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गुल्लक

4 जून 2023

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रेवती अपनी सास की, बड़े मन से सेवा करती थी ,उनकी हर चीज का ध्यान रखती थी ताकि किसी भी प्रकार की उन्हें परेशानी न हो। जब उनकी स्वयं की बहु आ आयीं ,तब भी उनके सम्पूर्ण कार्य स्वयं ही करतीं। उनकी सास यानि अंगूरी देवी आरम्भ में तो बहुत क्रोध करतीं या यूँ कहो कि अपनी बहु को घर -गृहस्थी के गुर सीखाने के लिए ,कठोर कदम उठाये किन्तु अब तो धीरे -धीरे उनका रवैया रेवती की तरफ से नरम हो गया। यूँ भी कह सकते हैं कि अब उन्हें रेवती पर पूर्ण विश्वास हो गया कि वो उनकी बसाई घर -गृहस्थी को अच्छे से संभाल रही है। बहु भी अपनी सास को इस तरह कार्य करते देखकर मन ही मन उनकी प्रशंसा करती। एक दिन अचानक ''अंगूरी देवी ''की तेज आवाज़ सबको सुनाई दी ,सभी उस ओर दौड़ पड़े ,पता चला कि आज रेवती को डांट पड़ रही है ,वो कह रहीं थीं -मैंने तुझसे कितनी बार कहा ?मेरे उस बक्से को मत छेड़ा कर ,पर तू है कि सुनती नहीं। माँजी !मैं तो बस उसकी सफ़ाई कर रही थी ,वो भी बाहर से, उसे मैंने खोला भी नहीं, रेवती ने अपनी सफ़ाई में कहा। तू खोलती तो तब, जब मैं तुझे चाबी देती ,उन्होंने अपनी होशियारी दिखाते हुए कहा। रेवती जी थोड़ी उदास होकर बाहर आ गयीं और उनकी आँखों से आसूं छलक आये। आज से पहले भी, कई बार उनकी सास ने उन्हें डांटा है किन्तु आज उन्हें उस डांट का बुरा लगा क्योंकि अब वो भी सास बन चुकी हैं और बहु, के सामने उन्हें डाँटना ,अच्छा नहीं लगा।


मनसुख लाल अपने कमरे में बैठे ,समाचारपत्र पढ़ रहे थे , उन्हें देखकर रेवती बोली -कितना भी इनका काम कर लो फिर भी कोई न कोई कमी रह ही जाती है ,पता नहीं कौन सा खज़ाना रखा है ,इसमें ?अब तो ये भी नहीं देखतीं कि बहु आ गयी ,उनके सामने भी ,लग जाती हैं। मनसुख ने रेवती की बात को पहले नजरअंदाज किया किन्तु उसका परिणाम सोच ,एकदम सतर्क होकर बोले -क्या हुआ ?दुनिया को पता चल गया और आप यहीं बैठे, ये अख़बार ही पढ़ते रहना। अरे ,अब बताओगी भी क्या हुआ ?मनसुख शांतिपूर्वक बोले। होना क्या है ?तुम्हारी माँ का मैं संदूक झाड़ने लगी ,कई दिन हो गए थे उस पर धूल जमी थी ,उसी बात को लेकर बहु के सामने लगीं डांटने ,ये भी नहीं देखा ,मैं भी सास बन गयी हूँ। पता नहीं उस संदूक में ऐसा कौन सा ख़जाना छुपा है ?पूरी बात को ध्यान से सुनकर मनसुख बोले -पता नहीं ,माँ ने उसमें क्या रखा है ?एक दिन मैंने पूछा भी था ,तब बोलीं -मेरे जीवनभर की पूंजी है। रही बात ,बहु के सामने डाँटने की तो ये तो उन पर तुम्हारा अच्छा प्रभाव ही पड़ेगा कि अपनी सास की डांट भी सुनी और पलटकर जबाब नहीं दिया।
                   मनसुख के समझाने पर रेवती थोड़ा शांत तो हुई किन्तु बड़बड़ाती रही -जैसे महान बनने का सारा ठेका मैंने ही ले रखा है ,विवाह को इतने बरस हो गये ,मुझे अपनी इन्हीं चिकनी -चुपड़ी बातों से बहला देते हो ,कभी अपनी माँ से भी पूछा - जो तुम्हारी इतनी सेवा करती है फिर भी उस पर क्यों भड़क जाती हो ?मनसुख थोड़े मज़ाक में आकर बोले -माँ से तो कभी पिताजी भी न पूछ सके कि क्या कर रही हो ?फिर हम तो उनके बच्चे हैं ,हमारी भला इतनी हिम्मत कहाँ ?कहकर हंस दिए। किन्तु रेवती बोली -सबका बस तो मुझपे ही चलता है न ,कहकर बाहर चली गयी। मनसुख सोचने लगे -पता नहीं। माँ ने ऐसा क्या रखा है ?या छुपा रही हैं कि किसी को हाथ ही नहीं लगाने देतीं ,और फिर अपना समाचार -पत्र पढ़ने में व्यस्त हो गए। कुछ समय पश्चात रेवती रसोईघर में गयी ,वहां बहु खाने की तैयारी में लगी थी ,रेवती को देखकर बोली -मम्मी जी ,उस संदूक में ऐसा क्या रखा है ?जो दादीजी हाथ लगाने नहीं देतीं। मुँह बनाते हुए रेवती बोली -मुझे क्या मालूम ?देखा नहीं ,उसकी सफाई करने पर ही कितनी बातें सुना दीं ?बहु जिज्ञासावश बोली -कुछ विशेष ही होगा ,तभी इतने सावधानी से रखती हैं।रेवती लापरवाही से बोली -कुछ भी हो, हमें क्या ?वैसे मम्मीजी आपने कभी पूछा भी नहीं ,रेवती की बहु बोली। नहीं ,कहकर वो खाना लेकर चली गयीं।रेवती की बहु के मन में अनेक विचार घुमड़ रहे थे। अगले दिन रेवती अपनी सास के नहाने के लिए गर्म पानी के लिए स्नानागार में घुसी तो देखा पानी पहले से ही तैयार था। शिप्रा को अपनी दादी सास का हाथ पकड़ कर लाते देखा। रेवती बोली -बहु तुम अन्य कार्य निपटा लो ,मैं माँजी को नहलाकर लाती हूँ ,जी मम्मीजी , मैं दादीजी के लिए बाहर धूप में कुर्सी बिछा देती हूँ और चाय भी बना दूँगी। रेवती अपनी बहु के इस बदले व्यवहार से अचम्भित थी कि आज तक तो इसने कभी ध्यान नहीं दिया, अब कैसे कर रही है ?फिर सोचा- करने दो ,मैं भी कब तक करती रहूँगी ?बहुत किया ,आज तक भलाई न मिली ,इसे भी लड्डू लेने दो ,सोचकर मुस्कुरा दीं। 
                 जब सब खाना -पीना हो गया तब शिप्रा दादीजी के पास जाकर बोली -लाओ दादीजी ,आपके सिर में तेल लगा दूँ। दादी भी पुराने समय की अनुभवी महिला थीं ,बोलीं -तेरी सास क्या कर रही है ?क्या मुझसे नाराज़ है ?नहीं दादीजी ,यदि वो नाराज़ होतीं तो आपको नहलाती थोड़े ही, शिप्रा ने अपनी सास का पक्ष लेते हुए कहा। दादी बोली -नहला तो रही थी पर मुँह सुजा रखा था ,फिर बोलीं -वैसे तेरी सास को मैं कितना भी डांट -डपट लूँ ,मुँह तो बना लेगी किन्तु पलटकर ज़बाब नहीं दिया ,आजतक। बात बनती देख शिप्रा बोली -दादीजी ,ऐसा उस संदूक में क्या है ?जो आपने मम्मी जी को इस तरह डांट दिया। दादी सोच रही थी ,आज तक मेरी बहु ने मुझसे नहीं पूछा कि ट्रंक में क्या है ?और ये चार दिन की आयी ,चली है मुझे मूर्ख बनाने ,मुस्कुराकर बोलीं -इसमें मेरे जीवन भर की पूँजी है जो तुम्हारे काम की नहीं। शिप्रा ने पूरी बात पर ध्यान न देते हुए कहा -आपके क़ीमती वस्त्र होंगे किन्तु उन्हें इस तरह रखना भी तो ग़लत है ,धूप और हवा नहीं लगेगी तो वे गल जायेंगे। दादी मुस्कुराकर बोली -नहीं उससे भी बहुमूल्य। अब तो शिप्रा को पूर्णरूप से विश्वास हो गया कि अवश्य ही इसमें दादीजी के स्वर्ण आभूषण होंगे किन्तु अब उसने दादीजी से किसी भी तरह के, कोई प्रश्न नहीं पूछे और वो उनके सिर में तेल डालकर चली गयी। मोहित बोला -तुम कहाँ गयीं थीं ?शिप्रा बोली -मैं दादीजी के बालों में तेल लगाने गयी थी। क्यों ?उनका काम तो मम्मी करती हैं ,न मोहित संदिग्ध नज़रों से उसे देखते हुए बोला। शिप्रा बोली -अब मम्मी जी भी कब तक कार्य करती रहेंगी ?उन्हें भी तो आराम मिलना चाहिए। मोहित उसकी बातों का मर्म न समझते हुए बोला - तुमने देखा था ,दादी ने उस दिन किस तरह मम्मी को डांट लगाई थी ?यदि तुमसे कोई गलती हो गयी तो तुम्हें भी नहीं बख्शेंगी ,फिर मुँह बनाती हुई मत आना। ये मम्मी का काम है ,उन्हें ही करने दो, कहकर वो चाय पीने लगा। शिप्रा मन ही मन सोच रही थी ,मम्मी इतनी समझदार होतीं तो आज उस संदूक पर उनका राज होता किन्तु जो वो न कर सकीं अब वो मैं करूंगी। 
                  बहुत दिनों बाद घर की लड़की यानि बुआ घर में आयी है ,घर का वातावरण काफी ख़ुशनुमा हो गया। बुआ के बच्चे अब बड़े हो गए हैं किन्तु शरारती अब भी उतने ही हैं। बेटी चौदह बरस की हो गयी ,वो तो आते ही शिप्रा से घुल -मिल गयी। शिप्रा ने मौका देखकर एक बार बुआ से भी कहा -दादीजी ने ऐसा क्या खज़ाना रखा है ?उस दिन मम्मीजी को बहुत डांटा। बुआ भी लापरवाही से बोली -होगा कुछ ,उनका सामान है ,रखें या फेंके। उनकी बात सुनकर शिप्रा को निराशा हाथ लगी ,वो सोच रही थी -केेसा परिवार है ?कोई जानना ही नहीं चाहता कि उस बक्से में क्या है ?एक दिन मौक़ा देखकर शिप्रा ने देखा -दादी उस कमरे में ट्रंक के पास कुछ कर रहीं हैं, तभी शिप्रा ने बुआ की बेटी को बुलाया और दादीजी के पास के भेजा। नंदिनी दौड़ती हुई ,अपनी नानी के पास गयी ,उसे आता देखकर दादी ने उसे बंद किया और बाहर आ गयीं। नंदिनी बोली -नानीजी आप क्या कर रहीं थीं ?उसकी नानी बोली -बेटा कुछ नहीं ,नहीं कुछ तो कर रहीं थीं ,मुझे भी दिखाइए ,वो ऐसा इसीलिए कर रही थी क्योंकि शिप्रा ने उसे सिखाकर भेजा था। नानी ने अपने पास से एक चाँदी का सिक्का निकालकर उसे दिया ,उसे देखकर नंदिनी बोली -नानी क्या आपके पास ऐसे और भी सिक्के हैं ?नानी मुस्कुरा दी।नंदिनी नानी के ट्रंक की ओर बढ़ी और बोली -क्या इसमें ऐसे और भी सिक्के रखे हैं ?क्या है ये ?नानी मुस्कुराकर बोली -ये मेरी गुल्लक है ,जैसे तुम अपनी गुल्लक में पैसे रखते हो और किसी को नहीं देते और जब तुम्हारे पास ज्यादा पैसे होने पर तुम्हें ख़ुशी मिलती है , ऐसे ही ये मेरी गुल्लक है ,इसमें मेरी जीवनभर की पूंजी इकट्ठा है जो मुझे प्रसन्नता देती है।नंदिनी ने जाकर सारी बातें शिप्रा को बताईं और चाँदी का सिक्का भी दिखाया। अब तो शिप्रा को पूरी तरह विश्वास हो गया कि दादी के बक़्से में खज़ाना है। 


              अब तो शिप्रा दादी का अत्यधिक ध्यान रखने लगी ,उसे विश्वास था कि दादी मुझसे प्रसन्न होकर जो खज़ाना मेरी सास को नहीं दिया ,मुझे अवश्य देंगी। एक दिन दादी और सास दोनों पड़ोस के यहाँ कीर्तन में गयी हुईं थीं। शिप्रा दौड़कर उस ट्रंक के पास गयी ,उसे घूरकर देखा फिर चाबी ढूंढ़ने लगी उसे विश्वास था कि दोनों दो घंटे से पहले नहीं आएँगी। उसकी बेचैनी इतनी बढ़ी, कि उसने अपने पति को बुलाया और कहा- कि इसका ताला तोड़ दो। दादी कब तक इसके मोह में फंसी रहेंगी ?और उसने सारा किस्सा जो नंदिनी के साथ हुआ अपने पति को बताया। मोहित बोला -इसमें कुछ भी नहीं है ,यदि इसमें कुछ होता तो दादी हमें स्वयं ही दे देती ,हमें न भी देती तो पापा और माँ को ही दे देती ,होगा भी तो ,कहीं ले नहीं जाएँगी ,तुम परेशान न हो। शिप्रा उसकी बात से खीझकर बोली -तुम कुछ नहीं जानते ,इसमें सोने और चाँदी के सिक्के होंगे ,एक दिन मुझसे भी बता रहीं थीं कि इसमें मेरी जीवनभर की पूंजी है ,कुछ तो दादीजी ने छुपाया ही होगा। तुम बस इसका ताला तोड़ दो। मोहित को अपनी पत्नी की बात मूर्खतापूर्ण लगी ,बोला -यदि मैंने इसे तोड़ भी दिया तो फिर इसे बंद नहीं कर पायेंगे और दादी को पता चल जायेगा। शिप्रा बोली -तुम भी कितने बुद्धू हो ?मैंने ऐसा ही ताला लेकर रखा है ,वो कब काम आयेगा ?जब आज मौक़ा मिला है तो मैं इसे नहीं जाने दूंगी। मोहित बोला -ये ग़लत है ,अपने ही घर में चोरी हो जायेगी ,मैं कहता हूँ- इसमें कुछ नहीं है। तब तक शिप्रा सिल का बट्टा उठा लाई और बोली -तुम बस इसे तोड़ दो ,मुझसे अब बर्दाश्त नहीं हो रहा। मोहित न चाहते हुए भी शिप्रा की जिद के आगे झुक गया और ताला तोड़ने लगा। ताला टूटा ही था तभी घर के दरवाज़े की घंटी बजी। शिप्रा बोली -तुम इसे खोलकर देखो ,तब तक मैं देखती हूँ कि कौन है ?
                दरवाज़े के पास पहुंचकर शिप्रा की चीख़ निकल गयी ,बोली -मम्मीजी आप !इतनी जल्दी कैसे वापस आ गयीं ?रेवती बोली -माँजी की तबियत थोड़ा बिगड़ने लगी इसीलिए हम लोग आ गए। कहकर वो अंदर आ गयीं। शिप्रा का तो जैसे खून ही सूख गया और घबराती हुई रसोईघर की तरफ भागी। एक -दो नहीं कई गिलास पानी पी गयी। अपने को संभालकर पानी लेकर चल दी। तब तक मोहित भी आ गया। शिप्रा ने मोहित को देखा ,उसने नजरों ही नजरों में उसे आश्वासन दिया 'सब ठीक है। दादी अपने कमरे में गयी और मोहित से बोली -बेटा तू मेरा संदूक तो लाना। उनकी बात सुनकर मोहित को जैसे -काटो तो खून नहीं ,थूक सटकते हुए बोला -कौन सा संदूक दादी ?अरे वो ही, जिसके कारण तेरी माँ को डांट पड़ी दादी बोली। दादी अभी आपकी तबियत ठीक नहीं ,आप आराम करो, उसे बाद में देख लेना मोहित बोला। नहीं ,तू उसे अभी ला ,दादी ने ज़िद की। तब तक दादी का बेटा मनसुख भी आ गया और वहीं बैठ गया। दादी बोली -मैंने हमेशा अपने जीवन की खुशियों को छिपाकर और बंद रखा। मेरे जीवनभर की पूँजी है, या यूँ समझो ,मेरा जीवन ही इनसे जुड़ा है ,मुझे लगता था कि तुम्हारे लिए ये सब व्यर्थ होगा इसलिए मैंने अपनी खुशियों को छिपा लिया और इस गुल्लक रूपी बक्से में संजोती रही , किन्तु अब मैं सोचती हूँ ,जब ये तन ही अपना नहीं ,पता नहीं कब चली जाऊँ तो इन्हें ही बटोरकर रखने से क्या लाभ ?तब तक मोहित भी संदूक ले आया। दादी मोहित से बोली -खोलो इसे !दादी मैं ,मोहित हिचकिचाते हुए बोला। जब चाबी तुम्हारे पास है तो खोलोगे भी तुम्हीं , दादी ने जैसे रहस्य खोला। मनसुख और रेवती उसका मुँह देखने लगे ,उनकी नज़रों में कई सवाल थे। 


                 बिना देरी किये मोहित ने संदूक खोला , शिप्रा भी अब तक आ चुकी थी ,वो भी एक तरफ खड़ी होकर उत्सुकतावश देखने लगी। उसमें कुछ खेल- खिलौने ,पुरानी फटी कॉपियाँ थीं ,कुछ पुराने कपड़े भी। दादी ने काँपते हाथों से एक लहंगा और चुनरी निकाली ,उसे देख वो भावुक हो उठी ,बोलीं -जब मैं अपने नए जीवन में कदम रखने जा रही थी ,तब इसी को पहनकर मैंने तेरे दादाजी के संग'' सात फेरे '' लिए थे। उसके पश्चात एक छोटा सा झबला निकाला बोलीं -ये मनसुख का है ,जब इसने पहली बार मुझे मातृत्व का एहसास कराया। तब मैंने बड़े प्रेम से अपनी पड़ोसन से बनाना सीखा था और तब इसे पहनाया था। दादी की आँखों में ख़ुशी के आँसू थे ,अब देखो कितना बड़ा हो गया ?अब तो ये स्वयं ही बाप बन गया। ये इसकी पेन्सिल ,ये कॉपी जिसमें इसने टेढ़े -मेढ़े अक्षर बनाये। ये चित्रकला की कॉपी ,ये इसकी गेंद इस तरह दादी ने अपना सारा खज़ाना ख़ाली कर दिया। बोली -तुम्हें लगता होगा ,पता नहीं इस बुढ़िया ने कौन सा खज़ाना छुपा रखा है ?मेरे जीवन के ये अनमोल पलों से जुड़े ये सामान, ही मेरा ख़जाना है। मोहित बोला -दादी फिर इसे छुपाकर क्यों रखती थीं ?क्योंकि ये मेरे लिए अमूल्य हैं ,मुझे इन्हें देखकर प्रसन्नता मिलती है।इन्हें देखकर मैं अपना सम्पूर्ण जीवन जी लेती थी किन्तु तुम्हारे लिए पुराना सामान।यदि मैं इसे दिखा भी देती तो तेरी माँ कब का इसे कबाड़ी को दे देती ?किन्तु जब मैं ही न रहूँगी तो ये वस्तुएं भी क्या करेंगी ?मनसुख जो इतनी देरी से अपनी माँ की बातें सुनकर भावुक हो चुका था ,अपने ऑंसू पोेछते हुये बोला -ऐसा क्यों कहती हो ?माँ !तुम अपने खज़ाने को अपने पास रखो ,कोई कुछ नहीं करेगा। तभी पास खड़ी शिप्रा से रुका नहीं गया और बोली -वो चाँदी का सिक्का कहाँ से आया ?जो आपने नंदिनी को दिया। दादी बोली -इसीलिए तुमने ताला तुड़वाया , चाँदी का सिक्का तो मनसुख ने ही बहुत पहले मुझे दिया था ,बहुत दिनों बाद तुम्हारी बुआ आई थी इसीलिए मैंने उसे दे दिया। एक बात कहूँ ,तुम्हारी सास ने आज तक मेरी जो भी सेवा की, निःस्वार्थ भाव से की, कभी कोई लालसा नहीं रखी, ये काम वो भी कर सकती थी। सीखना है तो अपनी सास से सीखो ,मन और जीवन दोनों में ही शांति रहेगी। आज अपनी प्रशंसा सुनकर रेवती को लगा जैसे आज ,उसकी सेवा सफल हुई ,प्रशंसा के रूप में उसे जैसे कोई 'पदक 'मिल गया हो। 
                  जब सब लोग बाहर खाना खाने के लिए आ गए, तब मोहित बोला -दादी तुम्हें कैसे पता चला ?कि मैंने ताला तोडा है। दादी बोली -तेरी बहु का लालच, मुझे कई दिनों से दिख रहा था और जब हमने घंटी बजाई थी तेरी माँ का ध्यान नहीं गया किन्तु मुझे कुछ तोड़ने की आवाज़ आ रही थी और जब मैंने ताला देखा तो समझ गयी ,था तो मेरे ताले जैसा किन्तु नया , कहकर दादी ने अपनी बूढी आँखों से भौहें मटकाते हुए कहा। दादी आप कमाल हो ,मैं आपके लिए खाना लाता हूँ ,कहकर गया। सुबह रेवती दादी के कमरे में गयी और उन्हें उठाने लगी किन्तु वहाँ सिर्फ़ दादी का शरीर था ,दादी तो पता नहीं कबकि जा चुकी थीं। उनके खजाने के मुक़्त होते ही, दादी भी मुक़्त हो गयीं किन्तु सबके दिलों में प्रेम और अपनापन भर गयीं।मनसुख बोला -मेरी माँ ही मेरी गुल्लक थीं जिसने मेरा बचपन मेरी ज़िंदगी अपने में संजो रखी थी , बिना माँ ,मैं आज पूरी तरह अनाथ हो गया।  
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रचनाएँ
प्रेरक कहानियाँ
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ज़िंदगी में अनेक घटनाएँ -दुर्घटनाइयें,होती हैं,ज़िंदगी जाने -अंजाने अनेक परेशानियों से गुजरती है,इस ज़िंदगी में अनेक रिश्ते भी होते हैं जिनसे हमें कुछ न कुछ सीख मिलती है,सीखने की कोई उम्र नहीं होती चाहे कोई छोटा हो या बड़ा। जीवन में हर पल कुछ न कुछ सीख या प्रेरणा मिल ही जाती है कई बार कुछ सोचने को मजबूर जाती हैं ये कहानियाँ,कई बार आईना दिखा जाती हैं,ये कहानियाँ । इन कहानियों में जीवन के अनेक रंग देखने को मिलेंगे,सही या गलत सोचने पर मजबूर हैं ये कहानियाँ!
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दीप्ती अति शीघ्रता से अपनी बिल्डिंग से नीचे आती है ,और गाड़ी में बैठकर चल देती है। आज वो देर से उठी, जिस कारण उसे देरी हो रही थी। वो अपनी गाड़ी को ,अपने दफ़्तर की ओर ,तेज़ गति से दौड़ा रही थी। आज &nbs

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शादी के बाद उसने ससुराल में कदम रखा ही था ,कि सास के तीखे तेवर और गर्म मिज़ाज उसे कुछ ही दिनों में पता चल गए। उसने देखा कि जिस व्यक्ति से उसका विवाह हुआ है ,वो तो कुछ बोलता ही नहीं। जो चाहता है ,बस

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अधूरापन

14 जून 2023
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सुगंधा पिता के घर में रही ,अरमान तो बहुत थे ,किन्तु पिता के सख़्त कानून के कारण ,न कहीं आना , न कहीं जाना ,इच्छाएँ ,आकाश की अनंत ,ऊंचाइयों को छूना चाहती किन्तु उसका आसमान सीमित था। कुछ तो घर का अनुशा

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मिट्टी के खिलौने

15 जून 2023
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रामदीन कुम्हार ,प्रतिदिन जोहड़ से चिकनी मिटटी लाता और उसे पैरों से रोंद्ता ,जब वो मिटटी बर्तन बनाने लायक हो जाती तो उसे चाक पर रखकर ,बड़े क़रीने से ,सुंदर -सुंदर मिटटी के बर्तन बनाता। ये उसकी कला ही नह

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भाग्य का खेल

16 जून 2023
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आज मैं अपनी डायरी को ज़िंदगी के एक पहलू कहूँ या कुछ और, किन्तु इतना मैं अवश्य जानती हूँ ,उसे हम भाग्य अथवा क़िस्मत कहते है -इनके इशारों पर ही तो ,हमारी ज़िंदगी चलती है। हम सोचते हैं -जो भी कार्य हम कर रह

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माँ

17 जून 2023
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चम्पाकली 'ताई आज बहुत प्रसन्न है क्योकि उनके दो बेटे ,दो ही बहुएं हैं किन्तु ये उनकी प्रसन्नता का कारण नहीं ,उनकी प्रसन्नता का कारण ,उनका दादी बनना है। दोनों बहुएं ही गर्भवती थीं और अब दोनों ही माँ ब

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संगीत प्रेम

20 जून 2023
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काव्या बहुत ही प्यारी बच्ची है ,मन उसका बहुत ही कोमल है ,सबसे प्रेमपूर्ण व्यवहार करती। दुश्मनी ,लड़ाई क्या होती है ?जैसे वो जानती ही नहीं ,उसे तो सभी अपने ही नजर आते ,छल -कपट से तो उसका दूर -दूर तक वास

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समुद्र तट

22 जून 2023
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कार्तिक और मोना प्रतिदिन , अपने दफ्तर से आते समय कुछ देर ,समुन्द्र के तट पर बैठकर अपनी दिनभर की थकान मिटाते। मोना जब पहली बार अपने दफ्तर में आई ,तब उसकी सबसे पहले मुलाक़ात कार्तिक से ही हुई। कार्तिक न

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दरार

23 जून 2023
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पार्वती जी ,दुखी परेशान ,अपने कमरे में आती हैं और अपने पलंग पर बैठकर ,गहरी स्वांस भरती हैं और अपनी आँखें बंद कर लेती हैं। मैं कितना भी अच्छा सोच लूँ या कर लूँ ?किन्तु इसे अपना नहीं बना सकती ,ये 'दरा

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पहाड़ी प्रेम

29 जून 2023
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ज्योति...... ओ ज्योति....... ! दूर से आती, मौसी की आवाज सुनाई दी। आई मौसी ! कहकर मैं बंसी से बोली -कल आउंगी तब खेलेंगे ,अब मौसी बुला रही है। बंसी ने हाँ में गर्दन हिलाई और मैं ,दौड़ते हुए मौसी के

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भूतों से बातचीत

1 जुलाई 2023
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नंदिनी जैसे ही , अपनी कक्षा में पहुंची -उसने देखा ,सभी बच्चे ,तुषार की सीट के पास खड़े हैं। ये सब क्या हो रहा है ?सभी बच्चे वहाँ क्या कर रहे हैं ? नंदिनी को देखते ही ,सभी बच्चे दौड़कर अपनी -अपनी सीट पर

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पैसा

2 जुलाई 2023
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रतनलाल जी ने कितना पैसा कमाया ? रात -दिन एक कर दिया। शानदार कोठी भी बनाई ,बच्चों को महंगे से महंगे स्कूल में पढ़ाया। सबकुछ तो उनके पास है ,किसी चीज की भी कमी नहीं ,पत्नी के पास भी जेवरों की कोई कमी नह

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गड़बड़ घोटाला

3 जुलाई 2023
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मैं प्रतिदिन की तरह ,जब परिवार के सभी सदस्य अपने -अपने काम पर चले जाते ,तब घर की साफ -सफाई और बाहर बगीचे में पानी देना जैसे कार्य करती। एक दिन जब मैं अपने पौधों को पानी दे रही थी ,तभी मैंने देखा ,स्क

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रिश्तेदार जलते हैं!

4 जुलाई 2023
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कितनी ख़ुशी की बात है ?कीर्ति तुमने पढ़ाई पूरी करने के साथ -साथ ,तुम्हारी नौकरी भी लग गयी। एक पार्टी तो अवश्य बनती है। क्या ख़ाक पार्टी बनती है ?तुम सभी दोस्तों को ही पार्टी दूंगी ,मम्मी -पापा के लि

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कीमत, समय की

7 जुलाई 2023
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अतुल बहुत ही बिगड़ैल और अड़ियल है ,देखने में तो वो बहुत जचँता है ,उसे देखेंगे तो कह उठेंगे कि किसी बड़े घर का बेटा हो लेकिन उसका स्वभाव उसकी शक़्ल और व्यक्तित्व से बिल्कुल विपरीत है। वो न ही किसी की बात

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कीमती

9 जुलाई 2023
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राधा जब ,मोहन से मिली ,उसे देखते ही , अपना दिल दे बैठी ,मोहन की हालत भी कुछ ऐसी ही थी। पहली बार दोनों ,राधा की सहेली के घर पर,उसकी जन्मदिन की पार्टी में ,उससे मिली। जितनी खूबसूरत राधा लग रही थी, उतना

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मृत्यु पर विजय

10 जुलाई 2023
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पल -पल मरता है ,इंसान ! जीने की तमन्ना में ! टूटता है ,बिखरता है, जिन्दा रहने की चाह में !खो देता है ,अपनों का साथ ,जीता है स्वांसों में !स्वांसों का ही खेल है , जिन्दा रहने की आस में !कुछ लोग जी

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भूतिया हवेली

12 जुलाई 2023
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श.... श.... श.... श.... आज आपको एक''अज़ीबो ग़रीब प्रेम की '' कहानी सुनाती हूँ। जानते हैं ,ये जो हवेली है ,ठाकुरों की है ,बहुत ही रुआब था। ठाकुर ''बलदेव सिंह '' अपने नाम की तरह ही बलवान ,बुद्धिमान और रौब

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सुरक्षा कवच

14 जुलाई 2023
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माँ 'तुम अब यहाँ ,अकेली क्या करोगी ? अब तुम भी हमारे संग चलकर रहो !अनंत अपनी माँ से बोला। बेटा ! सम्पूर्ण ज़िंदगी इस शहर में बिता दी ,अब इधर -उधर जाकर क्या करूंगी ? जब तू छोटा था ,तब सोचा करती थी

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बदलते रंग

16 जुलाई 2023
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आज घर में खीर -पूरी ,मालपुए दो सब्ज़ियाँ और बूँदी का रायता बना है क्योंकि आज बहुओं का व्रत है ,आज के दिन सुहागन महिलायें अपने पति की लम्बी उम्र ,और अच्छे स्वास्थ के लिए पूजा करती हैं और अपने घर की बड़ी

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वो सुबह!

17 जुलाई 2023
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कितना सुहावना मौसम है ?रंजन अपने बच्चों से कहता है -चलो !आज कहीं घूमने चलते हैं। बाहर हल्की - हल्की बूंदा -बांदी हो रही थी। बच्चे खुश हो जाते हैं और दौड़कर अपनी मम्मी के पास जाते हैं। मम्मी ! पापा कह

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लडाई

19 जुलाई 2023
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श्रेया ,अपने आप से ही , कितना लड़ रही थी ? ये तो वो ही जानती है।अब तो जीवनभर संघर्ष ही करना है। पहले पढ़ाई में संघर्ष किया क्या विषय लेने हैं ,कौन सा स्कूल चुनना है ? स्कूल में भी ,प्रतिशत में नंबर लाने

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सूर्यास्त और हम

20 जुलाई 2023
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रामलाल जी के घर में ,फोन की घंटी बज रही थी ,उनके बेटे की बहु फोन उठाती है और रामलाल जी से कहती है -पापा जी !आपका फोन है। किसका है ? पूछो कौन है ?और क्या कहना चाहता है ?शिरोमणि अंकल हैं ,और आपसे

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धड़कन

21 जुलाई 2023
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पंकज हमेशा अपनी ही चलाता है , किसी की भी नहीं सुनता ,सुमित्रा जी हमेशा ,एक उम्मीद के सहारे आगे बढ़ उसका समर्थन करतीं और कहतीं -पंकज ,अभी बच्चा है ,समझदार हो जायेगा ,तब सब समझने लगेगा ,कहना भी मानेगा कि

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मेन्ढकी

22 जुलाई 2023
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गर्मी से बुरी हालत थी ,नहाते -नहाते भी पसीने आ जाते। खेती पर काम करने वाले भी खेतों से ,वापस आ गए। सभी को ,बरसात की इच्छा हो चली थी। आपस में कहते -न जाने बरसात कब होगी ?यदि शीघ्र ही बरसात नहीं हुई तो

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बरसात

23 जुलाई 2023
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बरसात का मौसम ''आते ही मन झूमने लगता है ,बारिश की ठंडी -ठंडी फुहार तन को ही नहीं ,मन को भी भिगो जाती हैं। चारों तरफ धुली -धुलि सी ,हरियाली ,लगता है जैसे ,प्रकृति ने धानी चुनर ओढ़ ली हो। बच्चों की तो बर

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एक ही गलती

25 जुलाई 2023
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सुधा खिड़की के पास बैठी ,चाय पी रही थी ,तभी उसकी बेटी ने उसे पुकारा ,मम्मी ,मैंने अपना गृहकार्य कर लिया। ठीक है ,जाओ !अब जाकर बाहर बच्चों के साथ खेल लो !ठीक है ,कहकर वो बाहर की तरफ दौड़ी ,तभी सुधा ने उस

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