रमा बड़ी बेचैनी से बार -बार मंच की तरफ देख रही थी ,फिर उठकर अंदर की तरफ चली गयी। वहाँ जाकर देखा- सब ठीक है या नहीं, तभी दीपा के कपड़ों की एक डोर खुली नज़र आई ,उसने दीपा को टोका और अपनी सहायिका से ध्यान रखने को कहा। आज उसे इस तरह बेचैनी हो रही है ,जैसे छोटे बच्चों को ,जब उनके बोर्ड के पेपर होते हैं, अपनी तैयारी तो पूरी होती है किन्तु पेपर आरम्भ होने से पहले ,कक्षा में प्रवेश से पहले ,बार -बार अपनी पुस्तक खोलकर देखता है और लगता है- कहीं कुछ छूट तो नहीं गया ,कुछ भूला तो नहीं। आज वही हालत रमा की हो रही है ,जब तक कार्यक्रम आरम्भ नहीं हो जाता ,इसी तरह की बेचैनी बनी रहेगी। हो भी क्यों न ?रात -दिन एक करके उन्होंने अपने नमूने तैयार किये ,अपनी सोच ,अपनी सारी रचनात्मकता ,इन नमूनों में डाली। ये नहीं, कि वो जीतना चाहती है या अपने से छोटो को हराना चाहती है किन्तु उसकी ये लड़ाई तो ,अपने -आप से ही है। वो आज अपने -आपको ही एहसास दिलाना चाहती है कि उसका निर्णय गलत नहीं था वरन उसने जो भी कदम उठाये हैं ,वो उचित हैं ,वो अपनी ही नज़र में आगे बढ़ना और उठना चाहती है। अपने को ही विश्वास दिलाती है कि आज भी उसमें कुछ कर गुजरने की क्षमता है। लोग आने आरम्भ हो गए और उसके दिल की धड़कने भी बढ़ने लगीं। अब वो अंदर आकर अपने किये गए, सम्पूर्ण कार्य का स्वयं ही निरीक्ष्ण करने लगी। पूरी तरह आश्वस्त होकर उसने ठंडी साँस ली और पानी पीया। कुछ देर बाद ही उसकी बारी थी ,उसने पुनः उन लड़कियों को देखा जो उसके बनाये वस्त्र पहने खड़ी थीं। अब वह अपने को पूरी तरह से आश्वस्त कर बाहर आ गयी।
क्योंकि वो भी जनता के पास खड़ी होकर ,उनकी नज़रों से समझना चाहती थी कि क्या सही है ,क्या ग़लत ?उसके समूह की लड़कियाँ जब चलती हुयी ,मंच पर आयीं तो लोगों ने तालियां बजायीं ,उनकी तालियां ही उसके होने का एहसास करा रहीं थीं। उसे भी मंच पर बुलाया गया तो लोग अत्यधिक अचम्भित हुए कि इस उम्र में इतनी मेहनत और इतनी बारीकी से ये नमूने तैयार किये। एक ने प्रश्न किया -आप ये कार्य कब से कर रहीं हैं ?अभी पांच -छह बरस से रमा ने उत्तर दिया। इससे पहले आप क्या करती थीं ?दूसरे जज ने पूछा -इससे पहले मैं अपने परिवार में थी और अपनी गृहस्थी संभाल रही थी ,रमा का जबाब था। वो जज आपस में बातें करने लगे फिर एक ने पूछा -आपने कहीं से सीखा है ,रमा बोली -जी ,मुझे सिलाई और उसकी बारीकियां पहले से ही आती थीं किन्तु व्यवसायिक रूप से मैंने एक बरस सीखा और परिणाम आपके सामने है। ये सब आपने एक बरस में ही सीख़ लिया, जज ने आश्चर्य से पूछा। अब तक रमा में आत्मविश्वास आ गया था बोली -ये सब मेरी अपनी सोच है ,यदि हममें रचनात्मकता और हौसला है तो हम कुछ भी कर सकते हैं। रचनात्मकता,कला तो भगवान की देन है ,उसे न ही कोई सीखा सकता है न ही छीन सकता है।कुछ क्षण पश्चात, रमा के नमूने चुन लिए गए और वो ख़ुशी में रोने लगी ,उसे लगा- जैसे मेरा जीवन आज सार्थक हो गया। इतने सालों से अपनी इच्छाओं को दबाये बैठी थी किन्तु अब उसका कोई दुःख नहीं ,सारी कसर आज पूर्ण हुयी। घर आते ही उसने ठंडी साँस ली और कुर्सी में धंस गयी। अपनी गर्दन पीछे टिकाकर आँखें मूँद लीं और सोचने लगी ,जब उसने अपनी बात अपने पति और बच्चों को बताई थी कि अब सब बड़े और समझदार हो गए हैं ,मेरी अपनी भी ज़िंदगी है ,सब अपना -अपना कार्य करें। अब मैं अपने लिए भी कुछ करना चाहती हूँ। सुनकर पतिदेव ने ही पहले विरोध किया और बोले -अब इस उम्र में तुम क्या करोगी ? उन्होंने जब देखा मुझे बुरा लगा, तो बोले -सारा जीवन तुमने मेहनत करते बिताया है ,अब तुम किसी भी पचड़े में मत पड़ो और आराम करो।
उनकी ऐसी बातें दिल बहला देतीं किन्तु उनकी बातों में मेरे लिए प्यार नहीं वरन मुझे बहलाकर ,घर में ही काम कराना ही था। मैंने कहा - मैं अब इस उम्र में, घर में भी तो, कार्य कर ही रही हूँ ,कौन सा ,मुझे आराम मिलता है ?किन्तु अब मैं अपने मन की तुष्टि के लिए कार्य करना चाहती हूँ और इसमें मुझे तुम सब लोगों का सहयोग चाहिए कि सब अपना -अपना कार्य करें जो भी मेरी ज़िम्मेदारी है ,वो मैं निभाऊँगी किन्तु बिस्तर पर बैठे -बैठे, जो तुम लोग काम बताते रहते हो , अब उसकी छुट्टी। पति बोले -मेरी तो समझ में ही नहीं आ रहा ,अब इस उम्र में नौकरी करोगी तो कौन तुम्हें नौकरी देगा ?वो उन पर झल्ला उठी -बोली -ये क्या? बार -बार आप मुझे इस उम्र -इस उम्र, में कहकर हतोत्साहित कर रहे हैं। क्या आप जानते हैं ?कि जब हमारा विवाह हुआ ,तब मेरी उम्र मात्र अट्ठारह बरस थी ,मैं आगे पढ़ना चाहती थी ,शिक्षिका बनना चाहती थी। ज्ञान का अर्जन कर , उसका प्रकाश फैलाना चाहती थी किन्तु माता -पिता तो शीघ्र अति शीघ्र मेरा विवाह कर ,अपनी जिम्मेदारियों से मुक़्त हो जाना चाहते थे। न ही उन्होंने जानना चाहा कि मैं क्या चाहती हूँ ?न ही आपने कभी पूछा- कि मुझे क्या पसंद है या मैं क्या चाहती हूँ ?मेरा विवाह कर उन्होंने अपना बोझ तो उतार दिया किन्तु मेरे नाजुक़ पंखों को ससुराल की जिम्मेदारियों के बोझ तले दबा दिया। अभी मैं समझ ही नहीं पाई कि मेरी ज़िंदगी किस ओर जा रही है ?वहां के लोगों को समझने का प्रयत्न ही कर रही थी कि तभी बारी -बारी तीन बच्चों की ज़िम्मेदारी आन पड़ी ,मैं दो बच्चे ही चाहती थी किन्तु आपकी बुआ बोली -दो बेटे तो हों ,एक का क्या सुख देखा ? आपके लिए मेरी इच्छाओं का कोई महत्व नहीं था बल्कि रिश्तेदारों की इच्छायें महत्व रखतीं। मैंने भी अपने को समय के हाथों छोड़ दिया कि ये समय की लहरें किस ओर ले जाती हैं ?
आज मुझे लगता है, कि जो मेरी जिम्मदारी थी ,मैंने निभाई और अब अपने लिए कुछ सोचा है। पतिदेव मुस्कुराकर बोले -इस उम्र में कौन तुम्हें अध्यापिका बनाएगा ?नहीं अब मैंने अपना रास्ता बदला है। मतलब ,वो हैरान होकर बोले। मतलब ये कि ,अब मैं अपनी कला को ,अपनी रचनात्मकता को नया रूप दूँगी ,आपको शायद पता नहीं कि मुझे नए -नए डिजाइन के कपड़े, जितनी पहनने में रूचि है उतनी ही नए डिजाइन बनाने में , तनिक रुककर बोली -आपको कैसे पता होगा ?जब आपने मुझे कभी जानने का प्रयत्न ही नहीं किया। माता -पिता ने तो आपके लिए घर बैठे ,अपनी मर्ज़ी का खिलौना लेकर दे दिया जो आपके और घर वालों के इशारों पर चलता ,जब चाहे जैसा चाहे काम करा लो किन्तु अब उसके सैल समाप्त हो गए ,अब वो अपने लिए चलेगा रमा मुस्कुराकर बोली। यानि तुम ''फैशन डिज़ाइनर ''बनना चाहती हो ,पति हँसे। तुम्हें पता भी है ,कितनी मेहनत और कितनी रचनात्मकता चाहिए ?बहुत भागा -दौड़ी भी होगी। उसने पति का हाथ पकड़ते हुए कहा -तभी तो कह रही हूँ कि अपनों का सहयोग चाहिए ,जो भी होगा देखा जायेगा ,अब मैंने अपना मन बना लिया है। बेटे ने सुना तो बोला -नहीं मम्मी ,आपसे नहीं हो पायेगा। रमा बोली -यही तो मैं साबित करना चाहती हूँ कि तेरी मम्मी के अंदर भी प्रतिभा छुपी है वो ही तो कर दिखाना है। वो बोला -किसे दिखाना है ?हमें नहीं देखना। अब रमा को क्रोध आया ,बोली -मैंने तुमसे इजाज़त नहीं मांगी ,मैंने बताया है ,तुम चाहो या न चाहो। अनिल अपने बेटे को अलग ले जाकर बोले -पता नहीं ,इस पर कौन सा भूत सवार हो गया ?जब कुछ नहीं होगा ,तो थक -हारकर बैठ जायेगी। इस उम्र में लोग आराम करने का सोचते हैं और ये चली है ''फैशन डिजाइनर ''बनने। उन्होंने अपने बेटे से अविश्वास के साथ कहा किन्तु मैंने सब सुन लिया और उनकी बातों ने मुझमें और जुनून भर दिया ,मैंने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि इन्हें कुछ करके ही दिखाना है तभी इनकी ''बोलती बंद होगी।
तभी बेटी की आवाज़ से ध्यान भंग हुआ -मम्मी आप जीत गयीं ,बधाई हो ,कहकर गले से लिपट गयी ,बोली --मम्मी आपने कर दिखाया। रमा चाय बनाने चल दी ,तभी तनु बोली -मम्मी के लिए आज मैं चाय बनाऊँगी। धीरे -धीरे यह बात मौहल्ले में भी फैल गयी और लोग बधाई देने आने लगे। अनिल नजरें चुराकर बीच -बीच में रमा को देख लेते किन्तु अभी अपने अहंकार को तसल्ली नहीं दे पाए थे। अगले दिन मोेहल्ले की महिलाओं ने मिलकर, रमा को सम्मानित करने के लिए सभा बुलाई। जब सब इकट्ठे हो गए तब श्रीमती चौबे बोलीं -ये हम सभी महिलाओं के लिए सम्मान की बात है कि रमाजी ने इस उम्र में अपनी कला और रचनात्मकता के बल पर अपने को साबित किया। जिस उम्र में हम महिलायें सोचती हैं कि उम्र के इस पड़ाव पर आकर, अपने को योग और घर के कामों के अलावा ,आराम करने का सोचती हैं उस उम्र में इन्होंने एक ''नई उड़ान ''भरकर साबित कर दिया कि यदि तुम चाहो तो , किसी भी उम्र में उड़ान भर सकते हो। व्यक्ति उम्र से नहीं ,सोच से बूढ़ा हो जाता है ,हंसकर बोलीं -
दिल जवान रहेगा ,तो उम्र क्या कर लेगी ?
मन में जज़्बा रहेगा ,तो बेबसी क्या कर लेगी ?
उनकी इन लाइनों पर तालियाँ बजने लगीं। चौबे जी बोलीं -अब मैं चाहती हूँ ,कि रमाजी भी दो शब्द कहें,
जिनसे हम स्त्रियों को हौसला मिले- जो जीवन को जी नहीं वरन काट रही हैं ,उन्हें प्रोत्साहन मिले। रमा खड़ी होती है और कहती है --मेरी प्यारी बहनों !मुझे कोई भाषण देना तो नहीं आता किन्तु इतना अवश्य कहूँगी ,हम सभी ने कभी न कभी तो सपने देखे ही होंगे और विवाह होने के बाद , परिस्थितियों से समझौता कर लेते हैं और अपने सपनों को भुला देते हैं, किन्तु मेरा ये कहना है कि सपने देखने की कोई उम्र नहीं होती वे तो कभी भी देखे जा सकते हैं और जीवन में जब भी मौक़ा मिले, अपने जज़्बे को अपनी रचनात्मकता को उभरने दें, दबाएँ नहीं, किन्तु इसके लिए मन में इच्छा होनी आवश्यक है। हम गृहणियाँ भी कम नहीं ,इससे भी सीख़ ही मिलती है ,घर संभालने के लिए ,हम कौन सा सीखते हैं? या किसी विद्यालय में जाते हैं ?लेकिन परिवार को संभाल ही लेते हैं किन्तु उसमें परिवार के लोगों की प्रसन्नता देखते हैं ,वे भी अपने ही हैं किन्तु अपने सपनों के लिए भी कुछ समय निकालें ,तो कुछ बुरा नहीं। आरंभ में उन्हें लगता है कि हम घर संभालने के सिवा कुछ नहीं कर सकते क्योंकि हम उन्हें ऐसा सोचने देते हैं। सभी के परिवारवाले एक जैसे नहीं होते ,कुछ सहयोग करते हैं ,कुछ नहीं। किन्तु यदि अपनी विशिष्ट पहचान बनानी है तो कुछ विशेष ही करना होगा। किसी को परेशानी न हो किन्तु हमारा मन भी न दुखे ,कुछ ऐसा करें। जब बुढ़ापा आयेगा ,आता रहेगा किन्तु समय से पहले अथवा किसी के कहने पर बूढ़ा नहीं होना है ,जैसे अभी चौबे जी कह रहीं थीं ,इस उम्र में ,ये शब्द मैंने कई बार सुना है किन्तु जब तक अपना मन न कहे -अपने सपनों को उड़ान देते रहें।एक रास्ता बंद होता है तो दूसरा खुल जाता है, उद्देश्य है- अपनी मंजिल पर पहुँचना तो रास्ता बदल लीजिये ,जैसे मैं अध्यापिका बनना चाहती थी किन्तु समय को देखते हुए मैंने अपनी कला को निखारा और नतीज़ा आज आपके सामने है ,ये मेरे कार्य का अंत नहीं आरम्भ है ,जो मुझसे जुड़ना चाहती हैं ,मुझसे किसी भी प्रकार का सहयोग चाहती हैं ,मैं प्रस्तुत हूँ ,धन्यवाद। तालियों की गड़गड़ाहट के साथ वो बैठ गयीं। आज रमा उन महिलाओं के लिए एक मिसाल बन गयी थी।