चम्पाकली 'ताई आज बहुत प्रसन्न है क्योकि उनके दो बेटे ,दो ही बहुएं हैं किन्तु ये उनकी प्रसन्नता का कारण नहीं ,उनकी प्रसन्नता का कारण ,उनका दादी बनना है। दोनों बहुएं ही गर्भवती थीं और अब दोनों ही माँ बन चुकी हैं और ''चम्पाकली ''दादी ! एक बहु के बेटा हुआ है एक के बेटी !
न...... न यहाँ बेटा -बेटी का कोई मुद्दा ही नहीं है। दरअसल ,जब से बड़ी बहु के बेटा हुआ है ,तभी से उनके बेटे को दूध की बोतल लगी है क्योंकि बहु माँ तो बन गयी किन्तु अभी तक उसके स्तनों में ,इतना दूध ही नहीं बनता कि बच्चे का पेट भर जाये।
कई महिलाओं ने सलाह दी , बहु की खूब खिलाई -पिलाई कीजिये ताकि दूध बने ,जीरे का पानी पिलाइये ताकि बच्चे का पेट भरे , कितने ही यत्न किये किन्तु वही ''ढाक के तीन पात ''
दो माह पश्चात ,छोटी के भी बेटी हो गयी, उसकी बेटी को , किसी भी तरह की बोतल लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ी क्योंकि वो अपनी बेटी का पेट भर पाती थी। बड़ी वाली इसी कारण से परेशान थी कि वो अपने बच्चे को ठीक से 'फ़ीड ' नहीं करा पा रही ,उसका बेटा बाहर का दूध पीता ताकि उसका पेट भरे किन्तु इस कारण वो ठीक से पनप नहीं पा रहा था और उसे इंफेक्शन का भी ड़र था। यही बात डॉक्टर ने उसे समझाई थी -बोतल के दूध से ,उसका पेट भी खराब हो गया था।
छोटी अपनी बेटी का पेट भी भरती और दूध बर्बाद भी जाता ,उसके दूध ही इतना बन रहा था। एक दिन वो बड़ी से बोली -आप अपने बेटे को मेरे पास लाइए ,मैं उसे दूध पिला दूंगी। बेचारी माँ क्या करती ?अपने बेटे के लिए ये भी करने को तैयार हो गयी।इस तरह अपने बेटे को ,छोटी को देना अच्छा तो नहीं लग रहा था किन्तु उसी बेटे के लिए ही तो ये सब करना पड़ रहा था। अपने बेटे को लेकर ,छोटी के कमरे में गयी। सोच रही थी ,आज मेरे बेटे का पेट भर जायेगा। इसी भावना से वो मन ही मन खुश हो रही थी। दूध पिलाकर वो अपने बेटे की कमर थपथपाते हुए खुश होते हुए चली आई। अब उसे ये सुकून था कि उसका बेटा भरपेट दूध पियेगा।
अगले दिन जैसे ही ,उसने अपने बेटे को छोटी को दिया ,उसकी गोद में जाते ही वो रोने लगा ,दूध में लगाना चाहा किन्तु उसने मुँह फेर लिया जबरदस्ती करने पर भी ,उसने अपना मुँह नहीं खोला। न जाने क्या समस्या आन पड़ी। जब दोनों सभी जतन करके हार गयीं ,तब अनुभवी ''चम्पाकली ताई ''को बुलाया गया। क्या कारण है ?जो बच्चा दूध नहीं पी रहा है।
सम्पूर्ण जानकारी होने पर ,वो बोलीं -कल तो ये अनजाने में दूध पी गया किन्तु ये अपनी माँ की महक को पहचानता है ,अपनी माँ के दूध से इसका चाहे पेट भरे या न भरे किन्तु अब ये इसका दूध नहीं पियेगा। ये इसके'' दूध का कर्ज़ नहीं'' लेना चाहता।
ये आप क्या बात कर रहीं हैं ? मैंने सुना है ,कई रानियों को दूध नहीं उतरता था तब उन्हें धाय माँ ही दूध पिलाती थीं ,ये छोटा बच्चा है ,अभी दो माह का ही हुआ है ,इसे अभी क्या पहचान होगी ?
तब ताई बोलीं -बच्चा अपनी माँ की महक से ही उसे पहचान लेता है ,ये ईश्वर की दी शक्ति है।
दोनों भाभियाँ ताई की बात से इत्तेफाक़ नहीं रखतीं थीं ,बोलीं -कल जब इसे तेज भूख लगेगी तो लेकर आउंगी ,कहकर बड़ी भाभी चली गयी ,अगले दिन जब बच्चा भूख से बिलबिला रहा था ,तब बड़ी भाभी छोटी भाभी के समीप उस बच्चे को लेकर आई ,जैसे ही उन्होंने उसे अपन गोद में लिया वो चुप हो गया और जैसे ही उसके मुख को अपने स्तनों की तरफ ले गयीं ,पहले तो रोया और फिर अपने होंठ नहीं लगाए ,उसने मुँह में ही लेकर पीने का प्रयास भी नहीं किया ,तब मैंने बड़ी भाभी से कहा -इसे आप अपनी गोद में लेकर अपना दूध पिलाना ,वो अपनी माँ की गोद में आते ही ,दूध ढूंढने लगा और आँचल में छुपकर दूध ,पीने भी लगा।
यह देखकर मुझे बेहद आश्चर्य हुआ ,क्या इतना छोटा बच्चा अपनी माँ को ,उसकी महक से पहचान सकता है ?उसे भूखे रहना मंजूर हुआ किन्तु अपनी चाची का दूध नहीं पीया।तब मैं छोटी भाभी से बोली - सच में भाभी ,ये आपके ''दूध का कर्ज़ ''लेना नहीं चाहता। ये मेरे लिए ये एक आश्चर्य था। शायद पिछले जन्मों के भी कुछ संस्कार होते होंगे ,जिनका असर इस जन्म में भी होता है।