बरसात का मौसम ''आते ही मन झूमने लगता है ,बारिश की ठंडी -ठंडी फुहार तन को ही नहीं ,मन को भी भिगो जाती हैं। चारों तरफ धुली -धुलि सी ,हरियाली ,लगता है जैसे ,प्रकृति ने धानी चुनर ओढ़ ली हो। बच्चों की तो बरसात में नहाने ,उछलने -कूदने की तमन्ना ,पूर्ण हो जाती है। सभी सड़कें भी धुल -धुलाकर इठलाती नजर आती हैं। बरसात में ,कहीं चाय और गर्म पकौड़ो की फरमाइश हो जाती है। बरसात जहाँ इतना सब कुछ लोगों के मन में उत्साह -उल्लास लाती है , वहीं दूसरी और के स्थानों पर ,कीचड़ और गंदगी से भरे नाले ,कभी -कभी तो घरों में ही पानी भर जाता। इसी तरह का एक घर हरिया और चम्पा का भी है। वो थोड़ा नीचे है तो बरसात का पानी ,बिना किसी की इजाज़त लिए और बिना किसी की परवाह के घर के अंदर घुसा चला आता है। गरीब के घर को जैसे सब अपना समझ लेते हैं ,बीमारी से लेकर बरसात का पानी भी बेरोक -टोक चले आते हैं।
वो दरवाजे से ही नहीं ,छत से भी आ जाता है। वैसे तो ''भगवान जब भी देता ,देता छप्पर फाड़कर''किन्तु वो तो छप्पर फाड़कर पानी बरसा रहा था। पिछले वर्ष ही तो ,छप्पर ठीक कराया था किन्तु बारिश से पहले जो उसके रिश्तेदार ,आंधी -तूफान चलाते हैं वे छप्पर को भी अस्त -व्यस्त कर जाते हैं और रही -सही कसर, ये मुई बरसात कर देती है। घर के आधे बर्तन तो बारिश का पानी समेटने में लगे हैं।
हरिया बोला -अबकि बार तो टिन की छत डलवा ही लूंगा।
चम्पा उसकी इस बात चिढ गयी और बोली -ये बात तो तुमने पिछले साल भी कही थी ,हर बरस कहते हो ! और उसी छप्पर को ठीक करा लेते हो।
मैं भी क्या करूं ? कुछ न कुछ खर्चा बढ़ ही जाता है। मोहन को नौकरी पर गए ,अभी तीन बरस ही तो हुए हैं ,वो कुछ पैसे भेजता रहता है ,तो घर के अन्य खर्चे हो भी जाते हैं वरना वो भी न हों। अब इन तीन -चार बरसों में बेटी का ब्याह किया ,फिर बेटे का ,बहु भी जचगीं के लिए, यहीं आ गयी। क्या तुमने देखा नहीं ?डॉक्टर की फीस ,उसकी दवाइयाँ, कितने खर्चे हुए ?वो तो अच्छा हुआ ,जमुना दूध दे रही थी ,तो घर में दूध -दही की कमी न रही। छोटा भी शहर पढ़ने के लिए गया है ,उसका खर्चा ! पैसे क्या पेड़ पर उगते हैं ? तुम्हारे देखते -भालते ,सब कार्य हो रहे हैं। सब काम हो रहे हैं ,किन्तु एक छत नहीं ड़ल रही। सोचा था -अबकी बार टीन की छत ही डलवा लूंगा किन्तु गर्मी देखकर सोचा -ये तो भभकेगी ,यही सोचकर ,शांत रहा। किन्तु अब ये इस बरसात में ,बहुत ही ज्यादा तंग कर रही है। अबकि तो पक्का ही छत डलवा लेंगे।
इसी छत के सहारे और तुम्हारी दिलाई उम्मीदों के सहारे ,अब जीवन के तीस बरस तो बीत ही गए ,कुछ और दिन प्रतीक्षा कर लूंगी ,कहकर चम्पा रसोईघर से और बर्तन लेने चली गयी।
बरसात जैसे आई थी ,वैसे ही चली भी गयी ,घर में थोड़ी सीलन थी वो भी धीरे -धीरे सूख गयी। बहुत दिनों बाद बेटी के यहां से संदेश आया ,हो भी क्यों न ?ख़ुशी की बात जो है ,बेटी के बेटा हुआ है ,ससुराल वालों ने ओन्ने भेजे हैं ,दोनों ही पति -पत्नि प्रसन्न थे। संदेशवाहक की खूब आवभगत की ,संदेशवाहक और कोई नहीं ,उसी का देवर जो था। चलते समय ,उसे पेन्ट -कमीज का कपड़ा भी दिया। वो भी खुश होता हुआ चला गया ,बेटी के ससुराल से कोई भी आये, ख़ाली हाथ भी तो नहीं भेज सकते। कल को उसे ही ताने सुनने को मिलेंगे।
शाम को हरिया ,खुश होता हुआ , खाना खाने बैठा और बोला -बस अब छोटे की नौकरी भी कहीं लग जाये और उसका भी घर बस जाये तो हमारी ज़िम्मेदारियाँ पूर्ण हों ,तब हम दोनों पति -पत्नि आराम से रहेंगे ,अपना कमाओ -खाओ !हमने अपने कर्तव्य पूर्ण किये।
तभी चम्पा बोली -उस ज़िम्मेदारी में तो अभी समय है ,किन्तु जो ज़िम्मेदारी अभी सिर पर आकर पड़ी है वो तो अभी पूर्ण करनी पड़ेगी।
ओह... !मुझे स्मरण है ,अबकि बार तो छत बनवा ही देंगे।
नहीं ,मैं उस ज़िम्मेदारी की बात नहीं कर रही।
और कोेनसी, जिम्मेदारी रह गयी ?
बेटी के घर से क्या 'ओन्ने 'यूँ ही आये थे ,अब हमें उसके बेटे का 'छुच्छक' देना है ,उसकी तैयारी करनी है। और वो उसे सामान गिनाने लगी।
उस खर्चे को सुनकर ,हरिया बोला -लगता है ,अब भी छत नहीं बन पायेगी।
कोई बात नहीं जी ,जब से ऐसे ही चलाया है तो थोड़ा और चला लेंगे , चम्पा ने सांत्वना दिया।
अब तो बड़ा बेटा भी पैसे ,कम भेजने लगा ,बच्चे होने पर उसके भी तो खर्चे बढ़ गए। दो वर्ष पश्चात ,छोटे की वहीं नौकरी भी लग गयी। नौकरी क्या लगी ?वो तो वहीं का होकर रह गया ,वहीं किसी लड़की से प्रेम विवाह कर लिया। उसने तो अपनी कमाई की एक इकन्नी न भेजी।
कहता है -तुम लोगों को दे नहीं रहा तो तुम लोगों से लिया भी तो कुछ नहीं।
हरिया को इस बात से दुःख पहुंचा और बोला -पढ़ाई क्या ?उसने बिन पैसों के कर ली।
चम्पा जानती थी, हरिया दुखी है ,बोली -तुम चिंता न करो जी ,हमने उसके विवाह में भी तो पैसे नहीं लगाये ,पढ़ा -लिखाकर ,इस क़ाबिल तो बना ही दिया कि अपने खर्चे स्वयं उठाने लायक हो गया हमें तो इसमें भी संतुष्टि है।
अगले दिन चम्पा ,उठी ही नहीं ,हरिया ने आवाज़ भी लगाई उसने एक करवट तो ली किन्तु वो उठ क्यों नहीं रही ?हरिया उसके करीब गया तो वो ठंड से काँप रही थी और उसे बहुत तेज़ बुखार था। हरिया डॉक्टर को बुला लाया ,उसकी दवाई से ठीक हुई भी ,फिर से बुखार चढ़ जाता। तब डॉक्टर ने टैस्ट कराये तब पता चला उसे तो ''मियादी ''हो गया है। अब तो काफी कमजोर भी हो गयी है।
उधर चम्पा भी परेशान अकेले हरिया का काम बढ़ गया ,घर का काम ,उसकी दवाई -गोली और खेतों पर भी जाना ,दरवाज़े पर खड़ी जमुना की भी देखभाल हो जाती। अब तो जैसे जीने की इच्छा ही नहीं रही। और एक दिन चम्पा ,अपने हरिया को अकेला छोड़कर चली गयी।
इस बरस भी बरसात हुई ,छत भी टपक रही थी किन्तु हरिया ,एक कोने में बैठा ,उस सूने घर और टपकती छत को देख रहा था किन्तु अब उसे छत बनवाने की कोई चिंता नहीं। न ही उससे कोई कहने वाला रहा। जिसकी माया थी ,वो ही न रही ,अब छत बनवाकर भी क्या करना है ?