ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः
ॐ जमदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम:
प्रचोदयात
कल यानी मंगलवार 7 मई को अक्षय तृतीया का अक्षय पर्व है,
जिसे भगवान् विष्णु के छठे अवतार परशुराम के जन्मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है
| तृतीया तिथि का आरम्भ सूर्योदय से पूर्व तीन बजकर उन्नीस
मिनट पर हो जाएगा और सूर्योदय पाँच बजकर छत्तीस मिनट पर है – अतः इसके बाद ही
अक्षय तृतीया का पुण्यकाल आरम्भ होगा | इस समय तैतिल करण और गण्ड योग है तथा
सूर्य, चन्द्र और शुक्र ये तीन ग्रह अपनी उच्च राशियों में भ्रमण करते हुए एक शुभ
योग बना रहे हैं | इसके अतिरिक्त राहु और केतु भी अपनी मूल त्रिकोण तथा उच्च
राशियों में भ्रमण कर रहे हैं | तो, सर्वप्रथम सभी को अक्षय
तृतीया की हार्दिक शुभकामनाएँ...
यों तो हर माह
की तृतीया जया तिथि होने के कारण शुभ मानी जाती है, किन्तु वैशाख शुक्ल तृतीया
स्वयंसिद्ध तिथि मानी जाती है | पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार
इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं उनका अक्षत अर्थात कभी न समाप्त होने वाला
शुभ फल प्राप्त होता है | भविष्य पुराण तथा अन्य पुराणों की
मान्यता है कि भारतीय काल गणना के सिद्धान्त से अक्षय तृतीया के दिन ही सतयुग और त्रेतायुग
का आरम्भ हुआ था जिसके कारण इस तिथि को युगादि तिथि – युग के आरम्भ की तिथि – माना
जाता है |
परशुराम के अतिरिक्त भगवान् विष्णु ने नर-नारायण
और हयग्रीव के रूप में अवतार भी इसी दिन लिया था |
ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतार भी इसी दिन माना जाता है | प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्री-केदार के कपाट भी इसी दिन खुलते हैं | माना जाता है कि महाभारत के युद्ध और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ
था तथा महर्षि वेदव्यास ने इसी दिन महान ऐतिहासिक महाकाव्य महाभारत की रचना आरम्भ
की थी |
जैन मतावलम्बियों के लिए भी अक्षय तृतीया का
विशेष महत्त्व है | जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ को उनके वर्षीतप के सम्पन्न
होने पर उनके पौत्र श्रेयाँस ने इसी दिन गन्ने के रस के रूप में प्रथम आहार प्रदान
किया था | गन्ने को इक्षु कहते
हैं इसलिए इस तिथि को इक्षु तृतीया अर्थात अक्षय तृतीया कहा जाने लगा | आज
भी बहुत से जैन धर्मावलम्बी वर्षीतप की आराधना करते हैं जो कार्तिक कृष्ण पक्ष की
अष्टमी से आरम्भ होकर दूसरे वर्ष वैशाख शुक्ल तृतीया को सम्पन्न होती है और इस
अवधि में प्रत्येक माह की चतुर्दशी को उपवास रखा जाता है |
इस प्रकार यह साधना लगभग तेरह मास में सम्पन्न होती है |
इस प्रकार विभिन्न पौराणिक तथा लोकमान्यताओं के
अनुसार इस तिथि को इतने सारे महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पन्न हुए इसीलिए सम्भवतः इस
तिथि को सर्वार्थसिद्ध तिथि माना जाता है | किसी भी शुभ कार्य के लिए अक्षय तृतीया
को सबसे अधिक शुभ तिथि माना जाता है : “अस्यां तिथौ
क्षयमुर्पति हुतं न दत्तम्, तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया | उद्दिष्य
दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यै:, तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव
||”
सांस्कृतिक दृष्टि से इस दिन विवाह आदि माँगलिक कार्यों का आरम्भ किया जाता
है | कृषक लोग एक एथल पर एकत्र होकर कृषि के शगुन देखते हैं साथ
ही अच्छी वर्षा के लिए पूजा पाठ आदि का आयोजन करते हैं | ऐसी
भी मान्यता है इस दिन यदि कृषि कार्य का आरम्भ किया जाए जो किसानों को समृद्धि
प्राप्त होती है | इस प्रकार प्रायः पूरे देश में इस पर्व को
हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है | साथ ही, माना जाता है कि इस दिन जो भी कार्य
किया जाए अथवा जो भी वस्तु खरीदी जाए उसका कभी ह्रास नहीं होता | किन्तु, वास्तविकता तो यह है
कि यह समस्त संसार ही क्षणभंगुर है | ऐसी स्थिति में हम यह
कैसे मान सकते हैं कि किसी भौतिक और मर्त्य पदार्थ का कभी क्षय नहीं होगा ? हमारे मनीषियों के कथन का तात्पर्य सम्भवतः यही रहा होगा कि हमारे कर्म
सकारात्मक तथा लोक कल्याण की भावना से निहित हों, जिनके करने
से समस्त प्राणीमात्र में आनन्द और प्रेम की सरिता प्रवाहित होने लगे तो उस उपक्रम
का कभी क्षय नहीं होता अपितु उसके शुभ फलों में दिन प्रतिदिन वृद्धि ही होती है –
और यही तो है जीवन का वास्तविक स्वर्ण | किन्तु परवर्ती जन
समुदाय ने – विशेषकर व्यापारी वर्ग ने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए इसे भौतिक
वस्तुओं – विशेष रूप से स्वर्ण – के साथ जोड़ लिया | लोग अपने
आनन्द के लिए प्रत्येक पर्व पर कुछ न कुछ नई वस्तु खरीदते हैं तो वे ऐसा कर सकते
हैं, किन्तु वास्तविकता तो यही है कि इस पर्व का स्वर्ण की
ख़रीदारी से कोई सम्बन्ध नहीं है |
एक अन्य महत्त्व इस पर्व का है | यह पर्व ऐसे समय
आता है जो वसन्त ऋतु के समापन और ग्रीष्म ऋतु के आगमन के कारण दोनों ऋतुओं का
सन्धिकाल होता है | इस मौसम में गर्मीं
और उमस वातावरण में व्याप्त होती है | सम्भवतः इसी स्थिति को
ध्यान में रखते हुए इस दिन सत्तू, खरबूजा, खीरा तथा जल से भरे मिट्टी के पात्र दान देने की परम्परा है अत्यन्त
प्राचीन काल से चली आ रही है |
अस्तु, ऊँ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु प्रचोदयात्... श्री लक्ष्मी-नारायण की उपासना के पर्व अक्षय तृतीया तथा
परशुराम जयन्ती की सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ... सभी के जीवन में सुख-समृद्धि-सौभाग्य-ज्ञान
की वृद्धि होती रहे तथा हर कार्य में सफलता प्राप्त होती रहे यही कामना है...
https://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2019/05/06/akshaya-tritiya-2/