दीप्ती अति शीघ्रता से अपनी बिल्डिंग से नीचे आती है ,और गाड़ी में बैठकर चल देती है। आज वो देर से उठी, जिस कारण उसे देरी हो रही थी। वो अपनी गाड़ी को ,अपने दफ़्तर की ओर ,तेज़ गति से दौड़ा रही थी। आज पहले से ही देरी हो रही थी ,तभी उसने रास्ते में भीड़ देखी ,जिस कारण गाड़ियाँ निकल नहीं पा रही थीं । उसने किसी से पूछा -ये इतनी भीड़ क्यों है ?सुबह का समय ,सभी को अपने -अपने काम पर जाना है। तब उस व्यक्ति ने जबाब दिया -शायद कोई दुर्घटना हो गयी है। वो मन ही मन बुदबुदाई -आये दिन ,कुछ न कुछ इस सड़क पर घटता ही रहता है। आज फिर से देरी हो गयी तो, बॉस सुनने वाला नहीं। एक मन किया- कि गाड़ी से बाहर निकलकर ,उस दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की सहायता करूं, किन्तु समय था कि अपनी गति से दौड़ रहा था। फिर सोचा -मैं ही क्यों ?इतने लोग हैं ,कोई न कोई तो सहायता कर ही देगा। सोचकर उसने गाड़ी को दूसरे रास्ते पर घुमा दिया।
किसी तरह वो समय से ,अपने दफ्तर पहुंच तो गयी। अब उस दुर्घटना के विषय में सोचने लगी -पता नहीं ,बेचारा कौन था ?फिर अपने विचारों को एक झटका दिया और अपने कार्य में जूट गयी। तभी किसी ने बताया -आज कणिका नहीं आई। पता नहीं ,उसे क्या हुआ ?दीप्ती ने दोस्ती के नाते ,कणिका को फोन किया ,पहले तो उसने फोन उठाया ही नहीं - इस बीच दीप्ती के मन में अनेक विचार आये और चले गए ,और जब उठाया ,तो अपनी व्यस्तता बतलाकर फोन काट दिया।
शाम को दीप्ती अपने घर न जाकर ,कणिका के घर पहुंच गयी। वो भी अभी -अभी बाहर से आयी थी। दीप्ती उसे देखकर खुश होते हुए बोली -तू आज दफ्तर भी नहीं आई ,कहाँ रह गयी थी ?मुझे बड़ी चिंता हो रही थी।कणिका थके स्वर में बोली - अरे कुछ नहीं यार !मैं तो अपने दफ़्तर के लिए ही निकली थी ,मुझे आज देरी भी हो गयी थी ,तभी मैंने देखा - रास्ते में कोई दुर्घटना हो गयी है ,सब लोग खड़े होकर देखते तो रहते हैं या फिर नजरअंदाज करके चले जाते हैं , वो व्यक्ति खून से लथपथ ,सड़क पर तड़प रहा था। सहायता के लिए कोई आगे नहीं आ रहा था। मुझे पहले ही ,देरी हो चुकी थी ,तब मैंने सोचा -किसी की जान से बढ़कर तो कुछ नहीं ,न जाने कितनी देर से बेचारा पड़ा था ?अपनी स्कूटी पर तो ,ले जा नहीं सकती थी , तब मैंने एक तिपहिया रोका और उसे अस्पताल ले गयी।
घर आकर देखा -तो कोई भी नहीं था ,न ही कोई आया। फिर पापा कहाँ गए ? उनके पास तो फोन भी नहीं ,जो उनसे सम्पर्क कर सकूं। मन विचलित हो गया ,घर पर फोन करके भी, नहीं पूछ सकती थी। वहाँ मम्मी परेशान हो जातीं। गार्ड से भी ,कई बार पूछ चुकी ,पूरे दिन की थकान थी ,उसने अपना और अपने पापा के लिए ,खाना बनाया ,खाया किन्तु किससे पूछे ?पता नहीं ,कहाँ रह गए ?तभी उसे उस सुबह वाली दुर्घटना का स्मरण हो आया, जिसको स्मरण करते ही ,उसका दिल दहल गया। मैंने तो उस व्यक्ति को देखा तक नहीं। नहीं... नहीं... ऐसा नहीं हो सकता ,उसने अपने मन को समझाया। सोचते -सोचते उसे न जाने कब नीं द आ गयी ? सपने में ,वो जैसे किसी अँधेरे भयानक जंगल में फंसी हुई है ,भटक रही है ,तभी उसके पापा उसके समीप आते हैं और कहते हैं -दीप्ती तुम चाहतीं तो ,मुझे बचा सकती थीं ,किन्तु तुमने एक बार भी नहीं देखा- कि उस सड़क पर ,ख़ून से लथपथ ,तेरा बाप अंतिम सांसे गिन रहा है ,तू आ जाती तो शायद मैं ,बच जाता। समय पर इलाज़ हो जाता ,क्या पैसे के लिए ,तूने इंसानियत को भी ठुकरा दिया ?धीरे -धीरे वो हवा में विलीन हो गए। दीप्ती तेजी से चीखी -पापा..... और उसकी आँख खुल गयी। वो पसीने से तरबतर थी। जब उसे एहसास हुआ कि ये तो सपना था किन्तु था बहुत 'भयानक
दीप्ती ने घड़ी देखी ,उसमें छः बजे थे ,सुबह का सपना देखते हैं ,तो सुना है ,सच होता है ,तभी उसे कणिका का स्मरण हो आया और उसने उसे फोन लगाया -हैलो ,कणिका !अब तू कैसी है और तू जो उस व्यक्ति को ले गयी थी ,वो अब केेसा है ?
कणिका दुःखी होते हुए बोली -यार ,मेरी मेहनत बेकार गयी ,अब वो नहीं बचा। क्या.... दीप्ती के मुख से निकला। हाँ ,डॉक्टरों ने रात ही फोन पर बता दिया था कि ज्यादा ख़ून बहने से ,हम उसे बचा नहीं सके। हैरान -परेशान दीप्ती बोली -वो दिखने में कैसे थे ?बुजुर्ग ही थे ,कणिका बोली। उसके आगे दीप्ती से कुछ और नहीं पूछा गया और वो बोली -मैं आ रही हूँ ,और वो तैयार होकर बाहर आ गयी। जैसे ही उसने अपनी गाड़ी बाहर निकाली ,तभी उसके पापा उसे आते दिखे -उसने गाड़ी रोकी और दौड़कर अपने पापा के पास पहुंच गयी और बोली -पापा ,आप रातभर कहाँ थे ?आप आये थे ,तो आपको बताना तो चाहिए था और कहकर उनसे लिपटकर रोने लगी। आज रात का भयानक स्वप्न ,उसे एक बड़ी सीख दे गया था।