तृप्ति ,डॉक्टरी की पढ़ाई कर रही थी ,मम्मी -पापा की लाड़ली ,मम्मी का सपना था कि बड़ी होकर ,तृप्ति डॉक्टर बने। वो ''दिल ''की डॉक्टर बनना ,चाह रही थी किन्तु एक समय परिस्थिति ऐसी बनी कि वो जच्चा -बच्चा की डॉक्टर बनी। डॉक्टर किसी की भी बने ,भाव तो सेवा का ही है। किसी भी ,डॉक्टर के रूप में ,हो तात्पर्य तो, सेवा से ही है।जब वो पढ़ाई कर रह थी - एक बार उसने देखा, एक गर्भवती महिला ,बड़ी ही परेशानी में आई थी ,उसकी जाँच हुई ,जब उसकी जाँच होती तो उसकी घबराहट बढ़ जाती। हर माह अपनी जाँच कराने आती। नर्स का उनके साथ व्यवहार तृप्ति को अच्छा नहीं लगा ,उनके साथ ही क्या ?वो तो किसी के साथ भी व्यवहार अच्छा नहीं करती थी। इसके लिए मैंने उसकी शिकायत भी की थी ,तभी से मुझसे चिढ़ने लगी थी।
नर्स के अनुसार -उसका तो जैसे ये काम था ,और ऐसे प्यार से सभी मरीजों को संभालेगी तो सिर पर आकर चढ़ जायेंगे। कुछ लोगों के संग सख्ताई से पेश आना ही पड़ता है। ये हमारा काम है -रोजी -रोटी है जो हमें पूर्ण करना है। हमदर्दी ,प्रेम ,अपनापन ,इंसानियत ये सब यहां नहीं चलेंगे। यहां तो बस मरीज़ आया और अपनी ज़िम्मेदारी पूर्ण करो।
ये आप लोगों की सोच हो सकती है ,मेरी नहीं। वो सभी के साथ प्रेम से व्यवहार करती ,कहती -जब मैं डॉक्टर बन जाऊंगी ,तब दवाई के पैसे तो लूँगी किन्तु सहानुभूति ,अपनापन मुफ़्त। उस महिला रेवती से तो जैसे उसे लगाव सा हो गया और वो भी ,अब उसके आने पर ही डॉक्टर को दिखाती। जब उस महिला ने नवजीवन के रूप में एक नन्हीं सी परी को जन्म दिया और वो तृप्ति के हाथों में आई ,उसके नेत्रों से अनायास ही ,अश्रु बह निकले। उसकी नन्हीं कोमल अंगुलियां ,बिल्कुल सफ़ेद ,मुलायम ,उनसे उस नन्हीं परी ने तृप्ति की एक अंगुली ही पकड़ ली जिस सुखानुभूति का अनुभव उसे हुआ ,उसका रोम -रोम प्रफुल्लित हो उठा।
तभी उसने सोचा -एक महिला कैसे अपने जीवन पर खेलकर ,नए जीवन को इस संसार में लाती है ?इन्हें ज्यादा देखरेख कीआवश्यकता है ,किन्तु आज भी कुछ लोग इस नर्स की तरह ही लापरवाह और गैरज़िम्मेदार हैं।
इस वर्ष ,तृप्ति का आख़िरी साल है किन्तु उसकी शिक्षा में व्यवधान आ गया ,उसके पापा जो इस घर की नींव थे ,बीमार पड़ गए और ऐसे बीमार फिर उठे ही नहीं। उनकी बिमारी में भी बहुत पैसा लगा किन्तु वो फिर भी नहीं बचे। अब तृप्ति के सामने ज़िम्मेदारियाँ और अपनी शिक्षा दोनों ही थे किन्तु उसकी मम्मी ने साहस से काम लिया और तृप्ति को सिर्फ़ पढ़ाई पूरी करने पर ,ध्यान देने को कहा।
कभी -कभी तृप्ति को आने में देर हो जाती, तब उसकी मम्मी कहतीं -इतनी' देर रात ,से मत आया कर।
वो कहती- मम्मी मेरा तो काम ही ऐसा है ,मरीज़ की तबियत कभी भी बिगड़ सकती है ,मुझे देर -सवेर जाना ही पड़ सकता है। अब आप ,ऐसी आदत डाल लो ! इतनी परेशानियों में भी ,तृप्ति का व्यवहार अपने मरीज़ों के साथ ,और अन्य लोगों के साथ भी , सामान्य ही रहता।
अब तो तृप्ति डॉक्टर भी बन गयी। एक रात बहुत तेज बारिश हो रही थी ,हवा के तेज़ झोंके और बिजली की गड़गड़ाहट ,वातावरण को कुछ ज़्यादा ही ,भयानक बना रही थी। सभी लोग अपने घरों में ,खिड़की -दरवाजे बंद किये सो रहे थे। बीच -बीच में बिजली कड़कती ,बिजली भी जा चुकी थी। नींद अभी गहरी भी नहीं हुई थी ,तभी तृप्ति को लगा जैसे कोई हमारे घर का दरवाज़ा पीट रहा हो। पहले तो उसने ध्यान ही नहीं दिया किन्तु फिर भी ,शोर आना बंद नहीं हुआ तो उसने अपना भृम मिटाने के लिए ,बाहर झाँका ,उसे अँधेरे में कोई परछाई दिखी।
उसने वहीं से पूछा -कौन है ?
उधर से आवाज आई -जी मैडम जी ,मेरी पत्नी की तबियत बहुत ही खराब है ,आप तनिक एक बार उसे चलकर देख लीजिये। तृप्ति ने बाहर के मौसम का जायज़ा लिया और बोली -इस समय ,बाहर का मौसम देख रहे हो।
जी.... वो तो मैं ,देख ही रहा हूँ किन्तु मेरी भी मजबूरी समझिये ,उसकी तबियत बहुत ख़राब है और दर्द से कराह रही है। तब तक तृप्ति बाहर आ गयी थी ,बोली -क्या तुम्हारी पत्नी पेट से है ?
जी हाँ ! तभी तो इस वक़्त ,उसने आपके पास भेजा।
ठीक है ,मैं चलती हूँ , कहकर वो अंदर अपना सामान लेने आई। मम्मी को उठाना ठीक नहीं समझा ,छोटे भाई को दरवाजा बंद करने को कहकर बाहर आ गयी। उसने अपना छाता ले लिया था किन्तु उस व्यक्ति ने उसका छाता भी अपने हाथों में ले लिया और उसके सिर पर लगाकर चलने लगा। तभी तृप्ति के मष्तिष्क में प्रश्न उभरा -मैं भी कितनी मूर्ख हूँ ? ये भी नहीं पूछा ,जाना कहाँ है ?
उस व्यक्ति ने जैसे तृप्ति के मन की बात सुन ली ,बोला -यहीं थोड़ा आगे है ,बस आप मेरे साथ चलते रहिये।
कितने महीनें हुए ? तृप्ति ने पूछा।
बस दो दिन बाद नौ पूरे हो जायेंगे उसने बताया।
अच्छा !तुम्हारा क्या नाम है ?तृप्ति ने फिर से प्रश्न किया। जी ,रामखिलावन और मेरी पत्नी बर्फी देवी कहकर उसने अपनी बात पूर्ण की। तृप्ति कीचड़ ,गड्ढों से बचती ,उसके साथ चले जा रही थी। जब उसे लगा -कि चलते -चलते उसे बहुत देर हो गयी। जब घर से चली थी तो बारह बज रहे थे ,अब उसे चलते तो लगभग आधा घंटा हो गया। उसने रामखिलावन से पूछा -अभी और कितनी देर चलना है ?कहीं हमें देरी न हो जाये ,तुम्हारी पत्नी के पास, किसी को छोड़ा भी है कि नहीं।
रामखिलावन बोला -वो तो अकेली ही है ,बस हम पहुँचने वाले ही हैं। वो रास्ता देख रही थी ,कि मैं कैसे आऊँगी ? तभी रामखिलावन बोला -मैडम जी ,चिंता मत कीजिये ,मैं ही आपको वापस छोड़ आऊंगा।
कुछ देर और चलने के पश्चात ,वो एक मकान में घुसे ,तृप्ति ने देखा -उसकी पत्नी दर्द से कराह रही है ,उसने रामखिलावन को पानी गर्म करने के लिए कहा और कुछ जरूरी सामान मंगवाये। उसकी पत्नी का पेट काफी बढ़ा हुआ था ,तृप्ति ने उसके पेट पर हाथ फेरा और बोली -आप चिंता मत कीजिये ,सब ठीक हो जायेगा कहकर अपने कार्य में जुट गयी।
कुछ ही देर में एक नन्हें बच्चे के रोने की आवाज ,पूरे घर में गूँजने लगी इस बारिश के मौसम में भी ,इस घर में तीन लोग थे ,तीनों के चेहरों पर मुस्कुराहट थी। तृप्ति ने अपना कार्य किया और बोली -जच्चा -बच्चा दोनों स्वस्थ हैं अब मैं चलती हूँ। तब वो व्यक्ति बोला -मैडम जी !आपकी फ़ीस। तृप्ति ने उसके घर को नजरभर देखा ,उसकी हालत ही ऐसी थी, कि वो दोनों ही अपना खर्चा न जाने कैसे कर पा रहे हों ? उनकी हालत देखकर ,तृप्ति बोली - अभी आप ,जच्चा -बच्चा पर ध्यान दीजिये और मुझे मेरे घर छोड़ आइये। नहीं, मैडम जी !आप इतनी रात गए आयी हैं ,कुछ तो फ़ीस लेनी ही होगी।
तृप्ति लापरवाही से बोली -जो आपसे बन सके ,दे दीजिये।
ठीक है ,कहकर रामखिलावन एक दूसरे कमरे में गया और वहां से कागज़ का एक लिफ़ाफा लाया और तृप्ति को दे दिया। तृप्ति ने भी लापरवाही से ,अपने पर्स में रख लिया ,उसने यह देखने का भी कष्ट नहीं किया कि इस लिफ़ाफ़े में क्या है ?उसे लगा -यदि उसने देखा और उसे पसंद नहीं आया तो इन लोगों को दुःख होगा। इनके तो ,घर की ही हालत ख़राब है ,ये क्या दे सकते हैं ?उन्हें बुरा न लगे इसीलिए वो लिफाफा रख लिया।
जब वो अपने घर वापिस आई तो तीन -साढ़े तीन बजे होंगे ,अपना सामान रखकर सो गयी। सुबह जब तृप्ति की मम्मी ने देखा ,कि घर में कीचड़ के निशान लगे हैं ,तब बेटे से पूछा -तब उसी ने बताया कि रात को दीदी ,किसी व्यक्ति के संग गयी थीं ,उसकी पत्नी की हालत ख़राब थी।
बेटे की बात सुनकर ,वो मन ही मन बुदबुदाने लगीं -मैंने इस लड़की से कितनी बार कहा है ?कि ''देर रात ''में घर से बाहर मत निकला कर ,पता नहीं ,कौन कैसा व्यक्ति हो ?स्यानी लड़की है ,किन्तु सुनेगी नहीं।
लगभग नौ बजे तृप्ति उठी और उसकी मम्मी ने उसे'' आड़े हाथों ''ले लिया ,तुझसे कितनी बार कहा -रात बे रात कहीं मत जाया कर ,किन्तु तुझे तो सुनना ही नहीं है। तृप्ति ने अपनी मम्मी को शांत करने के उद्देश्य से कहा -मम्मी इस आँधी -तूफान में ,उसकी पत्नी की हालत बहुत ही खराब थी। बेचारा ग़रीब आदमी कहाँ जाता ?यहीं आकर दरवाज़ा पीटने लगा।
कहाँ गयी थी ?उन्होंने पूछा। पता नहीं ,अँधेरे में कुछ पता भी तो नहीं चल रहा था ,हाँ इतना अवश्य स्मरण है नाले का पुल पार किया था। इतनी दूर तू पैदल ही गयी ,वो आश्चर्य से बोलीं।
हाँ ,कहकर वो अपना पर्स टटोलने लगी। ये देखने के लिए ,कि उस रामखिलावन ने ,उस लिफ़ाफे में क्या दिया है ?और जैसे ही उसने लिफ़ाफ़ा खोला ,दोनों माँ -बेटी तो जैसे सदमे आ गयीं ,उसमें से सोने की गिन्नी और सोने के बिस्किट निकले।
तृप्ति बोली -रात तो ये लिफ़ाफा ,इतना भारी भी नहीं था और वो तो बहुत ही ग़रीब व्यक्ति था ,मुझे तो लगा था कि वो फ़ीस भी दे पायेगा कि नहीं।
दोनों शीघ्र ही घर से बाहर निकलीं ,और रिक्शा करके उस पुल को पार करके गयी जितना भी आगे बढ़ीं धीरे -धीरे बस्ती ही समाप्त हो गयी। आस -पास भी ऐसे लोग देखे , किसी से पूछा भी -कि रात्रि में यहाँ किसी के बच्चा हुआ है ? न ही वो घर मिला ,न ही वो लोग।
बहुत पूछताछ के पश्चात ,पता चला वर्षों पहले ,रामखिलावन नाम का व्यक्ति ,पास की बस्ती में रहता था उसकी पत्नी गर्भवती थी किन्तु डॉक्टर न मिलने के कारण ,मर गयी। रामखिलावन भी न जाने कहाँ चला गया ?तृप्ति को आश्चर्य था -इतनी बरसात में ,वो इतनी दूर पैदल कैसे आ गयी जबकि रिक्शे से भी एक घंटा लग रहा था। तब उसे रामखिलावन के शब्द स्मरण हो आये -वो कह रहा था ,मेरा बस चलता तो इस जगह एक हॉस्पिटल बनवा देता किन्तु मैडम जी आपका धन्यवाद !आपने हमारी बरसों पुरानी परेशानी दूर कर दी। तृप्ति ने अंदाजा लगाया -यानि अब उसका बच्चा सही -सलामत है।
उसकी बातों को ध्यान में रखकर ,उस सोने से ,तृप्ति ने जहाँ लोगों ने उसका घर बताया था और उसके खेत भी थे। वहीं एक बड़ा सा हॉस्पिटल बनवा दिया।