प्रातः काल का समय था ,हल्की ठंड भी पड़ रही थी। एक महिला ,अपनी बेटी के संग ,मेरे घर के दरवाज़े पर खड़ी थी। सुबह -सुबह कौन आ गया ?मैंने थोड़ा परेशान होते हुए ,निर्मला को देखने के लिए भेजा। अब मैं नहीं चाहती थी कि अब कोई भी आये ,क्योंकि मैं पहले से ही थकी थी। मेरी नींद भी पूरी नहीं हुई थी। मैं रात एक बजे ,एक महिला की तीमारदारी में जो लगी थी ,बेचारी दर्द से बड़ी कराह रही थी ,उसके दर्द का कारण नवजीवन का उत्प्नन होना था। लगभग साढ़े बारह बजे उसने एक स्वस्थ और सुंदर बच्चे को जन्म दिया ,जिसका रोना सुनकर,उसके परिवार वालों में उत्साह की लहर दौड़ गयी। किसी का रोना भी ,किसी अन्य की खुशियों उमंगों का कारण भी बन सकता है। ये मैंने अपने इस पेशे में जाना। जी हाँ ,मैं एक महिला'' डॉक्टर स्मृति ''हूँ।
इस समय भी शायद कोई इसी परेशानी को लेकर मेरे दरवाज़े पर खड़ा है। कहते हैं -''ग्राहक भगवान का रूप होता है '',किन्तु इस समय तो मैं इतनी थकी हूँ ,मैं किसी से भी मिलने की स्थिति में नहीं हूँ। वैसे भी मेरे'' क्लिनिक ''खोलने का अभी समय नहीं हुआ है। निर्मला आकर बताती है -ये तो केस ही दूसरा है ,एक माँ है ,जो बहुत ही परेशान है ,उसकी कुँवारी बेटी है। क्या... कुछ अनहोनी का आभास हुआ ,मेरी तो थकावट भी न जाने कहाँ गयी ?उन्हें अंदर बुलाया ,बेटी एकदम शांत और माँ रोने जैसी हालत में थी ऊपर से ग़रीबी का बोझ भी लिए थी ,उसने अपनी समस्या बताई। मैं समझ सकती थी -एक माँ का दर्द ,जिसकी बिन ब्याही बेटी माँ बनने जा रही हो।ये बच्चे भी न...... इन्हें अपने माता -पिता की तनिक भी चिंता नहीं ,बस अपनी ,जवानी के नशे में गलतियाँ करते जाते हैं और झेलना माता -पिता को पड़ता है।
मुझे एक माँ से हमदर्दी थी ,और उसकी बेटी के प्रति क्रोध ,उस अनचाहे गर्भ को ,मैं गिराने के लिए तैयार हो गयी। निर्मला को मैंने ,घर में ही [जो मैंने 'आपातकालीन ओ.टी. ''बनवा रखा था। ]उसमें उस लड़की को भर्ती करने के लिए कह दिया और कुछ आवश्यक बातें उसे समझाकर ,मैं आराम करने चली गयी। वैसे तो नींद न जाने ,कहाँ चली गयी ?फिर भी शरीर को आराम देना आवश्यक था। मैं लेटे -लेटे सोच रही थी- बेचारी माँ !न जाने कैसे और किन परिस्थितियों में इसे पाल रही है ?और ये ,गुलछर्रे उडा रही है।इसे न ही ,समाज की चिंता ,न ही अपने भविष्य की और न ही अपने परिवार के मान -सम्मान की चिंता। लानत है ,ऐसी औलाद पर ,सोच -सोचकर मन उसके प्रति वितृष्णा से भर गया। न जाने कब आँख लगी ?पता ही नहीं चला। अभी तो निर्मला मेरी सहयोगी सब संभाल ही लेगी।
लगभग दो घंटे पश्चात ,निर्मला की आवाज से मेरी नींद टूटी। मैडम ! अब उसके दर्द तेज़ हो रहे हैं। मैं फुर्ती से उठी और अपने दस्ताने पहनकर, उस पीड़िता के समीप गयी ,जो दर्द से कराह रही थी। मुझे उससे किसी भी तरह की हमदर्दी नहीं थी बल्कि उस पर क्षोभ था, फिर भी मैंने अपना कार्य पूर्ण किया। कुछ घंटों के पश्चात ,उसकी छुट्टी कर दी। उसकी माँ ने कुछ पैसे देने चाहे ,मैंने उसकी हालत देखकर ,उससे दवाईयों पर जो व्यय हुआ उसी के पैसे लिए। चलते समय ,एक पल को मैंने उस लड़की को देखा- जिसकी आँखों में वेदना थी। बड़ी मासूम लग रही थी ,मैंने तत्काल ही उससे नज़र फेर ली और उसकी माँ को कुछ आवश्यक दवाइयां देकर विदा किया।
उनके जाने के पश्चात ,मैं अपने अन्य मरीज़ देखने लगी। शाम को चार बजे थोड़ा आराम मिला ,मैंने चाय मंगा ली। निर्मला बोली -मैडम ! आज जो लड़की सुबह आई थी [कुछ घंटों के लिए मैं उस केस को भूल गयी थी ,निर्मला के कहने पर फिर से स्मरण हो गया ]क्यों ,क्या हुआ ?वो तो अब चली गयी। ऐसे बच्चे भी न ,देखा नहीं ,उसकी माँ कितनी तकलीफ़ में थी ?निर्मला बोली - मैडम !वो ही तो बता रही हूँ ,वो लड़की तो बेचारी अबोध है ,कुछ बातें अनकही ,अनदेखी और अनसुनी होती हैं ,हम उस पर विश्वास करते हैं जो हमें इन आँखों से दिखाई देता है और कानों से सुनाई देता है किन्तु कई बार हम वो नहीं देख पाते या सुन पाते जो सच्चाई है। क्या मतलब ?मैं कुछ समझी नहीं।
मैडम !मैंने उसकी माँ और बेटी की बातें सुनी हैं और अपनी जानने वाली से पता भी लगाया है। वो बेचारी बच्ची तो अपनी सौतेली माँ के चंगुल में फंसी है। बेचारी.... उसकी माँ ,उसे जबरदस्ती रात को भेजती है और पैसे कमाती है। क्या.... मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं थी। हाँ मैडम ,निर्मला ने बताया। इस लड़की का पिता तो होगा ,वो कहाँ रहता है ?मैंने निर्मला से पूछा। वो तो सारा दिन काम करता है और रात को शराब पीकर सो जाता है। इसी लड़की के लिए तो उसने विवाह किया और ये ही उसका लाभ उठा रही है। पिता को तो भनक भी नहीं। एक बात और निर्मला ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा -ये इसका पहला गर्भपात नहीं ,तीसरा या चौथा है। इसकी माँ स्थान बदल -बदलकर सहानुभूति अर्जित करती है और अपना कार्य करा लेती है। मेरे लिए अत्यन्त ही भयानक था ,ये अनदेखा -अनसुना सच। कभी -कभी हम बिना सोचे- विचारे किसी के विषय में भी अपनी राय बना लेते हैं ,अब मुझे उस लड़की के लिए अपनी सोच पर अफ़सोस था। मैंने मन ही मन,सच्चाई की तह तक पहुंचकर उस लड़की को उसकी माँ के चंगुल से बचाने का निर्णय लिया।