पञ्चांग के अन्तर्गत हमने पञ्चांग के पाँचों अंगों पर चर्चा के साथ ही राहुकाल, यमगंड और गुलिका पर भी बात की | अब बात करते हैं अभिजित मुहूर्त की | अभिजित नक्षत्र का काल अभिजित मुहूर्त कहलाता है | इसका देवता ब्रह्मा को माना जाता है और किसी भी कार्य के लिए इसे शुभ माना जाता है | अभिजित शब्द का अर्थ ही है जो सदा विजयी रहे – जिसे जीता न जा सके – जिसे हराया न जा सके | अतः यह तो निश्चित ही है कि इस मुहूर्त में किया गया कार्य शुभ फलदायी होगा तथा उसके पूर्ण होने की सम्भावना भी प्रबल होगी |
Vedic Astrologers के अनुसार यदि किसी कार्य के लिए कोई शुभ मुहूर्त नहीं मिल रहा हो तो अभिजित मुहूर्त में उस कार्य को किया जा सकता है |यह मुहूर्त बुधवार को छोड़कर प्रतिदिन आता है और इसकी अवधि 48 मिनट की होती है तथा स्थानिक समय के अनुसार 11:45 से 12:15 के मध्य इसका आरम्भ होता है | किन्तु दिन की अवधि कम अथवा अधिक होने से इसकी अवधि भी घट बढ़ सकती है |
अभिजित नक्षत्र को विजय मुहूर्त के नाम से भी जाना जाता है तथा यह 28वाँ नक्षत्र माना जाता है | आरम्भ में अभिजित को ही प्रथम नक्षत्र माना जाता था | किन्तु कालान्तर में अश्विनी से नक्षत्रों की गणना की जाने लगी और अभिजित को नक्षत्र समूह से बाहर कर दिया गया | किन्तु बाद में इसे 28वाँ नक्षत्र स्वीकार किया गया और ऐसी मान्यता हो गई कि जिस दिन कोई अन्य शुभ मुहूर्त न मिलता हो उस दिन अभिजित नक्षत्र में कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है | मूलतः तैत्तिरीय संहिता और अथर्ववेद में इस नक्षत्र का वर्णन 28वें नक्षत्र के रूप में प्राप्त होता है | भगवान राम का जन्म भी इसी नक्षत्र में हुआ था |
शुभाशुभ मुहूर्त देखना एक अच्छी बात है, किन्तु अन्त में सदा की भाँति इतना अवश्य कहेंगे कि Astrologer के पास जाइए उचित मार्गदर्शन के लिए, किन्तु किसी प्रकार के अन्धविश्वास के शिकार होकर अपने कर्तव्य कर्मों से विमुख होने का प्रयास मत कीजिए…