रतनलाल जी ने कितना पैसा कमाया ? रात -दिन एक कर दिया। शानदार कोठी भी बनाई ,बच्चों को महंगे से महंगे स्कूल में पढ़ाया। सबकुछ तो उनके पास है ,किसी चीज की भी कमी नहीं ,पत्नी के पास भी जेवरों की कोई कमी नहीं ,बच्चों पर बड़ी -बड़ी गाड़ियां हैं ,ऐसी ज़िंदगी की हर कोई इच्छा रखता है। उनका तो अपना व्यापार है ,सेवामुक्ति की कोई परेशानी नहीं किन्तु अब वो चाहते हैं कि मेरा व्यापार मेरे बेटों में से ही कोई संभाल ले। उन्होंने भी कहा - अभी हमारे पापा ,हमसे भी जवान लगते हैं ,आप ही सम्भालिये !वे भी खुश हो गए।
पापा की हर जगह पूछ होती ,बहुएँ अपनी कोई भी परेशानी ,अपने पापा से ही कहतीं क्योंकि उनके पति सुनते ही नहीं ,सभी समस्याएं पापा हल कर देते ,बहुओं को त्यौहार में खरीददारी करनी है ,कपड़े ,हार इत्यादि सामान लाने हैं ,पापा जी हैं ,न......
अब तो पोते -पोती भी हो गए ,अब शरीर कुछ ज्यादा ही थकने लगा ,यही कार्य तीस -पेंतीस साल पहले करते थे किन्तु बेटों ने इतना चढ़ाया ,अब भी काम में लगे रहते हैं किन्तु अब शरीर बढ़ती उम्र का एहसास कराने लगा। बच्चों से कह दिया अब अपनी जिम्मेदारियां स्वयं सम्भालो ! अब कोई भी परेशानी होती तो बेटों से ही करने के लिए कह दिया। शुगर ,ब्लडप्रेशर ने घेर लिया। बहुएं जो पापाजी के आस -पास मंडराती रहती थीं ,उन्होंने भी आना कम कर दिया। समय पर खाना पहुंचा दें ,यही बहुत था किन्तु बिमार होने पर कोई दिखाई नहीं देता। पत्नी ही उठकर जाती ,दवाई देती तो पानी के लिए कहना पड़ता। अब बहुएं चुपचाप अपने -अपने कमरों में पड़ी रहतीँ। बेटे भी आते और अपने -अपने कमरों में चले जाते।
कभी -कभी छुट्टी वाले दिन भी ,रतनलाल जी किसी काम के लिए कह देते , तब बेटे कहते आपको तो कोई काम है नहीं ,एक दिन छुट्टी का मिलता है ,उसमें भी आराम नहीं। दोनों पति -पत्नी को खिचड़ी बनाकर अपने -अपने परिवार को लेकर बाहर घूमने चले जाते। दुनिया देखती तो कहती -कितने अच्छे बच्चे हैं ?माता -पिता को अपने पास ही रखा ,वृधाश्रम नहीं भेजा वरना आजकल की औलाद सुनती ही कहाँ है ? किन्तु किसी को ये नहीं मालूम उन्हें साग -सब्ज़ी ,एक गिलास पानी के लिए भी अपनी औलाद ने तरसा दिया। जब तक उनके हाथ -पांव चलते रहे ,सबके मम्मीजी -पापाजी ,आज बहुएँ मुँह फेरकर निकल जाती हैं। जैसे उन्हें जानती ही नहीं।
डॉक्टर ने कहा -कमजोरी आ गयी है ,फ़ल -सब्जियां खाओ ! परहेज का खाओ ! कहाँ से खाएं ,कैसे खायें कोई लाये ,तभी तो खाएं। -कभी कभी उस कोठी को देखते ,कितने मन से बनाई थी किन्तु आज इतने लोगों के बीच भी अकेला ही हूँ। कभी -कभी तो बेटा, इतने कठोर शब्द कह देता जो तीर से चुभते। जब मैंने कहा -अब पापा ,पापा नहीं रहे ,पैसा तो चाहिए ,पापा नहीं।
तुम्हें ऐसा लगता है ,तो मर क्यों नहीं जाते ? हमारी जान को आ रहे हैं ,बहुएं खड़ी तमाशा देखतीं किस तरह हमारी पाली औलाद आज उनके कहे पर ,हमें आँखें दिखा रही है। लगता ,बहुओं की गलती नहीं ,जब हमारी परवरिश ही गलत हो गयी ,दूसरे घर से आई इन लड़कियों के सामने ,अपने ही बेटे ,अपने माता -पिता का मान न रख सके। जैसा भी खाने को दें ,वो अब हमारी विवशता बन गयी है। जिस डॉक्टर ने फल -सब्जियां खाने की सलाह दी थी। उसका आना ही बंद हो गया। जो दवाई थीं , वे भी समाप्त हो गयीं। जब शरीर चलता था ,तो लगता था ,जैसे दुनिया को मैं ही जीत लूंगा किन्तु आज लगता है ,ये तन भी व्यर्थ है ,हम जी ही क्यों रहे हैं ?
विवशता की हालत में बिस्तर में पड़े थे ,एक दिन उनका दोस्त आ गया।
अरे रामलाल ! क्या हालत बना रखी है ?उसे सभी बातों से अवगत कराया। पैसा भी है ,किन्तु हमें पूछने वाला कोई नहीं।
तू इस पैसे को क्या अपने साथ ले जायेगा ?
नहीं ,ये लोग ही बरतेंगे।
और ये लोग तुझे खाने को भी नहीं पूछते ,डॉक्टर को भी नहीं दिखाते। तू क्यों ?इनकी फिक्र कर रहा है ?
अब पैसे से रिश्ते तो नहीं खरीद सकता न.... रामलाल जी ,दुखभरे स्वर में बोले।
रिश्ते नहीं खरीद सकता तो, इंसान ही खरीद ले।
मैं कुछ समझा नहीं ,
इसमें समझना क्या है ?फोन तेरे पास है ,तू व्यापारी था ,कुछ लोगों के नंबर भी तेरे पास होंगे ,फोन निकालकर उनमे से किसी को फोन कर लेता और नहीं तो मुझे ही फोन कर लेता। मैं ही कुछ करता।
तू क्या कर लेता ?
मैं पहले तेरे लिए एक नर्स बुलवाता ,जो तेरी सेवा करे ,एक नौकर रख ले जो तेरी जरूरत का सामान लाये।अरे पैसा है तो उसका उपयोग कर.......
किसी भी बाहरवाले पर कैसे विश्वास कर लूँ ?जब अपने ही अपने न हुए।
घरवालों पर विश्वास करके देख लिया ,देख !तेरी कैसी हालत हो गयी है ?माना कि तुझे बिमारी है किन्तु तू और भाभीजी तो इन लोगों के मोहताज़ हो गए हैं। समय पर दवाई मिलती ,समय पर सही से खाने को मिलता ,अपनों का प्यार दिखता ,तू दौड़ता नजर आता। ऐसे पैसे का क्या लाभ ?जो अपने ही काम न आ सके। तू जानता है ,आज हमने अपने दोस्त सुंदर को खो दिया।
क्यों उसे क्या हुआ ?
साला ! करोड़ों की सम्पत्ति छोड़कर मरा है किन्तु अपना ही इलाज न करा सका ,उसका एक ही बेटा है। पत्नी बहुत पहले छोड़कर चली गयी थी। बिमार था ,अकेला था ,उसकी सेवा करना तो दूर ,बहु -बेटा ने उसे डॉक्टर को भी नहीं दिखाया। बुढ़ापा इंसान की सबसे बड़ी लाचारी है ,बेबस हो जाता है ,इंसान !ऐसे में जिन अपनों को पालता है ,वे ही 'मुँह दिखाने लगते हैं ',उन पर बोझ बन जाता है। उसी की खबर सुन ,मुझे तेरी याद आई और तुझसे मिलने चला आया ,अपने भी तो तभी तक अपने हैं ,जब अपने काम आ रहे हैं। जो पैसा कमाया है ,उसे खर्च भी कर ले ,जीते जी दुर्गति तो न हो। अच्छा, अब चलता हूँ ,कोई जरूरत हो ,कुछ भी काम हो, मुझे फोन कर लेना ,कल एक नर्स और एक लड़का तेरे घर पहुंच ,जायेंगे। मिलता हूँ ऐसे ही किसी दोस्त से जिसे मेरे हौसले की आवश्यकता हो।