पुलकित आँखें खोलकर देखता है ,वो बगीचे की बेंच पर लेटा था। अब उसे सब स्मरण हो जाता है। किस तरह वो अपने मम्मी -पापा से नाराज होकर ,घर से भाग आया ? पुलकित ऐसे ही किसी छोटे -मोटे परिवार से नहीं है। उसके पापा बहुत बड़े व्यापारी हैं ,बड़े से विद्यालय में उसको पढ़ाया। उसके दोस्त उसके साथ कभी बाहर घूमने जाते ,वो उनके जन्मदिन पर महंगे से महंगे उपहार देता। वो हमेशा दोस्तों से घिरा रहता। उसका अहंकार दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था। कोई उसे कुछ कह भी देता तो उसकी बेइज्जती हो जाती।
माता -पिता सोचते रहे ,अभी बच्चा है ,अब ये चीजें उसकी दिनचर्या में शामिल होने लगीं। उम्र के साथ उसके शौक भी बढ़ गए उसकी ज़िद भी बढ़ने लगी। बात -बात में उसकी दोस्तों के सामने बेइज्जती हो जाती। नौकरों को तो वो जैसे कुछ समझता ही नहीं था। उसकी मम्मी की नजरों से उसकी हरकतें छुपी नहीं थीं ,वो अक्सर अपने पति से ,पुलकित की हरकतों के विषय में बात करना चाहतीं थीं किन्तु उन्हें तो किसी बात पर ध्यान ही नहीं देना था। कभी कहते- बच्चा है ,जैसे -जैसे समझदार होगा ,अच्छा -बुरा ,सही -गलत सब समझने लगेगा।
पुलकित तो उम्र के साथ ,समझदार होने की बजाय बिगड़ता जा रहा था और उसके बिगड़े हुए दोस्तों की टोली उसके संग रहती। वो तो अपने को जैसे ,किसी सल्तनत का बादशाह समझता। कभी उसकी मम्मी उसे डांटती भी तो ध्यान नहीं देता और उसके दोस्तों के सामने डांट दिया तो उसकी बेइज्जती हो जाती। एक दिन तो हद ही हो गयी ,उसके दोस्त का जन्मदिन था और आज वो पहली बार शराब पीकर घर में आया ,आया तो आया उसने अपने से उम्र में कहीं ज्यादा बड़े नौकर को पीट भी दिया।
आज तो उसकी मम्मी से बर्दाश्त नहीं हुआ और उसकी जमकर पिटाई भी कर दी। उन्होंने कहा -ये तुम्हारे पापा की मेहनत की कमाई है ,इसको ऐसे बर्बाद नहीं होने दूंगी।
वो भी कहाँ मानने वाला था ?पलटकर जबाब दिया- ये घर मेरे पापा का भी है ,और इस घर पर मेरा भी अधिकार है। उसको इस तरह अपनी माँ से जबान लड़ते देख ,उसके पापा को बेहद दुःख हुआ और बोले -मैं तो समझता था तुम अभी बच्चे हो ,धीरे -धीरे समझदार हो जाओगे किन्तु आज तुम्हारा ये व्यवहार देखकर मुझे बहुत दुःख हुआ। जो माँ रात -दिन तुम्हारी चिंता में घुली जाती है ,उसके प्रति तुम्हारे मन में कुछ भी सम्मान नहीं ,जो अपनी माँ की इज्ज़त न कर सका उसका मेरे घर और मेरे जीवन में कोई महत्व नहीं।
पापा की बात सुनकर ,पुलकित भी तैश में आ गया और बोला -मुझे भी ऐसे माता -पिता के साथ नहीं रहना जो बात -बात में टोका -टाकी करते हैं। सा.......ला...... मेरी अपनी ज़िंदगी जैसे कुछ है ही नहीं। ऐसे माता -पिता से तो मैं अनाथ हो जाता और अपना सामान बांधने लगा -अब मैं यहाँ नहीं रहूँगा ,चला जाऊँगा। तुम रखो अपने पैसों को ,पैसों की धौंस दिखाते है। रखो अपने पैसों को ,अपने पास कहकर वो अपना बैग लेकर बाहर निकल गया।
चलते समय माँ ,ने रोका भी ,तब बोला -आपकी वजह से तो जा रहा हूँ ,पहले तो पापा को सिखा दिया और अब हमदर्दी जताने आ रही हैं। तब उसके पापा ने, उन्हें भी रोक दिया। वो शराब के नशे में ,बाहर तो आ गया किन्तु अब इतनी रात्रि को जाये तो कहाँ ?तभी उसे अपने एक दोस्त का स्मरण हुआ ,वो उसके घर की तरफ चल पड़ा। जब उसने आवाज़ दी -तब उसकी बहन बाहर आई और उसे देखकर अंदर गयी और बोली -भाई ,तेरा कोई शराबी दोस्त बाहर खड़ा है ,ये बात पुलकित ने भी सुन ली और वो वहाँ से उल्टे पैर वापस हो लिया।
दूसरे दोस्त के यहां गया ,तब उसने सुना उसकी माँ डांट और समझा रही थी -ऐसे बिगड़े हुए ,तेरे दोस्त हैं ,ये यहां इस समय क्या करने आया है ?
जब उसने बताया कि इसका अपने घरवालों से झगड़ा हो गया है ,तब बोलीं -अब तो इसे लिटा ले किन्तु सुबह होते ही बाहर कर देना ,मुझे नहीं पता था कि तेरे ऐसे बिगड़े हुए दोस्त हैं ,जो अपने परिवारवालों का न हुआ वो और किसी का क्या होगा ?
पुलकित को उन माँ -बेटों की बातें सुनकर ,उसे पता चल गया -कि तेरी इन लोगों के दिमाग में कितनी इज्जत है ?ये दोस्त भी सिर्फ़ मेरे पापा की मेहनत के पैसों के कारण ही दोस्त बने हैं ,वैसे इनके दिमाग में ,कोई उसका कोई मूल्य नहीं। वो बाहर किसी बगीचे में लेट गया ,पहले तो वहां के चौकीदार ने उसे भगा दिया था किन्तु जब उसका चेहरा देखा तब बोला -आप तो मेहता साहब के बेटे हैं ,आज इस तरह क्यों ?उसको इस तरह प्रेम से बोलते सुन पुलकित की आँखों में आंसूं आ गए ,आज उसने बेइज्जती के सिवा कुछ नहीं देखा और सुना।
तब वो चौकीदार बोला -आप तो उनके इकलौते बेटे हो ,इस तरह क्यों आ गए ?तुमने सोचा है -जिस बेटे के लिए वो इतनी मेहनत कर रहे हैं ,उसे एक ज़िम्मेदार और आदर्श नागरिक बनाना चाहते हैं और वो आज इस तरह क्रोध में उन्हें अकेला छोड़कर आ गया। ये भी सोचा है -उन पर क्या बीत रही होगी ?जिनका जवान बेटा रात में घर से बाहर भटक रहा है।
उनके प्रति पुलकित के मन में अब भी क्रोध था ,मन ही मन बुदबुदाया -उन पर क्या बीत रही होगी ?वो तो आराम से सो रहे होंगे ,मैं यहाँ भटकता फिर रहा हूँ। अगर उन्हें प्रेम होता तो इस तरह निकालते ही क्यों ?उसे चुप देखकर चौकीदार बोला -अब तुम यहां सो जाओ ! किन्तु आज ही के लिए कहकर चला गया।
पुलकित सोच रहा था -वैसे तो मम्मी सही कह रही थीं ,मेरे ये दोस्त नहीं चापलूस हैं वो भी पैसों के लिए ,उन पर खर्चा जो करता हूँ ,कैसे अपने घर में आराम से रह रहे हैं ?और एक मैं हूँ ,यहां मच्छरों से कुश्ती लड़ रहा हूँ। सोने का प्रयत्न करता है किन्तु मच्छर उसे सोने नहीं देना चाहते। सुबह ही उसकी आँख लगी होगी और बगीचे में घूमने वाले लोग आने लगे। कुछ लोग ऐसे भी थे जो उसे पहचानते थे और बोले -बेटे आज यहां कैसे और मेहता जी कैसे हैं ?उनकी बातों से उसे लगा -मेरे पिता की इन लोगों के मन में इज्ज़त है उनका सम्मान करते हैं और मैं उनके इस सम्मान को बिखेर देना चाहता हूँ।
अब उसे अपने घर की याद आने लगी ,अब तक तो मम्मी ,मेरे लिए फलों का जूस बनवा देतीं और मेरी पसंद का नाश्ता भी ,अब तो मम्मी को भी मेरी याद आ रही होगी और अधिक तमाशा बनने से बेहतर है घर चला जाये ,देखूं तो सही मेरे बग़ैर कैसे आराम से सो रहे होंगे ?यही सोचकर वो घर की ओर चल पड़ा तभी उसने अपने घर के सामने एक गाड़ी को खड़े देखा वो ये जानने के लिए कि यहाँ क्या हो रहा है ?छुप जाता है ,तभी उसे उसके पापा की लड़खड़ाती सी चाल उसे दिखती है और अश्रुपूरित नेत्र लिए मम्मी भी दिखीं।
अब उससे रुका नहीं गया और वहीं पहुंच गया ,उसे देखकर उसकी मम्मी उसके गले लगकर रोने लगीं और बोलीं -तेरे जाने के गम में तेरे पापा को ''दिल का दौरा ''पड़ गया। पुलकित की आँखों में आंसू आ गए और पापा से बोला -पापा आप चिंता न करें ,मैं आपके पास और आपके साथ हूँ ,जल्दी से ठीक हो जाइये। पुलकित ने कई दिनों तक अपने पापा की सेवा की और उस रात्रि के बाद से वो एक समझदार बच्चा बन गया। उसे एहसास हो गया था कि ज़िंदगी की सच्चाई क्या है ?अपने घर में ही सुकून है। ये ही हमारे अपने हैं ,जो हमारे लिए सोचते और करते हैं। सही मायनों में वो अपने घर लौट आया था