नंदिनी जैसे ही , अपनी कक्षा में पहुंची -उसने देखा ,सभी बच्चे ,तुषार की सीट के पास खड़े हैं। ये सब क्या हो रहा है ?सभी बच्चे वहाँ क्या कर रहे हैं ? नंदिनी को देखते ही ,सभी बच्चे दौड़कर अपनी -अपनी सीट पर जाकर बैठ जाते हैं। किसी भी बच्चे ने कुछ नहीं बताया -मैं कुछ पूछ रही हूँ ,उसने अपनी बात कही ,तुम बताओ , पूजा ! सभी बच्चे तुषार को घेरे क्यों खड़े थे ?
कुछ नहीं मैम ! तुषार बता रहा था ,उसके' दादाजी भूतों से बातें 'करते हैं।
क्या ?
यस मैम ! तुषार के दादाजी भूतों से बातें करते हैं।
नंदिनी पांचवीं क्लास की अध्यापिका है ,वो आगे भी अपनी पढ़ाई कर रही है ,माता -पिता पर उसकी शिक्षा पर होने वाले व्यय का ,अतिरिक्त बोझ न पड़े इसीलिए बच्चों को पढ़ाकर ,अपना कुछ खर्च तो निकाल ही लेती है। पूजा के मुख से बातें सुनकर उसके ''कान खड़े हो गए। ''किन्तु मन ने तुरंत ही इस बात का बहिष्कार कर दिया ,ऐसा कैसे हो सकता है ?ये बच्चे भी न...... कुछ का कुछ बना लेते हैं ,इसकी काल्पनिक शक्ति का कोई तोड़ नहीं। नंदिनी को भी ऐसे विषयों में विशेष रूचि ,महाशक्ति ,अध्यात्म की शक्ति ,कोई भी वो चीज ,जो अलग दिखती है ,उसे अपनी ओर खींचने पर मजबूर कर ही देती है। वो तो इन विषयों में से किसी पर भी शोध करना चाहती है। अपने मन को समझाया, बच्चे तो कुछ भी बोलते हैं ,फिर भी मन नहीं माना और तुषार से पूछ ही बैठी- तुषार क्या ये सही है ,तुम्हारे दादाजी भूतों से बातचीत करते हैं।
यस मैम !
तुमने उन्हें भूतों से बात करते कब देखा है ?
वो तो जब भी अकेले होते हैं ,तो बातें करने लगते हैं।
क्या तुमने भूतों को देखा ?
नहीं ,भूत हमें नहीं दिख सकते, किन्तु दादाजी को दिखते हैं।
मन तो किया तुषार के दादाजी से मिलूं ,किन्तु अपने मन की भावनाओं को वश में कर ,बच्चों को पढ़ाने लगी।
तुषार के दादाजी ,सुबह ही नहा -धोकर तैयार होकर बैठ गए ,उनकी पत्नी ने उन्हें देखा और मुस्कुराकर बोली - उपाध्याय जी !क्यों आज क्या कोई विशेष बात है ? जो इस तरह तैयार होकर बैठ गए। अब तो आपका ऑफिस भी नहीं ,क्या कहीं जा रहे हैं ?या फिर कोई मिलने आ रहा है।
आज मुझसे कोई मिलने आ रही है ,उपाध्याय जी ने मुस्कुराते हुए जबाब दिया।
उनकी पत्नी की आश्चर्य से आँखे फैल गयीं और बोलीं - कौन आ रही है ?
वे अपनी पत्नी को सताना चाहते थे ,मजे ले रहे थे ,बोले -जब आएगी ,तुम भी मिल लेना ,जाओ !उसके लिए चाय -नाश्ते का प्रबंध करो।
अबकि बार उनके तेवर बदल गए ,बोलीं -इस बूढ़ापे में क्या मेरी सौत ला रहे हैं ?
हुई जलन ,मन ही मन उपाध्याय जी मुस्कुराये किन्तु तभी तुषार ने आकर भांडा फोड़ दिया ,अम्मा ! मेरी टीचर दादाजी से मिलने आ रही है।
हैं...... इनसे क्यों ?वो तो तुम्हारे माता -पिता से मिलने आएगी ,इनसे क्यों मिलने आने लगी ?
पता नहीं ,कहकर वो बाहर भाग गया।
नंदिनी को अपने साथ लेकर ,तुषार अपने दादाजी के पास आया। नमस्कार सर ! मैं तुषार की अध्यापिका नंदिनी !
नमस्ते ,नमस्ते ! बैठो ! तुम मुझसे क्यों मिलना चाहती थीं ?
सर !मेरी ये बात आपको थोड़ी बचकानी लगेगी किन्तु मुझे ऐसी चीजों को जानने में दिलचस्पी है ,मैं ऐसे विषयों पर शोध भी करना चाहती हूँ। आप मुझे क्या विस्तार से बताएंगे ?आपने ये सब कैसे ?मेरा मतलब है ,कब से आप, ऐसे लोगों से मिलने लगे और उनसे बातें करने लगे ? मैं आपसे आपके अनुभव जानना चाहती हूँ।
मैं कुछ समझा नहीं ,तुम किस विषय पर बातचीत करना चाहती हो ,या क्या कह रही हो ?
''भूतों से बातचीत '' तुषार ने मुझे बताया ,मुझे ही क्या पूरी क्लास को पता है ,उसके दादाजी भूतों से बात करते हैं ,मैं ऐसी ही शक्तियों पर शोध करना चाहती हूँ।
नंदिनी की पूरी बात को समझकर ,उपाध्याय जी मुस्कुराये और बोले -क्या तुम जानना चाहती हो ?मैं भूतों से कब से और कैसे बातें कर रहा हूँ ?
जी.......
मैं नौकरी करता था ,मेरे पास समय नहीं था ,सारा दिन अपने काम में व्यस्त ,पैसा जो कमाना था ,घर चला ना था ,बच्चे पढ़ाकर किसी क़ाबिल बनाने थे। बच्चे भी पढ़े ,उनके विवाह भी हुए और मैं सेवा मुक्त भी हुआ ,ये सभी के साथ है ,वो एक गहरी साँस लेकर बोले। सेवामुक्त होने के पश्चात ,मेरे पास समय ही समय था ,अपने बुढ़ापे के लिए पैसा भी जोड़ लिया ,ताकि बुढ़ापे में बच्चों के सामने हाथ न फैलाना पड़े। कुछ दिन तो अच्छे से गुजरे ,बच्चों ने मेरा ख्याल भी रखा ,धीरे -धीरे सभी अपने कार्यों में व्यस्त हो गए। अब मैं अपने को व्यर्थ चीज की तरह ,महसूस कर रहा था जो किसी कोने में पड़ी है ,अब उसकी कोई कीमत नहीं। मेरा काम बच्चों को देखना ,दूध लाना ,सब्जी लाना जैसे कार्यों तक ही सीमित रह गया। मैं उम्मीद करता मेरी पत्नी मुझसे चंद बातें करेगी ,मेरे पास बैठेगी ,मेरी बहुएं ,मेरे लिए खाना लाएंगी या फिर अपनी छोटी -मोटी ,बातों में शामिल करेंगी ,बेटे रविवार की छुट्टी में ,अपने पिता के समीप बैठकर ,बातें करेंगे। किन्तु रविवार में वे अपने परिवार के साथ ,घूमने निकल जाते ,आकर थक कर सो जाते। बहुओं ने आज तक ,ये भी नहीं पूछा -पापा जी चाय पिएंगे या किसी चीज की आवश्यकता तो नहीं।
मुझसे कम बोलते हैं ,कन्नी काटकर निकल जाते हैं ,न ही हम बोलेंगे ,न ही ये हमसे कुछ कहेंगे ,अब तुम बताओ !क्या मुझे इंसानों को परखने की इतनी भी समझ नहीं। पत्नी बहुओं के साथ लगी रहती है ,क्योकि हम भी दो रोटी खाते हैं ,बीमार होती है ,पड़ जाती है ,कोई बहु आकर नहीं पूछेगी -मम्मी जी ,आपको पानी -चाय या दवाई की आवश्यकता तो नहीं। एक दिन मैं इसी क्रोध में ,मन ही मन बड़बड़ा रहा था ,तभी तुषार आ गया ,मुझसे पूछने लगा ,दादाजी !आप किससे बात कर रहें हैं ?अब उसे बच्चे से क्या कहता ?कि तेरे माता -पिता पर ही अपना क्रोध निकाल रहा हूँ ,उसके माता -पिता बनने से पहले ,वे मेरे बच्चे हैं ,और मैंने ऐसे ही कह दिया -भूत से बातें कर रहा हूँ। उसने तभी से समझ लिया ,दादाजी भूत से बातें करते हैं। जब ''इंसान को ही इंसान से बात करने का समय नहीं होगा तो भूत से ही बातें करेगा ,अपने उन पलों को स्मरण करेगा ,जो गलतियां उसने अपने जीवन में की इन पलों को लाने के लिए।''आज ये ही पल 'शूल 'की तरह चुभते नजर आ रहे हैं। ये नहीं ,कि ये सब मेरे ही साथ हो रहा है अधिकतर सभी बुजुर्ग ऐसा ही महसूस करते होंगे। तब हम 'भूतों से ही बातें करेंगे'' और किससे करेंगे ?
उनकी बात सुनकर मैं ,हैरत में पड़ गयी ,अंकल जी सही तो कह रहे हैं ,आज का समय ऐसा आन पड़ा है ,किसी को किसी से बात करने का समय ही नहीं ,थोड़ा बहुत समय मिलता भी है ,तो अनजान लोगों में व्यस्त हो जाते हैं ,जिन्हें जानते भी नहीं ,घंटों चेेटिंग में लगा देते हैं ,अपने घर में ही कोई बुजुर्ग है ,उसके साथ दो पल भी बिताना नहीं चाहते ,कुछ उनके मन की भी सुनें ,उनके अनुभवों का लाभ लें। ऐसे में घर में पड़े बुजुर्ग ,बड़बड़ाना [भूतों से ही बात ]करेंगे।