मैं प्रतिदिन की तरह ,जब परिवार के सभी सदस्य अपने -अपने काम पर चले जाते ,तब घर की साफ -सफाई और बाहर बगीचे में पानी देना जैसे कार्य करती। एक दिन जब मैं अपने पौधों को पानी दे रही थी ,तभी मैंने देखा ,स्कूल के कुछ छात्र और छात्रायें ,झुण्ड में मेरी गली के पीछे की तरफ जा रहे थे। पहले तो मैंने सोचा -कि ये लोग इस समय ,अपने विद्यालय में क्यों नहीं हैं ?फिर सोचा -जा रहे होंगे कहीं ,सोचकर मैं अपने कार्य में व्यस्त हो गयी। अगले दिन भी यही हुआ ,तीसरे और चौथे दिन भी। उन बच्चों के समूह में ,मैं शायद एक बच्चे को जानती भी थी। मुझे अपनी तरफ देख ,वो उन बच्चों में छुपने का प्रयत्न कर रही थी।
अब तो मुझे लगा -अवश्य ही कोई ''गड़बड़ घोटाला ''है ,ये बच्चों की पढ़ाई का समय है और ये लोग इधर घूम रहे हैं ,प्रतिदिन इनका कौन सा काम है ?मैंने अपने घर की पीछे की खिड़की खोलकर देखा कि ये लोग कहाँ जा रहे हैं ?मैंने देखा ,ये सभी तो मेरे घर के पीछे से होते हुए ,एक सुनसान बंद गली में घुस जाते हैं ,इससे आगे मेरे घर की खिड़की से नहीं दिखा। अब तो मुझे कुछ ज्यादा ही ''गड़बड़ घोटाला ''लगा। शाम को अपनी बेटी से पूछा -तुम्हारी कक्षा में जो ,स्नेहा लड़की है वो तो तुम्हारी दोस्त है ,न। मेरी बेटी मुँह बनाते हुए बोली -है नहीं ,थी। क्या मतलब ?मैंने उत्सुकतावश पूछा। मम्मी अब उसकी दोस्त मैं नहीं ,सुप्रिया ,कृति ,सुरेंद्र और कपिल उसके दोस्त हो गए हैं ,एक -दो और भी हैं किन्तु मुझे उनके नाम नहीं मालूम।
एक दिन मैंने ,उस लड़की को आवाज़ लगाकर कहा -स्नेहा..... स्नेहा पहले तो उसने अनसुना किया किन्तु जब मैं अपने घर के दरवाज़े से बाहर आ गयी तो उसे ,सामने आना ही पड़ा।
जी आंटीजी !घबराती सी ,आगे आकर बोली।
तुम इधर से रोजाना गुजरती हो ,अपनी आंटी से मिलने भी नहीं आतीं। और बताओ तुम्हारे मम्मी -पापा कैसे हैं ?मैंने बातों का रुख मोड़ते हुए कहा। उसने भी राहत की साँस ली और बोली -सब ठीक हैं।
मैंने भी मुस्कुराते हुए कहा -कभी मम्मी -पापा को हमारे घर भी लेकर आओ !क्या ये लोग तुम्हारे दोस्त हैं ?जी..... उसने छोटा सा जबाब दिया। तभी एक ने कहा -चलो जल्दी !तब मुझे पूछने का मौका मिल ही गया -वैसे तुम लोग इधर कहाँ जा रहे थे ?जी ,एक दोस्त के घर एक लड़के ने जबाब दिया।
तुम उसे लेने रोजाना जाते हो, मैंने अपने प्रश्न जारी रखे। जी हाँ......!लगभग अपने दोस्तों को धकेलते हुए वो लड़का आगे बढ़ा।
वे तो बच्चे थे और मैं बच्चों की माँ ,मैंने भी ठान लिया ,इस ''गड़बड़ घोटाले ''से पर्दा उठाकर रहूंगी और बच्चों का सही मार्गदर्शन करूंगी।
मैं अपनी पड़ोसन के यहां गयी क्योंकि उसी के घर की खिड़की ,उस सुनसान गली में खुलती है। मेरे पास, मेरा फोन भी था ,हालाँकि पड़ोसन ने इस तरह अचानक आने का कारण जानना चाहा किन्तु मैंने कुछ नहीं कहा। बाद में बताऊंगी ,कहकर मैं उसके घर की खिड़की में जा बैठी। वहां जो 'गड़बड़ मैंने देखी ,मेरे तो होश ही उड़ गए। मैंने वो सब अपने फोन में रिकॉर्ड किया। न बताने पर भी पड़ोसन सब समझ गयी। पड़ोसन बोली -मैं तो ये सब रोज देखती हूँ ,मुझे क्या ?पता नहीं ,किसके बच्चे हैं ?किसी से कहो तो कोई विश्वास भी नहीं करेगा और ये तो बच्चों के भविष्य का सवाल है।
हां..... !बच्चों के भविष्य का सवाल है ,तभी तो ,आपको चुपचाप नहीं देखना था बल्कि ठोस कदम उठाना चाहिए था। मेरे कहने पर बोली -किससे कहें ?इनके माता -पिता से जिनके घर का ,माता- पिता का हमें पता ही नहीं। किसी से कहो भी तो कहेंगे ,हम अपना देख लेंगे ,आप अपनी सम्भालो कहकर पड़ोसन ने मुँह बिचका दिया।
मैं अपने घर आ तो गयी ,पहले तो मन किया ,कह तो वो सही रही थी कोई नहीं सुनता फिर मन ने धिक्कारा -ये आने वाले कल का भविष्य हैं ,इन्हें अभी नहीं रोका गया तो ,शायद कुछ बड़ा बुरा भी हो सकता है। यही सोचकर मैं तैयार हो ,उस स्कूल के प्रधानाध्यापक से मिली। उनके उन बच्चो की जानकारी ली ,पहले तो वे बताने के लिए तैयार नहीं हुए और जब बताया कि बच्चे कुछ गलत कर रहे हैं और आपके विद्यालय का नाम भी खराब होगा। बहुत बातचीत के पश्चात ,वो उन बच्चों के माता -पिता को बुलाने के लिए तैयार हुए। सभी को एक कमरे में बिठाकर ,उनसे कुछ प्रश्न किये गए। अंत में वो वीडियों दिखाया गया जिसमें वो सिगरेट पीने के साथ -साथ अश्लील हरकतें भी कर रहे थे। सभी की नजरें शर्म से झुक गयीं। तब मैंने उनसे कहा -ये सब दिखाने का मेरा उद्देश्य -आपकी नजरें झुकाना नहीं वरन बच्चों को सही राह दिखाना था। ताकि बच्चे जो गलतियाँ कर रहे हैं ,यहीं रोक दी जाएँ। आज छह बच्चे हैं ,कल को और भी बच्चे हो सकते हैं। उन बच्चों को भी बुलाया गया। उन्होंने इंकार किया किन्तु जब सबूत देखा तो इंकार न कर सके। आज पूरे विद्यालय में ,ये बात फैली थी ,अवश्य ही कोई ''गड़बड़ घोटाला ''है। कुछ बच्चों के ही माता -पिता को बुलाया गया है और प्रधानाचार्य के कक्ष में कुछ न कुछ तो झोल हो रहा है।
इस तरह ,उस कांड पर्दाफाश हुआ ,ये सब इतना आसान नहीं था। मुझे भी बहुत कुछ सुनने को मिला और मेहनत भी करनी पड़ी किन्तु जब हम कोई सही कार्य को सोचकर चलते हैं तो दुविधाएं तो आती ही हैं , रास्ते भी स्वतः ही बनते चले जाते हैं। बस सोच सही और' दृढ़संकल्प' होना चाहिए।