सुरेश को पढ़ाया -लिखाया ,किसी क़ाबिल बनाने का प्रयत्न किया। वो बाहर गया तो उसे सब बहुत ही अच्छा लगा, बाहर की दुनिया इतनी खूबसूरत है, सब कुछ अच्छा लगता है। उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और बाहर ही रहने का फैसला किया। इस गांव में रखा ही क्या है ?गंदगी और गरीबी के सिवा ,उसे लग रहा था कि उसका जन्म कैसे इस गाँव में हुआ ?हुआ भी तो कितने वर्ष उसने कैसे इस गाँव में बिता दिए ?उसकी सोच में इतना बदलाव देखकर रामपाल जी पहले तो बहुत खुश हुए कि बेटा बाहर की दुनिया से जुड़ रहा है ,कौन माता -पिता नहीं चाहेंगे कि उनका बेटा उन्नति के पथ पर अग्रसर हो रहा है। लेकिन दूसरे ही पल कुछ सोचकर हिल जाते ,लेकिन फिर भी अपने को समझा लेते। बेटा बाहर से आता वो भी बुलाने पर तो एक रात भी वहाँ रुकना नहीं चाहता और आकर भी उन्हें ही समझाता कि क्या रखा है ,इस गाँव में ?,आप लोग भी मेरे साथ बाहर चलो। रामपाल जी कहते -यहाँ तुम्हारे पूर्वज हैं ,पिछले चार-पांच पुश्तों से हम यहाँ रह रहे हैं, यहाँ हमारी जमीन- जायदाद है। ये गाँव ही अब हमारी पहचान है। सुरेश बोला -गॉँव से हमारी क्या और किस तरह से पहचान है ?हम जहाँ रहने लगते हैं, वही हमारी पहचान होती है ,हमारे काम से ही हमारी पहचान होती है। यहाँ रखा ही क्या है ?न ही तरक्की कर सकते हैं ,लेकिन बेटे तुम यहीं से पढ़ -लिखकर गये हो ,तुम्हें पढ़ाने का हमारा उद्देश्य यही था कि तुम तरक्की करो, यहाँ रहकर या वहाँ रहकर ,तुम्हें देखकर लोगों को भी प्रेरणा मिले। अपने गाँव की उन्नति हो ,इस गाँव में हमारी जड़ें हैं ,पेड़ फलता -फूलता है तभी तक जब तक वो अपनी जड़ों से जुड़ा रहता है। तुम कहीं भी चले जाओ फिर भी लोग यही पूछेंगे -कौन से गांव के हो या किस जगह के रहने वाले हो? सबको मालूम है कि शहरों में दूर -दूर से रोजी -रोटी कमाने के लिए ही लोग यहाँ आते हैं ,लेकिन उनकी जड़ें तो कहीं और होती हैं। रामपाल जी ने समझाया। लेकिन सुरेश पर तो जैसे शहर ही हावी था उन्होंने उससे कुछ न कहना ही उचित समझा। सुरेश तो जैसे सफलता की ऊचाइयों को छू लेना चाहता था उसने कई साल नौकरी की ,लेकिन वहाँ के खर्चे ,रहन -सहन उसकी जेब पर भारी पड़ रहे थे। अब उसका विवाह भी हो चु का था। इस बीच उसने अपनी पत्नी से भी कहा कि तुम भी पढ़ी -लिखी हो ,घऱ की आमदनी बढ़ाने में मदद कर सकती हो। अब दोनों पति -पत्नी काम में जुट गए।
परिवार बढ़ाने की सोच भी नहीं पा रहे थे ,लेकिन माता -पिता ने तीन -चार साल बाद कहना शुरू किया। अपने घर को बहुत ही सोच -समझकर ,योजना से चला रहे थे उम्र भी लगभग तीस पार हो रही थी उसने सोचा की अब परिवार बढ़ाने के लिए सोचना चाहिए। पत्नी को नौकरी छोड़नी पड़ी ,परिवार के साथ -साथ ख़र्चे भी बढ़े। जिम्मेदारियां भी बढ़ने लगीं। कमाते -कमाते सात -आठ साल हो गए ,आमदनी भी बढ़ी लेकिन अब वो पर्याप्त नहीं थी। शहर में हर चीज़ की कीमत देनी होती है। अब लगने लगा कि इतने साल नौकरी करने के बाद भी ,इतनी मेहनत करने के बाद भी जो सफलता उसने सोची थी उस तक वो नहीं पहुँच पाया है। पिता भी देर -सबेर कभी पैसों से, कभी सामान के द्वारा मदद करते रहते। उसे अब लगने लगा कि शहर में जिंदगी इतनी आसान भी नहीं, लगभग आधी जिंदगी तो संघर्ष करने में ही निकल जाएगी। नौकरी में इतना पैसा नहीं कि एक एक बेहतर जीवन जी सकें इसमें तो सिर्फ़ घर ख़र्च फ़िर बुढ़ापे तक एक फ्लैट ही आ सकता है। उसने तो अपनी जिंदगी से कुछ ज्यादा ही चाहा था। हार मानना नहीं चाह रहा था। उसने फैसला किया कि नौकरी छोड़कर अब वो व्यापार करेगा ,व्यापार से ही वो ऐसा जीवन जी सकता है जिसकी उसने उम्मीद की है उसने अपने पिता से लेकर व थोड़ा इधर -उधर से पैसे लेकर व्यापार शुरू किया। व्यापार चला भी, उसमें लगाने को और भी पैसा चाहिए था अब नौकरी भी नहीं रही। अब वेतन भी नहीं रहा ,अपना खाना,अपना कमाना था, कम हो या ज्यादा। इधर -उधर काफी भागदौड़ की लेकिन जिन्होंने पैसा दिया था वो अब मॉँग रहे थे। अब परिस्थिति पहले से बद्तर होती जा रहीं थीं। उसे चारों तरफ परेशानियाँ ही नज़र आ रहीं थीं। पत्नी अब घर संभाले या नौकरी ,बच्चे अभी छोटे ही थे। उसने जिंदगी की शुरुआत ,बड़ी योजनाओं से की थी लेकिन ऐसा भी दिन आ जायेगा, ऐसा तो उसने सपने में भी नहीं सोचा था। उसने एक आख़िरी कोशिश करने की सोची। उसने पिता से जमीन बेचने की बात कही। रामपाल जी ने इंकार किया लेकिन वो अड़ गया कि मेरा हिस्सा दे दो। उन्हें ये बातें सुनकर बहुत ही दुःख हुआ और उन्होंने उसकी जमीन के हिस्से के पैसे दे दिए। उसने शहर जाकर थोड़ा कर्ज़ उतारा। घर की भी थोड़ी परेशानियाँ थीं, उनका भी प्रबंध किया। जब उसने देखा कि पैसा तो बहुत कम बचा है।
उसके पैरों तले की ज़मीन ख़िसक गयी ,अब क्या करे? अब तो ज़मीन भी नहीं रही। अब उसे जीवन व्यर्थ नजर आने लगा ,चारों तरफ जिम्मेदारियों का बोझ, उसने वो पैसा व्यापार में न लगाकर अपने पास रख लिया और मेहनत करता कि किसी तरह व्यापार बढ़े। लेकिन तभी एक महामारी फैल गयी जो थोड़ी बहुत उम्मीद थी, वो भी ख़त्म हो गयी। घर में ही बैठना पड़ गया। पैसे धीरे -धीरे खत्म हो रहे थे ,आगे क्या होगा? यही सोचकर उसे गुस्सा आता। पत्नी को, कभी बच्चों को डांट देता। घर में क्लेश बढ़ता जा रहा था। मेरे बाद इन बच्चों का क्या होगा ?उसने एक फैसला किया शाम को सभी को अपने साथ ही ले जाऊँगा ,सब आराम से सो जायेंगे ,लेकिन जब बच्चों का चेहरा देखा, तो हिम्मत नहीं हुई। अगले दिन का सोचकर वो सो गया।अगले दिन वो इसी उधेड़ -बुन में रहा। दोपहर को अचानक पिता आ खड़े हुए ,उन्हें देखकर उसकी रुलाई फूट पड़ी लेकिन अपने आँसू लेकर अलग कमरे में आ गया। सोच रहा था कि अपने पिता को ये अपना नाक़ाम चेहरा, कैसे दिखाऊं ?जब उन्हें पता चलेगा, मैं आज रात क्या करने वाला हूँ ?क्या सोचेंगे ,क्या इसी दिन के लिए मैंने पैदा किया था ?जब तो इतनी बड़ी -बड़ी बातें बना रहा था, यही सब सोचेंगे मेरे बारे में। उसकी आँखों से अपने -आप ही आँसू बह निकले। मैं अपने -माता -पिता के लिए भी कुछ न कर सका। तभी बच्चे तैयार होकर अपने पिता के पास आये ,उन्हें देखकर उसे लगा, कितने प्यारे बच्चे हैं ?आज उसने पहली बार अपने बच्चों को नज़र भर कर देखा। बच्चे बोले -पापा आप भी तैयार हो जाओ ,दादाजी हमें लेने आये हैं। उसे कुछ समझ नहीं आया बोला -क्यों ?बच्चे वहाँ से भाग गए ,नए कपड़े पहनकर खुश हो रहे थे लेकिन सुरेश के लिए प्रश्न छोड़ गए। आज अचानक हमें लेने क्यों आ गए ?वो बाहर आया ,उसे देखकर पिता बोले -तू तो हमें भूल गया ,तेरी माँ की इच्छा है, बच्चों से मिलने की इसीलिए उसने भेजा है कि अब बच्चों के स्कूल भी नहीं हैं, तेरा काम भी बंद होगा, तो थोड़े दिन अपने माँ -बाप के साथ भी रह लो। उसका मन कर रहा था- कि पिता के पैर पकड़कर खूब रोऊँ ,उनके गले लग जाऊँ ,पर वो चुप रहा और तैयार होने चला गया। आज उसे जिंदगी में जीने का कुछ रास्ता दिखाई दिया ,उम्मीद की कुछ झलक दिखी। गाँव में माँ उसका इंतजार कर रही थी सबने गर्म -गर्म खाना खाया, बच्चे अपने दादा -दादी के साथ खेलने लगे। सुरेश और उसकी पत्नी आराम करने लगे , आज वो ऐसा महसूस कर रहा था जैसे बच्चा अपनी माँ कि गोद में आराम करता है। आज बहुत दिनों बाद वो सोया। सुबह उठा ,तो देखा पिता खेतों में जा चुके हैं। उसके कदम भी उस और बढ़ गए। आज अपने गाँव के रास्ते उसे अच्छे लग रहे थे ,वो सोच रहा था यदि कल पिता न आये होते तो आज का दिन हम देख भी पाते या नहीं , सोचकर वो सिहर गया। उसने देखा, पिता उसी खेतों की जुताई करा रहे हैं जो वो अपने हिस्से के कहकर बेच गया था। वो वहाँ जाकर खड़ा हो गया। पिता ने बताया- कि जिसे उसने वो खेत बेचे थे, पिता ने दो साल की आमदनी से, बैंक से ऋण लेकर वापस ले लिए। जो कुछ भी है तुम्हारा ही तो है। ,हमने जीवन में परेशानियाँ देखीं थीं लेकिन अपनी जड़ों से अलग नहीं हुए तभी आज भी हम सक्षम हैं।हम अपना ही नहीं न जाने कितनों का पेट भरते हैं ?जब ये महामारी खत्म हो जाये, तो चले जाना। वो वापस घर आया तो उसने सुना -माँ कह रही थी- बहु तूने अच्छा किया जो हमें फ़ोन कर दिया ,हम तो वैसे ही तुम लोगों की चिंता में परेशान थे। कुछ दिन यहीं रहो, बच्चे भी यहाँ आकर खुश हैं। अब सुरेश को पिता के अचानक आने का पता चला पर उसे अच्छा लगा। अब वो पिता के साथ ही खेती में रूचि लेने लगा और पिता की देख -रेख में ही नए तरीकों से खेती करने लगा अब उसने वहीं रहने का फैसला ले लिया। सुरेश को पढ़ाया -लिखाया ,किसी क़ाबिल बनाने का प्रयत्न किया। वो बाहर गया तो उसे सब बहुत ही अच्छा लगा, बाहर की दुनिया इतनी खूबसूरत है, सब कुछ अच्छा लगता है। उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और बाहर ही रहने का फैसला किया। इस गांव में रखा ही क्या है ?गंदगी और गरीबी के सिवा ,उसे लग रहा था कि उसका जन्म कैसे इस गाँव में हुआ ?हुआ भी तो कितने वर्ष उसने कैसे इस गाँव में बिता दिए ?उसकी सोच में इतना बदलाव देखकर रामपाल जी पहले तो बहुत खुश हुए कि बेटा बाहर की दुनिया से जुड़ रहा है ,कौन माता -पिता नहीं चाहेंगे कि उनका बेटा उन्नति के पथ पर अग्रसर हो रहा है। लेकिन दूसरे ही पल कुछ सोचकर हिल जाते ,लेकिन फिर भी अपने को समझा लेते। बेटा बाहर से आता वो भी बुलाने पर तो एक रात भी वहाँ रुकना नहीं चाहता और आकर भी उन्हें ही समझाता कि क्या रखा है ,इस गाँव में ?,आप लोग भी मेरे साथ बाहर चलो। रामपाल जी कहते -यहाँ तुम्हारे पूर्वज हैं ,पिछले चार-पांच पुश्तों से हम यहाँ रह रहे हैं, यहाँ हमारी जमीन- जायदाद है। ये गाँव ही अब हमारी पहचान है। सुरेश बोला -गॉँव से हमारी क्या और किस तरह से पहचान है ?हम जहाँ रहने लगते हैं, वही हमारी पहचान होती है ,हमारे काम से ही हमारी पहचान होती है।
यहाँ रखा ही क्या है ?न ही तरक्की कर सकते हैं ,लेकिन बेटे तुम यहीं से पढ़ -लिखकर गये हो ,तुम्हें पढ़ाने का हमारा उद्देश्य यही था कि तुम तरक्की करो, यहाँ रहकर या वहाँ रहकर ,तुम्हें देखकर लोगों को भी प्रेरणा मिले। अपने गाँव की उन्नति हो ,इस गाँव में हमारी जड़ें हैं ,पेड़ फलता -फूलता है तभी तक जब तक वो अपनी जड़ों से जुड़ा रहता है। तुम कहीं भी चले जाओ फिर भी लोग यही पूछेंगे -कौन से गांव के हो या किस जगह के रहने वाले हो? सबको मालूम है कि शहरों में दूर -दूर से रोजी -रोटी कमाने के लिए ही लोग यहाँ आते हैं ,लेकिन उनकी जड़ें तो कहीं और होती हैं। रामपाल जी ने समझाया। लेकिन सुरेश पर तो जैसे शहर ही हावी था उन्होंने उससे कुछ न कहना ही उचित समझा। सुरेश तो जैसे सफलता की ऊचाइयों को छू लेना चाहता था उसने कई साल नौकरी की ,लेकिन वहाँ के खर्चे ,रहन -सहन उसकी जेब पर भारी पड़ रहे थे। अब उसका विवाह भी हो चु का था। इस बीच उसने अपनी पत्नी से भी कहा कि तुम भी पढ़ी -लिखी हो ,घऱ की आमदनी बढ़ाने में मदद कर सकती हो। अब दोनों पति -पत्नी काम में जुट गए।
परिवार बढ़ाने की सोच भी नहीं पा रहे थे ,लेकिन माता -पिता ने तीन -चार साल बाद कहना शुरू किया। अपने घर को बहुत ही सोच -समझकर ,योजना से चला रहे थे उम्र भी लगभग तीस पार हो रही थी उसने सोचा की अब परिवार बढ़ाने के लिए सोचना चाहिए। पत्नी को नौकरी छोड़नी पड़ी ,परिवार के साथ -साथ ख़र्चे भी बढ़े। जिम्मेदारियां भी बढ़ने लगीं। कमाते -कमाते सात -आठ साल हो गए ,आमदनी भी बढ़ी लेकिन अब वो पर्याप्त नहीं थी। शहर में हर चीज़ की कीमत देनी होती है। अब लगने लगा कि इतने साल नौकरी करने के बाद भी ,इतनी मेहनत करने के बाद भी जो सफलता उसने सोची थी उस तक वो नहीं पहुँच पाया है। पिता भी देर -सबेर कभी पैसों से, कभी सामान के द्वारा मदद करते रहते। उसे अब लगने लगा कि शहर में जिंदगी इतनी आसान भी नहीं, लगभग आधी जिंदगी तो संघर्ष करने में ही निकल जाएगी। नौकरी में इतना पैसा नहीं कि एक एक बेहतर जीवन जी सकें इसमें तो सिर्फ़ घर ख़र्च फ़िर बुढ़ापे तक एक फ्लैट ही आ सकता है। उसने तो अपनी जिंदगी से कुछ ज्यादा ही चाहा था। हार मानना नहीं चाह रहा था।
उसने फैसला किया कि नौकरी छोड़कर अब वो व्यापार करेगा ,व्यापार से ही वो ऐसा जीवन जी सकता है जिसकी उसने उम्मीद की है उसने अपने पिता से लेकर व थोड़ा इधर -उधर से पैसे लेकर व्यापार शुरू किया। व्यापार चला भी, उसमें लगाने को और भी पैसा चाहिए था अब नौकरी भी नहीं रही। अब वेतन भी नहीं रहा ,अपना खाना,अपना कमाना था, कम हो या ज्यादा। इधर -उधर काफी भागदौड़ की लेकिन जिन्होंने पैसा दिया था वो अब मॉँग रहे थे। अब परिस्थिति पहले से बद्तर होती जा रहीं थीं। उसे चारों तरफ परेशानियाँ ही नज़र आ रहीं थीं। पत्नी अब घर संभाले या नौकरी ,बच्चे अभी छोटे ही थे। उसने जिंदगी की शुरुआत ,बड़ी योजनाओं से की थी लेकिन ऐसा भी दिन आ जायेगा, ऐसा तो उसने सपने में भी नहीं सोचा था। उसने एक आख़िरी कोशिश करने की सोची। उसने पिता से जमीन बेचने की बात कही। रामपाल जी ने इंकार किया लेकिन वो अड़ गया कि मेरा हिस्सा दे दो। उन्हें ये बातें सुनकर बहुत ही दुःख हुआ और उन्होंने उसकी जमीन के हिस्से के पैसे दे दिए। उसने शहर जाकर थोड़ा कर्ज़ उतारा। घर की भी थोड़ी परेशानियाँ थीं, उनका भी प्रबंध किया। जब उसने देखा कि पैसा तो बहुत कम बचा है।
उसके पैरों तले की ज़मीन ख़िसक गयी ,अब क्या करे? अब तो ज़मीन भी नहीं रही। अब उसे जीवन व्यर्थ नजर आने लगा ,चारों तरफ जिम्मेदारियों का बोझ, उसने वो पैसा व्यापार में न लगाकर अपने पास रख लिया और मेहनत करता कि किसी तरह व्यापार बढ़े। लेकिन तभी एक महामारी फैल गयी जो थोड़ी बहुत उम्मीद थी, वो भी ख़त्म हो गयी। घर में ही बैठना पड़ गया। पैसे धीरे -धीरे खत्म हो रहे थे ,आगे क्या होगा? यही सोचकर उसे गुस्सा आता। पत्नी को, कभी बच्चों को डांट देता। घर में क्लेश बढ़ता जा रहा था। मेरे बाद इन बच्चों का क्या होगा ?उसने एक फैसला किया शाम को सभी को अपने साथ ही ले जाऊँगा ,सब आराम से सो जायेंगे ,लेकिन जब बच्चों का चेहरा देखा, तो हिम्मत नहीं हुई। अगले दिन का सोचकर वो सो गया।
अगले दिन वो इसी उधेड़ -बुन में रहा। दोपहर को अचानक पिता आ खड़े हुए ,उन्हें देखकर उसकी रुलाई फूट पड़ी लेकिन अपने आँसू लेकर अलग कमरे में आ गया। सोच रहा था कि अपने पिता को ये अपना नाक़ाम चेहरा, कैसे दिखाऊं ?जब उन्हें पता चलेगा, मैं आज रात क्या करने वाला हूँ ?क्या सोचेंगे ,क्या इसी दिन के लिए मैंने पैदा किया था ?जब तो इतनी बड़ी -बड़ी बातें बना रहा था, यही सब सोचेंगे मेरे बारे में। उसकी आँखों से अपने -आप ही आँसू बह निकले। मैं अपने -माता -पिता के लिए भी कुछ न कर सका।
तभी बच्चे तैयार होकर अपने पिता के पास आये ,उन्हें देखकर उसे लगा, कितने प्यारे बच्चे हैं ?आज उसने पहली बार अपने बच्चों को नज़र भर कर देखा। बच्चे बोले -पापा आप भी तैयार हो जाओ ,दादाजी हमें लेने आये हैं। उसे कुछ समझ नहीं आया बोला -क्यों ?बच्चे वहाँ से भाग गए ,नए कपड़े पहनकर खुश हो रहे थे लेकिन सुरेश के लिए प्रश्न छोड़ गए। आज अचानक हमें लेने क्यों आ गए ?वो बाहर आया ,उसे देखकर पिता बोले -तू तो हमें भूल गया ,तेरी माँ की इच्छा है, बच्चों से मिलने की इसीलिए उसने भेजा है कि अब बच्चों के स्कूल भी नहीं हैं, तेरा काम भी बंद होगा, तो थोड़े दिन अपने माँ -बाप के साथ भी रह लो। उसका मन कर रहा था- कि पिता के पैर पकड़कर खूब रोऊँ ,उनके गले लग जाऊँ ,पर वो चुप रहा और तैयार होने चला गया। आज उसे जिंदगी में जीने का कुछ रास्ता दिखाई दिया ,उम्मीद की कुछ झलक दिखी। गाँव में माँ उसका इंतजार कर रही थी सबने गर्म -गर्म खाना खाया, बच्चे अपने दादा -दादी के साथ खेलने लगे। सुरेश और उसकी पत्नी आराम करने लगे , आज वो ऐसा महसूस कर रहा था जैसे बच्चा अपनी माँ कि गोद में आराम करता है। आज बहुत दिनों बाद वो सोया।
सुबह उठा ,तो देखा पिता खेतों में जा चुके हैं। उसके कदम भी उस और बढ़ गए। आज अपने गाँव के रास्ते उसे अच्छे लग रहे थे ,वो सोच रहा था यदि कल पिता न आये होते तो आज का दिन हम देख भी पाते या नहीं , सोचकर वो सिहर गया। उसने देखा, पिता उसी खेतों की जुताई करा रहे हैं जो वो अपने हिस्से के कहकर बेच गया था। वो वहाँ जाकर खड़ा हो गया। पिता ने बताया- कि जिसे उसने वो खेत बेचे थे, पिता ने दो साल की आमदनी से, बैंक से ऋण लेकर वापस ले लिए। जो कुछ भी है तुम्हारा ही तो है। ,हमने जीवन में परेशानियाँ देखीं थीं लेकिन अपनी जड़ों से अलग नहीं हुए तभी आज भी हम सक्षम हैं।हम अपना ही नहीं न जाने कितनों का पेट भरते हैं ?जब ये महामारी खत्म हो जाये, तो चले जाना। वो वापस घर आया तो उसने सुना -माँ कह रही थी- बहु तूने अच्छा किया जो हमें फ़ोन कर दिया ,हम तो वैसे ही तुम लोगों की चिंता में परेशान थे। कुछ दिन यहीं रहो, बच्चे भी यहाँ आकर खुश हैं। अब सुरेश को पिता के अचानक आने का पता चला पर उसे अच्छा लगा। अब वो पिता के साथ ही खेती में रूचि लेने लगा और पिता की देख -रेख में ही नए तरीकों से खेती करने लगा अब उसने वहीं रहने का फैसला ले लिया।