कितना सुहावना मौसम है ?रंजन अपने बच्चों से कहता है -चलो !आज कहीं घूमने चलते हैं। बाहर हल्की - हल्की बूंदा -बांदी हो रही थी। बच्चे खुश हो जाते हैं और दौड़कर अपनी मम्मी के पास जाते हैं। मम्मी ! पापा कह रहे हैं -'आज मौसम अच्छा है ,चलो बाहर घूमने चलते हैं। '
रागिनी अभी तो रसोईघर से बाहर आई है ,अब थोड़ी सी आराम के मूड़ में थी ,बोली -नहीं ,अब मुझे कहीं नहीं जाना ,अभी तो नाश्ता बनाकर हटी हूँ ,अब तुम लोगों को तैयार करने लग जाऊँ।
दोनों बच्चों के चेहरे उतर गए और वो बाहर आ गए।
क्या हुआ ? रंजन ने पूछा।
मम्मी ने मना कर दिया ,वो थकी हुई हैं ,कार्तिक अपना चेहरा लटकाकर बोला।
कोई बात नहीं ,मम्मी को थोड़ा आराम करने दो उसके पश्चात हम दूर नहीं तो पास ही चलेंगे ,तब तक हम लोग तैयार हो जाते हैं। बच्चे उसकी बात से खुश हो गए ,पहले तीनो नहाये और फिर तैयार हो गए।आज बाहर जाने की ख़ुशी में स्वयं ही तैयार हो गए , इस कार्य में लगभग उन्हें एक घंटा हो गया। जब रागिनी बाहर आई ,तब रंजन बोला -आज दोपहर का खाना ,हम लोग बाहर ही खाएंगे ,तुम तैयार हो जाओ !
ये सुनते ही ,रागिनी खुश हो गयी और तैयार होने चली गयी ,तब तक रंजन ने गाड़ी बाहर निकाल ली। वो आज बच्चों को उस पार्क में ले जा रहा था ,जो बहुत बड़ा था और बचपन में रंजन की कई बार इच्छा हुई कि उसमें जाया जाएँ किन्तु परिस्तिथियाँ ऐसी रहीं कि कभी जाना ही नहीं हुआ। उधर से गुजरते हुए कई बार सोचता ,अंदर जाकर देखूं ,लोग यहाँ कैसे घूमने आते हैं ?कैसे शांति से घूम लेते हैं ?यहाँ तो जिंदगी में इतनी हलचल मची हुई है। एक -एक मिनट भी कीमती लगता है किन्तु आज वो अपने बच्चों के साथ ,इसी पार्क में घूमने आया है। उसमें अंदर जाने का टिकट है ,क्या समय आ गया है ,जब इसमें टिकट भी नहीं लगा था ,तब हमें समय नहीं था ,आज आज समय है ,तो टिकट लग गया। पत्नी के साथ ,बच्चों को अंदर भेज दिया। और वो टिकट लेने लगा। बाहर से खाना भी मंगवा लिया।
अंदर जाकर ,बच्चे बहुत ही खुश थे ,इधर से उधर दौड़ लगा रहे थे ,बारिश की बूंदों से खेल रहे थे ,तब उन्होंने एक रमणीक स्थल पर बैठकर खाना खाया ,खाना खाकर रंजन को थोड़ी सुस्ती भी आ गयी। और वो रागिनी की गोद में सर रखकर लेट गया। आज वो बहुत खुश है ,किन्तु उसके कानों में स्वर सुनाई पड़ रहे थे -सुनैना ,आज मकान -मालिक ने मकान खाली करने के लिए कह दिया है ,कुछ समझ नहीं आ रहा क्या किया जाये ? नंदकिशोर जी से जो पैसे उधार लाया था धीरे -धीरे वे भी खर्च हो गए ,लाया तो ,किसी काम धंधे के लिए था किन्तु परचून वाला शोर मचा रहा था ,उसके दिए ,दूधवाले के पैसे चुकाए ,दो महीने का किराया चुकाया ,एक का अभी बाकि रह गया किन्तु अब मकान -मालिक भी समझ गया इनकी स्थिति ठीक नहीं है इसीलिए उसने घर खाली करने लिए ही कह दिया। कुछ समझ नहीं ,आ रहा ,जाएँ कहाँ ?जहाँ भी जायँगे वो किराया पहले ही मांगते हैं।
बगलवाले कमरे में ,रंजन अपने बोर्ड की परीक्षा की तैयारी कर रहा था ,पिता के शब्द उसके कानों में पड़े उसका पढ़ाई से ध्यान भंग हो गया और उसे चिंता ने घेर लिया ,अब मेरे पेपर हैं ,मकान बदलना पड़ गया तो ,न जाने कहाँ जाना पड़े ? स्कूल से दूर हो या पास ,उस मकान -मालिक को भी तो पैसे देने होंगे। यदि पैसे होते तो ये मकान -मालिक ही ख़ाली करने के लिए क्यों कहता ? काम तो अब भी कुछ नहीं है ,उन अकंल का भी पैसा चढ़ गया। कैसे चुकाएंगे ? अब तो परचूनवाला भी अकड़कर बोलता है। रंजन ने फिर से पढ़ने का प्रयास किया किन्तु पापा के शब्द उसके मानस पटल पर हथौड़े की तरह गूंज रहे थे। कुछ भी याद नहीं हो रहा था ,लगता है , कल का पेपर खराब जायेगा ,यही सोचकर उसे मन ही मन घबराहट होने लगी। अपनी कुर्सी पर बैठा नहीं गया और बेचैनी के कारण ,दम सा घुटने लगा वो कमरे से बाहर आ गया किन्तु मन बहुत ही विचलित था , हम कहाँ जायेंगे ?हमारा क्या होगा ?आगे के जीवन के लिए ,पैसा कहाँ से आयेगा ?
अगले दिन पेपर दिया किन्तु जो पहले से स्मरण था ,वो ही लिखा क्योंकि कल तो कुछ भी तैयारी नहीं हो पाई। तब एक अध्यापिका ने जो मुझे पसंद करती थी ,मैं उनका ''फेवरेट स्टूडेंट ''था ,उन्होंने मेरा चेहरा देखकर अंदाजा लगाया और पूछा -क्या रातभर जगे हो ?
जी मैडम !
किन्तु विचलित क्यों हो ?
नहीं ,मैं तो विचलित नहीं हूँ अपने मन का दुःख छिपाते हुए कहा।
उन्होंने प्यार से सर पर हाथ फेरा और बोलीं -अपनी मैडम को नहीं बताओगे ,चलो ,आओ मेरे साथ।
कहते हुए ,अपनी कक्षा में ले गयीं ,और बड़े ही प्यार से परेशानी का कारण पूछा तो मैं अपने को रोक न सका और मेरी रुलाई फूट पड़ी ,रोते -रोते सब बता दिया ,ये सुनकर ,वो पहले तो चुप रहीं ,फिर बोलीं -ये बात ,तुमने सुनी ,तुमसे किसी ने बताई नहीं ,इसका मतलब है ,तुम्हारे मम्मी -पापा नहीं चाहते ,ऐसी परिस्थिति में ,तुम्हारी पढ़ाई में किसी भी तरह का खलल पड़े। तब तुम क्यों उनके 'अरमानों पर पानी फेरना चाहते हो ?''वो अभी जैसे भी कर रहे हैं ,हल निकालने का प्रयास कर रहे हैं ,या करेंगे किन्तु यदि तुम फेल हो गए ,तो उनकी हिम्मत भी टूट जाएगी। जब अब तक उन्होंने संभाला है ,तो अब भी कुछ न कुछ तो करेंगे ही किन्तु उन्हें तुमसे उम्मीद है कि तुम उनकी डूबती नैया को पार लगा सकोगे। तुम्हारा साल बर्बाद हो जायेगा ,और उनके अरमानों का खून हो जायेगा ,वैसे भी इस तरह चिंता करके तुम उनका किसी भी तरह सहयोग नहीं कर पाओगे। सहयोग ही करना है तो अच्छे नंबर लाओ ! कहीं नौकरी करते हुए ,अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखना ,कम से कम तुम्हारी पढ़ाई के खर्चे से बचत तो होगी।
मैडम की बातों से मुझे राहत सी मिली ,बाहर रेडियो पर गाना आ रहा था -
''वो सुबह कभी तो आएगी ,वो सुबह कभी तो आएगी ,
मैने नए जोश के साथ ,अपने पेपरों की तैयारी की और अच्छे नंबरों से पास भी हुआ। मुसीबतें तो बहुत झेलीं किन्तु मेरी मेहनत में कोई कमी नहीं आई ,आज एक अच्छी बड़ी कम्पनी में मैनेजर हूँ ,अपना घर है ,आज उन्ही सड़कों पर अपनी गाड़ी से गुजरता हूँ ,तो वही दिन स्मरण हो आते हैं ,जिस सुबह के लिए इतनी मेहनत की ,आज ''वो सुबह ''मैं परिवार के साथ बिता रहा हूँ। मम्मी -पापा तो नहीं रहे किन्तु उनके संघर्षों ने भी मुझे एक नई राह दिखाई थी कि इन संघर्षों को मुझे जीतना है। वो मैडम रौशनी न दिखातीं तो मैं उन गमों की गलियोँ में भटककर रह जाता।
सो गए क्या ?रागिनी ने पूछा।
नहीं ,जग रहा हूँ।
अब बहुत देर हो गयी ,बच्चों को बुला लो ,घर चलते हैं।
हाँ चलो !कहते हुए वो गाड़ी की तरफ बढ़ गया।