आज भी वही हुआ ,जिसका डर था , वो लोग चुपचाप चले गए। नंदिनी तो चाहती थी ,कि अभी जबाब मिल जाये ,किन्तु पति ने समझाया , उन्हें अपने घर जाकर सलाह -मशवरा तो करने दो ,एक -दो दिन में जबाब दे देंगे। सुरेश जी ,सुलझे हुए ,समझदार व्यक्ति थे। नंदिनी उतनी ही उतावली और परेशान हो जाने वाली थी। उसने न जाने कैसे -कैसे दो दिन निकाले ?
दो दिन होते ही ,सुरेश जी के पीछे लग गयीं। जरा पता तो लगाइये ! दो दिन हो गए ,उन लोगों ने कोई जबाब नहीं दिया। सुरेश जी चाहते थे ,कि वो लोग ही फोन करके कहें -हमें आपकी लड़की पसंद है। किन्तु पत्नी के आगे उनकी कहाँ चलने वाली थी ?नंदिनी के इतनी बार कहने पर भी ,उन्होंने शाम ही कर दी।
अब तो नंदिनी भड़क गयी -सुबह से कह रही हूँ किन्तु ये इंसान है, कि सुनने का काम नहीं ,
सुरेश जी ने लड़के वालों को फोन लगा ही दिया ,पहले तो उन लोगों ने फ़ोन उठाया ही नहीं ,तीन -चार बार फोन लगाने के पश्चात ,फोन उठाया - हैलो !
भाईसाहब ! मैं सुरेश बोल रहा हूँ ,दो -तीन दिन हो गए ,आपने कोई जबाब नहीं दिया ,तब तक नंदिनी भी उन्हीं के पास खड़ी रही ,उनके चेहरे के भावों को पढ़ने का प्रयत्न करती रही। उनके चेहरे पर निराशा के भाव आ गए ,जी -जी ,हाँ -हाँ इसी तरह के शब्दों के पश्चात उन्होंने फोन रख दिया।
नंदिनी ने पूछा -क्या हुआ ?
उन्होंने बताया ,रिश्ते के लिए हमारी बेटी ने ही इंकार कर दिया ,वो तो कह रहे थे -अपने घर बुलाने से पहले अपनी बेटी से तो पूछ लेते, कि उसे विवाह करना भी है या नहीं।
इतना सुनते ही ,नंदिनी ने अपना माथा पीट लिया ,उसकी तो जैसे रोने जैसी हालत हो गयी। ये लड़की पता नहीं क्या चाहती है ? इतना अच्छा रिश्ता आया था ,इसने उसे ठुकरा दिया। इसी तरह पहले भी जो रिश्ते आये ,इसने इशारे से उन लड़कों को भी मना कर दिया। आखिर ये क्या चाहती है ?उसका दिल किया कि जाकर बेटी के गाल पर तमाचे जड़ दे ,आखिर ये क्या चाहती है ?इतने अच्छे -अच्छे रिश्ते ठुकरा रही है। किन्तु सुरेश जी ने स्यानी बेटी पर हाथ उठाने से, नंदिनी को रोक दिया। किन्तु नंदिनी की हालत तो ऐसी हो रही थी। जैसे कोई खज़ाना उसके हाथ से फिसल गया हो। करे तो क्या करे ? उन्हें लग रहा था ,ऐसा रिश्ता फिर हाथ नहीं आएगा। उनके क्रोध अति हो चुकी थी, बेटी को कुछ कह नहीं पा रही थीं , स्वयं ही रोने लगीं। अपनी सहेली से बात ,बताते हुए रोने लगीं -मेरी बेटी ने तो जैसे ''भरी थाली में लात मार दी।'' अब क्या कहूँ ?दुःख के कारण ,मानसिक रूप से कमजोर हो गयी थी ,फोन पर भी अपने आंसूं न रोक सकी।
कुछ दिनों पश्चात ,नंदिनी की सहेली तृषा घर पर आई ,आते ही रूपा से मिली -कैसी हो ? बेटी !
आंटी मैं ठीक हूँ ,कहकर वो मुस्कुरा दी और अंदर जाने लगी।
क्यों अपनी आंटी के पास नहीं बैठोगी ,रूपा !
आप तो मम्मी से मिलने आई होंगी , मैं मम्मी को जाकर बता देती हूँ।
तुम यहीं ठहरो !तुम्हारी मम्मी जहाँ है ,मैं उससे वहीं जाकर मिल लेती हूँ ,आज तुमसे ही बात कर लेती हूँ। तृषा ने देखा ,रूपा का चेहरा ,कमजोर हो गया है ,उसका चेहरा उतरा पड़ा था। क्या तुम बीमार हो ?
नहीं तो आंटी !
फिर तुमने ये क्या हालत बना रखी है ? कैसी लग रही हो ? कुछ भी छिपाने की आवश्यकता नहीं ,तुम्हारी मम्मी ने मुझे फोन पर पहले ही बता दिया था। अब तुम दिख ही गयी हो ,तब तुमसे ही बात कर लेती हूँ। नंदिनी तुमसे नाराज होगी। रूपा ने हाँ में गर्दन हिलाई। उसका नाराज होना स्वाभाविक है ,उसका सपना है ,अपनी बेटी को अच्छे घर में ब्याह करके विदा करे ,और तुम हर रिश्ते को मना कर देती हो। उसे दुःख होगा, तो वो नाराज भी होगी। तुम एक बात बताओ ! तुम विवाह करना क्यों नहीं चाहती ? क्या कोई और लड़का तुम्हे पसंद है ?
नहीं ,ये बात तो मम्मी भी कई बार पूछ चुकी हैं ,वो तो और भी न जाने क्या -क्या कह चुकी हैं ?रूपा सुबकने लगी।
तृषा को लगा ,जरूर नंदिनी ने कुछ ऐसी बात कही है ,जो इसके दिल पर जाकर लगी है।
वो तो गुस्से में कुछ भी कह देती है ,क्या तुम अपनी माँ को जानती नहीं , तुमसे कितना प्यार करती है ?रात -दिन तुम्हारे सोचती है। सभी माता -पिता ,अपने बच्चे का सुखी भविष्य चाहते हैं। तब इसमें बताओ !वो गलत कहाँ है ? तुम पढ़ी -लिखी हो, नौकरी करती हो ,इसके बाद तो माता -पिता शादी का ही सोंचेंगे। तुम किसी से प्रेम भी नहीं करतीं, तब तुम ,इस तरह लड़कों को मना क्यों कर देती हो ?
तृषा के इस तरह प्यार से पूछने पर ,रूपा रो दी। मैं क्या बताऊं आंटी ! मैं विवाह ही नहीं करना चाहती।
वो ही तो हम जानना चाहते हैं।
आंटी !लड़का भी नौकरी करता है ,मैं भी नौकरी करती हूँ ,किन्तु मेरी नौकरी का कोई महत्व नहीं ,लड़के की हाँ -ना पर ही मेरी ,ज़िंदगी की पतवार अटकी रह जाती है। मेरी हाँ -ना का तो प्रश्न ही नहीं उठता।
अभी तक तो ,तुम ही लड़को को मना करती आई हो ,इसमें तुम्हारी ना ही तो चल रही है।
आंटी लड़के आते हैं ,वे पढ़े -लिखे हैं ,किन्तु माता -पिता के लिए वो शादी कर रहे हैं ,माता -पिता के कहे अनुसार आ जाते हैं ,कोई भी मेरे लिए नहीं आता ,हमारी एक मुलाकात होती है , मुझसे ये कोई नहीं पूछता तुम्हें मैं पसंद हूँ या नहीं , मुझे तुम पसंद हो या नहीं। जिसमें वो मुझसे कहता है -मैं माता -पिता के लिए यहाँ आया हूँ।
ये तो सभी लड़के कहते होंगे , माता -पिता के विचारों का मान बच्चों को रखना भी चाहिए ,तब वो कहाँ गलत हैं ?
मैं उन्हें गलत नहीं ठहरा रही , आज तक किसी लड़के ने मुझसे ये नहीं कहा ,कि तुम मुझे पसंद हो ,मैं तुम्हारे लिए यहाँ आया हूँ ,यदि मैं कुछ भी आना -कानी करती हूँ ,तो उसे तुरंत शक हो जाता है ,किसी लड़के से तो संबंध नहीं ,मुझ पर रौब मारकर कहता है -जब मुझे क्रोध आता है तो ,मैं अपने माँ -बाप की भी नहीं सुनता। जो लड़का अपने माता -पिता की नहीं सुनता ,उसके मन में मेरी क्या इज्जत होगी ? कभी किसी ने ये नहीं कहा ,यदि तुम शादी नहीं करना चाहती तो क्या कारण है ?कभी जानना नहीं चाहा ,कि मैं क्या चाहती हूँ ? मैंने चुपचाप अपने माता -पिता के साथ उठकर चलता बनता है। वो मेरे लिए नहीं आता वो माता -पिता के कहने पर रस्म निभाने आ जाता है। किसी ने ये नहीं पूछा ,जिस भी कारण से तुम विवाह नहीं करना चाहती ,तुम्हारा निजी फ़ैसला है ,किन्तु एक बार तो कहे - रूचि !मैं तुम्हारे लिए आया हूँ , मैं तुम्हारे साथ हूँ। तब तक हम दोस्त बनकर तो रह सकते हैं। न ही मेरे इंकार का कारण पूछता है ?ये तो पूछे ,क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं ?पसंद नहीं भी ,तो मेरे मन में ,वो सम्मान ,प्रेम जगाये तो सही।
आप ही बताइये ,इस एक छोटी सी मुलाकात में ,क्या जीवनभर का फैसला हो जाता है ?
क्यों, हमने विवाह नहीं किया ? तब तक नंदिनी भी आ चुकी थी ,वो भी वे बातें सुन चुकी थी ,उसी ने रूपा से पूछा।
आपका समय और था ,बिना देखे विवाह हो जाना ,बच्चे हो जाते ,जब झगड़ते हैं ,तब भी कहते है -पता नहीं किस घड़ी में तुमसे विवाह हुआ ?
ये नोक -झोंक तो पति -पत्नी में चलती ही रहती है ,इससे प्यार कम नहीं हो जाता।
ये प्यार नहीं ,मात्र समझौता है। माता -पिता विवाह कर देते थे , बस अब उस रिश्ते निभाना ही मजबूरी बन गयी।इतने दिनों तक , कुत्ते को भी साथ रखो तो उससे भी प्रेम हो जाता है , उस मजबूरी को अब हम क्यों पालें ?रूपा ने अपनी माँ से पूछा।
देख रही तू...... ये कितना बोलने लगी है ?
ये जो भी लड़के मुझे देखने आते हैं ,माता -पिता के कहने पर चल देते हैं ,माँ घूर -घूरकर निरीक्षण करती है , पढ़ी -लिखी नौकरी पेशा लड़की भी चाहिए ,और वो चाहती है ,घर भी संभाले ,खाना भी बनाये। बेटा नौकरी करता है ,हाथ नहीं बटायेगा ,उसे कुछ नहीं आता ,माता -पिता की सेवा का ठेका भी लड़की का है। बच्चे पैदा करने की ज़िम्मेदारी ,फिर उन्हें पालना ,जाते ही उनका घर खुशियों से भरना है। वो लड़की ढूंढ़ रहे हैं या 'रोबोट ' मेरी नौकरी का कोई मूल्य नहीं ,मैं कभी भी नौकरी छोड़ सकती हूँ। जब इन सब कामों से बाहर आउंगी मेरी आधी ज़िंदगी कट चुकी होगी। इस बीच हम दोनों में संबंध बच्चे बनाने तक रहेगा। हो सकता है ,दफ्तर में पति को कोई और लड़की पसंद आ जाये ,अपना रूप और जवानी तो रूपा गंवा चुकी। या कुछ वर्षों पश्चात ,लड़के और लड़की के विचार मेल नहीं खा रहे ,तलाक चल रहा है। अब वो पेंतीस -चालीस की उम्र में नौकरी करती है और केस लड़ रही है। अब आप ही बताइये ! क्या ये प्यार है ? जब मुझे नौकरी करके ही जीना है तब इतनी परेशानी क्यों उठानी ?
तब तुम क्या कहना चाहती हो ?कभी शादी नहीं करोगी तृषा ने पूछा।
करूंगी न ,जब कोई मेरे लिए आएगा ,मेरे मन की बात पूछेगा। मेरे साथ खड़ा रहेगा ,हर परिस्थिति में मुझे मान देगा। अपने दोस्तों के साथ खड़े होकर, दिखाने के लिए ,मुझे शो पीस नहीं समझेगा। यदि मैं विवाह के लिए इंकार भी करती हूँ ,तो कारण जानना चाहेगा। जब मेरे लिए आया है ,तो मेरा ही होकर रहना चाहेगा।
वो दिन कभी नहीं आएगा ,नंदिनी क्रोधित होते हुए बोली। ऐसा कोई लड़का नहीं करेगा ,उसे लड़कियाँ बहुत.... वो क्यों तुम्हारे इंकार करने पर भी ,तुमसे बात करना चाहेगा।
क्योंकि वो मेरी लिए आया है तो मुझे जानना भी चाहेगा ,जानने के लिए'' एक मुलाकात'' ही काफी नहीं। प्रेम जगाया जाता है ,अपने व्यवहार और अपनी सोच से ,सादगी से।
इतना वक्त किसके पास है ?
वो ही तो मैं कह रही हूँ ,आजकल किसी के पास दो मीठे बोल बोलने का भी वक्त नहीं। बस माता -पिता के कहने पर चल दिए विवाह करने ,मुझसे पहले ही सभी शर्ते बता दीं ,बच्चे बनाने हैं ,माता -पिता की सेवा करनी है ,और वो मुझ पर अपनी कमाई का हक़ जताता रहेगा। मैं सारा दिन ,''कोल्हू के बैल'' की तरह ,घर बाहर घूमती रहूंगी ,जिनमें मैं प्यार के दो शब्दों के लिए भी ,उनके मुँह तकूँगीं। लड़की घरेलू भी हो ,स्मार्ट भी हो ,पेशेवर भी हो। उसकी कोई पसंद -नापसंद भी महत्व नहीं रखती। जैसे मेरे घर में ,मेरी माँ के ही दिमाग़ में ये बात नहीं है।
रूपा की बात सुनते ही नंदिनी रोने लगी ,मैंने तो इसके उज्ज्वल भविष्य की तमन्ना की थी ,मुझे क्या पता था ?ये इतना सब सोचे बैठी है।
बेटा !जब तुम किसी लड़के से पहले ही इंकार कर दोगी ,तब आगे बढ़ने की उसकी हिम्मत नहीं होगी ,ये तो कोई बंदा ही होगा। जो तुमसे तुम्हारे विचार जानना चाहेगा ,या इंकार का कारण ,बात उनके मान -सम्मान पर भी आ जाती है। हाँ ,ये बात अवश्य है ,इंकार न कर, तुम मिलने की बात कहो ,जब आया है ,तो तुम्हारे लिए ही आया होगा। उसे भी तो अपनी बात समझाने का मौका दो ,तभी तो तुम्हें पता चलेगा ,तब तुम्हें आगे बढ़ना है ,क्या करना है ?ये देखना होगा।
तृषा की बात सुनकर ,रूपा चुप रही ,शायद उसे अब पता चल गया था ,कि उस मुलाकात में उसे क्या करना है ?