नवलकिशोर जी के मन में ,आज 'तूफान 'मचा है ,बाहरी वातावरण भी उसके सामने कोई मायने नहीं रखता। वो बस यूँ ही चले जा रहे हैं। कुछ समझ नहीं आता ,कहाँ जाएँ ,क्या करें ? दुनिया में देखा जाये ,तो आज के समय में कोई किसी का नहीं। अरे ,दूर के रिश्ते क्या देखें ?यहाँ तो अपने ही नजदीक के रिश्ते ही अपने नहीं रहे। जिनको पालने -पोषने में सम्पूर्ण ज़िंदगी निकाल दी। वो औलाद भी अब अपनी नजर नहीं आती। आज बेटा स्वयं क्या कमाने लगा ? हमारी तो जैसे कीमत ही नहीं रही। जब छोटा था ,कैसे पापा -पापा करके चिपटा रहता था ?पापा ये खिलौना चाहिए ,पापा मुझे ऐसे कपड़े चाहिये ,पापा मुझे दोस्तों के संग घूमने जाना है इतने पैसे चाहिए और अब देखो !कहता है -पापा आपको कुछ समझ नहीं आता ,आप कुछ भी नहीं जानते ,आज का फैशन क्या है ?
जब मन किसी बात से परेशान अथवा दुखी होता है ,तब न जाने कितनी बातें रह -रहकर स्मरण होने लगती हैं ,अपने किये कर्म भी स्मरण होने लगते हैं ,यही हाल आज नवलकिशोर जी का है। आज उनके बेटे अतुल ने उन्हें एक जबाब क्या दे दिया ?उनके पितृर्त्व के अहंम को चोट लगी ,वे उनके पिता हैं ,उनका बेटा उन्हें पलटकर जबाब कैसे दे सकता है ? उसके लिए क्या -क्या नहीं किया ?और आज हम कुछ भी नहीं जानते ,अभी तक तो हमने ही उसे ,खाना -पहनना सिखाया और अब हम कुछ भी नहीं जानते। हमारे ही संस्कारों में कमी रह गयी ,जो हमने अपने बड़ों का सम्मान ,आदर करना नहीं सिखाया।
नहीं ,हमने तो कभी अपने पिता के सामने इस तरह ऊँची आवाज में बात नहीं की ,आजकल के बच्चे भी न.... तभी सामने ही चलते -चलते ,मिश्रा जी का घर दिख गया। उनके घर को देखकर ,क्षणभर के लिए वे अपना दुःख भूल गए और सोचने लगे -मिश्राजी ,कितने भाग्यशाली हैं ?दो बेटे हैं ,बहुएं हैं ,उनका कितना सम्मान करते हैं ? मिश्राजी की किस्मत कितनी अच्छी है ? बहु -बेटे कितना सम्मान करते हैं ?और एक हमारा वो लाड़ला है ,अभी तो बहु भी नहीं आई ,कितना आदर करता है ?आज दिख गया। ''पूत के पांव पालने में ही नजर आने लगे। ''सोचते -सोचते उनके घर की ओर कदम मुड़ गए ,दो घड़ी ,मिश्रा जी के संग बैठकर चाय पियेंगे ,मन को थोड़ा सुकून मिलेगा। अभी वो दरवाजे पर लगी घंटी बजाने ही वाले थे ,उनके बेटे की आवाज सुनाई दी ,जाओ ! चलो यहाँ से ,तुम्हारे नखरों ने ही मार लिए ,दुनिया भर की दवाई लाते रहो ,परहेज होता नहीं ,इस बुढ़ापे में चटोरपना सूझ रहा है।
इसमें चटोरपन क्या है ?मुझे बीमारी है ,जब तुझसे कहा मेरे लिए कुछ खाने को ला दे कहते -कहते एक सप्ताह हो गया ,कुछ लाता ही नहीं ,तब हम खाएं क्या ?
पता नहीं, ये कब जायेंगे ?मेरी ''छाती पर मूँग दल रहे हैं ''न चैन से रहते हैं ,न ही रहने देते हैं ,अपने खर्चे करूँ या तुम्हारे.....
तू पैसे हमसे ले जा...... कितनी बार तो कहा है ?
वो पैसा भी तो मेरा ही है ,तुम्हारे खाने -पीने में उड़ा दूँ ,उस पर भी तो कुंडली मारे बैठे हैं ,बड़े आये पैसे वाले। इससे आगे नवलकिशोर जी से सुना नहीं गया। ''दूर के ढोल सुहावने ही लगते हैं। '' इनकी स्थिति तो बहुत ही दयनीय है ,कहने को तो ,बहु -बेटा रख रहे हैं ,किन्तु समय पर खाने को ,दवाई न मिले तो आदमी क्या करे ? बेबस ,लाचारी में ज़िंदगी व्यतीत करता है ,अब इस उम्र में कहीं आ जा भी नहीं सकता ,बोझ बनकर रह जाता है। व्रद्धाश्रम में तो नहीं हैं किन्तु यहाँ भी उनकी स्थिति कम दयनीय नहीं है। कोई सुने ही न ,बातचीत न करे ,समय पर खाने को और दवाई न मिले तब ऐसी औलाद के समीप रहने से क्या लाभ ? उनके मन का तूफान अपना रुख मोड़ चुका था। सोचने लगे ,-वैसे गलती मेरे बेटे की भी नहीं थी ,मैं भी न उसके दोस्तों के सामने उसे डपट देता हूँ , मुझे भी समझना चाहिए कि अब वो बड़ा हो गया है। आजकल के फैशन अलग हैं ,उनके कदम स्वतः ही अपने घर की ओर मुड़ गए।
उधर पिता से ऊँचे स्वर में बात करने के कारण ,बाद में उनके बेटे को दुःख हुआ ,उनके घर में न दिखने पर घर सूना लगा , मम्मी से बोला - पापा कहाँ गए ?
यहीं कहीं गए होंगे ,तुझे तो तहजीब रही नहीं ,अपने पापा से कैसे बात करनी है ?मम्मी नाराज होते हुए शिकायत भरे लहजे में बोलीं।
वो उस समय पर....... मुझे क्रोध आ गया ,सॉरी मम्मी सॉरी !
मुझसे क्या कह रहा है ? अपने पापा से माफ़ी मांगना ,तूने उनका दिल दुखाया है।
मम्मी जरा मोटरसाइकिल की चाबी देना ,मैं उन्हें लेकर आता हूँ।
चाबी वहीँ मेज पर रखी है।
अतुल चाबी लेकर ,जैसे ही बाहर आता है ,तभी उसके पापा उसे आते दिखलाई दिए।
पापा !कहाँ चले गए थे ?आप ! मैं अभी आपको लेने जा रहा था।
नवलकिशोर जी ने कुछ भी कहना ठीक नहीं समझा और बोले -तेरे लिए गर्मागर्म ''नानखटाई '' लाया हूँ ,तुझे पसंद हैं न.....
अतुल उनका चेहरा देख रहा था ,कहीं पापा क्रोध में तो नहीं ,किन्तु उनका शांत चेहरा देखकर बोला -पापा !सॉरी ,मुझसे गलती हो गयी ,मुझे इस तरह आपको कहना नहीं चाहिए था। मुझसे गलती हो गयी ,आगे से ऐसी गलती नहीं होगी।
ठीक है ,''देर से ही सही ,दुरुस्त आये। ''कहकर उन्होंने वो थैला उसे पकड़ाया और बोले -अपनी मम्मी से चाय के लिए बोलना और ये 'नानखटाई 'प्लेट में करके ले आ। अतुल तो चला गया किन्तु उन्होंने भी मन ही मन एक निर्णय लिया ,मैं भी अपने बेटे को कभी इस तरह उसके दोस्तों के सामने डांटूंगा नहीं। ''देर से ही सही ,दुरुस्त आये। ''सोचकर मन ही मन मुस्कुरा दिए।