बड़ी भयावह वो काली अंधियारी रात्रि थी। मैं उस ठंडी सुनसान काली रात्रि को चीरता चला जा रहा था। ठंड भी अपने पूरे जोरों पर थी। दोस्त ने कहा भी था, आज यहीं आराम कर ले। जब इतनी दूर से आया है तो बेटी को विदा कराकर ही जाना। किन्तु मुझे ज़िद हो गयी ,जाने में इतना समय कहाँ लगेगा ?एक घंटे में घर पहुंच जाऊँगा। मैं जानता था -विवाह के इस वातावरण में ,मैं न ही आराम कर पाउँगा और न ही सो पाउँगा। रस्मों में भी शामिल नहीं हो पाउँगा। बस एक -डेढ़ घंटे की ही तो बात है इसीलिए मैंने अपने घर आना ही उचित समझा। रास्ते में कोई इक्का -दुक्का वाहन दिख जाता। तब मन को तसल्ली होती ,मैं ही अकेला नहीं हूँ ,जो इस ठंड में रात्रि में बाहर निकला हूँ।
कुछ देर इसी तरह चलते ,एक मोड़ के पश्चात घना जंगल सा दिखने लगा। पेड़ तो सड़क के दोनों ओर ही थे किन्तु दूर से और भी घने लग रहे थे ,उस रास्ते में खेत और एक बाग़ भी पड़ता था। मैं अपनी दुपहिया तेज़ रफ़्तार से दौड़ाये जा रहा था। तभी मुझे दूर मेरी बाइक की लाइट और खम्बों की रौशनी में कुछ दिखा। जैसे कोई आदमी किसी चीज को ,शायद किसी इंसान को ही खींचकर सड़क के दूसरी तरफ ले जा रहा है। उस दृश्य को देखकर मैं हिल गया। मेरे मन में अनगिनत प्रश्न एक साथ उठे ,ये कोई चोर डांकू या फिर कोई भूत। मैं उस सर्दी में भी घबराहट के कारण पसीने -पसीने हो गया। अब मेरे मन में एक प्रश्न और उठा वापस जाऊँ या फिर तेजी से आगे निकल जाऊँ। मैं अब और करीब आ गया था ,मैं इस प्रतीक्षा में भी था ,कि कोई गाड़ी आये और मैं भी साथ में निकल जाऊँ।
खड़ा होकर किसी की प्रतीक्षा तो नहीं कर सकता था ,ठंड भी बहुत थी। गीदड़ों की आवाज उस सुनसान में गूंज रही थी ,तब तक मैं और करीब आ चुका था ,तब मैंने अपनी बाइक की रफ़्तार और तेज़ करनी चाही तभी एक आवाज गूँजी - बचाओ !बचाओ !
मैं अपनी घबराहट पर काबू पा आगे बढ़ जाना चाहता था किसी भी तरह की मुसीबत मोल लेना नहीं चाहता था और अपनी इसी सोच के चलते मैं आगे निकल गया। तभी मेरे मन ने मुझे धिक्कारा -पता नहीं ,कौन सहायता के लिए पुकार रहा था ? मुझे कायरों की तरह भागना नहीं चाहिए था। किन्तु फिर भी मैं आगे बढ़ता रहा। तभी एकाएक मैंने अपनी बाइक मोड़ी ,जो होगा देखा जायेगा ,सोचकर वापस उसी स्थान के करीब आया और अपनी बाइक की रौशनी सीधी उसी स्थान पर डाली। मैंने देखा ,एक आदमी कराह रहा था। ,मैंने चिल्लाकर पूछा -कौन है ? वहाँ !
उधर से आवाज की जगह एक हाथ उठा ,मैं अपनी बाइक खड़ी कर ,उधर बढ़ा ,मेरे दिल की धड़कने तेज हो गयीं थीं। कुछ भी हो सकता था ,वे छाती फोड़कर बाहर आने ही वाली थीं ,तभी मैंने उस आदमी का चेहरा देखा ,तो मेरे मुँह से चीख़ निकल गयी। उसका चेहरा खून से लथपथ था आँखें सूजी हुई थीं। उसकी हालत देखकर मेरी रही -सही हिम्मत भी जबाब दे गयी ,मैंने अपनी बाइक चालू की और दौड़ लगा दी। मेरी धड़कने मेरी गाड़ी से भी तेज चल रही थीं। मेरी सम्पूर्ण इंसानियत मेरे पसीने के रूप में बह रही थी ,मैंने पीछे मुड़कर भी नहीं देखा। तब मुझे एक चौराहा दिखा और उस पर बैठे कुछ पुलिस कर्मी ,मेरी इंसानियत एक बार फिर से जग उठी और मैं उन लोगों के पास गया ,उन्हें सम्पूर्ण घटना से अवगत कराया।
मेरी बात सुनकर वो लोग हँसे ,और बोले -तुमने उसे अपनी गाड़ी पर तो नहीं बैठाया।
नहीं ,
अच्छा किया ,वरना तुम भी नहीं बचते।
क्या मतलब ?
वो एक आत्मा ही है ,उसके किसी रिश्तेदार ने उसे मार दिया और ऐसे ही छोड़ गया। रही -सही कसर वहां के जानवरों ने पूरी कर दी। वो मर तो गया किन्तु उसकी आत्मा आज भी लोगों से मदद मांगती है ,जो मदद करता भी है ,वो बचता नहीं। उनकी बातें सुनकर मेरा सम्पूर्ण शरीर काँप गया। मैंने बहुत सारा पानी पिया ,कुछ देर वहीं ऐसे ही बैठा रहा। जब तन में थोड़ी ताकत आई ,तब मैं वहां से आगे बढ़ा। अभी भी मुझे लग रहा था जैसे कोई मेरे पीछे सीट पर बैठा है और मेरे कंधे पर ,उसने दाँत गड़ा दिए। पंद्रह मिनट बाद मैं अपने घर पहुंच गया। किन्तु बड़ी देर तक नींद नहीं आई। सोता भी तो हड़बड़ाकर उठ बैठता ,अगले दिन पत्नी ने उठाया तो ,मुझे बुखार था। तब मैंने उसे सारी बात बताई ,उसने हनुमान जी का लॉकेट मेरे गले में डाल दिया। धीरे -धीरे उस भयानक काली रात का ड़र मेरे मन से कम हुआ।