मानिनी'' का जब भी देखो , किसी न किसी बात पर'' मेहुल'' से झगड़ा हो ही जाता है।आज भी मेहुल बिना खाना खाये घर से निकल गया। उसने कहा भी ,कि खाना खाकर जाओ !लेकिन मेहुल ने गुस्से में उसकी किसी भी बात पर ध्यान नहीं दिया। जब नई -नई शादी हुई थी तो मेहुल के इस तरह खाली पेट घर से जाने पर वो बहुत ही दुःखी और परेशान हो जाती थी क्योंकि उसकी मम्मी कहा करती थी -घर से आदमी को ख़ाली पेट बाहर नहीं जाना चाहिए ,मम्मी किसी को भी भूखे पेट बाहर नहीं जाने देतीं थीं। यही बात मानिनी ने भी गाँठ बांध ली थी। वह ज्यादा से ज्यादा कोशिश करती कि मेहुल को समय पर खाना दे लेकिन जब से उनके झगड़े बढ़े हैं, वो भूखा ही घर से निकल जाता। वो अपना गुस्सा खाने पर ही निकालता जिस कारण, बाद में मानिनी परेशान रहती लेकिन अब वो उसको चलते समय खाने को कहती ,मेहुल के न खाने पर कहती -न खाएं ,इनका रोज -रोज का ही ड्रामा हो गया, कहकर स्वयं ही खाने बैठ गयी लेकिन गुस्से और दुःख के कारण मन ही नहीं किया और स्वयं भी जाकर अपने बिस्तर पर लेट गयी और सोचने लगी -अभी दो ही साल तो हुए हैं हमारी शादी को वो भी नौकरी और बाहर के सारे काम ख़ुशी -ख़ुशी संभाल लेती लेकिन जैसे -जैसे समय बीता उसे भी काम के लिए मदद की आवश्यकता होती तो उसने महसूस किया कि मेहुल तो मदद के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं होता और बैठे -बैठे उससे ही काम करवाता रहता।
उसकी अपनी कोई परेशानी होती तो सहयोग तो दूर, उसे झिड़क देता ,वो तो किसी भी तरह की जिम्मेदारी या सिरदर्दी लेना ही नहीं चाहता था। काम पर जाता और आराम करता। जैसे सभी कामों का ठेका मैंने ही लिया हो। किसी बात को लेकर उसे समझाती तो झुंझलाने लगता। कुछ समझना ही नहीं चाहता। सामने शर्माजी को देखो पत्नी के हर काम में सहयोग करते हैं । मेहुल की ये बातें मुझे कतई अच्छी नहीं लगतीं, मैं उसके आलस को देर से समझी। कल को अगर बच्चे होंगे, तो मैं क्या -क्या करूंगी? धीरे -धीरे झगड़े इतने बढ़े कि मानिनी अपने मायके आ गयी। उसने अपनी समस्या अपने घरवालों को बताई तो मम्मी को बहुत ही गुस्सा आया और उन्होंने उसकी सास के साथ ही झगड़ा कर लिया बोलीं -तुम्हारा बेटा ही नहीं कमाता, मेरी बेटी भी कमाती है ,वो हमारी बेटी है कोई नौकरानी नहीं। वे भी कोई कम न थीं बोलीं -तुम्हारी बेटी कौन से'' तीर मार रही '' है कौन से बड़े परिवार का काम कर रही है। पति -पत्नी दोनों ही तो हैं उसमें भी मेरे बेटे से काम करवाने का प्रयत्न करती है ,अपने ही काम नहीं होते। घर आने का कोई फायदा नहीं हुआ और बात बढ़ ही गयी
किसी ने भी बात को बैठकर सुलझाने का प्रयत्न नहीं किया। दूर रहने से दूरियां और बढ़ गयीं। न ही मेहुल ने फोन किया न ही मानिनी ने। दोनों के ही घरवालों ने एक -दूसरे की कमी बताकर'' आग में घी'' का काम किया। मानिनी सोचती ,-क्या मेहुल को मेरी बिल्कुल चिंता नही? एक बार भी फोन करके पूछा नहीं कि तुम कैसी हो या अपने घर आ जाओ। उधर मेहुल सोचता -उसका अपना घर था, कभी उसे किसी बात के लिए रोका नहीं, अपने आप गयी है ,आने के लिए एक फोन तो कर सकती ही है कि मेहुल मुझे आकर ले जाओ। एक बार मेहुल ने फोन किया भी , वो फोन उठाने भागी भी उससे पहले ही उसकी मम्मी ने दो -चार बातें सुनाकर रख दिया। मुझे अपने घर रहते आठ माह हो गए ,इस बीच मैंने देखा -भाभी घर का सारा काम संभालती ,मेरे यहाँ से तो ज्यादा ही काम था ऊपर से मैं भी आ गयी। एक दिन भाभी से पूछा -आप तो सारा दिन थक जाती होंगी। वो बोलीं -दीदी ,अपना और अपनों का ही तो काम है। आपके भइया भी यही सोचें कि मैं ही कर रहा हूँ तो काम कैसे चलेंगे ?समय आने पर सहयोग भी तो ये ही करेंगे। परिवार में हर व्यक्ति का कुछ न कुछ सहयोग होता ही है। अब आप पापाजी को ही देख लीजिये वो कुछ काम नहीं करते लेकिन घर की देखभाल ही हो जाती है उनकी जिम्मेदारी पर हम घर से बाहर चले जाते हैं।
यहाँ तो घरवालों ने हमसे पूछा ही नहीं और तलाक़ का नोटिस भी भिजवा दिया। ऐसा लगता कि झगड़ा मेरे और मेहुल के बीच नहीं दो परिवार वालों के बीच है। जब किसी में हम बुराई देखते हैं तो बुराइयाँ ही दिखतीं हैं। मैं अपने माता -पिता का सहयोग समझ अपने को ही सही ठहरा रही थी। मायके में पड़े अब एक वर्ष बीत गया। सुबह मन करता मेहुल मेरे सामने आ जाये ,अपने घर की याद सताती। भाई -भाभी को देखा, उनमें भी झगड़े होते फिर कुछ समय बाद ही हँसने -बोलने लगते। अब मुझे अपनी गलती नजर आ रही थी ,मैंने ही झगड़े को ज्यादा बढ़ा दिया ,झगड़े किस पति -पत्नी में नहीं होते ?घर छोड़कर थोड़े ही आ जाते हैं। मेरी जिंदगी किस तरह की हो गयी है ?एक दिन बाज़ार में श्रीमती शर्मा मिलीं ,मुझे देखते ही बोलीं -बहुत दिनों से आप दिखीं नहीं। हाँ यहाँ मम्मी के यहाँ आई हुयी हूँ मानिनी बोली। कहीं कुछ परेशानी तो नहीं उन्होंने नजरों से परखते हुए कहा। नहीं ,नहीं मानिनी बोली। तभी बोलीं -मेरा भी शर्माजी से झगड़ा हो गया। क्यों, कैसे वो तो बहुत अच्छे हैं मैंने एकाएक पूछा। अच्छा हैं वे मुँह बनाकर बोलीं ,वे बहुत ही शक्की हैं। काम में मेरी इसीलिए सहायता भी करते थे बाहर जाऊँगी तो न जाने किससे मिलूँ ? इसी कारण मेरी नौकरी भी छुड़वा दी। एकदम बंधन कर दिया उन्होंने ,भला ऐसे भी कोई जी सकता है। आज भी मैं अपने मायके के बहाने कुछ काम से बाज़ार आई। तुमसे कभी मिलें तो इस बात का ज़िक्र मत करना कि मैं तुम्हें यहां मिली थी और वो तेजी से चली गयीं लेकिन मेरी आँखे खोल गयीं। दूर से ही किसी की सच्चाई का पता नहीं चलता। अब तो मुझे अपने फैसले पर दुःख हो रहा था।
एक दिन मैं अपने दफ्तर से पैदल ही लौट रही थी तभी एक गाड़ी मेरे पास आकर रुकी मैंने देखा वो तो मेहुल की गाड़ी है उसने मुझे गाड़ी के शीशे में से देख लिया था। मेहुल को इतने दिनों बाद अपने सामने खड़ा देखकर मेरा दिल जोर -जोर से धड़कने लगा ,मेरी तो जैसे बोलती ही बंद हो गयी। वो बोले -तुम यहाँ पैदल कहाँ घूम रही हो? एकदम से उसकी बातें सुन गुस्सा भी आया -तुम्हें क्या ?चलो गाड़ी में बैठो !वो बोला। नहीं ,कहकर मानिनी चलने लगी लेकिन मेहुल ने उसे खींचकर अंदर बिठाया बोला -अभी भी मैं तुम्हारा पति हूँ। इतने दिनों बाद अपना अधिकार याद आया ,आँखों के कोरों में आये आँसू को छिपाते हुए बोली। अच्छा तुम ये बताओ पैदल कहाँ घूम रहीं थीं ?मेहुल ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा। मानिनी गुस्सा होते हुए बोली -जिसका अपने पति से झगड़ा हो ,तलाक़ का केस चल रहा हो ऐसी औरतें तो धक्के ही खाती हैं। मेहुल बोला -ताने मारने से बाज नहीं आओगी और मुस्कुरा दिया। एक क्षण उसने मेहुल को नज़र भर देखा। हल्की दाढ़ी बढ़ी है उसके चेहरे से थकावट साफ झलक रही थी आँखें भी ऐसी लग रहीं थीं जैसे नींद भी पूरी न हुई हो।पहले तो कैसे चेहरे पर चमक रहती थी? अब देखो। फिर उससे अपने को रोका ही नहीं गया बोली - ये क्या हाल बना रखा है ?क्यों? ठीक तो है, फिर उसकी तरफ देखते हुए बोला -तुम भी तो देखो कैसी हो गयी हो ?न ही कोई साज -शृंगार ,अभी तो मैं हूँ। बस चुप रहो! इससे पहले वो कुछ और कहता ,मानिनी बीच में ही बोल उठी।
गाड़ी अपनी रफ़्तार से बढ़ी जा रही थी ,थोड़ी देर में गाड़ी जहाँ रुकी उस जगह को देखकर बोली -ये तुम मुझे कहाँ ले आये ?जहाँ तुम्हें होना चाहिए ,घर का दरवाजा खोलते हुए मेहुल बोला -ये ही तुम्हारी असली जगह है। अंदर आकर मानिनी ने देखा ,सारा घर अस्त -व्यस्त था। मेहुल ने उसकी प्यार से लायी सभी चीजें ढ़ककर रख रखी थीं। ये सब चीजें ढ़की क्यों है मानिनी बोली। ताकि कल को तुम ये न कहो कि मेरा सारा सामान गंदा या पुराना कर दिया। तुम्हारा जो सामान जैसा था ,वैसा ही है। मैंने तुम्हारी हर चीज को संभालकर रखा है। अब तुम भी मेरे वो बीते दिन लौटा दो 'जब हम एक -दूसरे के साथ प्यार से रहते थे वो ख़ुशनुमा रातें मैं तुम्हारा आलिंगन कर चैन से सोता था। मेरी जिंदगी की वो बेफ़िक्री ,जो तुम्हारे साथ रहने पर थी। मेरा वो प्यार , वो चेहरा जिसे देखकर मेरी सुबह और रातहोती थी। मैं मानता हूँ ,मेरी कुछ गलतियाँ होंगी फिर भी तुम मुझे माफ़ कर ,मेरी जिंदगी का सुकून लौटा दो। मैं भी अपना कुछ सामान मांगती हूँ। मेरा सामान ये सब नहीं जो तुमने ढ़ककर रखा है मेरे लिए तो तुम्हारा खिला चेहरा ही मेरा अरमान है, मैंने तो तुम्हें गाड़ी में ही क्षमा कर दिया था। मैं भी अपनी जिंदगी के वो ही ख़ुशनुमा पल माँगती हूँ ,मेरी जिंदगी की वो हँसी ,तुम्हारे साथ बिताये वो सुनहरे पल मुझे लौटा दो। मैं फिर से वो पल जीना चाहती हूँ। मेहुल बोला -फिर वो तलाक़ ?वो तो तुम्हारी तरफ से आया था ,मेरी तो कोई इच्छा नहीं थी। मैं तो चाहती थी कि तुम मुझे लेने आओ लेकिन तुमने नोटिस भेज दिया। मैं भी नहीं चाहता था ,ये हमारे घरवाले ही हमारे 'गर्म तवे पर अपने अहं की रोटियां सेक रहे थे'। अब तुम यहीं रहो। नहीं ,कल मुझे मेरे घर से लेकर आना वरना घरवाले सोचेंगें कि किसके साथ भाग गयी ?कहकर दोनों हँस पड़े।
अगले दिन मेहुल ,मानिनी को लेने उसके घर पहुंचा। घरवाले अचम्भित थे, उधर मानिनी भी तैयार थी। मम्मी ने पूछा भी- ये क्या हो रहा है ?मानिनी बोली -कुछ नहीं ,मैं अपने घर जा रही हूँ ,उसी की तैयारी हो रही है, फिर दोनों ने खाना खाया। माँ बोली -वो जो केस चल रहा है ,उसका क्या ?मैंने तो नहीं माँगा था तलाक ,अब आप लोग लड़ते रहें अपने अहम की लड़ाई। मुझे इनका कुछ सामान लौटाना है और इन्हें मेरा मुस्कुराकर बोली। दोनों अपने घर को फिर से बसाने चल पड़े ।