रामलाल जी के घर में ,फोन की घंटी बज रही थी ,उनके बेटे की बहु फोन उठाती है और रामलाल जी से कहती है -पापा जी !आपका फोन है।
किसका है ? पूछो कौन है ?और क्या कहना चाहता है ?
शिरोमणि अंकल हैं ,और आपसे ही बात करना चाहते हैं।
ठीक है,होल्ड करो !अभी आता हूँ ,कहते हुए ,रामलाल जी ,अपने बिस्तर से उतरे और चप्पल पहनी ,और मन ही मन बुदबुदाए -पता नहीं क्या कहना चाहता है ? बहु से भी तो कह सकता था ,घुटने के दर्द में ,वैसे ही नहीं उठा जाता ,पता नहीं ,इसे इस बुढ़ापे में क्या कहना है ? उन्होंने बहु के हाथ से फोन लिया और बोले -हैलो...... !
क्या ??? हैलो ! फोन नहीं उठा सकता था , तुझे क्या ज्यादा ही बुढ़ापा आ गया ,सुन..... आज तेरी दावत है ,आ जाना ,उनके शब्दों से प्रसन्नता झलक रही थी।
काहें की दावत ? दावत का नाम और शिरोमणि की प्रसन्नता देखकर ,एक बार के लिए तो रामलाल जी अपना घुटनों का दर्द ही भूल गए। आज क्या कोई विशेष दिन है ?
तू ही बता !अपने को दोस्त कहता है।
रामलाल जी ने सोचने का प्रयास किया किन्तु स्मरण नहीं हो रहा ,तब शिरोमणि से बोले -याद आ गया ,अब ये तेरे लिए ''सरप्राइज ''है।
ये क्या बात हुई ? मेरे लिए 'सरप्राइज ' पहले बता तो सही ,तुझे क्या याद आया ?
नहीं ,मैं नहीं बताने वाला ,अब सारा दिन सोचता रह...... ,रात को मिलते हैं कहकर उन्होंने फोन कट कर दिया।
तभी अपनी पत्नी से बोले - शांति तुम्हें कुछ याद है ,आज के दिन शिरोमणि के लिए क्या विशेष दिन हो सकता है ? पत्नी ने भी बहुत सोचा -पंद्रह जनवरी को ,उनकी शादी की सालगिरह......
तुम्हें उसकी शादी की सालगिरह कैसे याद है ?
क्यों नहीं होगी ? जब हमारी शादी हुई थी ,तब ये दोनों हमारे विवाह में आये थे ,तब तुम ही ने तो बताया था कि इनका विवाह हमसे तीन माह पहले ही हुआ था।
और बताओ !और क्या बताऊं ? तुम्हारा दोस्त है ,तुम्हें याद होना चाहिए ,रामलाल जी अपने घुटने का दर्द भूलकर ,अपने दोस्त को सरप्राइज देने के लिए सोचने लगे - कि आज कौन सा दिन है ?
बहु तब तक खाना लेकर आ गयी थी ,पापा जी खाना खा लीजिये। रामलाल जी को सोचते हुए बोली -क्या बात है ?पापा जी !
कुछ नहीं आज ,शाम को उसने दावत पर बुलाया है किन्तु ये नहीं बताया कि आज क्या है ?क्यों बुलाया है ?कह रहा है ,तू ही सोच !
उनकी शादी की सालगिरह तो नहीं होगी ,वरना मम्मी जी को भी बुलाते।
हाँ ,वो तो तुम्हारी मम्मी ने भी बताया।
तब आप ,शर्मा अंकल जी से भी बात कर लीजिये ,वे भी तो उनके दोस्त हैं।
हाँ ,ये सही सुझाव दिया ,उससे बात करता हूँ। रामेश्वर दयाल ,मिश्रा जी ,अहलूवालिया ,शर्मा सबको फोन कर लिया किन्तु किसी को भी नहीं पता उसने क्यों बुलाया है ? साले ने सुबह -सुबह ऐसा फोन किया यही सोचते -सोचते और फोन करते शाम के चार बज गये ,जन्मदिन नहीं ,शादी की सालगिरह नहीं ,शांति अब तो दिमाग थक गया ,थोड़ी चाय बना दो ! ताकि इस दिमाग को आराम को मिले।
शांति जी उनके लिए चाय बनाने चली गयीं ,और वे कुर्सी से सर टिकाकर आराम से आँखें बंद करके बैठ गए ,तभी उनका' पोता 'अपना गृहकार्य पूर्ण करके उनके पास आया और बोला -दादाजी !
उसकी आवाज सुनकर उन्होंने आँखें खोलीं और बोले -हो गयी पढ़ाई ! तब उन्होंने उसके हाथ में ऐसा कुछ देखा जिसके कारण ,उनके माथे पर पड़ी चिंता और सोच की लकीरें एकदम खुल गयीं और उनके चेहरे पर मुस्कान तैर गयी और पोते से कुछ कहा और उसे बाजार भेज दिया। तब तक शांति भी चाय ले आई ,अब उन्होंने खुश मन से ,चाय पी। शाम को पूरे आत्मविश्वास के साथ ,तैयार हुए और एक फूलों का गुलदस्ता लेकर उनके घर पहुंच गए।
धीरे -धीरे सभी दोस्त आ गए सभी के चेहरों पर एक ही प्रश्न नजर आ रहा था ,आज शिरोमणि ने हम सबको क्यों बुलाया है ? वो भी अच्छे से तैयार होकर सभी का स्वागत कर रहे थे -सभी दोस्तों का स्वागत है ,आज सब लोग सोच रहे होंगे ,मैंने आप लोगों को यहाँ क्यों बुलाया है ? आज घर में न ही बहु -बेटा हैं , न ही पत्नी ,तब मैंने तुम लोगों को याद किया -कोई ''घुटनों के दर्द ''से परेशान है ,किसी का ''ब्लड प्रेशर '' किसी को 'शुगर ' हम उम्र के उस पड़ाव पर हैं ,जब सूर्य अस्त होता है। ''कल मैं छत पर बैठा ,वही दृश्य देख रहा था। तब मैंने महसूस किया ,सूरज जब निकलता है ,तब भी वही दृश्य होता है ,आसमान लाल होता है ,शान से निकलता है और जब छिपता है ,तब भी उसी शान से छिपता है ,जो हमें एक सीख दे जाता है। हमारे जीवन का अंत भी निश्चित है , हमें भी अस्त भी होना है ,तो क्यों न सूरज की तरह उसी शान से जाएँ ?
तब मैंने सोचा -क्यों न....... दोस्तों के साथ पार्टी की जाये ,पहले हम बाहर घूमने निकल जाते थे ,अब घर में ही मस्ती की जाये कहते हुए ,उन्होंने शैम्पेन की बोतल खोली और गाना चला दिया -
''किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार ,किसी के वास्ते हो तेरे दिल प्यार..... जीना इसी का नाम है। ''
तभी रामलाल जी भी ,मंच पर आ गए और बोले -ये जानता ही नहीं ,आज कौन सा दिन है ?
कौन सा ! समवेत स्वर......
आज '' दोस्ती दिवस ''भी है ,कहकर उन्होंने अपनी जेब से कितने सारे ''फ्रेंड शिप बैंड '' निकाल लिए और सभी ने एक -दूसरे को अपनी दोस्ती के प्रतीक के रूप में ,वो सुंदर -सजीले बैंड बांध दिए और अपने जीवन के खुशनुमा पलों में ये पल भी जोड़ दिए।