इस माह नौचंदी का मेला लगने वाला है, किन्तु किसी को क्या फ़र्क पड़ता है ? जाना तो है नहीं ,जाकर भी क्या करना ,मेले में जाने के लिए भी तो, पैसा ही चाहिए। मेला तो पैसे से है ,पैसे वालों का है। होरीलाल और उसकी पत्नी चम्पा दिनभर मेहनत मजदूरी करके अपने परिवार को पालते हैं। हाँ ,एक बात तो अवश्य है ,मेले के कारण ,अब वो शाम को भी रिक्शा चलाता है। दोपहर में आराम करता है ,इससे उसे कुछ ज्यादा पैसे बन जाते हैं। होरीलाल के तीन बच्चे हैं , एक बेटा है -कल्लू। काला होने के कारण उसका नाम कल्लू पड़ गया जब छोटा था तब चम्पा अपने संग काम पर ले जाती और लौटते समय उसी राह से निकलती। तब कल्लू पूछता ,माँ ये दुकानें बंद क्यों हैं ?तब चम्पा उसे बताती - रात्रि में यहां मेला लगता है और रातभर यहाँ लोग जागते हैं और दिन में सोते हैं।
ये मेला क्या होता है ?उसने उत्सुकतापूर्वक पूछा।
मेले में ,बहुत सारी दुकानें ,झूले ,खेल -खिलौने होते हैं , खाने की भी बहुत सारी चीजें होती हैं ,दूर -दूर से लोग आते हैं ,और यहाँ आकर मेला देखते हैं ,सामान खरीदते हैं झूला झूलते हैं ,यहां आकर चंडी देवी की पूजा -अर्चना भी करते हैं। चम्पा ने बताया।
माँ मैं भी मेला देखूंगा ,मुझे भी मजे करने हैं ,कल्लू ने अपनी माँ से इच्छा जाहिर की।
चम्पा हँसते हुए बोली -हाँ ,हाँ रात को तेरे बापू से कहूँगी ,तुझे मेला दिखा लाये।
शाम को जब' होरीलाल 'अपनी रिक्शा निकाल रहा था तब चम्पा बोली - कल्लू को भी मेला देखना है ,उसे अपने संग ले जाइये।
आँखें तरेरते हुए होरीलाल बोला -तू भी क्या ,झमेला पाल रही है ? मैं सवारी देखूंगा या इसे सम्भालूंगा।
बच्चे का बड़ा ही मन है ,इसने कभी मेला नहीं देखा ,कई बरस तो मुझे भी हो गये ,मैंने भी नहीं देखा। आज मैं भी चलती हूँ कहकर उसने तीनों बच्चों को तैयार किया और बोली -मेला देखकर ,हम पैदल ही आ जायेंगे।
चम्पा की इस बात से होरीलाल तैयार हो गया और बोला -वहाँ बहुत भीड़ होगी ,बच्चे संभालना तेरी ज़िम्मेदारी ,इस शर्त पर ,वो बच्चों को रिक्शे में बैठाकर ले गया।
मेले की चकाचौंध देखकर बच्चे बड़े ही प्रसन्न थे ,ख़ासकर कल्लू ,उसने घर के एक छोटे से बल्ब की रौशनी से ,आज पहली बार इतनी अधिक रौशनी देखी थी। इतने बड़े झूले ,उसकी तो ''आँखें फटी की फटी ''रह गयीं। इतने सारे खेल -खिलौने ,रंग -बिरंगे गुब्बारे ,वो तो उन दुकानों को देखते हुए आगे बढ़ गया। तभी पीछे से किसी ने उसे खींचा ,तब उसका ध्यान भंग हुआ। उसकी माँ चम्पा उससे कह रही थी ,अपनी बहन का हाथ थाम ले ,और उसका हाथ मत छोड़ना ,वरना यहाँ से बच्चे पकड़ने वाले उठाकर ले जाते हैं।
उसे उस मेले की एक सच्चाई का भी पता चला।
आगे बढ़कर ,उसने एक आइसक्रीम खाई 'एक गुब्बारा भी लिया तभी एक दुकान पर उसे एक खिलौना पसंद आ गया। चम्पा पहले तो उसे ,ऐसी किसी भी बड़ी दुकान पर ले ही नहीं गयी किन्तु वो तो अचम्भित सा स्वयं ही ,उस दुकान की ओर बढ़ गया और चम्पा से एक खिलौने की माँग कर बैठा।
चम्पा खिलौने की दुकान देखकर ही ,चुप हो गयी और कल्लू को बहकाकर उसने दूसरे स्थान पर ले जाना चाहा किन्तु वो तो रोने लगा और जिद पर अड़ गया। अब तो उसे कुछ नहीं सुहा रहा था।
चम्पा ने उसे बहुत ही बहलाने -फुसलाने का प्रयत्न किया किन्तु वो तो ज़िद पर अड़ गया और जमीन पर लेट -लेटकर रोने लगा। चम्पा ने उसे शांत करते हुए ,कहा -अभी पूछती हूँ।
चम्पा बेटे की ज़िद पर ,उस दुकान पर चढ़ी और दुकानदार से बोली -भइया ये खिलौना कितने का दिया ?
दुकानदार ने उसे ,एक क्षण ऊपर से नीचे तक देखा ,जैसे उसे नाप रहा हो ,क्या ,इस खिलौने को लेने की इसकी औकात भी है ? तब दूसरे वाले ने जबाब दिया -ढाई सौ रूपये।
पैसे सुनकर ,चम्पा का चेहरा उतर गया ,वो तो घर से ही पचास रूपये लेकर आई थी। उसने अपने पैसे देखे अब सिर्फ़ उसके पास बीस रूपये थे। वो अपने बेटे कल्लू के समीप आई और बोली -उस दुकानदार ने उसे देने से मना कर दिया ,उसने कहा है - ये बेचने के लिए नहीं है , कल्लू को पहले तो विश्वास नहीं हुआ ,तब चम्पा ने उसकी दुकानपर उससे जाकर कहा -भइया मेरे बेटे को बोल दो ,ये बेचने के लिए नहीं है ,तभी मानेगा। पहले तो वो ,ये सब कहने के लिए तैयार नहीं हुआ और उसे घूरने लगा -जैसे कह रहा हो पता नहीं कहाँ -कहाँ से आ जाते हैं ?किन्तु कल्लू को सुबकते देखकर उसने ये सब कह ही दिया।
अब तो चम्पा तीनों बच्चों का हाथ पकड़कर मेले से ऐसे भागी जैसे उसके पीछे कोई भूत पड़ा हो और मेले से बाहर निकलकर ही दम लिया। संयोग से ,होरीलाल भी किसी सवारी का इंतजार करते उसे वहीं मिल गया।
उन्हें देखकर बोला - इतनी जल्दी घूम लिए ? तब चम्पा बोली -ये मेला -वेला हम जैसे लोगों के लिए नहीं ,ये तो पैसे वालों के चोंचले हैं। पैसा है तो मेला है और उसने सारी बात होरीलाल को बता दी।
उसके बाद हर वर्ष मेला लगता किन्तु चम्पा मेले जाने का नाम न लेती ,न ही बच्चों को कभी ले गयी।
अब तो कल्लू भी बारह -तेरह बरस का हो गया। सरकारी स्कूल में पढ़ने को भी जाता है उसने भी मेले जाने की कभी जिद नहीं की। इस बार पता नहीं ,दोस्तों के संग ,क्या -क्या करता रहता है ?चम्पा और होरीलाल यही चाहते थे - कि ये पढ़ -लिख जाये और कुछ क़ाबिल बन जाये।
अबकि बार उसने अपने बापू और माँ से कहा -मेला देखकर आना ,उन्हें तो बस यही चिंता थी -पता नहीं ,कहाँ घूमता रहता है ? दोस्तों संग रहकर कहीं बिगड़ न जाये। दो साल से वो पता नहीं दोस्तों के संग कुछ ज्यादा ही रह रहा है। चम्पा बोली - हमें कहीं नहीं जाना ,हर बरस ,वो ही सब तो होता है ,कुछ नया नहीं है। इस बार कुछ नया है तुम आओ तो सही।
जब वे लोग मेले में पहुँचे ,तो कल्लू उसी खिलौने वाली दुकान पर कार्य कर रहा था। चम्पा हैरत से बोली -तू यहां.......
कल्लू खुश होता हुआ बोला - मैं हर बरस इस मेले में आता हूँ ,पहले मैंने पैसे जोड़कर गुब्बारे बेचे ,खेल नहीं सकता ,बेच तो सकता हूँ। कुछ और पैसे जोड़े और दोस्तों ने भी कुछ मदद की। गुब्बारों के साथ कुछ खिलौने भी बेचे। और आज इस दुकान में ,कुछ खिलौने मेरे भी हैं और इस दुकान में काम के भी पैसे मिलेंगे। अब देखना दो -तीन बरस में ,मेरी ही ऐसी दुकान यहाँ होगी।
चम्पा के तो प्रसन्नता के कारण आँसू आ गए ,बोली -तू ये सब कर रहा था और हम सोच रहे थे कि लड़का कहीं बिगड़ तो नहीं रहा। तू तो ये सब कर रहा था ,तूने ये सब कैसे सोचा ?
माँ तू ही तो कह रही थी - कि मेला पैसे वालों का है ,तभी मैंने सोचा -पैसा खर्च करने के लिए नहीं है तो मेले से पैसा कमाया तो जा सकता है। ये सोच -सोच का ' 'फ़र्क ''है।
होरीलाल मुस्कुरा दिया और बोला -वाह.... मेरे बेटे ,जिन खिलौनों से खेल नहीं सका तो उन्हें ही बेचने लगा। वही मेला ,आज उसके कमाई का जरिया बन गया।