गर्मी से बुरी हालत थी ,नहाते -नहाते भी पसीने आ जाते। खेती पर काम करने वाले भी खेतों से ,वापस आ गए। सभी को ,बरसात की इच्छा हो चली थी। आपस में कहते -न जाने बरसात कब होगी ?यदि शीघ्र ही बरसात नहीं हुई तो फसल ठीक से नहीं होगी।' सूखा' पड़ जायेगा ,पानी की भी कमी हो जाएगी। जानवर भी ,गर्मी के कारण हांफ रहे हैं , सपना ने अपने दादाजी को कहते सुना। बच्चों के लिये सर्दी हो या गर्मी ,वो तो अपने लिए ,मनोरंजन का साधन ढूंढ़ ही लेते हैं। सपना भी बच्चों में खेलती रहती ,वो तो शहर से गर्मियों की छुट्टियां बिताने आई है। उसके लिए तो सब कुछ अलग और नया है।
एक दिन उसने देखा ,कुछ लड़कियां घर -घर से आटा और गुड़ ,मांग रहीं थीं। ये देखकर उसे आश्चर्य हुआ कि ये लोग ऐसा क्यों कर रहीं हैं ? ये सभी तो अच्छे -भले घर की हैं किन्तु ये सब माँगने में उन्हें तनिक भी संकोच नहीं था। हँस रहीं थीं ,मस्ती कर रहीं थीं और घर की महिलाएं भी सहयोग कर रहीं थीं। ये सब क्या है ?ये जानने के लिए ,सपना उनके पीछे हो ली। सपना को देखकर बोलीं -''शहरी बच्चे ,तुम क्या करोगी ?तुम्हें तो धूप लग जाएगी। '' वो सभी उसे पहले से ही ''शहरी बच्चा ''कहती थीं ,उसने उनका बुरा नहीं माना। तब उसने देखा, उन लोगों ने एक बड़े से चौक [ सभी घरों के बीच में खाली स्थान ]में ईंटों से चुल्हा बनाया हुआ था। उस चूल्हे पर ,गांव की सभी लड़कियां ,गांव के सभी घरों से आटा मांगकर ,बड़ी -बड़ी मीठी रोटी बनाती हैं और उन रोटियों को सभी प्रसाद के रूप में बांटकर खा भी रहे थे।
बचपन में अधिकतर चलचित्रों में देखा है -''सूखा पड़ गया है ,सारा गांव सूखे की मार झेल रहा है ,तब गाना चलता है - ''अल्लाह !मेघ दे ,पानी दे ,पानी दे ,गुड़ धानी दे। ''
किन्तु उन्हें ये सब करते देख ,सपना को हंसी आई ,ऐसे भी कोई बरसात होती है।
ये सभी कार्य ,इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए ,गांव की लड़कियॉँ करती हैं ,उस प्रक्रिया को ''मेंढकी निकालना '' कहते हैं , इसके पश्चात सभी नहर पर नहाने गए और वहाँ मस्ती की जिससे इंद्र देव प्रसन्न होकर बरसात कर दें।
ये सब करने की क्या आवश्यकता है ?
उन्होंने बताया ,ये एक तरह का टोटका है ,जिससे'' इंद्रदेव ''बरसात'' करते हैं।
हम बच्चों के लिए तो बरसात मनोरंजन की चीज है ,जिससे गर्मी कम होती है ,घर में पकौड़े बनते हैं ,या फिर कागज़ की नाव बनाकर, हम खेलते हैं किन्तु'' एक किसान की रोजी -रोटी है बरसात ,हम सभी के लिए जीवन का मूल आधार बरसात है ,उसी से न जाने कितनों लोगों के लिए ,पेट भरने का साधन बनता है। पेड़ -पौधों को यदि जल न मिलेगा तब सब सूख जायेगा ,धन -धन्य की कमी होगी ,जल स्तर में भी कमी आ जाएगी ,सब्जियाँ और अन्न न होगा तो कमी के कारण महंगाई भी बढ़ेगी। कृषक तबाह हो जायेगा ,पशुओं को चारा नहीं मिलेगा समझी !तभी एक ने पुकारा कहाँ खो गयी ?''हमारी जरूरत है बरसात !
आदमी जीवन में ,हर पल कुछ न कुछ नया सीखता है ,सपना ने भी सीखा -
''मेघा रे मेघा बरसो ,मेघा रे मेघा बरसो ,नन न रे नन रे ,ननन ,नन रे ''बरसात सिर्फ पानी में भीगने और नाचने -गाने के लिए ही नहीं है।