आज आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को कुछ ही देर बाद भारत के साथ साथ संसार के कई देश एक ऐसी अद्भुत खगोलीय घटना के साक्षी बनने जा रहे हैं जो खगोल वैज्ञानिकों के अनुसार अब काफ़ी वर्षों तक नहीं दीख पड़ेगी | इस भव्य घटना को नासा के खगोल वैज्ञानिकों ने नाम दिया है Super Blue Blood Moon, अर्थात इस दिन सुपर मून, ब्लू मून और चन्द्र ग्रहण एक साथ दिखाई देंगे | वैज्ञानिकों के अनुसार चाँद और धरती के बीच की दूरी जब सबसे कम हो जाती है और चाँद पहले से अधिक बड़ा तथा चमकीला दिखाई देने लगता है तब उसे सुपर मून कहा जाता है | और चन्द्र ग्रहण वह स्थिति है जिसमें चन्द्रमा, पृथ्वी और सूर्य तीनों एक ही सीधी रेखा में आ जाते हैं, इस स्थिति में चन्द्रमा के कुछ अथवा पूरे भाग पर धरती की छाया पड़ने से सूर्य की किरणों का प्रकाश उस तक नहीं पहुँच पाता जिसके कारण वह धुँधला दिखाई देने लगता है |
आज 23:54 पर ग्रहण का स्पर्श होगा, 25:52 पर मध्य काल और 27:49 अर्थात सूर्योदय से पूर्व 03:49 पर ग्रहण का मोक्ष | ग्रहण की कुल अवधि होगी तीन घंटे पचपन मिनट | माना जा रहा है कि यह ग्रहण सदी का सबसे अधिक अवधि का ग्रहण है | ग्रहण के समय चन्द्रमा मकर राशि और उत्तराषाढ़ नक्षत्र में होगा तथा बव करण और प्रीति योग होगा | चन्द्रमा के साथ मकर राशि में उच्च का मंगल गोचर कर रहा है तथा मकर से सप्तम भाव कर्क में सूर्य के साथ बुध का भी गोचर है |
इस विषय पर पूर्व में भी लिख चुके हैं | अतः पौराणिक कथाओं के विस्तार में नहीं जाएँगे | हमारे ज्योतिषियों की मान्यता है कि ग्रहण की अवधि में उपवास रखना चाहिए, बालों में कंघी आदि नहीं करनी चाहिए, गर्भवती महिलाओं को बाहर नहीं निकलना चाहिए अन्यथा गर्भस्थ शिशु पर ग्रहण का बुरा प्रभाव पड़ता है, तथा ग्रहण समाप्ति पर स्नानादि से निवृत्त होकर दानादि कर्म करने चाहियें | साथ ही जिन राशियों के लिए ग्रहण का अशुभ प्रभाव हो उन्हें विशेष रूप से ग्रहण शान्ति के उपाय करने चाहियें | इसके अतिरिक्त ऐसा भी माना जाता है कि पितृ दोष निवारण के लिए, मन्त्र सिद्धि के लिए तथा धार्मिक अनुष्ठानों के लिए ग्रहण की अवधि बहुत उत्तम होती है |
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि ये सब खगोलीय घटनाएँ हैं और खगोल वैज्ञानिकों की खोज के विषय हैं | हम यहाँ बात करते हैं हिन्दू धार्मिक मान्यताओं की | भारतीय हिन्दू मान्यताओं तथा भविष्य पुराण, नारद पुराण आदि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चन्द्र ग्रहण एक ज्योतिषीय घटना है जिसका समूची प्रकृति पर तथा जन जीवन पर प्रभाव पड़ता है | कुछ ज्योतिषियों तथा पण्डितों द्वारा यहाँ तक कहा जा रहा है कि चन्द्रमा का लाल रंग होना बहुत अशुभ होता है तथा इसके कारण जल प्रलय और अग्निकाण्ड जैसी दुर्घटनाओं में वृद्धि हो सकती है | किन्तु हमारा अपना मानना है कि ग्रहण जैसी आकर्षक खगोलीय घटना से भयभीत होने की अपेक्षा इसके सौन्दर्य को निहार कर प्रकृति के इस सौन्दर्य की सराहना करनी चाहिए... क्योंकि इन सब बातों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, केवल जन साधारण की अपनी मान्यताओं, निष्ठाओं तथा आस्थाओं पर निर्भर करता है...
बहरहाल, मान्यताएँ और निष्ठाएँ, आस्थाएँ जिस प्रकार की भी हों, हमारी तो यही कामना है कि सब लोग स्वस्थ तथा सुखी रहें, दीर्घायु हों ताकि भविष्य में भी इस प्रकार की भव्य खगोलीय घटनाओं के साक्षी बन सकें… पूरा पढ़ने के लिए क्लिक करें...
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