कार्तिक और मोना प्रतिदिन , अपने दफ्तर से आते समय कुछ देर ,समुन्द्र के तट पर बैठकर अपनी दिनभर की थकान मिटाते। मोना जब पहली बार अपने दफ्तर में आई ,तब उसकी सबसे पहले मुलाक़ात कार्तिक से ही हुई। कार्तिक ने उसे काम समझाने में ,घर दिखवाने में यानि उस नए शहर में ,मोना को कार्तिक का बहुत सहयोग मिला। दोनों ही अच्छी कम्पनी में हैं ,घर भी उसने अपने नजदीक ही दिलवा दिया। दोनों को ही एक -दूसरे का सहारा हो गया। साथ -साथ रहते ,दोनों ही एक -दूसरे पर जैसे निर्भर से हो गए ,उनका तो जैसे एक -दूजे को बताये या पूछे बग़ैर काम ही नहीं होता।
समुन्द्र के तट पर ,कुछ देर दुनिया की हलचल से दूर ,सागर की उछलती ,मचलती लहरों में खो जाते हैं । धीरे -धीरे एक -दूसरे के साथ जीवनभर रहने के सपने भी देखने लगे। उन्हें लगने लगा जैसे उनकी दुनिया एक -दूसरे के बग़ैर अधूरी है। छुट्टी में भी ,समुन्द्र के किनारे आकर ,वहीं गीली रेत पर, मिटटी के घरोंदे बनाते और खेलते। इन सभी बातों में वो जैसे अपना अस्तित्व ही भूल गए।
आज भी वो उसी प्रकार समुन्द्र के तट पर बैठे हैं, आज बिल्क़ुल शांत हैं , किन्तु समुन्द्र की लहरों की तरह उनके दिलों में हलचल मची है।आज ही तो ,कार्तिक मोना से अपने प्यार का इज़हार करने की सोच रहा था। इतने दिनों से साथ -साथ समय बिताया किन्तु आज तक एक -दूसरे से प्यार का इजहार नहीं किया ,आज वो यही सोचकर आया था। दोनों ही साथ -साथ नौकरी करते हैं ,एक -दूसरे को पसंद भी करते हैं ,साथ रहने के सपने भी संजोयें हैं। तब क्यों न ,इस सपने को हकीक़त में बदल दिया जाये ? समुन्द्र के तट पर चलते हुए ,मोना ने उसे बताया ,मम्मी -पापा बहुत दिनों से मेरे लिए ,लड़का देख रहे थे और अब उनकी तलाश पूरी हो गयी।
क्या???चौंकते हुए कार्तिक ने पूछा। ये बात मुझे तुम अब बता रही हो।
मुझे भी तो आज ही पता चला।
लड़का तुमने देखा है,उससे मिली हो।
नहीं ,उसकी फोटो देखी है , मिली तो नहीं। एक उम्मीद से मोना ने उसकी तरफ देखा।
वो क्या करता है ?
''बैंक में मैनेजर ''है।
स्मार्ट है.......
हाँ........
तब कुछ नहीं हो सकता।
क्या ,नहीं हो सकता ?
तुम इस रिश्ते के लिए इंकार नही कर पाओगी।
इंकार करना ही क्यों है ?
क्योंकि तुमसे ,मैं जो प्यार करता हूँ।
क्या ??मोना आश्चर्य से बोली। तुमने पहले क्यों नहीं बताया ?
पहले बताकर क्या हो जाता ?
वो इतना प्रभावशाली ,ऊपर से मैनेजर !
हाँ ,सो तो है ,मोना निराशा से बोली। तुमने शायद ये बात कहने में देरी कर दी ,पर क्या करूं ?मुझे तो तुम्हारी आदत पड़ गयी।
अरे कोई नहीं ,धीरे -धीरे छूट भी जायेगी।
दोनों उन लहरों को देखते रहे ,आज न जाने क्यों मन उदास है ?खुश नहीं हो रहा।
हाँ ,कभी -कभी ऐसा हो जाता है।
मेरा यहाँ से जाने का ,मन नहीं कर रहा।
क्यों ? क्या तुम भी मुझे चाहने लगी हो ?
शायद ,मुझे भी यही लग रहा है ,मोना ने जबाब दिया।
उस ''बैंक मैनेजर ''का क्या होगा ?
वही तो सोच रही हूँ ,जब मैं उसे इंकार करूंगी ,तो उसका क्या होगा ?
तुम इंकार क्यों करोगी ?
तुम जो मुझे चाहने लगे हो ?
क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करतीं ?
मुझे भी यही लग रहा है ,शायद मैं तुम्हारे बिना न रह सकूं कहते हुए कार्तिक से लिपट गयी।