डॉ दिनेश शर्मा का यात्रा वृत्तान्त कल से आगे...
चलो थोड़ा घूमने चलें - 2 कल से आगे - दिनेश डॉक्टर
मानहाइम आकर चला गया । कुछ लोग उतरे कुछ चढ़े । आजकल
बिना किसी अपवाद के हर देश शहर में सब लोग अपने मोबाइल में ही मस्त रहते हैं ।
ट्रेन पर समस्त उद्घोषणा तीन भाषाओं में बारी बारी से होती है । पहले फ्रेंच फिर
जर्मन और सबसे अंत में अंग्रेजी में । ट्रेन मिनट मिनट के हिसाब से एकदम सटीक समय
पर चल रही है। रास्ते में सारे स्टेशन चमकते साफ सुथरे और एकदम व्यवस्थित हैं ।
गंदगी कूड़े का तो कहीं नाम निशान भी नहीं । न ट्रेन के अंदर न ही बाहर । अब ट्रेन
की बांयी तरफ चोंडे पाट वाली एक नदी भी साथ साथ है । शायद राइन नदी है। रेलवे ट्रैक
के दोनों तरफ भी न कोई कूड़ा है और न ही प्लास्टिक की पन्नियां जैसे कि हमारे देश
में आम नज़ारा है ।
ट्रेन अब जर्मनी में है । जहां एक तरफ फ्रांस में हर
छोटी बड़ी चीज में, चाहे स्टेशन हो या गाड़ियाँ, रेस्टोरेंट
हो या फल सब्ज़ी की दुकानें, उत्कृष्ट कलात्मक अभिरुचि झलकती
है, वहीं जर्मनी में हर जगह एक उत्कृष्ट डिसिप्लिन्ड
व्यवस्था दिखाई पड़ती है । सड़कें हो या स्टेशन, घर मुहल्ले
हों या बाजार, घास के मैदान हो या खेत हर जगह व्यवस्थित
जर्मन मस्तिष्क की परिकल्पना आपको प्रभावित करेगी ही करेगी ।
रास्ते में अभी भी कुछेक जगह द्वितीय विश्वयुद्ध के
अवशेष स्टेशन्स के आस पास की इमारतों में दिख ही जाते हैं इतने बरसों बाद भी ।
स्मार्ट फोन के एडिक्शन को भले ही कितना भी कोस लो, इसके
फायदे तो बहुत हैं । अब देखो न ये सारा किस्सा मैंने अपने स्मार्ट फोन पर ही लिखा
। अगर फोन नहीं होता तो इतनी स्पीड पर चलती ट्रेन में हाथ कांपता और लिखना संभव ही
न हो पाता । जय हो टेक्नोलॉजी की ।
अभी फ्रेंकफर्ट मुख्य स्टेशन से ट्रेन बदली है वीसबादन
मुख्य स्टेशन के लिए । संस्कृत के शब्द वाहन से जर्मन का शब्द बाहन होफ बना है
जिसके अर्थ है वाहनों के रुकने का स्टेशन यानी स्थान । इसी प्रकार संस्कृत के शब्द
आगार से फ्रेंच शब्द गार यानी के वाहनों के रुकने का स्थान बना है । यथा गार डी
लियों यानी के लियों का स्टेशन । गार डी ईस्ट यानी के पूर्व का स्टेशन । अभी मेरा
गंतव्य है वीसबादन हबत बाहन होफ यानी के वीसबादन शहर का मुख्य वाहन स्टेशन । अभी
कुछ ही महीने पहले मेरे भतीजे डॉ विकास शर्मा जी, जिन्हें सब स्नेह
से रिंकू कहते है और जो अत्यंत लब्ध प्रतिष्ठित मनोरोग चिकित्सक और वैज्ञानिक है,
बंगलोर से सपरिवार जर्मनी के इस शहर में आकर बसे है किसी महत्वपूर्ण
संस्थान में ऊंचे पद पर । बहुत समय से उनसे और उनके परिवार से मिलने का बड़ा मन था
। यूरोप किसी काम से आया था - वक़्त मिलते ही निकल पड़ा उनके साथ वीकेंड मनाने ।
जिस जर्मन डिसिप्लिन और उत्कृष्ट व्यवस्था का मैं कायल
हूँ उसका सबसे कमाल का नज़ारा जर्मनी के स्टेशनों, बस अड्डों और हवाई
अड्डों पर होता है । हर अनुदेश, डायरेक्शन इतना स्पष्ट है कि
दूसरे देश से आये किसी व्यक्ति को भले ही जर्मन भाषा न भी आती हो, ट्रेन बदलने में, गंतव्य तक पहुंचने में कोई भी
परेशानी हो ही नहीं सकती । मेरे ट्रेन बदलने का अंतराल मात्र दस मिनट का था । भारत
में होता तो संभव ही नहीं था कि दूसरी ट्रेन मिल जाती क्योंकि ट्रेन के बीस पचीस
मिनट से लेकर सात आठ घंटे लेट पहुंचना आम बात है । पर पेरिस से पहुंचने वाली ट्रेन
ठीक टाइम पर फ्रेंकफर्ट पहुंची । तुरंत प्लेटफॉर्म चेंज किया तो जो ट्रेन पकडनी थी
उससे भी सात मिनट पहले जो ट्रेन वीसबादन के लिए छूटती थी, वो
ही मिल गयी ।
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