श्रेया ,अपने आप से ही , कितना लड़ रही थी ? ये तो वो ही जानती है।अब तो जीवनभर संघर्ष ही करना है। पहले पढ़ाई में संघर्ष किया क्या विषय लेने हैं ,कौन सा स्कूल चुनना है ? स्कूल में भी ,प्रतिशत में नंबर लाने हैं। पास होने वाले को, बाहर वाले क्या ? घरवाले भी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखते। उनकी नजरों को ,उनके बदले व्यवहार को देखकर ही ,आदमी अपनी नजरों में ही गिर जाता है। जैसे -तैसे स्कूल का सफ़र तय किया ,अब कॉलिज जाने की लड़ाई ,कॉलिज में दाखिले के लिए मारामारी ,लाइन में घंटों खड़े होना ,कभी फॉर्म भरने जाना ,कभी शुल्क जमा करने के लिए ,बैंक के चक्कर लगाना। इस जीवन में लड़ाई के सिवा है ही क्या ?किसी तरह पढ़ाई पूर्ण भी की ,तो नौकरी के लिए बसों के धक्के खाना ,जब थककर आओ ! तो माता -पिता की नसीहतें -हमने भी अपने जीवन में बहुत पापड़ बेले हैं ,ज़िंदगी आसान नहीं।
कहते तो सही हैं ,बस सबकी समस्याएं अलग -अलग होती हैं किन्तु लगता है ,अपने जीवन में कोई व्यक्ति ही ऐसा होगा ,जो समस्याओं से दो -चार न हुआ हो। इतनी लड़ाइयां लड़ने के पश्चात ,भी जीवन की लड़ाई समाप्त नहीं हुई। सोच रही थी - मम्मी से कहूं या नहीं ,सोचा था ,ये मेरी लड़ाई है ,मैं ही संभाल लूँगी किन्तु मेरे दफ्तर के बॉस को तो जैसे मुझसे चिढ़ हो गयी है। मेरी हर चीज में कमियाँ निकालता है ,उसने तो जैसे सोचा हुआ है ,कब दिन निकले और कब मैं अपने दफ्तर जाकर उस लड़की में कमियाँ गिनाऊँ।
माता -पिता खुश थे ,बेटी पढ़कर अब अपनी नौकरी पर लग गयी किन्तु माँ तो माँ होती है , श्रेया की माँ ने महसूस किया ,बेटी जैसे पहले खिलीखिली सी और खुश रहती थी। अपने भाई से भी लड़ती -झगड़ती रहती थी। अब जैसे बिल्क़ुल शांत हो गयी है। बेटी के बदले बदलाव को देखकर ,कुसुम जी ने उससे पूछा - बेटा ,किसी तरह की कोई परेशानी तो नहीं है ,सब ठीक है।
हाँ ,मम्मी थोड़ी नई जगह है , वातावरण में ढलने में थोड़ा समय लगेगा ,काम भी ज्यादा है कहकर वो चुप गयी।
बेटी इस तरह शांत रहे गुमसुम सी रहे ,ये बात कुसुम को पसंद नहीं आ रही थी ,उसने बचपन से लेकर अपनी बेटी को देखा है ,उसके व्यवहार को जानती और समझती हैं ,उसकी अपने भाई से दिन में ,एक बार भी लड़ाई न हो ,ऐसा तो हो ही नहीं सकता था ,वो उसे चिढ़ाता था और वो चिढ़कर उसके पीछे भागती थी ,ये बच्चों की लड़ाई भी ,उन दोनों पति -पत्नी को सुकून का एहसास देती थी। माना कि अब वो बच्चे भी नहीं रहे किन्तु इतने बड़े भी नहीं कि चेहरे पर ,गंभीरता का चोला ओढ़े रखें ,आपस में बातचीत भी न करें। बच्चों की ये चुहलबाजी ही तो उनके लिए 'टॉनिक 'का कार्य करती थी।
आज रविवार की छुट्टी है ,श्रेया ,आओ !तुम्हारे सर में तेल डाल दूँ कुसुम ने श्रेया को पुकारा।
नहीं मम्मी ,अभी मूड नहीं है ,अंदर से आवाज आई।
भला ,ये भी क्या बात हुई ? तेल मैं डालूंगी ,डलवाना तुझे है ,वो भी नहीं हो रहा।
तभी प्रमोद दौड़ता हुआ आया और बोला -मम्मी ये तो नौकरी वाली ,ऑफिसवाली हो गयीं हैं ,पार्लर में जाएँगी ,अब इन्हें आपके हाथों की तेल मालिश कहाँ भाएगी ? आप मेरे सर में मालिश कर दो ! ये तो बॉस की चमची हो गयीं हैं।
प्रमोद की बातें सुनकर ,श्रेया को क्रोध आया और बाहर आई ,बोली -तूने ,मुझे बॉस की चमची क्यों कहा ?
आप हो !बॉस की चमची !अब न ही खेलती हो ,न ही किसी चीज में दिलचस्पी लेती हो ,अब तो आपमें लड़ने की ताकत भी नहीं रही ,कहकर वो उठकर भागा। तभी कुसुम ने अपनी बेटी का हाथ पकड़ लिया और अपने करीब खींच लिया ,उसके सिर पर हाथ फेरा और बोली -वो ठीक ही तो कह रहा है ,तू कितना बदल गयी है ?मैंने तुझसे कितनी बार पूछा किन्तु तूने मुझे, कुछ भी बताना उचित न समझा। कहते हुए ,उसका चेहरा उठाया और पूछा -मेरी बच्ची ,अपनी माँ को भी नहीं बताएगी।
इतना कहते ही वो भावुक हो उठी ,बोली -मम्मी ,मेरा बॉस मेरे साथ पहले तो अश्लील हरकतें करने लगा ,किन्तु जब मैंने उसे डपट दिया कि मैं कोई ऐसी -वैसी लड़की नहीं हूँ ,आपकी समझदारी इसी में है ,कि जिस कार्य के लिए हमें यहाँ रखा गया है ,वही करें।
ये तो तूने ठीक किया ,मैं होती तो उसके इस व्यवहार के लिए ,दो तमाचे जड़ देती।
तमाचे तो ,मैं भी मार सकती थी किन्तु नौकरी का सवाल था ,मेरे कहने पर उसने अश्लील हरकतें तो नहीं कीं किन्तु अब वो मुझसे चिढ गया है ,मैं केेसा भी काम कर लूँ ,मेरे हर काम में कमियां निकालता है। और कभी -कभी स्टाफ के सामने बेइज्जती भी कर देता है।
श्रेया की बात सुनकर ,कुसुम बोली -तू तो मेरी बहादुर लड़की है ,तेरे कार्य में ,यदि कोई कमी है तो उसे ठीक करना ,जब इतनी लड़ाई लड़ी है तो आगे भी साहस से कार्य करना। यदि फिर भी वो तंग करता है ,तो उसे ठीक भी कर देना ,तू समझ रही है ,न... मैं क्या कह रही हूँ ? तू नौकरी करती है ,कोई उसकी गुलाम नहीं है ,कायदे की बात करे तो ठीक ,नहीं तो उसे आइना दिखा देना। ज़िंदगी में ऐसी छोटी -मोटी लड़ाइयों से घबराना नहीं चाहिए ,उन लड़ाइयों को लड़ना ,उनसे सीखना और उन्हें जीतना ही ज़िंदगी है।
माँ के इस तरह मनोबल बढ़ाने से ,श्रेया में जो आत्मविश्वास डगमगाने लगा था ,वह अब और मजबूत हो गया। उसने मन ही मन निश्चय किया ,अपनी लड़ाई लड़ेगी भी और जीतेगी भी।