चैत्र मास 2023 के प्रमुख व्रतोत्सव
चैत्र मास – 8 मार्च से 6 अप्रैल – के व्रतोत्सव
मंगलवार 7 मार्च को होलिका दहन के साथ ही सायं छह बजकर दस मिनट के लगभग फाल्गुन पूर्णिमा के साथ फाल्गुन मास समाप्त होकर चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के साथ हिन्दू कैलेण्डर का प्रथम मास चैत्र मास आरम्भ हो जाएगा जो 6 अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा और हनुमान जयन्ती के साथ समाप्त हो जाएगा | प्रतिपदा तिथि का आरम्भ 7 मार्च को सायं 6:10 के लगभग बालव करण और धृति योग में होगा | किन्तु सूर्योदय काल में प्रतिपदा तिथि 8 मार्च को होने के कारण इसी दिन से चैत्र मास का आरम्भ माना जाएगा |
चैत्र मास का विशेष महत्त्व सर्वप्रथम तो इसी कारण से है कि यह मास हिन्दू सम्वत्सर का प्रथम मास है – इसीलिए इसे युगादि भी कहा जाता है | साथ ही, इस मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के सन्दर्भ में अनेक पौराणिक कथाएँ और मान्यताएँ उपलब्ध होती हैं | जैसे, ब्रह्माजी ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्टि की रचना आरम्भ की थी | भगवान विष्णु ने भी अपने दशावतारों में प्रथम मत्स्यावतार के समय प्रलय की अथाह जलराशि से निकालकर मनु की नौका सुरक्षित स्थान पर पहुँचाई थी तथा मनु ने प्रलय की समाप्ति पर नवीन सृष्टि का आरम्भ किया था | सत्ययुग का आरम्भ भी इसी तिथि से माना जाता है | ईरान में भी इस तिथि को नौरोज अथवा नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है | आन्ध्र में “उगादि” अर्थात युगादि यानी युग का आरम्भ, जम्मू कश्मीर में “नवरेह” पंजाब में बैसाखी, महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा, सिंध में चैती चंड यानी चैत्र का प्रथम चाँद, केरल में विशु, असम में रोंगली बिहू आदि नामों से मनाया जाता है | इसी तिथि से न केवल चैत्र नवरात्र आरम्भ होते हैं अपितु भगवान राम और युधिष्ठिर के राज्याभिषेक, तथा सिख परम्परा के द्वितीय गुरु अंगद देव का जन्मदिन भी इसी दिन होता है | चैत्र पूर्णिमा को चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र पर होने के कारण इस मास का नाम चैत्र रखा गया |
यह मास ऋतु परिवर्तन का मास होता है इसलिए स्वास्थ्य की दृष्टि से भी इसका बहुत अधिक महत्त्व हो जाता है | प्रायः इस मास में सुझाव दिया जाता है कि अधिक से अधिक पेय पदार्थों का सेवन करें – क्योंकि मौसम में खुश्की आने लगती है | चना खाना अच्छा माना जाता है | बासी तथा अधिक तला भुना और मसालेदार भोजन ग्रहण करना बन्द कर देना चाहिए तथा स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना चाहिए – होली के बाद बसोड़ा यानी शीतला माता की पूजा भी इसी तथ्य को पुष्ट करती है | चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवरात्रों के उपवास भी भगवती की पूजा अर्चना के साथ ही पाचन तन्त्र की सफाई और स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होते हैं – लेकिन तभी जब हम वास्तव में “उपवास” करें – न कि दिन भर व्रत के व्यंजन बनाकर खाते रहें – जैसा कि अधिकाँश परिवारों में देखने को मिलता है - फिर तो इन उपवासों का वास्तविक उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा | अर्थात अपनी जीवन शैली और खान पान में सुधार की आवश्यकता इस मास में विशेष रूप से होती है |
इस मास का आगमन ही रंगों की बरसात के साथ होता है | पतझड़ के बाद प्रकृति की नव सृजन लिए अनुपम छटा इस तथ्य का भी प्रतीक है कि जिस प्रकार कोई भी सुख सदा के लिए नहीं होता उसी प्रकार कोई भी समस्या सदा के लिए नहीं होती – समय आने पर हर समस्या का समाधान हो जाता है अतः चिन्ता करना व्यर्थ है | मान्यता है कि इस मास में ब्रह्म मुहूर्त में जाग कर यदि भगवान भास्कर की उपासना की जाए तो सूर्य की सहस्र रश्मियों के साथ स्वास्थ्य लाभ होता है | ऐसा सम्भवतः इसलिए भी माना जाता है कि भगवान भास्कर अपनी धवल धूप से कडाके की ठण्ड को दूर भगा देते हैं | यही कारण है इस महीने को आनन्द और उल्लास का महीना कहा जाता है | वास्तव में फाल्गुन और चैत्र मास दोनों ही वसन्त ऋतु के तथा वसन्तोत्सव के माह होते हैं अतः इस महीने में प्रेम और पारस्परिक सम्बन्धों में भी प्रगाढ़ता में वृद्धि होती है |
अस्तु, चैत्र मास में आने वाले सभी पर्वों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत है मास के प्रमुख व्रतोत्सवों की सूची...
बुधवार 8 मार्च – चैत्र कृष्ण प्रतिपदा / चैत्र मास का आरम्भ / होला मोहल्ला / रंग की होली / धुलेण्डी
रविवार 12 मार्च – चैत्र कृष्ण पञ्चमी / रंग पञ्चमी – होली से पहले चैत्र शुक्ल पञ्चमी को भी रंग पञ्चमी ही कहा जाता है और इस दिन अनेक स्थानों पर रंग भी खेला जाता है – लेकिन कुछ स्थानों पर चैत्र कृष्ण पञ्चमी को भी रंग खेलने की परम्परा है... यहाँ तक कि मथुरा वृन्दावन में भी कुछ मन्दिरों में चैत्र कृष्ण पञ्चमी को रंग के साथ होली के पर्व का समापन किया जाता है |
मंगलवार 14 मार्च – चैत्र कृष्ण सप्तमी / शीतला सप्तमी
बुधवार 15 मार्च - चैत्र कृष्ण अष्टमी / शीतला अष्टमी / बसोड़ा / मीन संक्रान्ति / सूर्य का मीन में गोचर प्रातः 6:35 पर / फूलदेई / फूल संग्राद
शनिवार 18 मार्च – चैत्र कृष्ण एकादशी / पापमोचिनी एकादशी
रविवार 19 मार्च – चैत्र कृष्ण द्वादशी / प्रदोष व्रत / पंचक आरम्भ प्रातः 11:17 से / रोग पंचक
मंगलवार 21 मार्च – चैत्र अमावस्या / अन्वाधान / दर्श अमावस्या
बुधवार 22 मार्च – चैत्र शुक्ल प्रतिपदा / साम्वत्सरिक नवरात्र आरम्भ / पिंगल नामक विक्रम सम्वत 2080 आरम्भ / 21 मार्च को रात्रि 10:54 से 22 मार्च को रात्रि 8:20 तक प्रतिपदा तिथि - घट स्थापना मुहूर्त 22 मार्च को द्विस्वभाव मीन लग्न में सूर्योदय में 6:23 से 7:32 तक – मीन लग्नोदय 6:08 पर है, किन्तु सूर्योदय 6:23 पर होने के कारण इसी समय से घट स्थापना का मुहूर्त आरम्भ हो रहा है जो लग्न की समाप्ति 7:32 तक रहेगा – किन्स्तुघ्न करण और शुक्ल योग /लग्न में दो योगकारक गुरु और बुध के साथ सूर्य और चन्द्र कि युति बहुत शुभ संकेत दे रहे हैं / भगवती के शैलपुत्री रूप की उपासना / गुड़ी पड़वा / युगादि
गुरूवार 23 मार्च – चैत्र शुक्ल द्वितीया / भगवती के ब्रह्मचारिणी रूप की उपासना / मत्स्य जयन्ती / पंचक समाप्त अपराह्न 2:08 पर
शुक्रवार 24 मार्च – चैत्र शुक्ल तृतीया / भगवती के चन्द्रघंटा रूप की उपासना / गणगौर पूजा
शनिवार 25 मार्च – चैत्र शुक्ल चतुर्थी / भगवती के कूष्माण्डा रूप की उपासना / लक्ष्मी पञ्चमी
रविवार 26 मार्च – चैत्र शुक्ल पञ्चमी / भगवती के स्कन्दमाता रूप की उपासना
सोमवार 27 मार्च – चैत्र शुक्ल षष्ठी / भगवती के कात्यायनी रूप की उपासना
मंगलवार 28 मार्च – चैत्र शुक्ल सप्तमी / भगवती के कालरात्रि रूप की उपासना
बुधवार 29 मार्च – चैत्र शुक्ल अष्टमी / भगवती के महागौरी रूप की उपासना
गुरूवार 30 मार्च – चैत्र शुक्ल नवमी / भगवती के सिद्धिदात्री रूप की उपासना / रामनवमी / स्वामी नारायण जयन्ती
शनिवार 1 अप्रैल – चैत्र शुक्ल एकादशी / कामदा एकादशी स्मार्त
रविवार 2 अप्रैल – चैत्र शुक्ल द्वादशी / कामदा एकादशी वैष्णव
सोमवार 3 अप्रैल – चैत्र शुक्ल त्रयोदशी / प्रदोष व्रत
गुरूवार 6 अप्रैल – चैत्र पूर्णिमा / हनुमान जयन्ती
चैत्र मास में आने वाले सभी पर्व सभी के लिए मंगलमय हों और माँ भगवती की कृपादृष्टि सभी पर बनी रहे यही
कामना है...