अर्थों को सार्थकता दे दें
शब्दों के उदास होने पर अर्थ स्वयं पगला जाते
हैं |
आओ शब्दों को बहला दें, अर्थों को सार्थकता दे दें ||
दिल का दीपक यदि जल जाए, जीवन भर प्रकाश फैलाए
और दिये की जलती लौ में दर्द कहीं फिर नज़र न आए |
स्नेह तनिक सा बढ़ जाए तो दर्द कहीं पर छिप जाते
हैं
आओ बाती को उकसा दें, प्रेममयी आभा फैला दें ||
शूलमध्य कुछ पुष्प खिलें तो उपवन का यौवन बढ़ जाए
और अनगिनत मस्त तितलियाँ उसके आस पास मंडराएँ |
होकर उनसे आकर्षित, कुछ भ्रमर वहाँ फिर आ जाते हैं
आओ उनका मिलन करा दें, स्नेह का कुछ सौरभ महका दें ||
बहते आँसू से लिख डाली जिसने अपनेपन की गीता
कैसे कह सकते हो उसको, वह है अपनेपन से रीता ?
होता है पीड़ित जब मन, कुछ गीत अधर पर आ जाते हैं
आओ, जिनको ढूँढा है, उन गीतों को भी
कुछ चहका दें ||