। बुआजी बोलीं -भाभी एक बात बोलूं ,बुरा तो नहीं मानोगी। नहीं ,निशा ने छोटा सा उत्तर दिया। क्या घर में कोई बात है ,जब से मैं आयी हूँ ,तुम कुछ खोयी -खोयी सी हो। निशा थोड़ी आनाकानी के बाद बताने को तैयार हो गयी। उसके तो दिल पर जैसे बोझ रखा था, और अपने मन का गुब्बार अपनी ननद के सामने निकाल दिया। सारी बातें सुनकर उन्होंने गहरी साँस ली और बोली -मैं कुछ करती हूँ। सुबह बुआजी ने उठते ही ,मालिनी को अपने कमरे में से ही बैठे -बैठे आवाज़ लगाई। जी बुआजी ,कहती हुयी मालिनी कमरे में दाख़िल हुई। अरे बेटा ,तू ही तो इस घर की रौनक है ,तेरे कारण ही घर चल रहा है। मालिनी की गोद में उसका बेटा था ,उसे देख बुआजी बोलीं -अब ये डेढ़ -दो बरस का हो गया। इसे गोद में लेकर मत घुमा कर ,इसे इसके दादी -बाबा के पास छोड़ आ ,वे इसका ख़्याल रख लेंगे। तू भी क्या -क्या करेगी ?इसकी टाँगे भी नीचे घूमने से मजबूत होंगी और जा मेरे लिए चाय भी ले आ। इससे पहले कि वो जाने के लिए मुड़ती ,बुआजी बोलीं -बेटा तू तो पैर छूती ही है ,अपने ये अच्छे संस्कार अपने बच्चे के अंदर भी डाल। जब तू पैर छुआ करे तो ये तुझे देखकर ही सब करेगा।
ये सब संस्कार तो माँ ही डालती है ,जैसे तुझे सबका आशीर्वाद मिलता है तेरे बेटे को भी मिलेगा। जैसे तू सबके दिलों पर अपने व्यवहार से राज करती है ,ऐसे ही ये शैतान भी करेगा। न चाहते हुए भी मालिनी पैर छूने लगी। बुआजी ने बड़ा सा आशीर्वाद दिया और बोलीं -जा चाय बना ला ,मैं भइया के साथ बैठती हूँ ,वहीं चाय ले आना।शर्मा जी और निशा दोनों साथ ही थे ,बुआजी मुन्ना को लेकर उनके पास आयीं और बोलीं -लो सम्भालो, अपने इस नन्हे शैतान को ,इसे लेकर बहु काम करती है, थक जाती होगी। अब ये गोद में नहीं बल्कि इसे दोनों हाथ पकड़कर घुमाया करो ताकि इसकी टाँगे मजबूत हों। तब तक मालिनी चाय भी ले आई थी। बुआजी तभी तो इसे कुछ सिखायें ,जब ये हमारे पास रहे। सारा दिन तो अपनी माँ को तंग करता है। बुआजी बोलीं-तुम इसके दादी -बाबा हो, ये रिश्ता तो ऊपर वाले ने ही बनाकर भेजा है ,इसे कोई झुठला नहीं सकता। ये तो ख़ून के रिश्ते होते हैं। इनमें किसी का क्या हस्तक्षेप ?
'बल्कि बहु को तो इसे तुम्हारे पास भेजने पर, अपने लिए भी समय मिल जायेगा। पहले घर का काम करती होगी फिर इसका, तो इसके पास समय कहाँ बचेगा ?मालिनी के मन में ये बात आ गयी ,बुआजी कह तो ठीक ही रहीं हैं। अभी वो सोच ही रही थी कि बुआजी बोलीं -जा मालिनी ,तेल ले आ! आज मैं अपने इस कन्हैया की मालिश करूंगी। जब वो तेल ले आई। वो बोलीं -आ यहीं बैठकर देख ! मालिश करते हुए बोलीं -तुझे पता है ,मैं अपने इसी भाई के पास ज्यादा क्यों आती हूँ ?मालिनी ने नहीं में सिर हिलाया। प्रेम और अपनापन जो मैं यहां महसूस करती हूँ वहाँ नहीं, जबकि उसके पास इससेअधिक पैसा है। ऊपर से तू भी ऐसी संस्कारी। जो संस्कार तेरे माता -पिता ने दिये हैं वो छोटी के माता -पिता ने नहीं दिए होंगे। या फिर उसने अपने माता -पिता के दिए संस्कारों को ही झुठला दिया। तुझे पता है ,राम और रावण दोनों ने ही मनुष्य योनि में जन्म लिया किन्तु एक आज भी जलाया जाता है और दूसरे के मंदिर बने हैं। जबकि रावण की तो सोने की लंका थी, ज्ञान भी अधिक था, कारण उनके कर्म ,जिन्होंने राम को भगवान बना दिया। मान लो ,तू कार्य करती है ,तू अपनों का प्यार पाती है। तेरी सास है ,इसके व्यवहार के कारण ही आज भी मैं इससे मिलने आती हूँ। तुम लोगों का प्यार अपनापन खींच लाता है। जिससे बुरी यादें जुडी हों उसे स्वप्न में भी कोई याद नहीं करना चाहता बल्कि उसे याद करते हुए दुःख ही होता है। तुम किसी के सुख का कारण न बन सको तो दुःख का कारण तो न बनो। जब लोगों के दिलों में तुम्हारी यादें सुखानुभूति दे जाएँ तो समझो यही तुम्हारा'' मैडल '' और ''ट्रॉफी'' है।