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मेरे साथ ही क्यों?

15 नवम्बर 2022

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बहु..........  
                  जी माँजी ,कहते हुए ,पारुल तेज गति से उनके समीप आई।
 
तुझसे कितनी बार कहा है ?उस बड़े कमरे की सफाई कर देना ,जब छोटे की सगाई वाले आयेंगे तो वहीं बैठ  जायेंगे।
 
जी ,कहते हुए ,पारुल बोली -कैसे वहाँ की सफाई करती ?अभी तो हलवाइयों का ही सामान रखा था ,उसके पश्चात समय ही नहीं मिला। 
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ये देखो ,कैसी जबान चला रही है ?हाथ भी चला लिया कर ,कहते हुए बुदबुदाने लगीं -इस बहु को तो तनिक भी अक्ल नहीं और शाम को  मुझे ,एक रिश्तेदार की शादी में भी जाना है।
 
क्या...... आप जा रही हैं ?

हाँ ,क्यों न जाऊँ मेरा जाना जरूरी है।

उनके यहां तो पहले भी लड़के की शादी हुई थी ,तब तो नहीं गयीं और अब हमारे घर में भी कार्य है अब तो आप उन्हें न आने का कारण तो ,बता ही सकती हैं ,पारुल ने कहा।
 
नहीं ,मैं तो जाऊँगी ,वो लोग बुरा मान जायेंगे कहकर वो अपने कपड़े देखने लगीं।
 
पारुल की आँखों में ,ऑंसू आ गए ,सोच रही थी -सुबह से ही घर की सफाई ,नाश्ता दोपहर का खाना और भी न जाने कितने कार्य हैं ? कल देवर  की सगाई भी है , दूसरी तरफ हलवाई भी लगे हैं एक छोटी बच्ची के साथ क्या -क्या संभालेगी ?  सुबह से लगी है ,उसने कहा भी था कि घर में इतना काम है ,कोई कामवाली लगा लेते हैं ,मुझे मदद हो जाएगी। 
 सावित्री जी  क्रोध से बोलीं -आजकल की ये बहुएं , काम का बोझ पड़ा नहीं ,काम वाली लगाने लग जायेंगी। काम करना चाहती ही नहीं ,कहकर बाहर चली गयीं। स्वयं भी तो कोई सहायता नहीं करतीं।
 
पारुल ने सोचा चलो ! देवर का विवाह होगा ,तब दोनों मिलकर काम कर लिया करेंगे ,चलो सहारा तो हो  ही जायेगा। इसी उम्मीद के सहारे वो सभी कार्य कर रही थी।
 
शाम को मम्मीजी और दोनों भाई तो विवाह में जायेंगे ही ,तब सोचा -अपने लिए कुछ हल्का -फुल्का बनाकर ,आराम करेगी।
 
शाम को जब सावित्री जी शादी में जाने लगीं ,तब बोलीं -ये जो हलवाई लगे हैं ,इनका खाना भी बनेगा कहकर बाहर निकल गयीं।
  
छोटी बच्ची के साथ ,अकेली छह लोगों का खाना कैसे बनाऊँगी ?कभी लगता ,ये शायद मुझसे ,पता नहीं किस जन्म का बदला ले रही हैं ?
 
सारा कार्य मैं ही करती हूँ ,ये तो कभी घूमने ,कभी सत्संगों में ही घूमतीं कई बार तो ,बेटी रोती रहती और पारुल अपने काम निपटाती। एक -दो बार बेटी को लेकर बैठ भी गयी।

 सावित्री जी ने आकर देख लिया तब बोलीं -ये काम कौन करेगा ?काम से बचने के लिए ,लड़की का बहाना लेकर बैठ गयी।
 
सावित्री जी का तो बस ,एक ही काम था। पारुल के काम में कमी निकालना और उसे कुछ न कुछ कहते रहना।
 फिल्मों में ,पारुल ने ऐसी ही सास को देखा था ,तब सोचती थी -सभी सास ऐसी होती होंगी। 
उसने कभी अपनी सास के मुँह से ,अपने लिए ,प्रेम के तो छोडो ,इंसानियत के नाम पर भी ,सहानुभूति के दो शब्द सुनने को नहीं मिले।

एक माह पश्चात ,देवर का विवाह हो जाता है।' प्रतिज्ञा 'का विशेष आदर -सत्कार होता है ,देवर भी उसके लिए ,दो -तीन सब्ज़ियाँ बनवाते ,उसकी हर इच्छा -अनिच्छा का ख़्याल रखते। सास का व्यवहार थोड़ा नरम था ,अभी तो ब्याहली बहु है ,अभी माह तक  काम थोड़े ही करेगी।

 मुझसे तो आपने पग फेरे की रस्म होते ही ,रसोई की रस्म कराई और तब से लेकर आज तक कार्य कर ही रही हूँ ,पारुल विरोध करते हुए बोली।

तब मैं अकेली थी ,सावित्री जी आँखें तरेरते हुए बोलीं। जा चल  !अपना काम निपटा ,यहां खड़ी होकर जबान मत चला।
 
पारुल ,नई आयी बहु के सामने ,इस तरह अपमान झेलकर ,अपने कमरे में आ गयी। मोहित ने पूछा -जब देखो ,तुम्हारा मुँह ही बना रहता है ,अब क्या हुआ ?मोहित से वो कहना तो बहुत कुछ चाहती थी ,किन्तु कोई लाभ नहीं ,वो तो किसी से कुछ कहते ही नहीं। एक आध बार कहा भी, कि आपकी मम्मी मेरे साथ उचित व्यवहार नहीं करती।
 तब बोले -अब क्या तुम्हारे लिए ,अपनी माँ से लड़ूँ। कोई भी सुनेगा तो कहेगा -बहु के आते ही बेटा ,माँ से लड़ने लगा ,या जबान चलाने लगा। तुमसे  जितना काम होता है करो !नहीं होता मत करो। पर मुझसे कुछ मत कहना। पारुल के मन में तो आया -इस व्यक्ति से तलाक़ ले लूँ ,जो अपनी पत्नी के लिए ,खड़ा नहीं हो सकता ,उसका सहारा नहीं बन सकता ,वो जीवनभर कैसे साथ निभाएगा ? 
किन्तु उनके नजरिये से सोचकर देखा -तो सही लगा। कोई क्या जानेगा ?कि इनकी मम्मी कैसा व्यवहार कर रही हैं ?देखने और सुनने वाले तो यही समझेंगे कि बेटा पत्नी के बहकावे में आकर ,अपनी माँ से लड़ बैठा। 
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तब से ,मोहित से कुछ भी कहना व्यर्थ सोचकर ,वो स्वयं ही विरोध करती किन्तु कुछ भी लाभ नहीं होता। जब इतने दिन बिता दिए ,तो कुछ दिन और सही ,सोचकर पारुल चुपचाप अपने कार्य में लगी रहती।
 एक दिन पारुल ने सुना ,उसकी सास प्रतिज्ञा से कह रही थी -ये तुझसे जलती है ,तू काम नहीं कर रही तो इसे जलन हो रही है। 
पारुल को बर्दाश्त नहीं हुआ ,बोली -मैं इससे क्यों जलूँगी ?आप क्यों हम दोनों के बीच में मतभेद का बीज़ बो रही हैं ?उनकी चोरी पकड़ी गयी थी ,उनके चेहरे के भाव बदल गए।
 
पारुल के इतना कहते ही ,सावित्री देवी ने अपना रूप बदला और जोर -जोर से रोना आरम्भ कर दिया। हाय !ये तो मुझे ,नई बहु के सामने बदनाम कर रही है। 

शाम को जब मोहित आये ,तब उनके सामने भी रो -रोकर कहने लगीं और बात को कहाँ से कहाँ ले गयीं ?
मोहित ने एक नजर मेरी तरफ देखा और बोले -तुम्हें इन्हें छेड़ने की क्या आवश्यकता थी ? ये  मेरी माँ हैं ,मैं इन्हें ,तुमसे ज्यादा जानता हूँ ,कहकर बाहर चले गए। 

इस तरह ,कुछ दिनों पश्चात ,उन्होंने दोनों को अलग कर दिया और स्वयं छोटी बहु के पास रहने लगीं।

 पारुल को इस बात का दुःख तो था ,कि साम -दाम ,दंड़ -भेद किसी भी तरह करके इन्होने हम दोनों में मतभेद करवा ही दिया किन्तु इस बात की भी तसल्ली हुई ,अब ज़िंदगी आराम से  कटेगी।
 
कुछ दिनों पश्चात पारुल ने देखा ,सास पोंछा लगा रही है ,कपड़े भी धो रही हैं ,जबकि मुझसे तो कहती थीं -मेरे हाथ दुखते हैं ,कभी अपनी पोशाक भी नहीं धोयी और ये तो....... 

जहाँ वो सारा दिन बैठी ,उसे डांटने का कार्य करतीं ,आज काम में लगी रहती हैं। पारुल को दुःख भी हुआ और सोचा -अब तो इन्हें  एहसास होगा कि मैंने क्या गलती कर दी ?
एक दिन पारुल से रहा नहीं गया और अपनी सास से पूछ बैठी -ये सब करके आपको क्या मिला ?

दो वक़्त की रोटी ,जो मैं आराम से खा रही हूँ उनका जबाब था।

मेरे साथ इसी तरह सहयोग करतीं ,इतना कार्य भी न करना पड़ता। आपने' मेरे साथ ही, ऐसा व्यवहार' क्यों किया ?
 
पारुल  सोच रही थी -इनका अहंकार इतना बड़ा है ,अब भी इन्हें एहसास नहीं हुआ।

मैं अक्सर मोहित को ,उन्हें कार्य करते ,दिखाती और तब उनसे भी यही प्रश्न करती -आपकी माँ ने ''मेरे साथ ही क्यों '',ऐसा व्यवहार किया ,ऐसा ''भेदभाव ''क्यों ?

जबाब उनके पास भी नहीं था।  

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रचनाएँ
प्रेरक कहानियाँ
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माँ

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चम्पाकली 'ताई आज बहुत प्रसन्न है क्योकि उनके दो बेटे ,दो ही बहुएं हैं किन्तु ये उनकी प्रसन्नता का कारण नहीं ,उनकी प्रसन्नता का कारण ,उनका दादी बनना है। दोनों बहुएं ही गर्भवती थीं और अब दोनों ही माँ ब

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काव्या बहुत ही प्यारी बच्ची है ,मन उसका बहुत ही कोमल है ,सबसे प्रेमपूर्ण व्यवहार करती। दुश्मनी ,लड़ाई क्या होती है ?जैसे वो जानती ही नहीं ,उसे तो सभी अपने ही नजर आते ,छल -कपट से तो उसका दूर -दूर तक वास

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पार्वती जी ,दुखी परेशान ,अपने कमरे में आती हैं और अपने पलंग पर बैठकर ,गहरी स्वांस भरती हैं और अपनी आँखें बंद कर लेती हैं। मैं कितना भी अच्छा सोच लूँ या कर लूँ ?किन्तु इसे अपना नहीं बना सकती ,ये 'दरा

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नंदिनी जैसे ही , अपनी कक्षा में पहुंची -उसने देखा ,सभी बच्चे ,तुषार की सीट के पास खड़े हैं। ये सब क्या हो रहा है ?सभी बच्चे वहाँ क्या कर रहे हैं ? नंदिनी को देखते ही ,सभी बच्चे दौड़कर अपनी -अपनी सीट पर

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रिश्तेदार जलते हैं!

4 जुलाई 2023
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कितनी ख़ुशी की बात है ?कीर्ति तुमने पढ़ाई पूरी करने के साथ -साथ ,तुम्हारी नौकरी भी लग गयी। एक पार्टी तो अवश्य बनती है। क्या ख़ाक पार्टी बनती है ?तुम सभी दोस्तों को ही पार्टी दूंगी ,मम्मी -पापा के लि

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9 जुलाई 2023
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राधा जब ,मोहन से मिली ,उसे देखते ही , अपना दिल दे बैठी ,मोहन की हालत भी कुछ ऐसी ही थी। पहली बार दोनों ,राधा की सहेली के घर पर,उसकी जन्मदिन की पार्टी में ,उससे मिली। जितनी खूबसूरत राधा लग रही थी, उतना

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श.... श.... श.... श.... आज आपको एक''अज़ीबो ग़रीब प्रेम की '' कहानी सुनाती हूँ। जानते हैं ,ये जो हवेली है ,ठाकुरों की है ,बहुत ही रुआब था। ठाकुर ''बलदेव सिंह '' अपने नाम की तरह ही बलवान ,बुद्धिमान और रौब

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माँ 'तुम अब यहाँ ,अकेली क्या करोगी ? अब तुम भी हमारे संग चलकर रहो !अनंत अपनी माँ से बोला। बेटा ! सम्पूर्ण ज़िंदगी इस शहर में बिता दी ,अब इधर -उधर जाकर क्या करूंगी ? जब तू छोटा था ,तब सोचा करती थी

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लडाई

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श्रेया ,अपने आप से ही , कितना लड़ रही थी ? ये तो वो ही जानती है।अब तो जीवनभर संघर्ष ही करना है। पहले पढ़ाई में संघर्ष किया क्या विषय लेने हैं ,कौन सा स्कूल चुनना है ? स्कूल में भी ,प्रतिशत में नंबर लाने

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सूर्यास्त और हम

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धड़कन

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मेन्ढकी

22 जुलाई 2023
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गर्मी से बुरी हालत थी ,नहाते -नहाते भी पसीने आ जाते। खेती पर काम करने वाले भी खेतों से ,वापस आ गए। सभी को ,बरसात की इच्छा हो चली थी। आपस में कहते -न जाने बरसात कब होगी ?यदि शीघ्र ही बरसात नहीं हुई तो

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23 जुलाई 2023
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बरसात का मौसम ''आते ही मन झूमने लगता है ,बारिश की ठंडी -ठंडी फुहार तन को ही नहीं ,मन को भी भिगो जाती हैं। चारों तरफ धुली -धुलि सी ,हरियाली ,लगता है जैसे ,प्रकृति ने धानी चुनर ओढ़ ली हो। बच्चों की तो बर

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एक ही गलती

25 जुलाई 2023
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सुधा खिड़की के पास बैठी ,चाय पी रही थी ,तभी उसकी बेटी ने उसे पुकारा ,मम्मी ,मैंने अपना गृहकार्य कर लिया। ठीक है ,जाओ !अब जाकर बाहर बच्चों के साथ खेल लो !ठीक है ,कहकर वो बाहर की तरफ दौड़ी ,तभी सुधा ने उस

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