पिछले कुछ दिनों
से बरखा रानी लगातार अपना मादक नृत्य दिखा दिखा कर रसिक जनों को लुभा रही हैं... और पर्वतीय क्षेत्रों में तो वास्तव में
ग़ज़ब का मतवाला मौसम बना हुआ है... तन और मन को अमृत रस में भिगोतीं रिमझिम
फुहारें... हरित परिधान में लिपटी प्रेयसि वसुंधरा से लिपट उसका चुम्बन लेते ऊदे
कारे मेघ... एक ओर अपनी वंशी पर सन सनननन का गान सुनाते पवन देव... तो दूसरी ओर झीन
झुन झीन झुन का इकतारा बजाती झींगुरों की टोली... और कभी समवेत स्वर में सामवेद का
गान करते दादुर... साथ में टिम टिम टिमकाते अन्धकार में प्रकाश की कुछ किरणें
बिखराते झींगुरों की बारात... क्या कुछ उत्सव धरा आकाश मिलकर मना रहे हैं कि
वास्तव में मन मचला जाता है और गा उठता है... ये बरखा का मौसम सजीला
सजीला... पूरी रचना सुनने के लिए कृपया वीडियो
देखें... कात्यायनी...