माँ 'तुम अब यहाँ ,अकेली क्या करोगी ? अब तुम भी हमारे संग चलकर रहो !अनंत अपनी माँ से बोला।
बेटा ! सम्पूर्ण ज़िंदगी इस शहर में बिता दी ,अब इधर -उधर जाकर क्या करूंगी ? जब तू छोटा था ,तब सोचा करती थी -जब मेरा बेटा पढ़ -लिख जायेगा ,तब निश्चिन्त होकर ,घूमने जाऊँगी। तू पढ़ा भी ,और साथ के साथ ही तेरी ,नौकरी भी लग गयी। कम पैसों में ही सही ,किन्तु तूने कभी कहा ही नहीं ,मम्मी मेरे साथ चलो !
ये बात तो ठीक नहीं है ,अनंत अपनी माँ के उलाहने से तिलमिलाया ,मैंने आपसे कहा था -मम्मी ! मेरे पास आ जाइये !
हाँ ,तब जब तेरी खाना बनानेवाली छुट्टी पर गयी हुई थी ,तब तुझे मेरी याद आई थी ,गहरी साँस लेते हुए वो बोलीं।
कैसे भी आई ?आई तो..... किसी न किसी बहाने बुलाया तो था।
क्या अपनों को बुलाने के लिये ,बहानों की आवश्यकता पड़ती है ? मैं कोई तेरी रिश्तेदार नहीं ,जो मुझे बुलाकर तू ,मुझ पर एहसान कर रहा था। मैं तेरी माँ हूँ , माँ को बुलाने का क्या एहसान ?वो तो उसका अधिकार होता है ,अपने बेटे की नौकरी पर जाकर ,अपने को ख़ुशनसीब समझती है। किन्तु पता नहीं, आजकल की शिक्षा से क्या सीख़ रहे हैं ? सौदेबाज़ी ! भावनाएं तो जैसे रह ही नहीं गयी है ,तू जब छोटा था ,तू तब भी ऐसी ,हरकतें कर जाता था ,किन्तु मैं सोचती थी ,बड़ा होगा ,अपने आप ही समझदार हो जायेगा किन्तु तू बिल्कुल नहीं बदला ,कहकर वो एकदम शांत हो गईं।
ये आपका आख़िरी फैसला है ,अनंत ने पूछा ,उन्होंने हाँ में गर्दन हिला दी। अनंत को अपनी माँ की ज़िद पर क्रोध तो बड़ा आया ,पर क्या कर सकते थे ?वो तो कुछ भी सुनने को तैयार नहीं ,अपनी पत्नी से बोला -डेज़ी !अपना सामान बांधो ! इन्हें तो किसी की सुननी नहीं है।अगले दिन दोनों पति -पत्नी अपना सामान लेकर घर से निकले ,चलते समय अनंत ने न ही माँ के पैर छुए ,न ही उसकी पत्नी ने ,आकर बोला - रहो !यहाँ अकेले..... कहकर ,वो टैक्सी में बैठकर चला गया। अपने बेटे के इस व्यवहार से वो बेहद आहत हुईं ,उसकी गाड़ी को जाते हुए ,खड़ी हुईं ,देर तक देखतीं रहीं ,जब तक कि वो आँखों से ओझल नहीं हो गई। घर के अंदर जाने का मन नहीं कर रहा था ,उन्हें ड़र लग रहा था ,इस सूने घर में वो अकेलीं कैसे रहेंगी ? कुछ दिन बच्चे साथ रहे थो इस घर में रौनक सी लग रही थी किन्तु अब वो अकेली..... सोचकर ही रुलाई फूट पड़ी। अंदर गयीं और बिस्तर पर लेटकर देर तक रोती रहीं।
थोड़ा मन शांत हुआ ,जो गुबार भरा था वो निकलना भी तो जरूरी था। उन्हें अपने बेटे की रात्रि वाली बातें स्मरण हो आईं ,उनका बेटा अपनी पत्नी से कह रहा था -मम्मी को भी अपने साथ ले चलते हैं ,यहाँ अकेली रहकर क्या करेंगी ?
देखो !मुझे ,तुम्हारी मम्मी की सेवा नहीं होने वाली है ,यदि तुम ये सोचकर ,ले चल रहे हो तो किसी भी तरह की गलतफ़हमी में मत रहना।
यहाँ से लेकर तो चलते हैं ,वहां जाकर देखेंगे ,क्या करना है ? ज्यादा परेशानी हुई तो, वृधाश्रम हैं हीं ,अभी इन्हें यहाँ से लेकर नहीं गए ,तब ये मकान कैसे बेचेंगे ?जब ये मकान खाली होगा ,तभी तो बिकेगा मैंने एक 'प्रॉपर्टी डीलर 'से बात कर ली है। हम लोग तो वहाँ रहेंगे ,तब इसका क्या करना है ?इसको बेचकर और अपने छोटे फ्लैट को बेचकर ,बड़ा सा घर या बड़ा फ्लैट ले लेंगे। उन्हें इस बात से कितनी ठेस पहुंची थी ?बेटे के मन में ,उनका या इस घर का कोई महत्व ही नहीं है ,जब पैदा करने वाले माता -पिता का ही उनकी ज़िंदगी महत्व नहीं रहा ,तब उनकी बनाई चीज से कैसे ,लगाव की उम्मीद कर सकते हैं ?उसके हिसाब से तो उसके माता -पिता की जमीन -जायदाद पर उसका पैदाइशी हक़ है। वो तो अच्छा हुआ ,उन्होंने ये मकान मेरे नाम पर ही किया ,जबकि मैंने मना किया था -मैं कहाँ ,इस घर को' छाती पर रखकर ले जाउंगी ',आप इसे अनंत के नाम कर दीजिये।
नहीं ,उन्होंने इंकार कर दिया -कोई भी ,व्यक्ति मरने के पश्चात ,सब यहीं छोड़कर जाता है किन्तु कल को मैं न रहा तो ,तुम्हारे सर पर छत तो रहेगी ,उम्र के एक पड़ाव पर आकर अपना ''सुरक्षा कवच ''बनाना भी आवश्यक है।
मैं कुछ समझी नहीं।
इसमें समझने वाली बात कुछ भी नहीं ,हमारे बच्चे अच्छे निकलते हैं ,हमारी सेवा करते हैं ,या हमारे साथ रहते हैं ,ये हमारी खुशनसीबी है किन्तु बच्चों के सामने गिड़गिड़ाना न पड़े ,उन पर हम बोझ न बन जाएँ ,ये असुरक्षा की भावना ही हमें सतर्क रहने को कहती है।
कितने अरमानों से उन्होंने ये घर बनवाया था ?बेटे को बस कमाने की चिंता होगी ,घर तो बना बनाया है ही और इस घर में तुम भी अपने को सुरक्षित महसूस करोगी। आज उनकी बात सही निकली ,आज ये घर ही मेरे लिए ''सुरक्षा कवच ''बन गया। हालाँकि मैं आज उनके बिना अकेली रह गयी हूँ किन्तु इस घर में मैं , अपने को सुरक्षित महसूस कर रही हूँ ,ऐसा लगता है ,वो आज भी मेरे साथ हैं। यदि वो ऐसा न सोचते ,तो आज पता नहीं ,मेरा क्या होता ?न जाने किस वृधाश्रम की शोभा बढ़ा रही होती ?
कुछ दिन अकेलापन खलता रहा तब उन्होंने ,अपने पड़ोसियों से ,रिश्तेदारों से भी सम्पर्क बनाये रखा ,ये भी उनका एक सुरक्षा का घेरा था ,यदि वो फोन नहीं करतीं तो वो लोग कर देते।
आज अचानक तबियत कुछ ज्यादा ही बिगड़ गयी ,बेटे को गए हुए सात साल हो गए ,एक बार भी फोन नहीं किया ,एक बार भी नहीं सोचा ,फोन करके ही पूछ लूँ - मम्मी आप कैसी है ?किन्तु आज उनका दिल अपने बेटे से मिलने को कर रहा था। उसे फोन किया -उसने उठाया भी...... बताइये क्या कहना चाहतीं हैं ,आप !
कुछ नहीं ,तेरी आवाज सुनना चाहती थी।
बस ,इसीलिए फोन किया ,कहना तो वो बहुत कुछ चाहती थीं किन्तु उसके रूखे व्यवहार के कारण ,बस यही शब्द ही निकले।
अब सुन ली ,मेरी आवाज़ ! अब रखूं , मुझे बहुत काम है ,कहकर उसने फोन रख दिया। आज पता नहीं ,मन इतना बेचैन क्यों हो रहा है ?ऐसा दिल कर रहा था ,बेटे को गले से लगाकर ,मन हल्का कर लूँ ,उसकी जितनी भी शिकायतें हैं ,दूर कर दूँ किन्तु उसके पास तो अपनी माँ के लिए समय ही नहीं था ,उसका स्वभाव बचपन से ही ऐसा है ,बड़े -बड़े सपने देखता था ,बड़ी गाड़ियों में घूमना, विदेश जाना ,उसके सपनों में कभी उसके माता -पिता थे ही नहीं। उस घर को देखते हुए ,सोचती हैं ,आज उनका ये ''सुरक्षा कवच ''मेरी सुरक्षा तो कर रहा है ,किन्तु जिस भावनात्मक सहारे की आज आवश्यकता महसूस हो रही है ,वे संवेदनाएँ कहाँ से लाऊँ ?आज आपकी यादों का ही तो सहारा है ,जब अपना तन ही साथ नही देता ,तब किसी से क्या गिला ? बहुत देर तक इसी तरह भूखी -प्यासी पड़ी रहीं ,आज किरायेदार भी नहीं है ,छुट्टी पर अपने गांव गया है। कितने अरमानों से जमीन खरीदी थी ? कहते थे -रचना ! यहाँ हमारा ''सपनों का महल होगा ''जिसमें हमारा प्यारा सा हँसता -खेलता परिवार रहेगा ,न जाने कितनी यादें मानस पटल में घूम गयीं ? तब लगा ,वो कह रहे हैं -रचना ! मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ ,आ जाओ !
अपने पति का हाथ पकड़कर आज वो ,इस 'सुरक्षा कवच 'से बाहर आती हैं ,वो आसमान की सैर पर निकल जाती हैं ,अब वो सम्पूर्ण वेदनाओं से मुक्त थीं। ''गरीब की मौत सबको दिख जाती है ,और उसके प्रति संवेदनाएं भी होती हैं किन्तु ऐसे अमीर जो घर की चाहरदीवारी में दम तोड़ देते हैं ,वो अपनों की संवेदनाओं के लिए ही तरस जाते हैं।''
दरवाजा खोलिये !आंटीजी ! बहुत देर से सुभाष दरवाजा खटखटा रहा था ,मौहल्ले वाले भी आ गए ,बहुत देर तक जब दरवाजा नहीं खुला ,तब किसी अनहोनी की आशंका से दरवाजा तोडा गया। देखा तो ,रचनाजी अपने परिवार की फोटो सीने से लगाकर ,गहन निद्रा में सो चुकी हैं। न जाने कितने दिन हो गए ?कोई नहीं जानता.....