है समय अब भी संभल जा
ओ सरल नादान मानव, है समय अब भी
संभल जा |
हो रहा है खेल जबकि, सामने जीवन
मरण का ||
मन में मीठी कल्पना ले, नीड़ स्वप्नों में बनाकर
जा रहे उड़ते विहग संकेत सा करते
गगन में |
चाँद भी खोया गगन में, जो बना सबका सहारा
हो रहा है खेल क्योंकि सामने जीवन
मरण का ||
हैं थकित तन और मन, हैं थक चुकीं अभिलाष सारी
साँस भी चलती थकित सी, झूमती पुतली नयन की |
है बड़ी हलचल जगत में, मिट गया सौन्दर्य नभ का
हो रहा है खेल क्योंकि सामने जीवन
मरण का ||
खेल होगा बन्द कब तक, कौन जीतेगा यहाँ
हर कोई इससे अपरिचित लड़खड़ाता चल
रहा |
हो रहा है खून सम्मुख आज सबके सुख
सपन का
हो रहा है खेल जबकि सामने जीवन
मरण का ||
होश कर, मत भूल कर, प्रतिकूल है ये समय जब तक
चल रहे
हैं चाल तिरछी, सकल ग्रह नक्षत्र जब तक |
मत निकल
घर से, अरे पछताएगा तू रोएगा
हो रहा है खेल क्योंकि सामने जीवन
मरण का ||
सुख के दिन भी आएँगे, दुःख
तमस भी छँट जाएगा
जो रहेगा मन में डेरा आस और
विश्वास का |
है समय, कर तू प्रदर्शन आज अपने धैर्य
का
हो रहा है खेल क्योंकि सामने जीवन
मरण का ||
________________कात्यायनी...