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7 नवम्बर 2022

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सुरेश को पढ़ाया -लिखाया ,किसी क़ाबिल बनाने का प्रयत्न किया। वो बाहर गया तो उसे सब बहुत ही अच्छा लगा, बाहर की दुनिया इतनी खूबसूरत है, सब कुछ अच्छा लगता है। उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और बाहर ही रहने का फैसला किया। इस गांव में रखा ही क्या है ?गंदगी और गरीबी के सिवा ,उसे लग रहा था कि उसका जन्म कैसे इस गाँव में हुआ ?हुआ भी तो कितने वर्ष उसने कैसे इस गाँव में बिता दिए ?उसकी सोच में इतना बदलाव देखकर रामपाल जी पहले तो बहुत खुश हुए कि बेटा बाहर की दुनिया से जुड़ रहा है ,कौन माता -पिता नहीं चाहेंगे कि उनका बेटा उन्नति के पथ पर अग्रसर हो रहा है। लेकिन दूसरे ही पल कुछ सोचकर हिल जाते ,लेकिन फिर भी अपने को समझा लेते। बेटा बाहर से आता वो भी बुलाने पर तो एक रात भी वहाँ रुकना नहीं चाहता और आकर भी उन्हें ही समझाता कि क्या रखा है ,इस गाँव में ?,आप लोग भी मेरे साथ बाहर चलो। रामपाल जी कहते -यहाँ तुम्हारे पूर्वज हैं ,पिछले चार-पांच  पुश्तों से हम यहाँ रह रहे हैं, यहाँ हमारी जमीन- जायदाद है।  ये गाँव ही अब हमारी पहचान है। सुरेश बोला -गॉँव से हमारी क्या और किस तरह से पहचान है ?हम जहाँ रहने लगते हैं, वही हमारी पहचान होती  है ,हमारे काम से ही हमारी पहचान होती है। 
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              यहाँ रखा ही क्या है ?न ही तरक्की कर सकते हैं ,लेकिन बेटे तुम यहीं से पढ़ -लिखकर गये  हो ,तुम्हें पढ़ाने का हमारा उद्देश्य यही था कि तुम तरक्की करो, यहाँ रहकर या वहाँ रहकर ,तुम्हें देखकर  लोगों को भी प्रेरणा मिले। अपने गाँव की उन्नति हो ,इस गाँव में हमारी जड़ें हैं ,पेड़ फलता -फूलता है तभी तक जब तक वो अपनी जड़ों से जुड़ा रहता है। तुम कहीं भी चले जाओ फिर भी लोग यही पूछेंगे -कौन से गांव के हो या किस जगह के रहने वाले हो? सबको मालूम है कि शहरों में दूर -दूर से रोजी -रोटी कमाने के लिए ही लोग यहाँ आते हैं ,लेकिन उनकी जड़ें तो कहीं और होती हैं। रामपाल जी ने समझाया। लेकिन सुरेश पर तो जैसे शहर ही हावी था उन्होंने उससे कुछ न  कहना ही उचित समझा। सुरेश तो जैसे सफलता की ऊचाइयों को छू लेना चाहता था उसने कई साल नौकरी की ,लेकिन वहाँ के खर्चे ,रहन -सहन उसकी जेब पर भारी पड़ रहे थे। अब उसका विवाह भी हो चु का था। इस बीच उसने अपनी पत्नी से भी कहा कि तुम भी पढ़ी -लिखी हो ,घऱ की आमदनी बढ़ाने में मदद कर सकती हो। अब दोनों पति -पत्नी काम में जुट गए। 
              परिवार बढ़ाने की सोच भी नहीं पा रहे थे ,लेकिन माता -पिता ने तीन -चार साल बाद कहना शुरू किया। अपने घर को बहुत ही सोच -समझकर ,योजना से चला रहे थे उम्र भी लगभग तीस पार हो रही थी उसने सोचा की अब परिवार बढ़ाने के लिए सोचना चाहिए। पत्नी को नौकरी छोड़नी पड़ी ,परिवार के साथ -साथ ख़र्चे भी बढ़े। जिम्मेदारियां भी बढ़ने लगीं। कमाते -कमाते सात -आठ साल हो गए ,आमदनी भी बढ़ी लेकिन अब वो पर्याप्त नहीं थी। शहर में हर चीज़ की कीमत देनी होती है।  अब लगने लगा कि इतने साल नौकरी करने के बाद भी ,इतनी मेहनत करने के बाद भी जो सफलता उसने सोची थी उस तक वो नहीं पहुँच पाया है। पिता भी देर -सबेर कभी पैसों से, कभी सामान के द्वारा मदद करते रहते। उसे अब लगने लगा कि शहर में  जिंदगी इतनी आसान भी नहीं, लगभग आधी जिंदगी तो संघर्ष करने में ही निकल जाएगी। नौकरी में इतना पैसा नहीं कि एक एक बेहतर जीवन जी सकें इसमें तो सिर्फ़ घर ख़र्च  फ़िर बुढ़ापे तक एक फ्लैट ही आ सकता है। उसने तो अपनी जिंदगी से कुछ ज्यादा ही चाहा था। हार मानना  नहीं चाह रहा था। 
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            उसने फैसला  किया कि नौकरी छोड़कर अब वो व्यापार करेगा ,व्यापार से ही वो ऐसा जीवन जी सकता है जिसकी उसने उम्मीद की है उसने अपने पिता से लेकर व थोड़ा इधर -उधर से पैसे लेकर व्यापार शुरू किया। व्यापार चला भी, उसमें लगाने को और भी पैसा चाहिए था अब नौकरी भी नहीं रही। अब  वेतन भी नहीं रहा ,अपना खाना,अपना कमाना था, कम हो या ज्यादा। इधर -उधर काफी भागदौड़ की लेकिन जिन्होंने पैसा दिया था वो अब मॉँग रहे थे। अब परिस्थिति पहले से बद्तर होती जा रहीं थीं। उसे चारों तरफ परेशानियाँ ही नज़र आ रहीं थीं।  पत्नी अब घर संभाले या नौकरी ,बच्चे अभी छोटे ही थे। उसने जिंदगी की शुरुआत ,बड़ी योजनाओं से की थी लेकिन ऐसा भी दिन आ जायेगा, ऐसा तो उसने सपने में भी नहीं सोचा था। उसने एक आख़िरी कोशिश करने की सोची। उसने पिता से जमीन बेचने की बात कही। रामपाल जी ने इंकार किया लेकिन वो अड़ गया कि मेरा हिस्सा दे दो। उन्हें ये बातें सुनकर बहुत ही दुःख हुआ और उन्होंने उसकी जमीन के हिस्से के पैसे दे दिए। उसने शहर जाकर थोड़ा कर्ज़ उतारा। घर की भी थोड़ी परेशानियाँ थीं, उनका भी प्रबंध किया। जब उसने देखा कि पैसा तो बहुत कम  बचा है। 
              उसके पैरों तले की ज़मीन ख़िसक गयी ,अब क्या करे? अब तो ज़मीन भी नहीं रही। अब उसे जीवन व्यर्थ नजर आने लगा ,चारों तरफ जिम्मेदारियों का बोझ, उसने वो पैसा व्यापार में न लगाकर अपने पास रख लिया और मेहनत करता कि किसी तरह व्यापार बढ़े। लेकिन तभी एक महामारी फैल गयी जो थोड़ी बहुत उम्मीद थी, वो भी ख़त्म हो गयी। घर में ही बैठना पड़ गया। पैसे धीरे -धीरे खत्म हो रहे थे ,आगे क्या होगा? यही सोचकर उसे गुस्सा आता। पत्नी को, कभी बच्चों को डांट देता। घर में क्लेश बढ़ता जा रहा था। मेरे बाद इन बच्चों का क्या होगा ?उसने एक फैसला किया शाम को सभी को अपने साथ ही ले जाऊँगा ,सब आराम से सो जायेंगे ,लेकिन जब बच्चों का चेहरा देखा, तो हिम्मत नहीं हुई।  अगले दिन का सोचकर वो सो गया।
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अगले दिन वो इसी उधेड़ -बुन में रहा। दोपहर को अचानक पिता आ खड़े हुए ,उन्हें देखकर उसकी रुलाई फूट पड़ी लेकिन अपने आँसू लेकर अलग कमरे में आ गया। सोच रहा था कि अपने पिता को ये अपना नाक़ाम चेहरा, कैसे दिखाऊं ?जब उन्हें पता चलेगा, मैं आज रात क्या करने वाला हूँ ?क्या सोचेंगे ,क्या इसी दिन के लिए मैंने पैदा किया था ?जब तो इतनी बड़ी -बड़ी बातें बना रहा था, यही सब सोचेंगे मेरे बारे में। उसकी आँखों से अपने -आप ही आँसू बह निकले। मैं अपने -माता -पिता के लिए भी कुछ न कर सका।  
           तभी बच्चे तैयार होकर अपने पिता के पास आये ,उन्हें देखकर उसे लगा, कितने प्यारे बच्चे हैं ?आज उसने पहली बार अपने बच्चों को नज़र भर कर देखा। बच्चे बोले -पापा आप भी तैयार हो जाओ ,दादाजी हमें लेने आये हैं। उसे कुछ समझ नहीं आया बोला -क्यों ?बच्चे वहाँ से भाग गए ,नए कपड़े पहनकर खुश हो रहे थे लेकिन सुरेश के लिए प्रश्न छोड़ गए। आज अचानक हमें लेने क्यों आ गए ?वो बाहर आया ,उसे देखकर पिता बोले -तू तो हमें भूल गया ,तेरी माँ की इच्छा है, बच्चों से मिलने की इसीलिए उसने भेजा है कि अब बच्चों के स्कूल भी नहीं हैं, तेरा काम भी बंद होगा, तो थोड़े दिन अपने माँ -बाप के साथ भी रह लो। उसका मन कर रहा था- कि पिता के पैर पकड़कर खूब रोऊँ ,उनके गले लग जाऊँ ,पर वो चुप रहा और तैयार होने चला गया। आज उसे जिंदगी में जीने का कुछ रास्ता दिखाई दिया ,उम्मीद की कुछ झलक दिखी। गाँव में माँ उसका इंतजार कर  रही थी सबने गर्म -गर्म खाना खाया, बच्चे अपने दादा -दादी के साथ खेलने लगे। सुरेश और  उसकी पत्नी आराम करने लगे , आज वो ऐसा महसूस कर  रहा था जैसे बच्चा अपनी माँ कि गोद में आराम करता है।  आज बहुत दिनों बाद वो सोया। 
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             सुबह उठा ,तो देखा पिता खेतों में जा चुके हैं। उसके कदम भी उस और बढ़ गए। आज अपने गाँव के रास्ते उसे अच्छे लग रहे थे ,वो सोच रहा था यदि कल पिता न आये होते तो आज  का दिन हम देख भी पाते या नहीं , सोचकर वो सिहर गया। उसने देखा, पिता उसी खेतों की जुताई करा रहे हैं  जो वो अपने हिस्से के कहकर  बेच गया था। वो वहाँ जाकर खड़ा हो गया।  पिता ने बताया- कि जिसे उसने वो खेत बेचे थे, पिता ने दो साल की आमदनी से, बैंक से ऋण लेकर वापस ले लिए। जो कुछ भी है तुम्हारा ही तो है। ,हमने जीवन में परेशानियाँ देखीं थीं लेकिन अपनी जड़ों से अलग नहीं हुए तभी आज भी हम सक्षम हैं।हम  अपना ही नहीं न जाने कितनों का पेट भरते हैं ?जब ये महामारी खत्म हो जाये, तो चले जाना। वो वापस घर आया तो उसने सुना -माँ कह रही थी-  बहु तूने अच्छा किया जो हमें फ़ोन कर दिया ,हम तो वैसे ही तुम लोगों की चिंता में परेशान थे।  कुछ दिन यहीं रहो, बच्चे भी यहाँ आकर खुश हैं। अब सुरेश को पिता के अचानक आने का पता चला पर उसे अच्छा लगा। अब वो पिता के साथ ही खेती में रूचि लेने लगा और पिता की देख -रेख में ही नए तरीकों से खेती करने लगा अब उसने वहीं रहने का फैसला ले लिया। सुरेश को पढ़ाया -लिखाया ,किसी क़ाबिल बनाने का प्रयत्न किया। वो बाहर गया तो उसे सब बहुत ही अच्छा लगा, बाहर की दुनिया इतनी खूबसूरत है, सब कुछ अच्छा लगता है। उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और बाहर ही रहने का फैसला किया। इस गांव में रखा ही क्या है ?गंदगी और गरीबी के सिवा ,उसे लग रहा था कि उसका जन्म कैसे इस गाँव में हुआ ?हुआ भी तो कितने वर्ष उसने कैसे इस गाँव में बिता दिए ?उसकी सोच में इतना बदलाव देखकर रामपाल जी पहले तो बहुत खुश हुए कि बेटा बाहर की दुनिया से जुड़ रहा है ,कौन माता -पिता नहीं चाहेंगे कि उनका बेटा उन्नति के पथ पर अग्रसर हो रहा है। लेकिन दूसरे ही पल कुछ सोचकर हिल जाते ,लेकिन फिर भी अपने को समझा लेते। बेटा बाहर से आता वो भी बुलाने पर तो एक रात भी वहाँ रुकना नहीं चाहता और आकर भी उन्हें ही समझाता कि क्या रखा है ,इस गाँव में ?,आप लोग भी मेरे साथ बाहर चलो। रामपाल जी कहते -यहाँ तुम्हारे पूर्वज हैं ,पिछले चार-पांच पुश्तों से हम यहाँ रह रहे हैं, यहाँ हमारी जमीन- जायदाद है। ये गाँव ही अब हमारी पहचान है। सुरेश बोला -गॉँव से हमारी क्या और किस तरह से पहचान है ?हम जहाँ रहने लगते हैं, वही हमारी पहचान होती है ,हमारे काम से ही हमारी पहचान होती है। 

              यहाँ रखा ही क्या है ?न ही तरक्की कर सकते हैं ,लेकिन बेटे तुम यहीं से पढ़ -लिखकर गये हो ,तुम्हें पढ़ाने का हमारा उद्देश्य यही था कि तुम तरक्की करो, यहाँ रहकर या वहाँ रहकर ,तुम्हें देखकर लोगों को भी प्रेरणा मिले। अपने गाँव की उन्नति हो ,इस गाँव में हमारी जड़ें हैं ,पेड़ फलता -फूलता है तभी तक जब तक वो अपनी जड़ों से जुड़ा रहता है। तुम कहीं भी चले जाओ फिर भी लोग यही पूछेंगे -कौन से गांव के हो या किस जगह के रहने वाले हो? सबको मालूम है कि शहरों में दूर -दूर से रोजी -रोटी कमाने के लिए ही लोग यहाँ आते हैं ,लेकिन उनकी जड़ें तो कहीं और होती हैं। रामपाल जी ने समझाया। लेकिन सुरेश पर तो जैसे शहर ही हावी था उन्होंने उससे कुछ न कहना ही उचित समझा। सुरेश तो जैसे सफलता की ऊचाइयों को छू लेना चाहता था उसने कई साल नौकरी की ,लेकिन वहाँ के खर्चे ,रहन -सहन उसकी जेब पर भारी पड़ रहे थे। अब उसका विवाह भी हो चु का था। इस बीच उसने अपनी पत्नी से भी कहा कि तुम भी पढ़ी -लिखी हो ,घऱ की आमदनी बढ़ाने में मदद कर सकती हो। अब दोनों पति -पत्नी काम में जुट गए। 
              परिवार बढ़ाने की सोच भी नहीं पा रहे थे ,लेकिन माता -पिता ने तीन -चार साल बाद कहना शुरू किया। अपने घर को बहुत ही सोच -समझकर ,योजना से चला रहे थे उम्र भी लगभग तीस पार हो रही थी उसने सोचा की अब परिवार बढ़ाने के लिए सोचना चाहिए। पत्नी को नौकरी छोड़नी पड़ी ,परिवार के साथ -साथ ख़र्चे भी बढ़े। जिम्मेदारियां भी बढ़ने लगीं। कमाते -कमाते सात -आठ साल हो गए ,आमदनी भी बढ़ी लेकिन अब वो पर्याप्त नहीं थी। शहर में हर चीज़ की कीमत देनी होती है। अब लगने लगा कि इतने साल नौकरी करने के बाद भी ,इतनी मेहनत करने के बाद भी जो सफलता उसने सोची थी उस तक वो नहीं पहुँच पाया है। पिता भी देर -सबेर कभी पैसों से, कभी सामान के द्वारा मदद करते रहते। उसे अब लगने लगा कि शहर में जिंदगी इतनी आसान भी नहीं, लगभग आधी जिंदगी तो संघर्ष करने में ही निकल जाएगी। नौकरी में इतना पैसा नहीं कि एक एक बेहतर जीवन जी सकें इसमें तो सिर्फ़ घर ख़र्च फ़िर बुढ़ापे तक एक फ्लैट ही आ सकता है। उसने तो अपनी जिंदगी से कुछ ज्यादा ही चाहा था। हार मानना नहीं चाह रहा था। 

            उसने फैसला किया कि नौकरी छोड़कर अब वो व्यापार करेगा ,व्यापार से ही वो ऐसा जीवन जी सकता है जिसकी उसने उम्मीद की है उसने अपने पिता से लेकर व थोड़ा इधर -उधर से पैसे लेकर व्यापार शुरू किया। व्यापार चला भी, उसमें लगाने को और भी पैसा चाहिए था अब नौकरी भी नहीं रही। अब वेतन भी नहीं रहा ,अपना खाना,अपना कमाना था, कम हो या ज्यादा। इधर -उधर काफी भागदौड़ की लेकिन जिन्होंने पैसा दिया था वो अब मॉँग रहे थे। अब परिस्थिति पहले से बद्तर होती जा रहीं थीं। उसे चारों तरफ परेशानियाँ ही नज़र आ रहीं थीं। पत्नी अब घर संभाले या नौकरी ,बच्चे अभी छोटे ही थे। उसने जिंदगी की शुरुआत ,बड़ी योजनाओं से की थी लेकिन ऐसा भी दिन आ जायेगा, ऐसा तो उसने सपने में भी नहीं सोचा था। उसने एक आख़िरी कोशिश करने की सोची। उसने पिता से जमीन बेचने की बात कही। रामपाल जी ने इंकार किया लेकिन वो अड़ गया कि मेरा हिस्सा दे दो। उन्हें ये बातें सुनकर बहुत ही दुःख हुआ और उन्होंने उसकी जमीन के हिस्से के पैसे दे दिए। उसने शहर जाकर थोड़ा कर्ज़ उतारा। घर की भी थोड़ी परेशानियाँ थीं, उनका भी प्रबंध किया। जब उसने देखा कि पैसा तो बहुत कम बचा है। 
              उसके पैरों तले की ज़मीन ख़िसक गयी ,अब क्या करे? अब तो ज़मीन भी नहीं रही। अब उसे जीवन व्यर्थ नजर आने लगा ,चारों तरफ जिम्मेदारियों का बोझ, उसने वो पैसा व्यापार में न लगाकर अपने पास रख लिया और मेहनत करता कि किसी तरह व्यापार बढ़े। लेकिन तभी एक महामारी फैल गयी जो थोड़ी बहुत उम्मीद थी, वो भी ख़त्म हो गयी। घर में ही बैठना पड़ गया। पैसे धीरे -धीरे खत्म हो रहे थे ,आगे क्या होगा? यही सोचकर उसे गुस्सा आता। पत्नी को, कभी बच्चों को डांट देता। घर में क्लेश बढ़ता जा रहा था। मेरे बाद इन बच्चों का क्या होगा ?उसने एक फैसला किया शाम को सभी को अपने साथ ही ले जाऊँगा ,सब आराम से सो जायेंगे ,लेकिन जब बच्चों का चेहरा देखा, तो हिम्मत नहीं हुई। अगले दिन का सोचकर वो सो गया।

अगले दिन वो इसी उधेड़ -बुन में रहा। दोपहर को अचानक पिता आ खड़े हुए ,उन्हें देखकर उसकी रुलाई फूट पड़ी लेकिन अपने आँसू लेकर अलग कमरे में आ गया। सोच रहा था कि अपने पिता को ये अपना नाक़ाम चेहरा, कैसे दिखाऊं ?जब उन्हें पता चलेगा, मैं आज रात क्या करने वाला हूँ ?क्या सोचेंगे ,क्या इसी दिन के लिए मैंने पैदा किया था ?जब तो इतनी बड़ी -बड़ी बातें बना रहा था, यही सब सोचेंगे मेरे बारे में। उसकी आँखों से अपने -आप ही आँसू बह निकले। मैं अपने -माता -पिता के लिए भी कुछ न कर सका।  
           तभी बच्चे तैयार होकर अपने पिता के पास आये ,उन्हें देखकर उसे लगा, कितने प्यारे बच्चे हैं ?आज उसने पहली बार अपने बच्चों को नज़र भर कर देखा। बच्चे बोले -पापा आप भी तैयार हो जाओ ,दादाजी हमें लेने आये हैं। उसे कुछ समझ नहीं आया बोला -क्यों ?बच्चे वहाँ से भाग गए ,नए कपड़े पहनकर खुश हो रहे थे लेकिन सुरेश के लिए प्रश्न छोड़ गए। आज अचानक हमें लेने क्यों आ गए ?वो बाहर आया ,उसे देखकर पिता बोले -तू तो हमें भूल गया ,तेरी माँ की इच्छा है, बच्चों से मिलने की इसीलिए उसने भेजा है कि अब बच्चों के स्कूल भी नहीं हैं, तेरा काम भी बंद होगा, तो थोड़े दिन अपने माँ -बाप के साथ भी रह लो। उसका मन कर रहा था- कि पिता के पैर पकड़कर खूब रोऊँ ,उनके गले लग जाऊँ ,पर वो चुप रहा और तैयार होने चला गया। आज उसे जिंदगी में जीने का कुछ रास्ता दिखाई दिया ,उम्मीद की कुछ झलक दिखी। गाँव में माँ उसका इंतजार कर रही थी सबने गर्म -गर्म खाना खाया, बच्चे अपने दादा -दादी के साथ खेलने लगे। सुरेश और उसकी पत्नी आराम करने लगे , आज वो ऐसा महसूस कर रहा था जैसे बच्चा अपनी माँ कि गोद में आराम करता है। आज बहुत दिनों बाद वो सोया। 

             सुबह उठा ,तो देखा पिता खेतों में जा चुके हैं। उसके कदम भी उस और बढ़ गए। आज अपने गाँव के रास्ते उसे अच्छे लग रहे थे ,वो सोच रहा था यदि कल पिता न आये होते तो आज का दिन हम देख भी पाते या नहीं , सोचकर वो सिहर गया। उसने देखा, पिता उसी खेतों की जुताई करा रहे हैं जो वो अपने हिस्से के कहकर बेच गया था। वो वहाँ जाकर खड़ा हो गया। पिता ने बताया- कि जिसे उसने वो खेत बेचे थे, पिता ने दो साल की आमदनी से, बैंक से ऋण लेकर वापस ले लिए। जो कुछ भी है तुम्हारा ही तो है। ,हमने जीवन में परेशानियाँ देखीं थीं लेकिन अपनी जड़ों से अलग नहीं हुए तभी आज भी हम सक्षम हैं।हम अपना ही नहीं न जाने कितनों का पेट भरते हैं ?जब ये महामारी खत्म हो जाये, तो चले जाना। वो वापस घर आया तो उसने सुना -माँ कह रही थी- बहु तूने अच्छा किया जो हमें फ़ोन कर दिया ,हम तो वैसे ही तुम लोगों की चिंता में परेशान थे। कुछ दिन यहीं रहो, बच्चे भी यहाँ आकर खुश हैं। अब सुरेश को पिता के अचानक आने का पता चला पर उसे अच्छा लगा। अब वो पिता के साथ ही खेती में रूचि लेने लगा और पिता की देख -रेख में ही नए तरीकों से खेती करने लगा अब उसने वहीं रहने का फैसला ले लिया। 
प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत खूबसूरत लिखा आपने 😊😊

4 जून 2023

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रचनाएँ
प्रेरक कहानियाँ
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ज़िंदगी में अनेक घटनाएँ -दुर्घटनाइयें,होती हैं,ज़िंदगी जाने -अंजाने अनेक परेशानियों से गुजरती है,इस ज़िंदगी में अनेक रिश्ते भी होते हैं जिनसे हमें कुछ न कुछ सीख मिलती है,सीखने की कोई उम्र नहीं होती चाहे कोई छोटा हो या बड़ा। जीवन में हर पल कुछ न कुछ सीख या प्रेरणा मिल ही जाती है कई बार कुछ सोचने को मजबूर जाती हैं ये कहानियाँ,कई बार आईना दिखा जाती हैं,ये कहानियाँ । इन कहानियों में जीवन के अनेक रंग देखने को मिलेंगे,सही या गलत सोचने पर मजबूर हैं ये कहानियाँ!
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जड़ें

7 नवम्बर 2022
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सुरेश को पढ़ाया -लिखाया ,किसी क़ाबिल बनाने का प्रयत्न किया। वो बाहर गया तो उसे सब बहुत ही अच्छा लगा, बाहर की दुनिया इतनी खूबसूरत है, सब कुछ अच्छा लगता है। उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और बाहर ही रहने का फैसला

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बड़ी बहु

8 नवम्बर 2022
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शर्मा जी के बड़े बेटे का विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ ,बेटा -बहु दोनों पढ़े -लिखे।लड़की का घर -, परिवार के लोग भी बहुत ही अच्छे हैं। सुंदर होने के साथ -साथ , संस्कारी बहु मिली है ,शर्मा जी के तो जैसे भा

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अनदेखा, अनसुना

9 नवम्बर 2022
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प्रातः काल का समय था ,हल्की ठंड भी पड़ रही थी। एक महिला ,अपनी बेटी के संग ,मेरे घर के दरवाज़े पर खड़ी थी। सुबह -सुबह कौन आ गया ?मैंने थोड़ा परेशान होते हुए ,निर्मला को देखने के लिए भेजा। अब मैं

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वो रात......

10 नवम्बर 2022
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वो रात.... वो रात्रि मेरे लिए ही थी ,मेरे लिए ही तो... सभी कार्य हो रहे थे ,सभी मेरे आगे -पीछे घूम रहे थे। उस रात्रि की'' मल्लिका'' मैं ही थी ,कुछ वर्ष पहले ही तो ,मैं अपने' पापा

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दुःस्वपन

11 नवम्बर 2022
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दीप्ती अति शीघ्रता से अपनी बिल्डिंग से नीचे आती है ,और गाड़ी में बैठकर चल देती है। आज वो देर से उठी, जिस कारण उसे देरी हो रही थी। वो अपनी गाड़ी को ,अपने दफ़्तर की ओर ,तेज़ गति से दौड़ा रही थी। आज &nbs

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शापित जीवन

12 नवम्बर 2022
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शापित कोई स्थान ,व्यक्ति अथवा कोई वस्तु नहीं होती ,वरन शापित उसका अपना जीवन ही हो जाता है। जिस जीवन को, वो जी रहा है ,उस जीवन को जीते -जी ठीक से नहीं जी पाता। लोग कहते हैं -''ये जीवन अमूल्य है ''&nbsp

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हद- बेहद

14 नवम्बर 2022
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गोलियों की बौछार का सामना करते हुए, वो आगे बढ़ रहे थे। दुश्मन भी कम नहीं था ,हम उनके लोगों को मारते ,फिर भी न जाने कहाँ से और बढ़ जाते। क्या हमसे कोई खेल खेल रहे थे ?निश्चित स्थान से ,हम आगे

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मेरे साथ ही क्यों?

15 नवम्बर 2022
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बहु.......... जी माँजी ,कहते हुए ,पारुल तेज गति से उनके समीप आई। तुझसे कितनी बार कहा है ?उस बड़े कमरे की सफाई कर देना ,जब

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देर रात

17 नवम्बर 2022
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तृप्ति ,डॉक्टरी की पढ़ाई कर रही थी ,मम्मी -पापा की लाड़ली ,मम्मी का सपना था कि बड़ी होकर ,तृप्ति डॉक्टर बने। वो ''दिल ''की डॉक्टर बनना ,चाह रही थी किन्तु एक समय परिस्थिति ऐसी बनी कि वो जच्चा -बच्चा

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लौटा दो!

19 नवम्बर 2022
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मानिनी'' का जब भी देखो , किसी न किसी बात पर'' मेहुल'' से झगड़ा हो ही जाता है।आज भी मेहुल बिना खाना खाये घर से निकल गया। उसने कहा भी ,कि खाना खाकर जाओ !लेकिन मेहुल ने गुस्से में उसकी किसी भी बात पर

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नई उड़ान

22 नवम्बर 2022
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रमा बड़ी बेचैनी से बार -बार मंच की तरफ देख रही थी ,फिर उठकर अंदर की तरफ चली गयी। वहाँ जाकर देखा- सब ठीक है या नहीं, तभी दीपा के कपड़ों की एक डोर खुली नज़र आई ,उसने दीपा को टोका और अपनी स

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जसोदा

24 नवम्बर 2022
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जसोदा पढ़ी -लिखी नौकरी पेशा महिला है ,माँ -बाप ने खूब चाहा कि ये पढ़े न ,और विवाह करके अपना घर बसा ले, किन्तु उसके तो सपने ही अलग थे और वो इस तरह माता -पिता के दबाव में आने वाली भी नहीं थी। उसने तो पहले

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एकांत

24 नवम्बर 2022
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सुबह के पाँच बज चुके थे ,अलार्म बजे जा रहा था। वो अभी और सोना चाहती थी ,लेकिन क्या करे ? मजबूरी है उठना तो है ही ,फिर लेट हो जाउंगी। ये विचार आते ही उसने फुर्ती से अलार्म बंद किया और एकदम

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एक मुलाकात

22 मई 2023
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आज भी वही हुआ ,जिसका डर था , वो लोग चुपचाप चले गए। नंदिनी तो चाहती थी ,कि अभी जबाब मिल जाये ,किन्तु पति ने समझाया , उन्हें अपने घर जाकर सलाह -मशवरा तो करने दो ,एक -दो दिन में जबाब दे देंगे। सुरेश जी

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वो भयानक रात

23 मई 2023
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बड़ी भयावह वो काली अंधियारी रात्रि थी। मैं उस ठंडी सुनसान काली रात्रि को चीरता चला जा रहा था। ठंड भी अपने पूरे जोरों पर थी। दोस्त ने कहा भी था, आज यहीं आराम कर ले। जब इतनी दूर से आया है तो बेटी को विदा

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मुक्ति

30 मई 2023
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मौली अपने दोस्तों संग मस्त थी ,वो अपने दोस्तों के साथ गोवा घूमने जा रही है ,इसीलिये तैयारी में लगी है ,तभी उसके फोन की घंटी बजी। मौली ने नाम देखा और मुँह बनाते हुए ,फ़ोन पर बातें करने लगी -क्या मम्मी ,

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कड़वाहट

31 मई 2023
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चित्रा, कोई भी त्यौहार हो बड़े जोर -शोर से तैयारी करती है ,अब तो उसके सुहाग का त्यौहार ''करवा चौथ ''आ रहा है। आज बाजार गयी और नये कपडे ,शृंगार का सामान ,साथ ही बच्चों के कपड़े भी ले आई .बड़े उत्साह से

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असीमित आकाश

1 जून 2023
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काम तो प्रतिदिन का है, किन्तु आज रीमा के हाथों में जैसे बिजली लगी है ,वो प्रतिदिन से अधिक फुर्ती से कार्य कर रही है ,वह शीघ्र अति शीघ्र अपना कार्य निपटाने का प्रयत्न कर रही है। हो भी क्यों न ?क्य

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तूफान

2 जून 2023
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नवलकिशोर जी के मन में ,आज 'तूफान 'मचा है ,बाहरी वातावरण भी उसके सामने कोई मायने नहीं रखता। वो बस यूँ ही चले जा रहे हैं। कुछ समझ नहीं आता ,कहाँ जाएँ ,क्या करें ? दुनिया में देखा जाये ,तो आज के समय में

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हिजाब

3 जून 2023
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मानिनी कॉलिज में आती है ,आज तरन्नुम ने आने में देर कर दी। मानिनी और तरन्नुम दोनों अच्छी दोस्त हैं। दोनों ही साथ रहती हैं , एक ही कक्षा में ,साथ ही बैठती हैं। जिस दिन एक भ नहीं आती ,दूसरी का मन नही

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गुल्लक

4 जून 2023
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रेवती अपनी सास की, बड़े मन से सेवा करती थी ,उनकी हर चीज का ध्यान रखती थी ताकि किसी भी प्रकार की उन्हें परेशानी न हो। जब उनकी स्वयं की बहु आ आयीं ,तब भी उनके सम्पूर्ण कार्य स्वयं ही करतीं। उनकी सास यान

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फर्क

7 जून 2023
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इस माह नौचंदी का मेला लगने वाला है, किन्तु किसी को क्या फ़र्क पड़ता है ? जाना तो है नहीं ,जाकर भी क्या करना ,मेले में जाने के लिए भी तो, पैसा ही चाहिए। मेला तो पैसे से है ,पैसे वाल

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घर की याद

8 जून 2023
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पुलकित आँखें खोलकर देखता है ,वो बगीचे की बेंच पर लेटा था। अब उसे सब स्मरण हो जाता है। किस तरह वो अपने मम्मी -पापा से नाराज होकर ,घर से भाग आया ? पुलकित ऐसे ही किसी छोटे -मोटे परिवार से नहीं है। उसके

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मेरे साथ ही क्यों?

10 जून 2023
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बहु.......... जी माँजी ,कहते हुए ,पारुल तेज गति से उनके समीप आई। तुझसे कितनी बार कहा है ?उस बड़े कमरे की सफाई कर देना ,जब

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टास्क

12 जून 2023
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शादी के बाद उसने ससुराल में कदम रखा ही था ,कि सास के तीखे तेवर और गर्म मिज़ाज उसे कुछ ही दिनों में पता चल गए। उसने देखा कि जिस व्यक्ति से उसका विवाह हुआ है ,वो तो कुछ बोलता ही नहीं। जो चाहता है ,बस

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अधूरापन

14 जून 2023
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सुगंधा पिता के घर में रही ,अरमान तो बहुत थे ,किन्तु पिता के सख़्त कानून के कारण ,न कहीं आना , न कहीं जाना ,इच्छाएँ ,आकाश की अनंत ,ऊंचाइयों को छूना चाहती किन्तु उसका आसमान सीमित था। कुछ तो घर का अनुशा

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मिट्टी के खिलौने

15 जून 2023
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रामदीन कुम्हार ,प्रतिदिन जोहड़ से चिकनी मिटटी लाता और उसे पैरों से रोंद्ता ,जब वो मिटटी बर्तन बनाने लायक हो जाती तो उसे चाक पर रखकर ,बड़े क़रीने से ,सुंदर -सुंदर मिटटी के बर्तन बनाता। ये उसकी कला ही नह

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भाग्य का खेल

16 जून 2023
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आज मैं अपनी डायरी को ज़िंदगी के एक पहलू कहूँ या कुछ और, किन्तु इतना मैं अवश्य जानती हूँ ,उसे हम भाग्य अथवा क़िस्मत कहते है -इनके इशारों पर ही तो ,हमारी ज़िंदगी चलती है। हम सोचते हैं -जो भी कार्य हम कर रह

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माँ

17 जून 2023
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चम्पाकली 'ताई आज बहुत प्रसन्न है क्योकि उनके दो बेटे ,दो ही बहुएं हैं किन्तु ये उनकी प्रसन्नता का कारण नहीं ,उनकी प्रसन्नता का कारण ,उनका दादी बनना है। दोनों बहुएं ही गर्भवती थीं और अब दोनों ही माँ ब

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संगीत प्रेम

20 जून 2023
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काव्या बहुत ही प्यारी बच्ची है ,मन उसका बहुत ही कोमल है ,सबसे प्रेमपूर्ण व्यवहार करती। दुश्मनी ,लड़ाई क्या होती है ?जैसे वो जानती ही नहीं ,उसे तो सभी अपने ही नजर आते ,छल -कपट से तो उसका दूर -दूर तक वास

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समुद्र तट

22 जून 2023
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कार्तिक और मोना प्रतिदिन , अपने दफ्तर से आते समय कुछ देर ,समुन्द्र के तट पर बैठकर अपनी दिनभर की थकान मिटाते। मोना जब पहली बार अपने दफ्तर में आई ,तब उसकी सबसे पहले मुलाक़ात कार्तिक से ही हुई। कार्तिक न

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दरार

23 जून 2023
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पार्वती जी ,दुखी परेशान ,अपने कमरे में आती हैं और अपने पलंग पर बैठकर ,गहरी स्वांस भरती हैं और अपनी आँखें बंद कर लेती हैं। मैं कितना भी अच्छा सोच लूँ या कर लूँ ?किन्तु इसे अपना नहीं बना सकती ,ये 'दरा

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पहाड़ी प्रेम

29 जून 2023
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ज्योति...... ओ ज्योति....... ! दूर से आती, मौसी की आवाज सुनाई दी। आई मौसी ! कहकर मैं बंसी से बोली -कल आउंगी तब खेलेंगे ,अब मौसी बुला रही है। बंसी ने हाँ में गर्दन हिलाई और मैं ,दौड़ते हुए मौसी के

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भूतों से बातचीत

1 जुलाई 2023
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नंदिनी जैसे ही , अपनी कक्षा में पहुंची -उसने देखा ,सभी बच्चे ,तुषार की सीट के पास खड़े हैं। ये सब क्या हो रहा है ?सभी बच्चे वहाँ क्या कर रहे हैं ? नंदिनी को देखते ही ,सभी बच्चे दौड़कर अपनी -अपनी सीट पर

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पैसा

2 जुलाई 2023
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रतनलाल जी ने कितना पैसा कमाया ? रात -दिन एक कर दिया। शानदार कोठी भी बनाई ,बच्चों को महंगे से महंगे स्कूल में पढ़ाया। सबकुछ तो उनके पास है ,किसी चीज की भी कमी नहीं ,पत्नी के पास भी जेवरों की कोई कमी नह

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गड़बड़ घोटाला

3 जुलाई 2023
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मैं प्रतिदिन की तरह ,जब परिवार के सभी सदस्य अपने -अपने काम पर चले जाते ,तब घर की साफ -सफाई और बाहर बगीचे में पानी देना जैसे कार्य करती। एक दिन जब मैं अपने पौधों को पानी दे रही थी ,तभी मैंने देखा ,स्क

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रिश्तेदार जलते हैं!

4 जुलाई 2023
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कितनी ख़ुशी की बात है ?कीर्ति तुमने पढ़ाई पूरी करने के साथ -साथ ,तुम्हारी नौकरी भी लग गयी। एक पार्टी तो अवश्य बनती है। क्या ख़ाक पार्टी बनती है ?तुम सभी दोस्तों को ही पार्टी दूंगी ,मम्मी -पापा के लि

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कीमत, समय की

7 जुलाई 2023
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अतुल बहुत ही बिगड़ैल और अड़ियल है ,देखने में तो वो बहुत जचँता है ,उसे देखेंगे तो कह उठेंगे कि किसी बड़े घर का बेटा हो लेकिन उसका स्वभाव उसकी शक़्ल और व्यक्तित्व से बिल्कुल विपरीत है। वो न ही किसी की बात

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कीमती

9 जुलाई 2023
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राधा जब ,मोहन से मिली ,उसे देखते ही , अपना दिल दे बैठी ,मोहन की हालत भी कुछ ऐसी ही थी। पहली बार दोनों ,राधा की सहेली के घर पर,उसकी जन्मदिन की पार्टी में ,उससे मिली। जितनी खूबसूरत राधा लग रही थी, उतना

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मृत्यु पर विजय

10 जुलाई 2023
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पल -पल मरता है ,इंसान ! जीने की तमन्ना में ! टूटता है ,बिखरता है, जिन्दा रहने की चाह में !खो देता है ,अपनों का साथ ,जीता है स्वांसों में !स्वांसों का ही खेल है , जिन्दा रहने की आस में !कुछ लोग जी

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भूतिया हवेली

12 जुलाई 2023
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श.... श.... श.... श.... आज आपको एक''अज़ीबो ग़रीब प्रेम की '' कहानी सुनाती हूँ। जानते हैं ,ये जो हवेली है ,ठाकुरों की है ,बहुत ही रुआब था। ठाकुर ''बलदेव सिंह '' अपने नाम की तरह ही बलवान ,बुद्धिमान और रौब

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सुरक्षा कवच

14 जुलाई 2023
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माँ 'तुम अब यहाँ ,अकेली क्या करोगी ? अब तुम भी हमारे संग चलकर रहो !अनंत अपनी माँ से बोला। बेटा ! सम्पूर्ण ज़िंदगी इस शहर में बिता दी ,अब इधर -उधर जाकर क्या करूंगी ? जब तू छोटा था ,तब सोचा करती थी

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बदलते रंग

16 जुलाई 2023
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आज घर में खीर -पूरी ,मालपुए दो सब्ज़ियाँ और बूँदी का रायता बना है क्योंकि आज बहुओं का व्रत है ,आज के दिन सुहागन महिलायें अपने पति की लम्बी उम्र ,और अच्छे स्वास्थ के लिए पूजा करती हैं और अपने घर की बड़ी

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वो सुबह!

17 जुलाई 2023
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कितना सुहावना मौसम है ?रंजन अपने बच्चों से कहता है -चलो !आज कहीं घूमने चलते हैं। बाहर हल्की - हल्की बूंदा -बांदी हो रही थी। बच्चे खुश हो जाते हैं और दौड़कर अपनी मम्मी के पास जाते हैं। मम्मी ! पापा कह

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लडाई

19 जुलाई 2023
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श्रेया ,अपने आप से ही , कितना लड़ रही थी ? ये तो वो ही जानती है।अब तो जीवनभर संघर्ष ही करना है। पहले पढ़ाई में संघर्ष किया क्या विषय लेने हैं ,कौन सा स्कूल चुनना है ? स्कूल में भी ,प्रतिशत में नंबर लाने

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सूर्यास्त और हम

20 जुलाई 2023
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रामलाल जी के घर में ,फोन की घंटी बज रही थी ,उनके बेटे की बहु फोन उठाती है और रामलाल जी से कहती है -पापा जी !आपका फोन है। किसका है ? पूछो कौन है ?और क्या कहना चाहता है ?शिरोमणि अंकल हैं ,और आपसे

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धड़कन

21 जुलाई 2023
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पंकज हमेशा अपनी ही चलाता है , किसी की भी नहीं सुनता ,सुमित्रा जी हमेशा ,एक उम्मीद के सहारे आगे बढ़ उसका समर्थन करतीं और कहतीं -पंकज ,अभी बच्चा है ,समझदार हो जायेगा ,तब सब समझने लगेगा ,कहना भी मानेगा कि

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मेन्ढकी

22 जुलाई 2023
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गर्मी से बुरी हालत थी ,नहाते -नहाते भी पसीने आ जाते। खेती पर काम करने वाले भी खेतों से ,वापस आ गए। सभी को ,बरसात की इच्छा हो चली थी। आपस में कहते -न जाने बरसात कब होगी ?यदि शीघ्र ही बरसात नहीं हुई तो

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बरसात

23 जुलाई 2023
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बरसात का मौसम ''आते ही मन झूमने लगता है ,बारिश की ठंडी -ठंडी फुहार तन को ही नहीं ,मन को भी भिगो जाती हैं। चारों तरफ धुली -धुलि सी ,हरियाली ,लगता है जैसे ,प्रकृति ने धानी चुनर ओढ़ ली हो। बच्चों की तो बर

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एक ही गलती

25 जुलाई 2023
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सुधा खिड़की के पास बैठी ,चाय पी रही थी ,तभी उसकी बेटी ने उसे पुकारा ,मम्मी ,मैंने अपना गृहकार्य कर लिया। ठीक है ,जाओ !अब जाकर बाहर बच्चों के साथ खेल लो !ठीक है ,कहकर वो बाहर की तरफ दौड़ी ,तभी सुधा ने उस

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